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Lahak Digital > Blog > Literature > जसवीर त्यागी की कविताएं
Literature

जसवीर त्यागी की कविताएं

admin
Last updated: 2024/06/30 at 9:09 AM
admin
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11 Min Read
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महक
÷÷÷÷

मेट्रो में
एक अनजान शिशु
मुझे देख-देख
कई बार मुस्कुराया

Contents
महक ÷÷÷÷बच्चे का सामानजीवन-संघर्ष ÷÷÷÷÷÷÷÷खुद से बात करना ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷प्रेम में भरना ÷÷÷÷÷÷÷÷ प्रेरणा ÷÷÷÷संगत का संगीत ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷माँ का मन ÷÷÷÷÷÷वंचित ÷÷÷÷अकेला इंसान ÷÷÷÷÷÷÷÷÷अंकुर ÷÷÷÷डर ÷÷गुनाहगार ÷÷÷÷÷÷ फूलों की क्यारी ÷÷÷÷÷÷÷÷÷एक शब्द की कविता ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷ स्मृति ÷÷÷उसने कहा ======= परवरिश ÷÷÷÷÷प्यास ÷÷÷माँ का चेहरा ÷÷÷÷÷÷÷÷झुर्रिदार चेहरे ÷÷÷÷÷÷÷÷साया ÷÷÷ कविता और कलम ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷रिश्ता ÷÷÷यकीन ÷÷÷÷

मैं मुस्कान की मोहकता में
बंधा चला गया

दिन भर
मैं एक अजनबी खुशी में महकता रहा।

■

बच्चे का सामान

÷÷÷÷÷÷÷÷÷

अब बच्चा नहीं है
घर में उसका सामान यथावत है

खेल-खिलौने
पेन-पेंसिल,कॉपी-किताबें
साइकिल-फुटबाल
साँप-सीढ़ी, कैरम-बोर्ड
यहाँ तक की उसकी गुल्लक भी है

एक समय
बच्चा जब था
उस से जुड़ा सामान
संसार की सबसे अधिक आनंददायी वस्तुएँ थीं

अब वे
सबसे ज्यादा पीड़ादायी हैं।

●

जीवन-संघर्ष
÷÷÷÷÷÷÷÷

जैसे लंबे रूट की बसें
और मालगाड़ियां
रुख़सत होने से पहले
तेल, ईंधन भरती हैं

जीवन-संघर्ष में उतरने से पूर्व
तुम्हें याद करता हूँ।

■

खुद से बात करना
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

मोबाइल है तो इसका अर्थ यह नहीं है
कि हमारा जब मन हो
हम किसी से भी बात कर सकें

कभी-कभी
हमारा किसी से बात करने का मन होता है
हम फोन मिलाते हैं
लेकिन! सामने वाला किसी काम में व्यस्त होता है
और बात हो नहीं पाती

मोबाइल है तो यह जरूरी नहीं
जब हमारा मन हो तब बात हो ही जाये
किसी अपने से बात करने के लिए
मोबाइल से अधिक मन और मौके की जरूरत होती है

जब हमारे चाहने पर भी
किसी अपने से बात नहीं हो पाती
तब हम बात करने की ख्वाहिश लिए
खुद से बात करने लगते हैं।

●

प्रेम में भरना
÷÷÷÷÷÷÷÷

तुम्हें याद न करते हुए भी
कई-कई बार याद करता हूँ

यह जानते हुए
कि तुम अपने काम में डूबी होगी
फिर भी रह-रहकर देख लेता हूँ मोबाइल

कहीं कोई हवा में उड़ता हुआ संदेश
आकर चिपक गया हो तुम्हारे नाम का

तुम्हारे कहे शब्द याद करता हूँ
और तुम्हारे अनकहे में
देर तक खोजता हूँ
छिपा हुआ-सा कुछ अनमोल

तुम्हारे शब्द चमकते हैं
स्मृतियों के उपवन में
धूप में खिले पुष्पों की तरह

प्रेम सिर्फ़ दो इंसानों को
एक ही नहीं करता है

प्रेम अकेले इंसान को
दूसरे की अनुपम अनुभूति से भी भरता है।

■

 प्रेरणा
÷÷÷÷

हम रोज
घर साफ करते हैं
रोज धूल आ जाती है

मैं धूल से
रोज कर्म करने की
प्रेरणा पाना चाहता हूँ।

■

संगत का संगीत
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

पत्नी बाहर है
वह घर में अकेला है

अकेला घर
घर नहीं
उदास वस्तुओं का कोई संग्रहालय लगता है

ऐसा क्या है एक स्त्री में?
जो उसके होने से
निर्जीव वस्तुएँ भी बोलने लगती हैं
ध्यान की धूप
घर के कोने-कोने में फैल जाती है
संगत का संगीत बजने लगता है

