गम्भीर संकट में है पर्यावरण
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पुरातन काल से ही
पर्यावरण
देता आ रहा है
मानव और
सम्पूर्ण जीव- जगत को
पुष्ट प्रश्रय
बनाये रहा है
जैविक – अजैविक
संघटकों का अस्तित्व
किन्तु यह बहुत ही
चिन्ता जनक है कि
आजकल गम्भीर
संकट में है पर्यावरण
मनमाने पन की
मानवीय गतिविधियों से
मॅंडरा रहा है भूपर
पर्यावरण प्रदूषण का
जोरदार खतरा
उजाड़े जा रहे हैं जंगल
विरमाया जा रहा है अमंगल
घट रही हैं
वृक्षों की प्रजातियां
दुर्लभ हो रही हैं
औषधीय वनस्पतियाँ
सूख रही हैं
जीवन दायिनी नदियाँ
कम होती जा रही है
शुद्ध जल की उपलब्धता
पहुँच रही है
जैव विविधता को भारी क्षति
ध्वस्त किये जा रहे हैं पहाड़
हो रहा है लगातार
प्रकृति नायिका के साथ
जमकर खिलवाड़
दिखा रहा है जलवायु परिवर्तन
तबाहियों का ताण्डव नर्तन
ऐसे अति कष्टप्रद परिवेश में
कैसे हो सकता है सम्भव
राहत की सांस लेना
सकुशल जीवन जीना
अब बहुत ही जरूरी है
साहस का सिन्धु उमडाना
पेड-पौधों की संख्या में
निरन्तर बढोत्तरी करते हुए
पृथ्वी को सजाना
हरीतिमा की बहार बुलाना
और
पर्यावरणीय प्रदूषणों के
खात्मे हेतु
आर – पार का अभियान चलाना
ताकि मजबूती से हमेशा ही
पर्यावरण रहे संरक्षित
सबका जीवन रहे सुरक्षित
समग्र विश्व रहे चिन्ता रहित |
धधकती आग लिखूॅंगा
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पुष्ट प्रेम सद्भाव शान्ति का
राग लिखूँगा
रंग रास उल्लास मिलन का
फाग लिखूँगा
लेकिन जो भी मनुष्यता का
घोर शत्रु है
उसके लिए अवश्य धधकती
आग लिखूँगा |
सत्ता का ताज
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नफरतों की नागफनियां
उगाकर
बवालों के बबूलों को
बढ़ाकर
अहंकार भरी बोली के
तीक्ष्ण बाण बरसाकर
समरसता की सरिता को
सुखाकर
भय का भयंकर भूत
चढ़ाकर
मजबूत उम्मीदों का किला
ढहाकर
प्रतिपक्ष की आवाज को
निरर्थक दबाकर
तानाशाही पना का बुल्डोजर
चलाकर
और
खेल ही खेल में जनतंत्र का
जनाजा निकाल कर
कोई भी तानाशाह सत्ताधीश
कर नहीं सकता
सबके दिलों पर
ज्यादा दिनों तक राज
उतर जाता है जल्दी ही
उसके शीश से
सत्ता का ताज |
तानाशाही का हन्टर
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यह अत्यन्त त्रासद है
कि मौजूदा वक्त में
बहुत ही कठिन दौर से
गुजर रही है
प्यारे हिन्दुस्तान की
असहाय जनता
क्योंकि जगह जगह पर
चल रहा है धुआँधार
तानाशाही का हन्टर
स्वेच्छचारिता के
बहुत ही मनचले बादल
बरसा रहे हैं लगातार
अनर्थ के अंगार
जल रहे हैं राहतों के
बाजार
लगता है विकट संकटों के
महासिन्धु में आज
डूब रहा है लोकतंत्र का जहाज
तानाशाह के
घोर घमण्ड का घोड़ा
रौंदता है जमकर
सद्भावना की फसलें
बढ रही हैं मुश्किलें
मनमानी पना की
जबरदस्त जोरदारी से
संत्रसित है
हर एक लोक जन
जो दिखता है बेहद
दुखी
फूट सकता है अचानक
उसके भी क्रोध का
धधकता हुआ ज्वालामुखी
याद रहे यह हमेशा ही
कि चाहे
कोई भी तानाशाह
कितनी भी डुबायें
मानवीयता की कश्तियाँ
कितनी भी उजाडें
संवेदनशीलता की बस्तियाँ
किन्तु वह
सुखा नहीं सकता
सत्यता की सरिता
मिटा नहीं सकता
जीवनी शक्ति की
कालजयी कविता
घटा नहीं सकता
अन्तरात्मा की अक्षय
क्षमता
रोक नहीं सकता
किसी भी सच्चे सर्जक की
सांसो की रवानी
सोख नहीं सकता
उसके शरीर का
पानीदार पानी
कोई न कोई समर्थ सर्जक
गढता ही रहेगा
हर हाल में
हर काल में
हर तानाशाह की
हर काली करतूत की
पोल खोलती हुई
यथार्थ परक कहानी।
पानी नहीं तो क्या
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सच जिया बहुत किन्तु
कहानी नहीं तो क्या
सच किया बहुत किन्तु
निशानी नहीं तो क्या
चाहे चरण पखारे
समुद्र नित हमारे
पर, एक बूंद तन में
पानी नहीं तो क्या ।
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