हाल के वर्षों में जयपुर, राजस्थान के उपन्यासकार,साहित्यकार अजय शर्मा ने उपन्यास लेखन में तेजी से अपना नाम बुलंद किया है। वे वर्तमान में राजस्थान सरकार के प्रारम्भिक शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों,पौराणिक पृष्ठभूमि व अतीन्द्रिय शक्तियों को अपने सृजन का आधार बनाया है। ये सारे सन्दर्भ गहन चिन्तन व शोध की माँग करते हैं। उनमें ज्ञान है, चिन्तन की क्षमता और श्रम-साध्य जीवन जीने का धैर्य भी है। सफलता तभी मिलती है,जब कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छाओं व प्राप्त शक्तियों के बीच संतुलन बनाकर चलता है। अजय शर्मा में ये सारी खूबियाँ दिखाई देती हैं। अभी हाल में ही उनकी कुछ पुस्तकें प्राप्त हुई हैं और उनके सद्यःप्रकाशित ‘’तलाश अस्तित्व की’’ उपन्यास ने ध्यान आकर्षित किया है। बिना किसी लेखकीय भूमिका के 30 खण्डों में विस्तारित,यह उपन्यास रहस्य,रोमांच व अति मानवीय शक्तियों पर आधारित है। तिलस्म,जादू, रहस्य,रोमांच आदि से भरे लेखन का हमारे साहित्य में पहले से ही प्राबल्य रहा है। उसी कड़ी को अजय शर्मा ने आगे बढ़ाया है।
मनुष्य की स्वाभाविक प्रक्रिया है,जब भी वह किसी गहन चिन्तन में डूबता है या कहीं से प्रेरित होता है तो वह अपने होने की खोज करता है,अपने अस्तित्व की तलाश करता है और भीतर उठ रहे प्रश्नों का उत्तर पाना चाहता है। जिस किसी ने स्वयं को सहज करना सीख लिया,भीतर डुबकी लगाना चाहता है उसे इस विराट ब्रह्माण्ड का रहस्य समझ में आने लगता है। प्रकृति स्वयं को खोलना चाहती है,अपना सारा रहस्य उजागर करना चाहती है,मनुष्य को तनिक धैर्य के साथ लगने और विचार करने की जरुरत है। यह दृश्य,ये घटनाएं सतत चलती रहती हैं,हम संसार की भाग-दौड़ में उलझकर उन संकेतों को समझ नहीं पाते या कोई दूसरा अर्थ ग्रहण कर लेते हैं।
मैं अक्सर आत्माओं को लेकर विचार करता रहता हूँ और जीवन के बहुत सारे सार्थक तथ्य उजागर होते रहते हैं। परमात्मा जिस तरह सत्य है,उसी तरह आत्माओं का भी अस्तित्व है और ये सभी आत्माएं आपस में मिलती हैं,आपस में व्यवहार करती हैं और एक-दूसरे से लेन-देन करती हैं। अच्छा व्यवहार,अच्छा लेन-देन सुखकारी होता है अन्यथा सब कुछ हमारे दुखों के कारण बनते हैं। हम तभी तक उलझन में होते है जब तक हमारे विचार स्पष्ट नहीं होते। ‘तलाश अस्तित्व की’ पुस्तक के माध्यम से अजय शर्मा ऐसे सभी बिन्दुओं पर चिन्तन करते दिखाई दे रहे हैं। अपने उपन्यास को उन्होंने 30 अध्यायों में विस्तार दिया है और जीवन के रहस्य,रोमांच को समझाने का प्रयास किया है।
यश मध्यमवर्गीय परिवार से निकला हुआ युवा है,बड़ी कम्पनी में बड़ी जिम्मेदारियाँ उठा रहा है। अजय शर्मा रोचक बिंब चित्रित करते हैं-”सर्दियों के हड्डियों को जमा देने वाले मौसम में चुपचाप निकलने वाली गुनगुनी धूप की तरह उसकी जिंदगी में याशिका आई।” उन्होंने कुछ सुदृढ़ कारण बताकर उसे अलग कर दिया। प्रायः सभी लेखक अपने आसपास को बखूबी समझते हैं,हर बदलाव को महसूस करते हैं और जिंदगी के बारे में बताना चाहते हैं। हर किसी के जीवन में मन की अहम भूमिका होती है। यश को यांत्रिक जीवन जीना स्वीकार नहीं है। कम्पनी के अपने उद्देश्य होते हैं, कर्मचारियों के निजी विश्वास,जीवन,भावनाओं,सुख-दुख से कोई