By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept

Lahak Digital

News for nation

  • Home
  • Lahak Patrika
  • Contact
  • Account
  • Politics
  • Literature
  • International
  • Media
Search
  • Advertise
© 2023 Lahak Digital | Designed By DGTroX Media
Reading: लेख : * वसंत-ऋतु, होली और रंग * – चितरंजन भारती
Share
Sign In
0

No products in the cart.

Notification Show More
Latest News
कन्नड़ संस्कृति की गरिमा विदेशों में – “कन्नड़ कहले” कार्यक्रम!!
Entertainment
*दिल, दोस्ती और फाइनेंस: डिजिटल स्क्रीन पर दोस्ती और सपनों की कहानी*
Entertainment
मिनिएचर्स ड्रामा और फोर ब्रदर्स फिल्म्स प्रस्तुत करते हैं दिल दोस्ती फाइनेंस
Entertainment
मंडला मर्डर्स समीक्षा: गजब का थ्रिलर और शरत सोनू का दमदार अभिनय
Entertainment
रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताएं
Literature
Aa

Lahak Digital

News for nation

0
Aa
  • Literature
  • Business
  • Politics
  • Entertainment
  • Science
  • Technology
  • International News
  • Media
Search
Have an existing account? Sign In
Follow US
  • Advertise
© 2022 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
Lahak Digital > Blog > Literature > लेख : * वसंत-ऋतु, होली और रंग * – चितरंजन भारती
Literature

