1. सलीका
वे ताउम्र
खाना पकाती रहीं
लेकिन नमक डालने का
सलीका
उन्हें उम्र भर
नहीं आया
उन्होंने
खाने की थाली फेंक कर
उन्हें नमक डालने का
सलीका
सिखाया।
2. भाई
वे कब तक हमारे साथ होते
एक दिन हमें अलग होना था ,
राह में अकेले आगे बढ़ते देख,
हाथ हिलाकर उन्होंने
हमें कभी विदा नहीं किया ,
उनकी सशंकित आँखें
दूर तक हमारे संग आयीं
सीट पर बैठा कर
बस से नीचे उतरते हुए
नमी से झुकी पलकों को
उन्होंने अपनी हथेलियों से थाम लिया ;
उनकी अधूरी रुलाई की हूक
अब तक हमारा पीछा कर रही हैं।
3. बहनें
जीवन की अनवरत यात्रा में
बहनें नदी -सी मिलीं
जिसके किनारे थोड़ी देर बैठ
हाथ -मुँह धोये और सुस्ता लिए
नित आगे बढ़ने के लिए
पीठ पर थपकी देते हुए
अपने अँचरा से वे
देती ही रहीं राह खर्च
बियांबान पथ में पाथेय
उन्हीं के हाथों मिला
जब तक हम ओझल ना हुए
वे हाथ हिलाते रहीं।
4. माँ
ब्रह्माण्ड से हमें
जोड़ती
आकाश- गंगा सी
हमारी माँ
हमारे लिए ही
संजोती रहीं
अमृत की एक-एक बूंद
उन्हीं की आत्मा की
उजास
भरती रही हममें
दूधिया इंजोर !
5. मेरे पिता
पिता
मेरे ध्रुव तारा
अटल, निश्चयी,
मेरा दृढ़ विश्वास;
मुझसे बहुत दूर
मेरे पास
घूमरती रहूँगी मैं
जीवन भर
उन्हीं को देखकर
उन्हीं के अक्ष पर
मैं निहुरी रहूँगी
वह भरते रहेंगे
मुझ में उजास !
6. सीखना
“गुगू चु
तीसी तेल
पारे करबे
बुढ़िया
थरिया -लोटा
नावा घर
धँसते
पुराना घर
उठते”
गाते हुए
हमें
हमारी
माँओं ने
पैरों में झुलाया
विध्वंस और निर्माण का
संतुलन
समझाया।
7. आजी
जाने कौन देस होंगी
हमारी आजी
पुरना लुगा से
लेंदरा बैठाती
गेंदरा कांथती
कहीं संजोती होंगी
चेथरा
गीत गुनगुनाती होंगी-
“एतइ सुंदर काँचा रतन,
काया रे गुइयाँ ऽ ऽ
माटी में मिलि गेल’ऽऽ
सांझ बेरा
सरई के पतई में
धुत्तू रोटी पकाकर
देखतीं होंगी
चिरई -चुरगुन का
आसरा।
8. आस
धान उसना- बरका करती हुई
अंबा आयो की आंखों में
धुआं अक्सर आ घुसता है
लोरियाती आंखों से वह चूल्हे में
लकड़ी धकेलती है
धान जब बरकते हुए खदबदाता है
अंबा आयो के मन में भी
खदबदाते हैं कई प्रश्न
क्या कभी लौटेगा ?
‘कोड़ा’ गया हुआ अंबा – आबा
धान उसीनते हुए उसमें
वह शकरकंद भी मेसा देती है
अंबा के आबा को याद करते हुए।
अंबा आयो छाँह में धान सूखाती है
फिर धूप में;
कहीं चावल के दाने टूट न जाय
ढेंकी कूटती, चाऊर फटकती
उसकी चिंता
खुद्दी चाऊर और भूसे सी
छितरा जाती है
क्या पता इस बार भी,
उजाड़ ही बीतेगा माघ मेला।
9. मैं कोई कोहडा का फूल नहीं
मैं कोई कोहड़ा का फूल नहीं
कि तुम्हारे टेमाने से
गल जाऊंगी
मैं धरती की बेटी चलते ही रहूंगी
अपनी धुरी पर पृथ्वी की गति से
चलती ही जाऊँगी
किसी दिन
ज्वालामुखी बन
फूटूँगी !