सरोकार नहीं होता। ऐसे में यश की जिंदगी का आधार उपभोक्तावाद,भौतिकवाद और बाजारवाद होता गया है। वह मानसिक और मनोवैज्ञानिक धरातल पर लड़ रहा है। शर्मा जी बड़ी-बड़ी बातें सहजता से जोड़ते चलते है-”निजी क्षेत्र की चक्की बड़ी भारी चलती है और पीसती भी बहुत महीन है।” उनका यह वक्तव्य भी समझने योग्य है-”निजी क्षेत्र का नाम ही प्राॅफिट मेकिंग है। वहाँ तो केवल निजी लाभ के लिए उपलब्ध समस्त संसाधनों के दोहन का दर्शन ही काम करता है।” कंट्री हेड रामानुजन भी कहता है-”महत्वाकांक्षा का मोती कठोरता की सीपी में पलता है। तो थोड़ा कठोर बनो जी।” यश को अपने मैनेजमेंट शिक्षकों की बातें याद आ रही हैं-” याद रखो,बाॅस हमेशा सही होता है,उसके साथ तर्क-वितर्क नहीं किया जा सकता।”
हर किसी के जीवन में उतना ही नहीं होता जिससे उसे जूझना पड़ता है बल्कि बाहरी तौर पर भी बहुत सी घटनाएं होती हैं,चाहे-अनचाहे सम्मिलित होना पड़ता है और उनका प्रभाव जीवन को प्रभावित करता है। यश आकाश के साथ सहकर्मी रामबाबू के पिता की शवयात्रा में शामिल होता है,क्योंकि यह इंसानियत का तकाजा है। लौटते समय विशालकाय बरगद के पेड़ के पास से गुजरते हुए यश को एक अजीब सी अनुभूति होती है। अजय शर्मा लिखते हैं-”उसे पता नहीं था कि इसी पल उसके जीवन में एक अद्भुत और रहस्यमयी सत्ता का प्रवेश हो चुका है और अब न चाहते हुए भी उसे उस अज्ञात और अदृश्य सत्ता के द्वारा खींची गई लकीरों पर चलकर अपने जीवन के रहस्यों की तलाश करने का अवसर मिलने वाला है।” यश को लगा मानो कोई बोझ लदा है। बोझ असहनीय हो उठा तो उसके मुँह से निकला-”साॅरी,माफ कर दो।” आश्चर्य,तत्काल ही बोझ कम होने लगा तथा केवल सांकेतिक ही रह गया। इस तरह शर्मा जी कहानी में रहस्य का पुट डाल चुके हैं बल्कि रात में अचानक बिजली का गुल होना,किसी नारी आकृति का उभरना और मधुर आवाज में उसका संदेश सुनाई देना,किसी सच्चाई की तरह सामने है। यश समझ नहीं पाया, आखिर कौन थी वह-प्रेतात्मा, परग्रही,देवी,भटकती हुई रुह या कुछ और?
रहस्य रोमांचित करता ही है। यश की दुनिया में रहस्यमयी आत्मा का प्रवेश हो चुका है और उसने कहा-”मैं तुम्हारी जिंदगी बदलकर रख दूँगी और अब से तुम्हारी जिंदगी में कई अनदेखी और अप्रत्याशित घटनाएं घटित होने लगेंगी।” ऐसा होना शुरु भी हो गया। एक घटना का शिकार वह स्वयं हुआ,उसे नौकरी से निकाल दिया गया। दूसरी घटना के बारे में आकाश ने सूचित किया। यश स्तब्ध है-दोनों में सच क्या है? यह कैसा इन्द्रजाल है? वह किस अदृश्य शक्ति के चंगुल में फँस गया है? उसे खुशबू का अहसास हुआ और विचित्र हँसी सुनाई दी-”तुम मेरी ताकत के बारे में नहीं जानते,मैं तुम्हारा वजूद बना भी सकती हूँ और मिटा भी सकती हूँ। लेकिन बनाऊँगी ही,मिटाऊँगी नहीं,यदि तुम मेरी बात मानते रहे।”
अजय शर्मा पाठकों को आधुनिकता से भरी रंगीन दुनिया की ओर ले जाना चाहते हैं। यश को लिफाफे में संदेश मिलता है-”होटल कैसिनो रायल,रात 8 बजे,नौ नंबर से गेम शुरु करो।” पहले ही दिन उसने पचास लाख की रकम जीत ली। घर आते ही उसी अदृश्य नारी की आवाज उभरी-”तुम्हारी जिंदगी के नए अध्याय शुरु हो गए हैं। बस याद रखना कि मुझे तुम्हारी वफादारी चाहिए। मुझे धोखा देने का मतलब है,एक दर्दनाक मौत और तुम्हारे पूरे परिवार की बर्बादी।”
