रामदेव धुरंधर मॉरीशस के महान साहित्यकार हैं। अभिमन्यु अनत के बाद मॉरीशस और मॉरीशस के बाहर ऐसा सम्मान शायद ही किसी प्रवासी हिंदी लेखक को मिला हो। उनके छह खंडों में प्रकाशित उपन्यास ‘पथरीला सोना’ या ‘चेहरों के झमेले’,’पापी स्वर्ग’, यात्रा साथ-साथ’ और ‘आते जाते लोग’ सभी ने दुनियाभर में धूम मचाई है। इनका जन्म 11 जून, 1946 को मॉरीशस के कारोलीन में हुआ।
‘पथरीला सोना ‘ रामदेव धुरंधर का सात खंडों लिखा गया बहुत ही उल्लेखनीय उपन्यास है। इस उपन्यास के केन्द्र में ई.1834 में प्रथम बार मॉरीशस में आये भारतीय मजदूरों से लेकर 2009 तक मॉरीशस में बसे प्रवासी भारतीयों का जीवन ,उनके दुःख ,पीड़ा संघर्षों की एक सुन्दर कथा है।यहाँ मैं दूसरे खंड की केन्द्रीय संवेदना को चित्रीत करूँगा।
फ्रांसीसी युवती से प्रेम हो जाने पर गिरफ्तार कर लिया जाता है I इस सारी घटना का वर्णन इस तरह है –
वह दिन एक और कोण से बड़ा ही त्रासदीदायक रहा ! उसी दिन देवंती का देहान्त हो गया था ! कँवल सब के साथ देवंती के पार्थिव शरीर को चिता पर जला कर लौटा ही था कि पुलिस उसे गिरफ्तार करने पहुँच गई थी। जिस रोज़ ततार और ननार को ढूँढने के लिए गो इधर घोड़े दौड़ा रहे थे उसी रोज़ से देवंती गंभीर रूप से बीमार पड़ी तो फिर स्वस्थ हुई नहीं वह कुएँ से पानी ले कर घर लौट रही थी कि गोरों के घोड़े उसके सामने से आगे बढ़े थे। देवं की बीमारी बढ़ाने के लिए घोड़ों का यह शोर ही तो बहुत था। एक गोरे ने अपना घोड़ा देवं के पास रोक लिया था। देवंती आगे जा रही थी और गोरा उसके पीछे घोड़ा हाँकता चला रहा था। देवंती सिर का डोल फेंक कर मागी तो गोरे ने घोड़े को तैल दौडाया था। एक दो जगह घोडा देवंती से सट गया था।
सच ही कहा जाता था मनवा घाट के धोबी घाट में शिकार देवंती आर्दा और उसके मित्रों के घोड़ों की गंध को अब तक मूल नहीं पाई थी। इसी न भूलने में उसकी बीमारी चलती जा रही थी कि इस बार इस गोरे ने उसके साथ ऐसी नीचता कर के उसके प्राण में मानो लिखा -” तुम्हें इतना ही जीना था !” 1
दो स्त्रियाँ उसी वक्त पानी के लिए आईं। देवंती की बीमारी का कारण जानने से उन्होंने गोरे को चेताया कि यह खेल बंद न करेगा तो यह लड़की बेहोश हो कर गिर जाएगी। गोरा यह सुनने पर चला तो गया, लेकिन देवंती के मूर्छित होने की दोनों स्त्रियों ने जो आशंका प्रकट की थी वह आशंका सच में बदल गई। वह मूर्छित हो कर गिरी तो दोनों औरतें उसे उठा कर उसके घर ले आई। ततार और ननार की खोज चलने से देवंती की इस दयनीयता के बारे में उस दिन बस्ती के ज्यादा लोग जान नहीं पाए थे। धानी को अगले रोज़ इस घटना के बारे में पता चला था। उसने कँवल से कहा था। पर देशराज का कहीं पता न लगने से पति पत्नी इतने परेशान थे कि बंशी महाराज के घर जा नहीं सके थे। अगले दिन धानी गई थी और लौटने पर कँवल को बताया था लड़की तो बुरी तरह से टूट गई है। कँवल फिर भी न जा सका था और अब गया था तो उस बेचारी की अरथी को कंधा देने ! मसान घाट से लौटने पर वह बंशी महाराज के यहाँ ठहरना चाहता था, लेकिन पुलिस के आने से मन की भावना मन में ही रह गई थी। कँवल ने पोर्ट लुईस को देखा। भवनों के निर्माण में वे पत्थर दिखाई दे रहे थे जो मुसे मानेस ढाँका के बड़े साहेब के महल में कुशल तराशी पा कर चमकते थे। कँवल यहाँ आने पर ही कह सका मानेस के महल के पत्थर सोने की तरह चमकते थे। तब तो कहा जाना चाहिए – पथरीला सोना !
