1. सही जगह कौन सी है!
जहां सबकुछ सही है
वह जगह कौन सी है
वह जगह कौन सी है
जहां कुछ भी गलत नहीं
कोई ऐसी जगह भी है
जहां पेड़ों की सलामती के लिए प्रार्थनारत हों पत्तियां
नदी के अविरल बहने की दुआ करते हों मगरमच्छ
जहां उदासियों का सबब पूछती हो मुस्कान
ऐसी जगह कौन सी है
मुझे उस जगह के बारे में बताओ
जहां सबकुछ वैसा हो
जैसा होना चाहिए
इंतजार में अहिल्या बन गई इच्छाओं की अभिव्यक्ति का सही जगह बताओ
कोई ऐसी जगह है जहां
बिरहनों को मिलन की आस में हरियल से ना कहनी पड़ती हो मन की बात
मां को खो चुके बच्चों का मुंह कुम्हलाया नहीं हो जहां
कामना की गांठ बांधे धागों से रहित पेड़ों से खाली जगह दिखाओ मुझे
यातना शिविर और नम आंखों से परे
जयमालाओं की आकांक्षा पाले राजाओं की नगरी से दूर
कोई ऐसी जगह दिखाओ
जहां इंसान के सिरहाने बैठा हो शुकून।
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2. पढ़ना मुझे
हर्फ-हर्फ पढ़ना
हौले से पढ़ना
पढ़ना मुझे ऐसे
जैसे चिड़िया करती है प्रार्थना
पढ़ा जाता है जैसे प्रेमपत्र
जैसे शिशु रखता है धरती पर पहला कदम
कोई घूंघटवाली स्त्री उठाती है पानी से भरा घड़ा
स्पर्श करती है हवा फूलों को जैसे
जैसे चेहरे को छूती है बारिश की पहली बूंद
दुआ में उच्चरित होते हैं अनकहे शब्द जैसे
चिड़िया, प्रेमपत्र, स्त्री, बच्चा, फूल, बारिश और दुआ
इन सबमें मैं हूं
इनका होना ही मेरा होना है
शब्द तो निमित मात्र हैं
जब भी पढ़ना
अदब से पढ़ना
पढ़ना ऐसे ही
जैसे पढ़ा जाना चाहिए।
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3. मछलियां
मछली का मायका नहीं होता
उसे ब्याह कर ससुराल नहीं जाना पड़ता
उसका मरद उसे छोड़ कमाने बाहर नहीं जाता
बच्चे भी हमेशा आसपास ही रहते हैं
कितना सुंदर है मछलियों का संसार
फिर भी शायद…
रिश्ते तो उनके भी होते होंगे
होता होगा
अपना-पराया
देश-परदेश
सरहद
तीज-त्योहार
धर्मस्थल
तीर्थस्थल
होती होंगी इच्छाएं
लालसाएं
वर्जनाएं
तभी तो…
आटे की गोली या कीड़ा खाने में
बिछड़ जाती हैं एक-दूसरे से
फंस जाती हैं जाल में
तोड़ देती हैं दम
तड़पते हुए पानी से बाहर।
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4. चिड़िया
चिड़िया हरती है
आकाश का दुख
उसके आंगन में चहचहाकर
भर देती है संगीत
सूने मन में
बादलों को चूमकर
हर लेती है सूरज का ताप
बारिश होने पर
तृप्त होती है चिड़िया
सुस्त पड़ते ही सूरज के
लौट आती है घोसले में
चोंच में दाने भरकर
खिलाती है बच्चों को
सिखाती है बहेलियों से बचने का हूनर
पढ़ाती है सबक
पंख से ज्यादा जरूरी है हौसला
चिड़िया प्रेम करती है पेड़-पौधों से
करती है प्रार्थना – न हो कभी दावानल
सलामत रहे जंगल
बचा रहे उसका मायका
वह जानती है
उड़ान चाहे जितनी लंबी हो
लौटना पेड़ पर ही है
इसका बचे रहना जरूरी है
मां-बाप की तरह।
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5. आवाज अकेली नहीं होती
रेत नदी की सहचर है
जो पत्ते चट्टानों पर गिरकर सूख रहे होते हैं
उन्हें अकेलापन का नहीं
हरापन से बिछुड़ने का दुख सता रहा होता है
नदी पुल की तरफ नहीं
नाव की तरफ देख रही होती है
प्रेम करने वाले जानते हैं
जहां से कोई नहीं आता
वहां से उम्मीद की आहट आती है
क्योंकि
आवाज कभी अकेली नहीं होती
टेसू का टहटहा लालपन
जंगल की सालाना उम्मीद ही तो है
उसकी आवाज खामोश बह रही नदी को छूकर
महसूस की जा सकती है।
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परिचय ::
कवि-पत्रकार। कविता संग्रह (एकल): पानी उदास है। कविता संग्रह (संपादन): वर्जनाओं से बाहर।
पत्र-पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में भी कविताएं व आलेख प्रकाशित।
पुरस्कार : नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया का फेलोशिप व नेशनल मीडिया अवार्ड।
संप्रति : समाचार संपादक के रूप में दैनिक हिन्दुस्तान, मुजफ्फरपुर (बिहार) में कार्यरत।
मोबाइल – 8102397081