शर्मा जी कहानी को मार्मिक-पारिवारिक भाव-संवेदनाओं से जोड़ने के लिए यश को गाँव की यात्रा का दृश्य बुनते हैं और माता-पिता,बहन सबके खुश होने की स्थिति बनाते हैं। अदृश्य नारी शक्ति यश के व्यवहार से खुश है। उसने कहा-”तुम्हें मैंने एक बहुत खास लेकिन खतरनाक मिशन के लिए चुना है।” यश को उसके तीन टास्क पूरे करने हैं। पहले टास्क के रुप में पब्लिक लाइब्रेरी से लाल कवर की पुस्तक लानी है। दूसरा टास्क तनिक अधिक जटिल और डरावना है। अमावस की रात को शहर के बाहर वाले कब्रिस्तान में जाकर पीटर नामक व्यक्ति की 412 नंबर की कब्र के काले पत्थर पर अपना दायां पंजा रखना है। वह उस रहस्यमयी शक्ति का असली उद्देश्य समझ गया,वह उसके जरिये आत्माओं के संसार में प्रवेश करना चाहती है। अजय शर्मा जी नकारात्मक रहस्यमयी शक्ति के विपरीत ईश्वरीय शक्ति के प्रति आस्था चित्रित करते हैं और यश को प्रार्थना,ध्यान-मुद्रा और साधना आदि से जोड़ते हैं। यह दुनिया इन्हीं दोनों धाराओं के बीच चल रही है। दोनों शक्तियों की पहचान करवाना ही उनका उद्देश्य है। कभी-कभी यश को लगता है,आखिरकार क्यों वह इस चक्रव्यूह में फँसता जा रहा है,परन्तु वह मजबूर है।
कब्रिस्तान में जाना,पंजा रखना,कोई जलजला आना,अशरीरी आत्माओं की उपस्थिति का अहसास होना, शर्मा जी ने खूब तिलस्म बुना है। उनकी कल्पना शक्ति अद्भुत है और भाव-दृश्य का चित्रण भी। यश कार्य सम्पन्न करके घर आता है,परेशान होकर,थककर सो जाता है। सुबह उठकर पद्मासन में बैठकर वह ध्यान में उतरता है। जिंदगी संयोगों का खेल है। शर्मा जी कथा में तिलस्म दिखाने के लिए पिता के हार्ट अटैक प्रसंग का मार्मिक वर्णन लिखते हैं। यहीं डा. नेहा मिलती है जो यश के बचपन की दोस्त है। दोस्त ही नहीं बल्कि दोनों में आत्मीय भाव रहा है। दोनों एक-दूसरे को पहचान जाते हैं। स्वाभाविक है,प्रेम की भावनाएं जागेंगी,माता-पिता शादी के बारे में सोचेंगे और यश को कहना पड़ेगा-”मुझे ईश्वर की इच्छा मंजूर है। आप लोगों की खुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ।
कहना सही ही होगा,अजय शर्मा जी ध्यान-साधना में पारंगत हैं, सूक्ष्म शक्तियों की झलक पा चुके हैं और उनके अनुप्राणित भाव ही इस कथानक का आधार हैं। हर कड़ी को जोड़ना,उस पर रहस्य का आवरण डालना,भाव-संवेदनाएं जगाना और पाठकों के मन में उत्सुकता जगाये रखना आदि सब कुछ उनकी लेखनी और मनश्चिन्तन का प्रमाण है। बीच-बीच में घटनाओं को मोड़ देने में उनकी दक्षता देखी जा सकती है। अगला मोड़ देखिए-रात के तीन बजे दीवार पर वही रहस्यमयी आकृति उभरती है और सुबह वापस बैंगलोर जाने का आदेश देती है। अजय जी ने नीला लिफाफा का बड़ा ही भावपूर्ण उल्लेख किया है। सारी सूचनाएं, टिकट, दस्तावेज आदि नीले लिफाफे में मिलते हैं। पाठक समझ रहे होंगे,नीला लिफाफा या ऐसा ही कुछ हर व्यक्ति के जीवन में होता है। यश उसे डस्टबीन में डाल देता है। उसके बाद के सारे भयानक दृश्य रोंगटे खड़े करने वाले हैं। यहाँ जीवन का मनोविज्ञान समझा जा सकता है। उस अदृश्य शक्ति को पता है,यश को नियंत्रण में रखना है तो डा० नेहा को भूमिका में लाना पड़ेगा। इसीलिए अजय शर्मा चाकू लिए छाया का प्रवेश उसके घर में दिखाते है और आग लगने का दृश्य रचते हैं। इस लेखन की विशेषता यह भी है,घटनाएं तेजी से घटित होती हैं और हर पात्र का मनोविज्ञान समझ में आता रहता है। सबसे प्रभावी है उनका मोटे अक्षरों में गम्भीर और सामयिक वचनों को लिखना। ऐसे वाक्य भविष्य में लोगों के बीच सूत्र-वाक्य के रुप में चर्चित होते जाएंगे।