कँवल को एक संकरी कोठरी में बंद कर दिया गया। ढाँका में फ्रांसीसियों के साथ लढाई तो खूब निभी। अब उसे अंग्रेज़ों के साथ लड़ने में अपनी समर्पित आत्मा को तिल- तिल मलाना था। यह काम भागने से नहीं होता, बल्कि डट कर सामना करने से होता। अंधेरी कोठरी में उसे लगा कि वह कहीं नहीं है। दूर रहने वाले आदमी को ऐसी जगह में लाया गया है जहाँ वह जीने की किसी कल्पना को अपने मन में उतार ही नहीं सकता। पोर्ट लुईस की हलचल के बीच होने से भी उसे ऐसी पीड़ा से गुज़रना हो कि मैं यहाँ दूसरों को तो पा सकता हूँ, लेकिन बस स्वयं को पाना मेरे वश में रहने वाला नहीं है। उसने अपने न होने के ऐसे एहसास को किसी तरह टाल दिया। वह गाँव से था। बल्कि ढाँका से था। इस शहर से भी वह वही होगा, ढाँका वासी। वहाँ उसने कर्म किया। यहाँ उस का न्याय होता। कर्म और न्याय दोनों पलड़ों में उसे ही होना था।
रात बीती। उसे नींद आई हो तो आई हो। नींद न आई हो तो उस ने जाग कर पूरे होशोहवास में धानी को प्रेम का प्रतिदान देते हुए कहा था धानी, यहाँ पहुँचना तो था मुझे ! – उस ने अपने पिता की दुखती रगों को सहला कर कहा था- ”गर्व मानना तुम ने लड़ने वाले बेटे को जन्म दिया है। मेरे पिता, बेटा हूँ तुम्हारा ” 2
कैवल की कोठरी का दरवाज़ा खुला। उसे टट्टी के लिए एक बरतन दिया गया था। ज अपने मल मूत्र फेंकने का आदेश दिये जाने के साथ कहा गया मुँह धो ले और चाय- रोटी लिए कैदियों के साथ कतार में आ कर खड़ा हो जाए। जो कहा गया उस ने उस का प किया।
बड़े से रसोई घर में अंग्रेज़ सिपाही बंदूक लिये खड़ा था। कैदियों को बड़ी ही मुस्तैदी से चाय – रोटी बाँटी जा रही थी। कैदी अपना गिलास बढ़ा देते थे देता था। एक टोकरी में रोटी रखी हुई थी। एक वाट बलने देने नियम था। केवल ने खाने को तो लिया. लेकिन खाना मुश्किल हो रहा था। और बावरची उस में चाय भर
कैदी चाय और रोटी से ज्योंही निवृत्त हुए उन्हें काम पर ले जाने के लिए दो भागों में बाँटा गया। तीन कैदी एक साथ कह पड़े ये काम करने नहीं जाएँगे। मार पड़ने पर ही वे जाने के लिए तैयार हुए। कँवल को पता चला इन तीनों की प्रवृत्ति यही है। इन्हें मार से संचालित होना अच्छा लगता है। इन्कार करते हैं और मार पड़ने पर जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। कैदियों को यहीं शहर में बन रहे सरकारी भवनों के निर्माण के लिए पत्थर तोड़ने के काम में भेजा गया। काम यहीं शहर में करना था तो कँवल को उन्मीद बंधी कि इस शहर का निर्माण करने वाले देवरतन तो दिख ही जाते। कँवल अपने देवरतन को पाने के लिए कैदियों के साथ यथा शीघ्र चल निकला। पर दिन भर कड़ी मेहनत की प्रक्रिया में देवरतन को ढूँढना व्यर्थ गया। वह निराश नहीं हुआ और अब तो देवरतन को यथा शीघ्र पाना उसके लिए आवश्यक हो गया। वह रोज़ नौकरी के लिए निकलता और अपने देवरतन को ढूँढता रहता था। देवरतन न मिले बगैर एक रोज़ उसे ख्याल आया कि उसे तो जज के सामने प्रस्तुत किया नहीं जा रहा है। उसने एक सिपाही से इस बारे में पूछा तो उसने उसे बेवकूफ समझ कर कहा मिल रही है तो चुपचाप खाते चलो। जज के सामने जाने का वक्त आए तो हम तुम्हें ले जाएँगे। मैंने सुना, तुम खेत जलाते थे और रंगे हाथों पकड़े गए हो। लड़के, खेत तो सोना है। सोना जल की दाल-रोटी जाने से केवल पत्थर रह जाएँगे। अब कहो, पत्थर से मला कोई देश चल सकता है?