लेख : * वसंत-ऋतु, होली और रंग * – चितरंजन भारती

admin
Last updated: 2025/03/16 at 10:38 AM
admin
Share
11 Min Read
SHARE

अभी कोई खास ज्यादा समय नहीं हुआ, जब समाज पर तकनीक और प्रौद्योगिकी का आक्रमण नहीं हुआ था और लोग मिल-जुलकर स्थानीय स्तर पर अपने तीज-त्योहार मना लिया करते थे। “होली” के नाम पर सिर्फ ढोल, झांझ, मजीरा वगैरह ही हुआ करते थे। और उनके इस गीत-संगीत में सभी स्त्री-पुरूष-बच्चे शरीक हुआ करते थे। फिर समय बदला, तो रेडियो आ गया, जिसपर होली के गीत सुनाई देने लगे। इसके बाद जब टी.वी. आया, तो गीत के साथ-साथ गाने-बजाने-नाचने वालों की सूरत भी दिखने लगी। इसके समानांतर सिनेमा तो था ही, जिसमें कुछ होली के दृश्य और गीत अवश्य डाले जाने लगे। बल्कि यह फिल्मों के हिट होने का एक नायाब नुस्खा भी हो गया। और इसके गीत रेडियो, ट्रांजिस्टर और टी वी पर नियमित आने लगे। टेप रिकॉर्डर और वीडियों में भी इनकी धूम रही। और अब तो टच-स्क्रीन वाले मोबाइल का जमाना है। जब जैसा चाहा, वैसा बजा और देख लिया।
मगर इन यांत्रिक उपकरणों से वह उत्साह, उमंग और हृदय के अंर्तमन की खुशी नहीं मिल पाते। कारण कि इन इलेक्ट्रिॉनिक उपकरणों से मनुष्य निरंतर अंतर्मुखी और एकाकी होता जाता है। जबकि मनुष्य मूलतः एक सामाजिक प्राणी है। और वर्तमान की भाग-दौड़ में हम सामूहिकता से कटते हुए जाने-अनजाने अकेलेपन का शिकार होने को अभिशप्त हैं। इसलिए हमें वह आनंद नहीं आ पाता, जो पूर्व के होली के लोकगीत सुनकर हम उमंगित, तरंगित और आनंदित हो जाते थे।
होली की गाथा पौराणिक गाथाओं से जोड़ी जाती है। प्रह्लाद-हिरण्यकश्यप की, ढूँढा राक्षसी आदि की कथा है ही। उससे भी प्राचीन कथा ‘कामदेव-दहन’ की है, जिसके राख को शिव ने अपने शरीर में मल लिया था। लेकिन कामदेव द्वारा उत्पन्न वसंत, भीनी-भीनी सुगंध को संचारित करती आम्र-मंजरियॉं, कोयल की मोहक कूक और वासंती पुरवाई से जब स्वयं शिव बच नहीं पाए, तो आम आदमी की क्या बिसात है! और इस प्रकार वसंत ‘ऋतुओं का राजा’ बनकर दो माह तक मनुष्य पर राज करने लगा। प्राचीन भारत में इसी वसंतोत्सव का महत्व था, जो हफ्तों, महीनों तक चलता था। बाद में पौराणिक गाथाओं के अनुसार होली के दिन का महत्व बढ़ा, तो इसकी अवधि भी कम होने लगी। लेकिन अभी भी भारत के कई हिस्सों में ‘होली’ सप्ताह, दस दिन तक भी मनाई जाती है। वैसे होली का प्रसंग आते ही बाल-कृष्ण की होली का विशेष ध्यान आता है और इसलिए ‘होली’ को बच्र्चों-युवाओं का त्योहार भी कहा जाता है। ‘आज बिरज में होली रे रसिया’ जैसे गीत हर कहीं प्रचलित हैं। कृष्ण का हर कौतुक या खेल मानव-समाज के लिए एक संदेश भी है। वैसे श्रीराम के लिए भी एक गीत “अवध में होली खेलें रघुवीरा” बहुप्रचलित है। उ0 प्र0 के अवध के नवाबों ने इस होली को अपने प्रांत में लोकप्रिय बनाया और इसी समय कुछ अवधी के होली पद-गीत ‘श्रीराम’ और ‘अवध’ से जुड़ गए।
वाराणसी (काशी) में, खासकर मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्तों द्वारा जो होली खेली जाती है, वह तो अत्यंत कौतुक भरा है। यहाँ शिवभक्त श्मसान के चिता-राख द्वारा ही जो होली खेलते हैं, वह अत्यंत विचित्र है, और जिसे देखकर ब्रज की गोपियाँ भी हैरान र्हैं-
खेलैं मसाने में होली दिगंबर, खेले मसाने में होरी।
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी।
वैसे जब समय वसंत-ऋतु हो, तो बड़े-बुजुर्गों का मन तरंगित-आंदोलित क्यों न हो! सो वे भी अपनी प्रसन्नता प्रकट करने में पीछे नहीं रहते और होली के रसभरे गीत सुन आनंदित होते हैं। उन्हें अपनी बाल्यावास्था और युवावस्था की याद आने लगती है।
भारत मूलतः कृषि प्रधान देश है। और इसी वसंत-ऋतु में गेहुँ, चना, सरसों आदि की फसलें पककर पुष्ट होने लगती हैं। बागों में आमों की पीताभ मंजरियों के बीच कोयल की वह मन-मस्तिष्क को मस्त कर देने वाली कूक सुनाई देने लगती है। चारों तरफ फूलों का साम्राज्य बिछ सा जाता है। मौसम समशीतोष्ण रहता है, तो स्वाभाविक ही मनुष्य अधिक काम करने के साथ आनंद की भी कामना करता है, जो यह ‘वसंत ऋतु’ प्रदान करती है। फिर यह कृषि की उपज ही तो है, जो व्यक्ति ही नहीं समाज के भी संपन्नता के स्वप्न को साकार करती है। अनाज के लहलहाते पौधे मानष-मन को आनंदित करते हैं। तो फिर इस स्वर्णिम समय का कुछ भाग वसंत और होली को क्यों न दिया जाए? एक समय ऐसा भी था, जब पूरे फागुन माह में ‘फगुआ’ गीत की धूम रहती थी। वह पहले सप्ताह भर का हुआ, और अब एक दिन का रह गया है!