तब तुम्हारी
टहोकने की मति सारी
राख हो जाएगी धरती की आग में।
10. पिता!
मैं तुम्हारी बगिया की
सोन- चिरैया नहीं;
तुम्हारे आँगन में ,
नीम का पेड़
होना चाहती हूँ।
11 . थेथइर के फूल
नहीं होना मुझे गुलाब
मुझे तो ‘थेथइर’ का फूल होना है
नहीं बनना लाजवंती
‘थेथइर’ ही रहना है
उखड़ कर भी उगती ही रहूँगी
सड़क किनारे ‘दोइन’ में
जहाँ कहीं भी हो थोड़ी सी नमी,
आँख भर पानी
‘थेथइर’ के फूलों सी झूमती रहूँगी
किसी देवता की पूजा का
फूल नहीं बनना मुझे।
12. समानता
घर के अंदर आने के लिए
घर के दरवाजे
पुरुष के लिए
आधी रात को भी खुले रहे
देर रात
घर लौटती स्त्री के लिए
घर के दरवाजे
बाहर निकल जाने के लिए
आज भी खुले हैं चौबीसों घंटे।
13 . खिलखिलाना
स्कूल से लौटती हुईं
हम सहेलियाँ
खिलखिलाते हुईं
अपने-अपने घर लौटतीं
गाँव की भौजाईयों के कान खड़े हो जाते
वह अपनी-अपनी से पचरी से
उचक कर हमें देखतीं
और हम बेपरवाह
खिलखिलातीं रास्ते पर आगे बढ़ जातीं।
मैंने अपनी माँ को
कभी भी खिल खिलाकर
हँसते नहीं देखा
जब वह ब्याह कर आयीं
तो सोलह की थीं
अब अस्सी की हो गईं
ताजुब्ब है
अपने जन्म के बाद
जबसे होश संभाला
उन्हें जी भर कर हँसते
कभी नहीं देखा
लेकिन खिलखिलाते हुए
वे कैसी दिखती होंगी?
मेरी मँझली दीदी
जब खिल खिलातीं थीं
बादलों के बीच धूप खिल उठता
छान पर अनगिनत नेनुआ के फूल खिल जाते
ब्याह के बाद
हमने उन्हें कभी भी
खिलखिलाते हुए नहीं देखा
अब तो उदासी मैं उन्हें गाते देखा है-
“सासु ननद दिहल गारी रे
गुनि-गुइन जीवा हारी”।
14 .डार से बिछड़ी हुई सखियाँ
कुछ ब्याह दी गईं
सोलह की उम्र में
अपने से दुगुनी उम्र से
कुछ का ब्याह
अनगिनत जिम्मेवारियों से हुआ
कुछ सखियाँ
परंपराओं से बांध दी गईं
कुछ सखियाँ जिन्होंने दिखाया,
थोड़ा ज्यादा ही अनमनापन
उन्हें ठोंक दिया गया
किसी दबंग खूँटे से;
ये सखियाँ जिनकी एक अंगुरी
माई के अँचरा में ही फंसी रह गई थी
ससुराल में जीवन भर ताना सुनती रहीं,
अपना लहूलुहान हाथ लिए
लेसती रहीं दीवार पर माटी और गोबर
घूंघट काढ़ते-काढ़ते
चालीस की उम्र में साठ की लगतीं
ये मेरी सखियाँ
अब तो अपना दुख भी नहीं पहचानती हैं।
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प्रज्ञा गुप्ता, सहायक प्राध्यापिका,
हिंदी विभाग , रांची वीमेंस कॉलेज, रांची, झारखंड पिन- 834001, मोबाइल -8809405914