महेंद्र को इस कालोनी में आए मुश्किल से पंद्रह दिन हुए थे, वह आफिस से घर पहुँचा था, उसने देखा उसकी पत्नी एक युवती से बात कर रही थी। वह संकोच में बाहर ही रुक गया था तभी वह युवती कमरे से निकली उसे देख कर उसने नमस्ते की और बोली,‘ आप से पहले इस क्वार्टर में शर्मा जी रहते थे, उनसे मेरे परिवार से बहुत अच्छे संबंध थे उन्होंने मुझे आप लोगों के बारे में बताया था, इसीलिए मैं भाभी जी से मिलने चली आई थी।’
‘अच्छा किया आपने, शर्मा जी ने आपके परिवार के बारे में मुझे भी बताया था,मैं स्वयं ही आप लोगों से मिलना चाहता था यह अच्छा हुआ आप ही आगईं।’
उसके जाने के बाद पत्नी ने बताया इस का नाम सुजाता बाजपेई है शायद हमें अपनी बिरादरी का समझ कर मिलने आई थी। एम.ए. में जुहारीदेवी महाविद्यालय में पढ़ती है, मुझसे साफ-साफ तो नहीं कहा पर मुझे उसकी बातों से ऐसा लगा कि उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, वह ट्यूशन के फिराक में आई थी।’
‘ठीक तो है, रीमा को पढ़ाने के लिए उससे कह देना।’
‘ठीक है।’
सुजाता मेरी बेटी रीमा को पढ़ाने आने लगी। वह बहुत मेहनती लड़की थी इसके साथ वह बहुत संकोची भी थी। गाँव से फसल की चीजें जब आती थीं तो पत्नी उसे देती थी उसे भी लेने में वह उसे बहुत संकोच करती थी, उसको मेरे घर बेटी को पढ़ाते काफी समय होगया था वह अब पत्नी से काफी खुल गई थी और वह उनसे अपनी घरेलू समस्याओं को भी पत्नी से साझा कर लिया करती है। यह स्त्रियों का खास गुण होता है कि वह दूसरों की बातों को बहुत जल्दी जान लेती है। सुजाता और उसकी पत्नी में काफी अंतरंगता हो गई थी। वह रोज-रोज कुछ न कुछ उसके बारे में बताया करती थीं। एक दिन उन्होंने सुजाता के परिवार के बारे में बताया।
उसके के परिवार में उसकी माँ,भाई,भाभी और एक भतीजा कुक्कू था,दो बड़ी बहने थीं जिनकी शादियाँ उसके पिता अपने मरने से पहले कर गए थे। उसके पिता लोको शेड के इंचार्ज थे, उसका भाई रोशन पढ़ने में ठीक नहीं था, इसलिए उसे रेल्वे लोको शेड में लेबर लगवा दिया था, वह काफी दुबला-पतला और बीमार सा दिखता था, पर बड़ा व्यवहार कुशल था, मुहल्ले में उसका सबसे अच्छा व्यवहार था। एक दिन पता चला कि उसकी पत्नी अचानक बीमार पड़ गई, उसने उसे रेल्वे अस्पताल में भर्ती करवाया। महीने भर करीब भर्ती रही पर वहाँ के इलाज से फायदा नहीं हुआ तो उन्होंने उसे मधुराज नर्सिंग.होम में भर्ती करवाया पर वहाँ से भी कोई लाभ नहीं हुआ और अस्पताल ने डिस्चार्ज कर दिया। वह घर ले आए। सुजाता का अपनी भाभी से बड़ा लगाव था, वह उनकी बीमारी से बड़ी व्यथित थी। अस्पताल से आने के बाद उसकी भाभी की मनोदशा बहुत खराब हो गई थी, वह जान गई थी कि अब वह नहीं बचेगी। एक दिन सुजाता ने उसे रोते देख लिया तो उसने अपनी भाभी से कहा, आप रोती क्यों हैं, आप ठीक हो जाएंगी।’
‘सुजाता क्यों झूठे आश्वासन दे रही हो,मैं मृत्यु को अपनी ओर आते क्षण प्रति क्षण देख रही हूँ, मैं उससे बिल्कुल नहीं डरती हूँ।’
‘फिर क्या बात है, भाभी रो क्यों रही हो?
‘सुजाता सोचती हूँ मेरे बाद कुक्कू का क्या होगा?
‘आप चिंता न करें, मैं तो हूँ।’
‘अरे तुम कितने दिन की हो तुम्हारी शादी हो जाओगी, तुम अपने घर चली जाओगी।’
‘मैं लड़के वालों से कुक्कू को अपने साथ रहने की शर्त रखूँगी।’
‘क्या उल्टी गंगा बहाती हो सुजाता, शर्त लड़के वाले रखते हैं लड़की वाले नहीं, वह कभी यह बात नहीं मानेंगे।’
‘अगर नहीं मानेंगे तो मैं विवाह नहीं करूँगी, बस कुक्कू को पालूँगी।’
और वही हुआ कोई भी लड़के वाला कुक्कू को रखने को तैय्यार नहीं हुआ, और सुजाता ने शादी नहीं की। एक दिन उसने सुजाता के घर के सामने एक कार खड़ी देखी तो उसने पत्नी से पूछा,‘क्या सुजाता के भाई ने कार ली है?’