अजय शर्मा पहाड़ी बाबा का उल्लेख करते हैं। नेहा अग्निकांड के बाद उनसे मिलती है। उनका संदेश रहस्य से भरा हुआ है-”तुम्हें आज आना ही था। तुम ईश्वर की लीला को पूरा करने का निमित्त बनो। पृथ्वी पर काली ताकतें सिर उठा रही हैं। इन्हें समाप्त करने में तुम्हारी भूमिका आवश्यक है। डरो मत। ईश्वर तुम्हारे साथ है।” पहाड़ी बाबा मानो सब कुछ जानते हैं-भूत,भविष्य व वर्तमान,सब कुछ। उन्होंने बेंगलुरु जाने का आदेश दे दिया और यह संदेश भी कि तुम्हें अनजान रेगिस्तान में प्राचीन सभ्यता के पालने में तुम्हारी कर्मस्थली छुपी हुई है। तुम दोनों के साथ अदृश्य रुप में मैं हमेशा रहूँगा। उन्होंने दिव्य माला प्रदान की जो मुसीबत में रक्षा करेगी। यश को अदृश्य स्त्री शक्ति से मिश्र के पिरामिड जाने का आदेश मिलता है। नेहा के लिए भी सारी व्यवस्था साथ में हुई है। यश चकित है इस सारे बदलते घटनाक्रमों पर विचार करते हुए। अजय शर्मा जी दुनिया को बताना चाहते हैं,वही व्यक्ति बड़ा और महान काम कर सकता है जो कर्मठ,जागरुक और जुनून वाला हो।
यहाँ यश और नेहा के बीच का संवाद ईश्वरीय आस्था-विश्वास से भरा हुआ है। दोनों ने स्वप्न देखा है, जिसमें इब्राहिम,आयशा और निविया से जुड़ा प्रसंग है। निविया साहसी और सात्विक भाव से भरी है जबकि आयशा रहस्यमयी व्यक्तित्व वाली है। नीली गाड़ी और नीले लिफाफे का रोमांच पीछा छोड़ने वाला नहीं है। यदि एक ओर काली ताकते हैं तो दूसरी ओर भगवान की कृपा भी है। शर्मा जी सकारात्मक भावों से भरे विचार लिखते हैं और विजय की भावना से भर जाते हैं। यश को समझते देर नहीं लगती कि स्वप्न का सम्बन्ध उनके पूर्व जन्म से है,नेहा ही निविया थी और आयशा आज की अदृश्य स्त्री शक्ति है।
अदृश्य शक्तियों की लीला के साथ-साथ इस उपन्यास के माध्यम से भावनाओं के ऐतिहासिक दस्तावेज के पन्ने खुलते जा रहे हैं। अजय शर्मा ने अच्छी और बुरी शक्तियों के संघर्ष का जीवन्त चित्र खींचा है और उनके पात्र शंका,भय,जोश-जुनून के साथ अपनी भूमिका निभा रहे हैं। ईश्वर के प्रति गहरी आस्था और सुखद संयोग चकित करने वाले हैं। काहिरा की सड़क पर यश और नेहा को भारतीय ड्राइवर मिलता है जो अपने वतन के पर्यटकों से आत्मीय व्यवहार दिखाता है और सहयोग करता है। वह उन्हें रहस्यमय मन्दिर ले जाता है जहाँ दर्शन करने से मन की मुराद पूरी होती है। जाने क्यों उन दोनों को महसूस हो रहा है मानो यहाँ आना उनकी नियति थी। एक बूढ़ा व्यक्ति और एक लड़की से यश और नेहा की भेंट होती है,बूढ़ा व्यक्ति खुश होकर आशीर्वाद देता है-”आखिरकार तुम पास हो ही गए,नियति की इस पहली परीक्षा में।” बाबा ने एक लाल डिब्बा दिया और आधे घंटे में वापस होटल पहुँचने को कहा। लाल डिब्बे में दो मालाएं और वही किताब थी जिसे यश लाइब्रेरी से लाया था। उसमें लैटिन भाषा में लिखा हुआ था जिसे नेहा पढ़ पा रही थी। दोनों ने मालाएं अपने-अपने गले में धारण कर ली। पहाड़ी बाबा द्वारा दी हुई माला भी दोनों ने पहन ली। क्रिश्चियन बस्ती और चर्च का