प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ एवं जन संस्कृति मंच के संयुक्त तत्वावधान में 29 सितंबर की शाम इलाहाबाद बहुत ही स्तब्धता और भीगी आँखों के साथ अपने शहर के एक बहुत जरूरी जनकवि की स्मृतिसभा में अंजुमन-रूह-ए-अदब सभागार में इकट्ठा हुआ। कार्यक्रम का संयोजन धर्मेंद्र जी और बसंत त्रिपाठी जी ने मिलकर किया। मंच पर अध्यक्षता कवि हरीशचंद्र पांडेय कर रहे थे । उनके साथ अनीता गोपेश, प्रणय कृष्ण, अजामिल जी और हीरालाल जी की पत्नी उमा जी मौजूद थे। कार्यक्रम का सुव्यवस्थित संचालन प्रकर्ष मालवीय जी ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत में उन्होंने बताया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शमशेर जन्मशती पर केदारनाथ सिंह जी के साथ हीरालाल जी ने काव्यपाठ किया था तब पहली बार उन्होंने देखा था । उसके बाद दूधनाथ सिंह जी ने कविताएं चुनकर प्रकाशित कराया। संगम लाल जी ने कंपोज किया।
सबसे पहले शिवानंद मिश्र जी ने अपनी बात रखी । उन्होंने कहा मंचों पर आने में , खुद को अभिव्यक्त करने , रेखांकित करने के मामले में वे बड़े संकोची व्यक्ति थे इतने संकोची कि खुद इस दुनिया से चले भी गये और हमें पता भी नहीं चला एक लंबे समय तक । वे ज्यादा पढ़ते थे कम लिखते थे । इलाहाबाद के सभी गोष्ठियों में मौजूद रहते। वे हाशिए की आवाज़ थे ; जीवटता से भरे हुए। धर्मेंद्र जी ने हीरालाल जी के घर से उनके विषय में जानकारी इकट्ठा की और कार्यक्रम के संयोजन में मदद की।
मोहन लाल यादव जी ने कहा हीरालाल ने अपने संग्रह के आत्मकथ्य में खुदको हीराडोम से जोड़ा। वे अपनी कविता में टेंपोचालक और भैंस को कविता का कथ्य बना लेते थे। वे माटी के कवि थे। पुत्र अगमलाल यादव ने उनकी स्मृतियों को बहुत भावुकता से याद किया। उन्होंने बताया कि कैसे पिता हीरालाल जी ने सदैव सच्चाई, ईमानदारी और परोपकार के मार्ग पर चलना सिखाया। प्रो बसंत त्रिपाठी ने कहा कि इतनी सघन और मार्मिक कविताओं के बाद एक साइलेंट जोन में चला जाता है। एक बोलने वाला कवि जब अपना बोलना स्थगित कर देता है तो किसी भी स्वस्थ समाज के लिए यह सबसे ज्यादा सोचने का विषय है।हमें हीरालाल जी के बहाने अपने समय और समाज को समझना होगा कि कैसे उछलता हुआ व्यक्ति सबके सामने आ जाता है पर एक परिदृश्य से ओझल दूर शांति से काम करता व्यक्ति चर्चा के बाहर रहता।
प्रियदर्शन मालवीय ने कहा कि मैंने सबसे पहले उनकी कविताएं नया ज्ञानोदय में पढ़ी । हीरालाल जी कुलीन नहीं थे। यदि वे कुलीन होते तो शायद अधिक चर्चा होती । प्रो अनीता गोपेश जी ने कहा जिस तरह वे अपनी बच्चियों की सफलता की खुशी देते थे मुझे उनमें अपनी पिता की छवि देखी । वे अपनी बात सीधे सीधे तरह से बिना लाग लपेट के बात कहते थे । मुझे अफ़सोस है कि आज अपना ऐसा कवि चला गया जिस समय में उसे सबसे अधिक जरूरत है। वे संघर्षशील व्यक्ति थे। इस घटना ने हमें झकझोर दिया अपने समय पर हमपर कुठाराघात किया कि उनके जाने की बात हमतक इतनी देर में पहुंची ।