केवल ने कहा -” आप ने इतना कहा तो मैं अपनी सच्चाई कहने के लिए सब से पहले आप को ही चुन रहा हूँ। मैंने खेत नहीं जलाया। – तो क्या तुम्हें ऐसे ही पकड़ कर लाया गया है? ” 3
– हाँ, ऐसे ही।
पहरेदार हँस कर बोला- हर अपराधी अपने को निर्दोष कहता है।
कँवल सिपाही की बातों से निराश नहीं हुआ। बल्कि उसे दृष्टि मिली। दुर्ग कठिन था जिसे उसे तोड़ना था।
दिन बीतते जाने से उसे अब तो बहुत ही बेचैनी घेरने लगती थी। उस ने साहस किया और फिर सिपाही से पूछा- मुझे कब अदालत ले जाने वाले हैं?
सिपाही ने कहा- तुम्हारे बारे में अभी बहुत कुछ जानना बाकी है। इसी की खोज – बीन चल रही है।
कँवल इस बात से काफ़ी विचलित हुआ। अब उस के बारे में क्या ढूँढा जा रहा है? उस ने चुप्पी तो रख ली, लेकिन उस के मन में तमाम प्रश्न उभरते चले गए। अब उसे उस दिन की प्रतीक्षा रहती जब इन लोगों की छान बीन पूरी हो जाती और उसे अदालत पहुँचाया जाता। पर
दिन तो बीतते जा रहे थे और उस के मामले में मानो कोई हलचल होना ही न चाहती हो। उस ने एक सुबह नौकरी पर जाने से इन्कार कर दिया और कह डाला वह अनशन पर बैठ रहा है।
जेल के अधिकारियों को उसके इस निर्णय से परेशानी हुई। उन्होंने समझा कि जेल की कोई व्यवस्था उसे ठीक नहीं लगी है इसलिए अनशन से सरकार के पास अपनी यात पहुंचाना चाहता है। उस से कहा गया रोटी उसे कम लगती है तो इस पर ध्यान दिया जाएगा। सोते वक्त खटमल से उसे परेशानी होती है तो छिड़कने के लिए उसे दवा दी जाएगी। कंवल ने इतना कुछ सुनने के बाद कहा- मेरी शिकायत इस से अलग है। मैं न्याय के कटघरे में पहुंचना चाहता हूँ। मैं अनशन तभी तोडूंगा जब मुझे न्याय के लिए बुलावा आए।
कँवल ने उसी वक्त अपना अनशन शुरू कर दिया। जेल के अधिकारियों को अनशन की शक्ति मालूम थी। एक के अनशन से दूसरे कैदी के भीतर अनशन के लिए उत्साह पैदा होता था। यह मानो जादू की भाषा हो। एक के आकर्षण में दूसरे तमाम बंधते चले जाते थे। आशंकाओं से परेशान अधिकारियों ने कैवल का अनशन तोड़ने के लिए बहुत उपाय किये, लेकिन वह अनशन से लेश मात्र नहीं डिगा । अनशन जब चौथे दिन पर पहुँचा तो अधिकारियों के कान खड़े हुए।
अब तो अनशन की यह कहानी महा महिम राज्यपाल के पास पहुंचाना जरूरी हो गया। आश कि उसी शाम केवल को सूचना दी गई कि अगले रोज उसे जज के सामने पहुँचाया जाने वाला है। केवल खुश हुआ, लेकिन अनशन तोड़ा नहीं। वह वैसे ही निकाल सा पढ़ा रहा कि एक केंदी उसके सामने आया। कैदी ने उस से कहा- मेरा नाम रोमनाथ है। में यहीं सात बार कैदी बन कार आ चुका हूँ। छूट कर अपने गाँव लौटता हूँ, लेकिन फ्रांसीसी गोरे मालिक से तो फिर लगना पक ही जाता है। आज ही नए सिरे से यहीं कैद भुगतने आया हूँ कि मुझे मुझे मानेस बोका के कैवल का कैद होना मालूम हुआ है। तुम वही केवल हो, देवरतन के दुलारे, देवरतन के बेहद अपने !