प्रसंग कम रोचक नहीं है। अजय शर्मा जी ने कहानी को विस्तार देते हुए यश और नेहा दोनों के माता-पिता के पास किसी साधु के आने और मालाएं देने का प्रसंग लिखा है। साधु बाबा बार-बार ईश्वर पर भरोसा करने और धैर्य रखने का उपदेश और सुखद सूचनाएं देते हैं। बस्ती में वे दोनों एक दम्पति से मिलते हैं और पीटर की कहानी सामने आती है। पीटर परामनोविज्ञान का शोधार्थी है जो बुरी आत्मा के चक्कर में फंस जाता है और उसकी मौत हो जाती है। नेहा ने उन दोनों के गले में सुरक्षा के लिए दो मालाएं डाल दी।
शर्मा जी लिखते हैं-” जीवन में अच्छे दिन पाने के लिए बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है। महत्वाकांक्षा का मोती कठोरता की सीपी में पलता है। अगर स्वर्ग का आनन्द लेना हो तो पहले मरने के लिए तैयार हो जाओ।” नेहा और यश भारतीय चिन्तन को लेकर बार-बार विचार करते हैं और उन्हें अपनी समस्याओं का समाधान दिखाई देता है। पिरामिड के पास पहुँचने पर कोई पागल व्यक्ति यश और नेहा को देखते ही इब्राहिम,इब्राहिम,निविया,निविया चिल्लाने लगता है। अजय शर्मा काली आँधी, जलजला जैसे दृश्य चित्रित करते हैं,नेहा नीबू और पानी के सहारे रोकती है और दोनों सकुशल लौट आते हैं। नेहा यश के मन में चल रही सारी शंकाओं का निवारण करती है और अंतिम कार्य के लिए तैयार होने का आदेश देती है। उधर अदृश्य स्त्री शक्ति का नीले लिफाफा में संदेश आता है-‘’मुझे मेरा टास्क पूरा होने से मतलब है,अब मैं यश और नेहा का अहित नहीं करुँगी।‘’ अजय शर्मा बार-बार अच्छाई और ईमानदारी पर जोर देते हैं और संकेत करते हैं कि ऐसे ही लोगों के साथ ईश्वर खड़ा रहता है।
यश हनुमान चालीसा,सुन्दर कांड का पाठ करता है और नेहा शक्ति की आराधिका है। नेहा ने कहा-”यह लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं है। यह ब्रह्माण्ड की रक्षक शक्तियों की है। अच्छाई और बुराई की है। परमात्मा और बुरी आत्मा के बीच की है। उजाले और अंधेरे के बीच की है। इसमें सम्पूर्ण सकारात्मक शक्तियाँ हमारे साथ हैं।” यश का मन भी संकल्पित हो चुका है,वह तैयार है,चाहे जो भी हो। उधर बुरी शक्तियों ने यश और नेहा के घरों में उपद्रव करना चाहा परन्तु उनकी चाल सफल नहीं हुई। अजय शर्मा ने अपनी कल्पना शक्ति से इस कथा के अंत का तिलस्म अद्भुत तरीके से लिखा है। अंततः बुरी शक्ति का विनाश होता है और सच्चाई की जीत होती है। उन्होंने पुनर्जन्म,विगत युगों में लौटने और समय चक्र के रहस्य को समझाने का प्रयास किया है। उनके पास तिलस्म की जीवन्त भाषा है,अद्भुत लेखन शैली और रोचक कथा-प्रसंग है। प्रश्न तो बहुत उठाये जा सकते हैं,ऐसे लेखन को खारिज किया जा सकता है या नकारा जा सकता है। यह सब पाठकों पर छोड़ देना चाहिए। महत्वपूर्ण और मूल यही है कि संसार ईश्वरीय विधान से चलता है,अच्छे लोग सफल होते हैं और हर बार बुराई पराजित होती है।
समीक्षित कृति: तलाश अस्तित्व की (उपन्यास)
उपन्यासकार: अजय शर्मा
मूल्य: रु 250/-
प्रकाशक: किताब राइटिंग पब्लिकेशन
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विजय कुमार तिवारी
(कवि,लेखक,कहानीकार,उपन्यासकार,समीक्षक)
टाटा अरियाना हाऊसिंग,टावर-4 फ्लैट-1002
पोस्ट-महालक्ष्मी विहार-751029
भुवनेश्वर, ऑडिशा, भारत
मो: 9102939190