अजामिल जी ने बहुत भावुक ढंग से अपने कवि को याद करते हुए कहा हीरालाल जी से मेरी मुलाकात तब हुई जब मैं समकालीन राजनीति का संपादन करता था। उनकी तीन प्रगतिशील कविताएं उसमें मैंने प्रकाशित की। वे अपनी दुकान पर आने वाले को मिठाई जरूर खिलाते थे। वे अपनी साधरणता में असाधारण थे। वे मिलते थे तो बच्चों की तरह खिलखिलाकर हँसते थे। भारतीभवन में उनसे मुलाकात होती थी। उन्होंने जो कुछ लिखा परिवार से अनुरोध है कि वह उसे उपलब्ध कराएँ प्रकाशित हो सके वह ।अविनाश मिश्रा – हीरालाल जी जनमतीय कवि थे जातीय कवि थे। वे वर्ण व्यवस्था आभिजात्य को ठेंगा दिखाते हुए तीखा व्यंग्य करते थे। असरफ अली बेग – वे जब मुझसे मिले तो बोले मैं गजल लिखता हूँ। बाद में उन्होंने अपनी कविताएं दिखाई। वे बहुत मार्मिक कविताओं के कवि थे। उनकी कविता के विषय बहुत साधरण जीवन के थे।
प्रो प्रणय कृष्ण ने कहा साहित्य का एक महत्वपूर्ण काम है सही तरह की स्मृतियों का पुनर्वास करना। जो कि अपने आप में रचना है। अपनी संवेदशीलता को इस घटना के बाद कटघरे में खड़ा लाज़मी है लेकिन समय समय पर अपने साहित्यिक पुरखों को याद करना भी एक साहित्यिक कर्म था। विनम्रता के साथ उनके भीतर मेहनतकशों का स्वाभिमान था। हो सकता हो साहित्यिक समाज की असंवेदनशीलता के कारण उनका कटना हुआ हो। साहित्य का समाज बहुत छोटा है इसमें बहुत सारी दलबंदी है राजनीति है। हीरालाल जी कबीर के साथ मुक्तिबोध के भी गोती थे। वर्णाश्रम को तोड़ने के मामले में निसंदेह कबीर से जुड़ते हैं। हीरालाल को अपने साथी रमाशंकर यादव विद्रोही की कविता परंपरा के रूम में भी याद करता हूँ। कुदाल फावड़ा आदि कविता के उपकरण को वैसे ही अपनी कविता का विषय बनाते जैसे भक्तिकाल के कवि।वे कविता खड़ी बोली में लिखते हुए भी अपने टोले मुहल्ले और स्थानीय भाषा में कविता रचते थे। उनके रचनाकर्म पर भी एक आयोजन केंद्रित किया जाए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि हरीशचंद्र पांडेय जी ने कहा मुझे उनके न रहने की खबर कवि संतोष चतुर्वेदी से मिली । बच्चे कैसे पढ़ेंगे व्यवसाय कैसे चलेगा उस समय ये कविताएं सबके सामने आईं और जब उनके जीवन में निश्चिंतता का समय आया तब वे परिदृश्य से दूर हो गये। वे घर भी खूब बदले और व्यवसाय भी साथ साथ बदल रहे थे। जैसे कि कोई कविता में प्रयोग करता है। वे किस तरह जीवनसंघर्ष से जूझ रहे थे। यह आपने समाज और आलोचकीय दरिद्रता भी है कि ऐसे लोग साहित्य की परिदृश्य से दूर रहते । कार्यक्रम में आनंद मालवीय, संगमलाल जी, अनीता त्रिपाठी, मोहनलाल यादव, प्रेमशंकर सिंह, शिवानी, मारुति मानव , अंशु मालवीय, अवनीश यादव, केतन यादव, शशिभूषण, श्वेतांक तथा परिवार में उमा जी पत्नी बेटे अयान उनकी मां और परिवार के अन्य सदस्य उपस्थित होकर उनको याद करते हुए माल्यार्पण किया,श्रद्धांजलि दी ।
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