अनिमा दास की कविताएं
क्षण भर वसंत (सॉनेट) एक वंशी.. यमुना तट.. रासकुंज.. एवं मैं स्वरित समीर की..सुगंधित शीतलता भी सुप्त स्वप्न में सौंदर्य का अन्वेषण भी है यामा की है यात्रा... प्रतीक्षा है…
डाॅ एम डी सिंह की भोजपुरी बसंत कविताएं
आइल बसंत सरसों फुललि आम बउराइल भर सिवान ऋतुराज छछाइल कोहरा बा कि मानत नइखे सूरुज ओके फानत नइखे आलू गोहूं टिकुरल हउवैं पाला नटई छाड़त नइखे चिउरा भूजा खा…
ब्रह्मर्षि-एक संस्कृति (आरंभिक) – राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर
"संस्कृति" सामाजिक पारिवारिक विरासत है जो संचय से बढ़ता है। मानव का वह गुण जिसमें दया करूणा, परोपकार के भाव हैं, संस्कृति का हिस्सा है। ब्रह्मर्षि संस्कृति ऋषि-मुनियों एवं साधकों…
लेख : * वसंत-ऋतु, होली और रंग * – चितरंजन भारती
अभी कोई खास ज्यादा समय नहीं हुआ, जब समाज पर तकनीक और प्रौद्योगिकी का आक्रमण नहीं हुआ था और लोग मिल-जुलकर स्थानीय स्तर पर अपने तीज-त्योहार मना लिया करते थे।…
*हिन्दी भवन में साहित्यिक संस्था उद्भव एवं अंतरराष्ट्रीय हिन्दी समिति यूएसए के संयुक्त तत्वावधान में वसंतोत्सव रचना पाठ का सफल आयोजन हुआ*
*राजू बोहरा / विशेष संवाददाता, नई दिल्ली* नई दिल्ली स्थित पुरुषोत्तम हिन्दी भवन सभागार में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था उद्भव एवं अंतरराष्ट्रीय हिन्दी समिति यूएसए के संयुक्त तत्वावधान में…
संस्मरण : * पिता… * – यूरी बोतविन्किन
सोवियत आर्मी के सैन्य अभ्यास चल रहे थे खुले मैदान में। नवशिक्षित जवान टैंक चलाने की परीक्षा दे रहे थे। हर परीक्षार्थी के साथ एक अनुभवी निर्देशक, एक सैनिक अफ़्सर,…
डॉ. रामकृष्ण की ग़ज़लें
एक गगन से आ रही अनुगूँज तेरी तो नहीं है। हवा की पोटली में गंध तेरी तो नहीं है।। अचानक स्फर्श परिचित सा मुझे कोई छुआ हेँ। कि धड़कन काँपती…
विजय सराफ ‘मीनागी’ की कविताएं
गांव में रहता हूँ गांव में रहता हूँ पूरा गांव घूमता हूँ कस्बे में रहता हूँ पूरे कस्बे में घूमता हूँ शहर में रहता हूँ पूरा शहर घूमता हूँ एक…
SOG ग्रैंडमास्टर सीरीज़ (पश्चिम) का सफल समापन इस क्षेत्र में एक नया मील का पत्थर साबित हुआ
रिपोर्ट : अमरनाथ मुंबई में SOG ग्रैंडमास्टर सीरीज़ पश्चिम क्षेत्र के फाइनल का समापन भारत में इस शहर को मानसिक खेलों का केंद्र बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम…
डॉ. पुष्पिता अवस्थी : उसका आंचल प्रकृति, नदियां और आकाश सरीखा है …
डॉ. संदीप अवस्थी उसका आंचल पूरी कायनात को धक लेता है। दृष्टि इंद्रधनुष और हौले से सहलाती सी। कहीं प्रकृति के अनहद नाद में असर न पड़े। ....नदियों,झरनों,आकाश और जीवन…