ऐसा संगीत
जो कानों से आत्मा तक गूंजता है।

●

माँ का मन
÷÷÷÷÷÷

माँ परिवार के सदस्यों के लिए
भोजन परोसती है
और फिर खाने के लिए बुलाती है

बुलाने के क्रम में
अपने उस बच्चे को भी पुकारती है
जो दुनिया से रुख़सत हो चुका है

माँ साड़ी के पल्लू से
अपनी आँख पोंछती हुई कहती है-

पता नहीं
यह बच्चा कब सुधरेगा?
खाने के समय
कभी टाइम पर नहीं आता।

■

वंचित
÷÷÷÷

अपने काम पर आते-जाते हुए
मैं पिछले बीस सालों से
रास्ते में एक मोची को देखता था
परस्पर दुआ-सलाम भी थी हमारी

जब भी उससे मिलता
वह किसी जूते या चप्पल को
सुंदर बना रहा होता था

पिछले एक माह से
वह अपने ठीहे पर नहीं दिखा
बगल वाले टेलर से पता चला
कि मोची एक-सवा माह से अपने गाँव है

आते-जाते हुए
मैं उस तरफ निहार लेता हूँ
उसका सौंदर्य-स्थल अकेला सूना पड़ा दिखता है

पिछले कुछ महीनों से
मैं श्रम-सौंदर्य के दृश्य से वंचित हूँ।

■

अकेला इंसान
÷÷÷÷÷÷÷÷÷

अकेला इंसान
अकेला होता है

जब कोई संवाद करने वाला नहीं होता
तब अकेला इंसान
निर्जीव चीजों से बात करता है

धीरे-धीरे
यह उसका व्यवहार बन जाता है
अकेला इंसान
मन के सुख-दुःख
वस्तुओं से साझा करता है

अकेला इंसान देर तक बोलता है
निर्जीव चीजें सुनती रहती हैं मौन

अकेले इंसान को
एक दिन अहसास होता है
निर्जीव वस्तुएँ भी सुनती हैं
पर! कुछ बोल नहीं पाती हैं।

■

अंकुर
÷÷÷÷

बरसात के बाद
नरम मिट्टी से

कुछ अंकुर नभ की ओर
टकटकी लगाए ताक रहे हैं

पिता आसमान से
मानो नटखट बच्चे पूछ रहे हों

क्या हम
आ सकते हैं?

■

डर
÷÷

सभी के अपने-अपने डर हैं
कोई घोड़े से डरता है
कोई डरता है कुत्ते से
तो कोई बिल्ली से

कोई साँप से डरता है
कोई कॉकरोच से

कोई पानी से डरता है
कोई आग से

कोई अंधेरे से डरता है
कोई डरता है उजाले से

किसी को मृत्यु से डर है
किसी को जिंदगी से

कोई महफ़िल से डरता है
कोई तन्हाई से

कोई प्रेम से डरता है
कोई डरता है बिछोह से

कोई गरीबी से डरता है
कोई अपमान से

हर इंसान अलग-अलग है
एक-दूसरे से

हर किसी का डर
एक-दूसरे के डर से भिन्न है

■

गुनाहगार
÷÷÷÷÷÷

पार्क के गेट पर
एक उम्रदराज़ आदमी
आने-जाने वालों को दुआ-सलाम करता है

फिर झट से अपनी सूनी हथेलियाँ
उनके सामने पसार देता है
और गिड़गिड़ाता हुआ
कुछ देने की मांग करता है

पार्क में आने-जाने वाले आदमी
उसे अनदेखा करते हैं
ऐसे आदमी के मिलने को
ख़ुशनुमा सुबह को खराब करने का गुनाहगार ठहराते हैं

सोचता हूँ
जिस उम्र में
जीवन की जिम्मेदारियों का जहाज
थम जाना चाहिए था

तब भी एक बुजुर्ग आदमी
दूसरों के रहमोकरम पर जिंदा रहना चाहता है
यह हमारे समाज और समय का कितना जटिल सवाल है

क्या भीख माँगने वाला आदमी ही
अकेला गुनाहगार है?
■

फूलों की क्यारी
÷÷÷÷÷÷÷÷÷

पार्क में सुबह की सैर करते हुए
फूलों की एक क्यारी आती है

जिसमें अनेक रंगों के फूल
आने-जाने वालों को देखकर मुस्कुराते हैं
मुस्कुराहट दुनिया का सबसे अनमोल उपहार है

फूलों की वह क्यारी
पार्क का दिल है

जो सैर करने वालों के दिलों को सुंदर बनाती है।

■

एक शब्द की कविता
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

एक शब्द की
कविता है
माँ

सबसे छोटे
शिल्प में रची गयी

सबसे बड़ी
कविता है
माँ।

■

 स्मृति
÷÷÷

अब माँ नहीं है
माँ की स्मृति है

अब स्मृति ही
माँ है।

●

उसने कहा
=======

कोई काम करते हुए
कभी-कभी लगता है
उसने कुछ कहा है
मैं पूछता हूँ-मुझसे कुछ कह रही हो?