सोमनाथ से अपने देवरतन का नाम सुनने पर केवल के मन प्राण में खुशी की अंतहीन लहर दौड चली। उसने कहा- आप ने मेरे देवरतन का इतना नाम ले ही लिया तो मुझ पर कृपा करने के लिए इतना तो बता दें कि वे मुझे कहाँ मिलेंगे।
सोमनाथ ने वास्तविक बात कहने के लिए अपने को असमर्थ पाया। पर कहना तो पड़ता ही। उन्होंने किसी तरह अपने को संयत किया और बोले कहने में घुमाव फिराव की आवश्यकता नहीं है। तुम वीर हो और में चाहूँगा कि सुनने के बाद अपने को वीर ही बनाए रखोगे। देवरतन हमारे बीच नहीं रहे! तुम यहाँ अनशन कर के उसी के चरित्र को जी रहे हो। देवरतन अपने गाँव के लोगों के लिए चाहता था कि सरकार वहाँ अपने आदमी भेजे और उनके जीवन में बलबला रहे दुख का निदान करे। देवरतन को जब इसका उत्तर मिला नहीं तो वह अनशन के लिए बैठ गया। देवरतन का अनशन सातवें दिन पर पहुँचा कि उसके प्राण पखेरू उड़ गए। हाँ बेटे, पंछी उड़ गया और हम सब देखते रह गए !
कैवल अपने देवरतन के न रहने का यह दुखद समाचार पाते ही आर्दता से कह पड़ा – नहीं रहे मेरे देवरतन….!
सोमनाथ ने उसे ढाढस बंधाया और कहा- तुमने देवरतन का ही गुण पाया है बेटे। इस गुण को बनाए रखना। देवरतन जहाँ भी होंगे तुम्हें आशीर्वाद भेजने के लिए ही होंगे।
कैवल से इस बार कुछ बोला नहीं गया। आँखें भरी हुई थीं और कंठ भीगा हुआ था। आँखों के इन आँसुओं और कंठ की इस निशब्दता के अलावा अपने देवरतन को श्रद्धांजलि समर्पित करने के लिए उसके पास और कुछ नहीं था।
जब कँवल को अदालत में पेश करने के लिए कारागार से निकाल कर लाया जा रहा था तब उसके पाँवों न तो कंपन था ,न किसी तरह का भय I उसने अपने को इस दिन के लिए तपस्या जैसी भावना से तैयार किया था। वह रात में सोया तो तपस्या की निष्ठा से। दिन में जागा तो काशी की आत्मा में और देवरतन की काया में। अदालत में प्रवेश करते हुए उस ने देखा यहाँ अंग्रेज़ ही अंग्रेज थे। भारतीय मन के होने से कँवल को लगा वह बेहद अकेला है। पर यह एकाकीपन उसे तोड़ता नहीं। प्राण हथेली पर ले कर निकला था तो इस तरह की बातों को गौण पड़ जाना था। उस से कहा गया था जज को सिर झुकाना न भूले।
कैवल को तो ऐसे भी बड़े लोगों को सिर झुकाने का संस्कार आता था। उसने जज को सिर झुकाया। उसे भाषा चुनने के लिए कहा गया। उस के सामने फिर एक बार भाषा का संकट पैदा हुआ। उसे पुलिस स्टेशन का वह अंग्रेज़ इंस्पेक्टर याद आ गया था जिसके साथ लंबे समय तक इशारे में संवाद होता रहा था। उस ने कहा- मैं कृओल और भोजपुरी में उत्तर कर सकता हूँ।
संवाद के लिए अदालत की ओर से कृओल चुनी गई। अंग्रेज़ जज अंग्रेज़ी में कहता था और दोभाषिया कँवल तक वह सब कृओल में पहुँचाता था। बात तब बहुत बढ़ चली जब कैवल से कहा गया वह मानेस को चैन से रहने नहीं देता है। इस पर केवल ने कहा- यह तो मानेस के पक्ष की दलील हुई। हमारे पक्ष की दलील यह है कि वह हमें चैन से रहने नहीं देता है।
अंग्रेजों के उस वातावरण में मानो एक प्रश्न चिंघाड़ उठा -” चैन से रहने की बात करने वाला यह कौन ?” 4
केवल जितना कह सकता था. कहता रहा। जज के सामने मुझे मानेस ढाँका के बहुत सारे दुखों का खुलासा हुआ। पर बात वहीं सिमट गई की दलील पर यहाँ खड़ा किया गया था। जज – मैंने खेत नहीं जलाया। ने कहा – कैवल को तो उस के अपने अपरार्थी – तुम ने खेतों को जलाया तो है !