इसके पीछे हमारी अपनी मजबूरियॉं भी हैं। गॉंव, शहर में बदल रहे हैं। और जहाँ पहले 90 प्रतिशत लोग ग्रामीण थे, वहीं अब लगभग 50 प्रतिशत आबादी ही खेत-खलिहानों तक सिमट कर रह गई है। बाकी आधी आबादी या तो व्यापार-व्यवसाय करते हैं या नौकरी में हैं। और बच्चे भी स्कूल-कॉलेजों में समय की पाबंदी से बंधे हैं। अब उनके लिए भी ‘होली’ बस एक दिन का त्योहार है। और त्योहार भी कैसा, बिलकुल औपचारिक जैसा, कि ‘नर्हींनहीं, रंग नहीं लगाना है’ के आग्रह के साथ कि ‘बस अबीर-गुलाल का एक छोटा सा टीका भर देना है।’
जबतक प्राकृतिक रंगों का चलन था, किसी को इनसे से परहेज नहीं था। टेसु के फूल या केसर से तैयार ये रंग एक औषधि तो थे ही, भीनी-भीनी खुशबू भी देते थे और आसानी से छूट भी जाते थे। मगर जब से कृत्रिम रंग़, डाई आदि का प्रचलन बढ़ा, लोग इससे दूरी बनाने लगे। गांवों में मिट्टी-कीचड़ से भी होली खेलने की शानदार परंपरा थी। लेकिन जब कोई जले हुए काले डीजल-कोलतार का उपयोग करे, तो समाज इससे परहेज करेगा ही। मगर अब कुछ तो जागरूकता के वजह से और कुछ प्रशासन एवं पुलिस की दृढ़ता की वजह से ऐसी ओछी हरकतों पर रोक लगने लगी है।
इस त्योहार का प्रमुख आकर्षण खाना-पीना है। हर घर से पकवानों की सुगंध उठती है। मगर भांग-ठंढाई के नाम पर जो मदिरा-ड्रग्स आदि की नशेबाजी शुरू हुई, तो ये त्योहार भी बदनाम होने लगा। और यही कारण है कि हर बाजार और चौराहों पर पुलिस मुस्तैद रहती है, ताकि किसी प्रकार की गड़बड़ी या हिंसा ना हो। आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि होली में अश्लील फिकरेबाजी सामान्य बात है। मगर जब यह जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए, और लोग यौन-शोषण और शारीरिक हिंसा पर उतारू हो जाएँ, तो कौन इसे बर्दाश्त करेगा?
एक समय था जब कबीर पंथ के साधुओं में इसका खासा प्रचलन था। शिव द्वारा भस्मीभूत कामदेव के प्रतीक भभूत को अपने शरीर पर लगाए टोली बनाकर घूमते और होली के लोकगीत गाते थे। ये लोकगीत काफी अश्लील होते थे और जनता उसका कुछ भी बुरा न मान, उन्हें सुनकर अपना मनोरंजन करती थी। गॉंव-शहरों में ये अश्लील लोकगीत “कबीरा” के नाम से प्रसिद्ध थे, जो एक हास्य उत्पन्न कर हवा में विलीन हो जाते थे। ‘होली’ के इस “कबीरा” के जवाब में नाथ-पंथ के योगी ऊँचे सुर और स्वर में “जोगिरा” गाते थे, जो अपनी अश्लील भाषा के मामले में “कबीरा” के भी कान काटते थे। मगर इन सबके पीछे एक आध्यात्मिक-धार्मिक भाव-बोध था, स्वयं को संयमित करने और अश्लीलता से दूर रहने का संदेश भी रहता था। इसलिए कोई अप्रिय स्थिति या घटना नहीं घटती थी। तब कोई इनका इसलिए बुरा नहीं मानता था कि इसमें कोई शारीरिक चेष्टा या प्रयास जैसी कोई बात नहीं होती थी। और न ही किसी को नीचा दिखाने या दुश्मनी निकालने जैसी बात होती थी। पूर्वी उ0 प्र0 एवं बिहार के कुछ जिलों में इसका खासा प्रचलन था और कुछ-कुछ प्रभाव अब भी देखा जा सकता है।
ठीक वैसे ही बंगाल के कुछ जिलों में “धमाली” नाम से गाया जाने वाला अश्लील गीत भी नाथपंथ से ही संबंधित है। आमतौर पर वसंत ऋतु में गाये जाने वाले लोकगीतों का प्रचलन का दायरा और समय भी सिमट गया है। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने शिक्षण संस्थान “शांतिनिकेतन” से “वसंतोत्सव” की जो फूलों और अबीर-गुलाल से होली खेलने और मनाने की जो परंपरा निकाली, वह लोकप्रिय हो चुका है। इसके बरअक्स देखा जाए तो हिंदीभाषी क्षेत्रों में भोजपुरी के और पंजाब, हरियाणा, दिल्ली क्षेत्रों में पंजाबी-हरियाणवी के अश्लील गीत अपनी सारी सीमा पार कर जाते हैं!
फिल्मों में होली के लोकगीतों को बेहतर जगह मिली और उनकी बेहतरीन प्रस्तुति भी हुई। इसलिए ये काफी लोकप्रिय हुए और आज तक सुने और सराहे जाते हैं। कुछ फिल्म तो होली के त्योहार को दृष्टिगत रखते ही निर्मित हुए। बाद में हाल तो यह हो गया कि लगभग हर फिल्म में एक “होली गीत” देना आवश्यक सा बन गया। खैर, अब तो वह दौर कब का निकल चुका है।
होली, हँसी-खुशी और मस्ती का त्योहार है। लोग त्योहार के नाम पर ही अपने और परिवार, पड़ोस और रिश्तेदारों के लिए भी फुरसत के कुछ क्षण निकाल पाते हैं। और इसी बहाने एक-दूसरे से मिल-जुल लेते हैं, हँस-बोल लेते हैं। होली खेलते वक्त बीमार, वृद्ध, महिलाओं आदि के अलावा कामकाजी लोगों का भी ख्याल रखना चाहिए। और जो रंग-गुलाल आदि से परहेज करते हों, उनके साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। साथ ही हमें हर प्रकार की नशेबाजी और हल्की हरकतों से मुक्त रहते हुए ही वसंत-ऋतु और होली के रंगों का आनंद उठाना चाहिए।