वह किसी दार्शनिक की तरह
मुझे देखती है
फिर मासूमियत से कहती है-
मैंने तो कुछ नहीं कहा

उसके कहे को गौर से सुनता हूँ
जैसे कोई पाखी सुनता हो
किसी की पदचाप

मन-ही-मन विचारता हूँ
अगर कुछ कहा नहीं
तो फिर मुझे क्यों लगा?

जानता हूँ
वह मनगढ़ंत कभी कुछ बोलती नहीं
संभव है मुझे ही भ्रम हुआ हो
दिल में एक अजीब-सा सुकून महसूस करता हूँ

यह कुछ कहने जैसा
लगने का भ्रम ही सही
लेकिन ऐसा भ्रम
ज़िन्दगी को जीने लायक बनाता है।

■

 परवरिश
÷÷÷÷÷

मैं एक बुजुर्ग आदमी से मिला
कुछ देर उनके साथ रहा

वो मुझे द्वार तक विदा करने आये
चलते हुए उन्होंने कहा-

आप जैसी सज्जनता के लोग
दुनिया में कैसे बसर करते होंगे?

उनकी बात सुनकर
मैं कुछ बोल नहीं पाया

मुझे अपने पिता का चेहरा याद आया।

●

प्यास
÷÷÷

जेठ माह की सुबह-सुबह
टपकते नल से
पानी पी रहा है एक ततैया

उसे प्यास बुझाते देख
मुझे ततैया के डंक की पीड़ा नहीं
पानी का महत्त्व याद आया।

■

माँ का चेहरा
÷÷÷÷÷÷÷÷

जब भी
किसी स्त्री का चेहरा याद करता हूँ

मेरे सामने
माँ का चेहरा आ जाता है

वास्तव में
माँ का चेहरा एक आईना है

जिसमें अनेक स्त्रियों के चेहरे
नज़र आते हैं।

■

झुर्रिदार चेहरे
÷÷÷÷÷÷÷÷

झुर्रियों भरे चेहरे
मुझे आकर्षित करते हैं

झुर्री भरे चेहरों की
आड़ी-तिरछी रेखाओं में
मिल जाती हैं
जीवन-जल की बूंदें

बूंदों की नमी में
बची रहती है
संवेदनाओं की श्वास

और श्वासों में
बचा रहता है जीवन।

■

साया
÷÷÷

उजाले में
साया साथ होता है

अंधकार में
साथ छोड़ देता है।

■

कविता और कलम
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

मेरे पास एक पुरानी कलम है
जिससे मैंने अनेक कविताएँ लिखीं

कलम पुरानी हो गयी
अब लिख नहीं पाती
फिर भी मेरे पास है

कुछ लोग कहते हैं-
जब लिख नहीं पाती तो क्या करोगे इसका?
फेंक क्यों नहीं देते

मैं कोई उत्तर नहीं दे पाता
सोचता हूँ
कविता जीवन में इतना तो सिखाती है
जिसने साथ निभाया हो हमारा
असमर्थ हो जाने पर
उसका हाथ नहीं छोड़ा जाता
साथ खड़ा रहा जाता है

कविता नहीं है कोई बाज़ार
वह तो है
एक इंसान की
दूसरे के लिए पुकार।

■

रिश्ता
÷÷÷

इकलौती बिटिया ने
उम्रदराज़ होते
माता-पिता को कहा-

अपनी सेहत का ख्याल रखा कीजिये
रोज़ सुबह-शाम टहलने जाइये
योगा-प्राणायाम कीजिये

बढ़ती उम्र के साथ
दूसरों से ज्यादा अपनी दुनिया को संवारिये

मैं सदा साथ नहीं रहूँगी
आप दोनों के साथ

एकलौती बिटिया ने
इतना बड़ा सत्य कितनी सरलता से कह दिया

जैसे कोई कड़वी असरकारी दवा
एक घूँट में पीला दे।

■

यकीन
÷÷÷÷

एक स्त्री
पुरुष से कहती है
मुझे तुम पर
खुद से ज्यादा यकीन है

स्त्री का यकीन
एक दीपक है

जो जीवन में आये
हर अंधकार को हरता है

जो इंसान
स्त्रियों का यकीन भंग करते हैं

वे आजीवन
अंधकार में भटकते हैं।

●

जसवीर त्यागी, दिल्ली।

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