क्षण भर वसंत (सॉनेट)
एक वंशी.. यमुना तट.. रासकुंज.. एवं मैं
स्वरित समीर की..सुगंधित शीतलता भी
सुप्त स्वप्न में सौंदर्य का अन्वेषण भी है
यामा की है यात्रा… प्रतीक्षा है प्रत्यूष की
स्वागत है!दिव्य ऋतुराज,भर दो पीत रंग
हो रहे माधुर्य में गीत लय ताल सम्मिलित
नृत्य करतीं वल्लरियों..मंजरियों के संग
मधुर रास में मग्नमन है विह्वल रागान्वित
मोहन वंशी.. स्वर्णिम कभी रक्तिम अंबर
हाय क्यों मंद-मंद स्पर्श से करे देह-मंथन
पुष्पशय्या सजाए वह सारंग..नट-मधुकर
तृषा रंग की तीव्र हो जाए..धमनी में स्वन
हे वसंत! क्षणभर में अनंत..हे मयूर पंख
अद्य हृदय में है तरंगित.. शत शब्द-शंख।
मोहनीय प्रेम (कविता)
इस नील नीरव निदाघ में
कैसे आई वर्षा की महक
छम-छम करती बूँदें
कैसे आई माघ में..
कहीं तरंगिणी की मंदिमा
कहीं शैल का मौन चंद्रमा
निःशब्द मेरी प्रतिछवि से
करते अहरह कथोपकथन
लिए अंजुरी में पुष्प-लताएँ
कि देह बनती वंशी…
स्पर्श करती अधरों की लालिमा से..
कैसे आई वर्षा की महक
नीरव निदाघ में
माघ में….
नवयौवन से पुलकित भ्रमर
सुनता परागों की अभिलाषा
कहता पवन से.. उड़ा ले जाए
कहीं दूर..उनकी अंतर्भाषा
अग्नि वन-वन.. किंतु प्रेम में
भ्रमर बनता मोहना बाग में
कैसे आई वर्षा की महक
नीरव निदाघ में
माघ में…
इस नील नीरव निदाघ से
कह दूँ.. माघ से
वसंत का हुआ अवतरण है
स्वप्न रंग-बिरंगे नयनों में
लिए रात्रि वियोग की ज्वाला में
न करेगी व्यतीत अब
मोहन की प्रतीक्षा में…
कह दूँ… निदाघ से…
माघ से….
-0-
——-
अनिमा दास
सॉनेटियर
कटक, ओड़िशा