जज का कहा कैवल के पास कृओल में आया कँवल को आठ साल की सज़ा हुई ! हर अपराधी अपने को निर्दोष कहता है।
जज के सामने आने की कैवल की रोज़ रोज़ की वह तड़प, मन की चट्टान पर बैठ कर तपस्या जैसी तल्लीनता में अपने को सतत खपाये रखना, अदालत में बोलने की यह प्रखरता और दोभाषिये के माध्यम से हाहाकार से भरी अपनी बातों का स्पष्टीकरण होता जाना सब इस नपुंसक कानून के घेरे में धराशायी हो कर रह गया !
पुलिस कँवल को गवाह कक्ष से ले जाने के लिए सामने आई तो वह घृणा से थूकने के लिए मज़बूर हो गया। पुलिस इतना ही कर सकी उसे घकिया कर ले चली। उस के थूकने के दंश से जज अंग्रेज़ी में बड़बड़ा रहा था। दोभाषिये के माध्यम से कँवल के सामने यह व्याख पहुँच न पाई कि जज के बड़बड़ाने की परिभाषा क्या है? कँवल ने स्वयं परिभाषा बनायी – – की अंग्रेज़ी में गाली का प्रावधान है, जिस का वह निर्वाह कर रहा है।
केवल अपनी सजा काटने जब बड़े कैदखाने में पहुँचा तो धानी की याद में उस की आँखो में आँसू थे। यह यहीं से अपनी धानी से बोला- तुम देखना कैसे जी पाती हो बानी। और हॉ. मेरे बूढ़े बाप का सहारा जरूर बननা।
सहसा पहचान का एक व्यक्ति कँवल की आँखों के सामने था। इस आदमी को एक बार ही देखा, लेकिन लगता था उस छोटी सी पहचान ने अतीत, वर्तमान और भविष्य को एक साथ समेट लिया है। देशराज इस आदमी के बारे में कितनी अच्छी अच्छी बातें करते रहते थे। अच्छी बातों के तो देशराज अद्भुत मसीहा होते थे। विशेष कर पिछले दिनों का उनका वह कहा क्या कभी मन आत्मा से उतर सकता है जिस देश में जन्म हुआ वह अपनी मातृभूमि हुई।
अपनी मातृभूमि को प्रणाम !
देशराज की वह भाषा सुनने वाले कॅवल को अब तो यही लगता था वह भाषा हर कोण से अपनी हो गई है। भाषा अपनी होने में ज्ञान भी अपना हुआ। उस ज्ञान ने इस वक्त कैवल को सोच के इस आलोक में पहुँचाया यह जो आदमी सामने में है स्वयं में एक महा पर्व है।
यह वंदे मातरम् का वह गायक था जिस के साथ मुसे मानेस ढाँका में घसीट कर ले जाने का हृदय विदारक इतिहास जुड़ा हुआ था।
कँवल ने ज़ोर से कहा- वंदे मातरम् !
गायक ने यह सुनते ही नए कैदी को बड़े प्यार से देखा और निर्विलंब अपनी ओर से शंखनाद कर उठा – मातरम् वंदे !
इस नारे के यहाँ और भी दीवाने थे। वे भी इस निनाद में दोनों के साथी हो गए। – वंदे मातरम् ! – मातरम् वंदे !
एक साहसी भारतीय युवक और यहाँ पर जन्म लेनेवाली फ्रेंच मूल की युवती दोनों प्रेम पाश में बंध जाते है , जिस प्रेम का परिणाम भयानक रहता है।
इस तरह ‘पथरीला सोना ‘ उपन्यास के दूसरे खंड की केन्द्रीय संवेदना को चित्रीत करने का मैंने प्रयास किया है।
संदर्भ-सूची :-
1.पथरीला सोना .खंड 2.रामदेव धुरंधर. पृ.381
2.वही.
3.वही.पृ.382
4.वही.पृ.385
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डॉ अमित कुमार गुप्ता
हिंदी विभाग
एम.एस यूनिवर्सिटी का बड़ौदा, गुजरात।