विजयी मानवता हो
वक्त की तपती धूल ने
झुलसा दिया है
राम राज्य का सपना
रौंद डाला है –
सपनों का घरौंदा
उजाड़ डाला है
मानवता की बगिया।
जाति, संप्रदाय, आतंक के
तैरते अणु हवा में
हवा वषैली हो गयी है
घृणा, द्वेष, ईर्ष्या, कलह से।
बूझी है प्रेम की बाती
सूखी है करुणा की धारा
लुप्त है शीतल छाया प्यार की
लेटी है श्रांत-क्लांत मानवता।
नीरव निशीथ में मानवता
चुपचाप आंसू बहा रही
आलिंगन उसे करने को
छल-प्रपंच बाहें फैला रही।
दूर क्षितिज पर मानवता
पतली रेखा सी बनी हुई
मन में आशा की किरण मानवता
अपनापन भरी हुई मानवता।
सांपों की बस्ती
विषधर अनेक फन फैलाए टेढ़ी – मेढ़ी चाल
संपोले कूदते इधर-उधर सांपों की बस्ती गुंजायमान।
अफरा-तफरी मची अचानक सांपों की बस्ती में
बांबी में जान बचा छिप घुस आया कोई मानव
मानव विषधर सांप विष विहीन आज की बात हो गई
विष में जीना विष वमन करना मानव का स्वभाव बन गया।
जाति – धर्म के नाम पर शोषण मानव डसता मानव को नित
दुबक कोने में छिपी मानवता कहीं डस न ले उसको मानव।
प्रतीक्षारत दृष्टि
लू से त्रस्त विदग्ध विरहिणी
रक्ताभ गगन ढलती शाम
प्रतीक्षारत दृष्टि
प्रियतम के आगमन की आशा
ढलता दिन डूबती आशा।
अचानक गगन में मेघ घिर आए
गर्जन – तर्जनी के साथ धूल भरी आंधी
वर्षा की फुहारें दे गई शीतलता
विदग्ध विरहिणी को।
शीतल तन हो गया शीतल मन हो गया
विदग्ध विरहिणी का।
झूम रहीं पत्तियाँ डालियां भी झूम रहीं
सारा संसार झूम उठा शीतल विरहिणी संग।
तूफ़ान
आ रहा है तूफ़ान क्षितिज के पार
उदित सूरज ला रहा है भयंकर तूफ़ान।
धर्म व जाति के दर्प लहू चूसने वाले पूंजीपति
उल्लू सीधा करनेवाले नेता
समाज को नष्ट करते लोग
सब ध्वंस हो जाएंगे।
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सत्य प्रकाश दुबे, हिंदी अधिकारी, रेलवे, कोलकाता