———–
–00–
चितरंजन भारती
मो0 7002637813

You Might Also Like

रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताएं

वरिष्ठ कवि और दोहाकार डॉ सुरेन्द्र सिंह रावत द्वारा संकलित व सम्पादित सांझा काव्य संग्रह ‘काव्यान्जली 2024’ का लोकार्पण हुआ*

राकेश भारतीय की कविताएं

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक संस्था “मेधा साहित्यिक मंच” ने किया “कविता की एक शाम” का आयोजन हुआ,

कृष्ण-कृष्णा की प्रेमावस्था… (कुछ शास्त्रीय चरित्रों पर मुक्त विमर्श)!- यूरी बोतविन्किन

Sign Up For Daily Newsletter

Be keep up! Get the latest breaking news delivered straight to your inbox.
[mc4wp_form]
By signing up, you agree to our Terms of Use and acknowledge the data practices in our Privacy Policy. You may unsubscribe at any time.
admin March 16, 2025
Share this Article
Facebook Twitter Copy Link Print
Share
Previous Article *हिन्दी भवन में साहित्यिक संस्था उद्भव एवं अंतरराष्ट्रीय हिन्दी समिति यूएसए के संयुक्त तत्वावधान में वसंतोत्सव रचना पाठ का सफल आयोजन हुआ*
Next Article ब्रह्मर्षि-एक संस्कृति (आरंभिक) – राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर
Leave a comment Leave a comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Stay Connected

235.3k Followers Like
69.1k Followers Follow
11.6k Followers Pin
56.4k Followers Follow
136k Subscribers Subscribe
4.4k Followers Follow
- Advertisement -
Ad imageAd image

Latest News

कन्नड़ संस्कृति की गरिमा विदेशों में – “कन्नड़ कहले” कार्यक्रम!!
Entertainment September 1, 2025
*दिल, दोस्ती और फाइनेंस: डिजिटल स्क्रीन पर दोस्ती और सपनों की कहानी*
Entertainment August 16, 2025
मिनिएचर्स ड्रामा और फोर ब्रदर्स फिल्म्स प्रस्तुत करते हैं दिल दोस्ती फाइनेंस
Entertainment August 7, 2025
मंडला मर्डर्स समीक्षा: गजब का थ्रिलर और शरत सोनू का दमदार अभिनय
Entertainment July 31, 2025
//

We influence 20 million users and is the number one business and technology news network on the planet

Sign Up for Our Newsletter

Subscribe to our newsletter to get our newest articles instantly!

[mc4wp_form id=”847″]

Follow US

©Lahak Digital | Designed By DGTroX Media

Removed from reading list

Undo
Welcome Back!

Sign in to your account

Register Lost your password?