‘कार और सुजाता का भाई! उसकी बहन आई होगी, उसी के पास कार है।’
‘फिर तो सुजाता की भाभी के बीमारी में उन्होंने रोशन की मदद की होगी?’
‘जब तक वह अस्पताल में भर्ती रही उनकी शक्ल नहीं दिखाई दी, हो सकता है आज मातमपुर्सी करने आई होगी।’
‘कैसी बहन है?’
‘सुजाता बता रही थी कि बड़ी दुष्ट है, आप मदद करने की बात करते हैं वह तो अभी भी उसके यहाँ से ले जाने के फेर में रहती है।’
‘सुनते हैं कि उसकी दोनों बहनें पैसे वाली हैं।’
‘क्या पैसे वाले लालची नहीं होते हैं।’
कुक्कू दो साल का था पर वह ठीक से बोल नहीं पाता था,रोशन ने उसे रेल्वे अस्पताल में दिखाया, वहाँ के उपचार से थोड़ा फर्क तो आया पर पूर्ण रूप से ठीक न हो सका। अगले साल रोशन सेवामुक्त होगया। उसकी और माँ की पेंशन से बस घर का काम चल रहा था। रोशन और उसके घर वालों का बस कुक्कू की चिंता खाए जा रही थी। सुजाता का एम,ए. पूरा होगया था, वह नौकरी के लिए खूब हाथ.पैर मार रही थी पर कहीं जुगाड़ नहीं लग रहा था। अध्यापकी के लिए बी.एड. आड़े आ रहा था। घर की परिस्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बी.एड. कर सके और उसके समर्थ फूफा और बहिनें जाने किस जन्म की दुश्मनी निभा रहे थे। उसने हार कर प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने की सोची। प्राइवेट स्कूलों का हाल जग जाहिर है देते हैं कुछ और हस्ताक्षर कुछ पर करवाते हैं। काम भी खूब करवाते हैं, लोगों की मजबूरी का नाजायज फायदा उठाते हैं।
वह ब्याह लायक हो रही थी रोशन के पिता थे नहीं उसके ब्याह की जिम्मेवारी भी रोशन की थी। रोशन खूब हाथ.पैर मार रहा था पर कहीं भी काम बनता नहीं दिख रहा था। जातीय संगठनों की शरण में गया पर उचित दहेज न जुटा पाने के कारण सुजाता के शादी का जुगाड़ नहीं बन पा रहा था।
सुजाता को इस बात का अहसास था कि रोशन उसकी शादी के लिए बहुत परेशान है। उसने रोशन से कहा,‘भइय्या क्यों इतने परेशान होते हैं?’
‘तेरे ब्याह के लिए मैं नहीं परेशान होऊँगा तो कौन होगा सुजाता, बड़ी आस लगा कर फूफा जी के पास गया था कि वह कुछ मदद करेंगे, पर वह उल्टा मेरा हिसाब माँगने लगे।’
‘कैसा हिसाब भैय्या?’
‘यही कि पिता जी का रुपया कहाँ गया, अम्मा का जेवर कहाँ गया, मेरे फंड का पैसा कहाँ गया?’
‘क्या यह वह भूल गए कि बाबू जी ने दो बहनों, दो बेटियों और एक बेटे की शादी की बहनों,बेटियों और बेटे की शादी में तो उन्हीं का पैसा खर्च हुआ था कोई फूफा जी ने तो रुपया लगाया नहीं था। उनको मेरा हिसाब लेने का क्या अधिकार है, आपको उन्हें ठीक से उत्तर देना चाहिए था।’
‘सुजाता, वह बड़े हैं, इसीलिए मैं चुप रहा।’
‘बुआ जी उस समय नहीं थी क्या?’
‘थीं, पर उन्होंने भी कुछ नहीं कहा,इस जमाने में गरीब का साथ कोई नहीं देता।’
‘क्या आप उनसे भीख मांगने गए थे? आप तो उनसे संबंध पूछने के लिए गए थे।’
‘शायद उन्होंने समझ लिया होगा कि कहीं उन्हें ही शादी न करना पड़ जाय। इसीलिए उन्होंने ऐसा व्यवहार किया।’
‘भैय्या बहुत हो गया, दुनिया में ऐसे भी लोग होते हैं जिनके विवाह नहीं होते, मैं भी विवाह नहीं करूँगी, अब आप को और अपमानित होते नहीं देख सकती।‘
‘अरे कहीं ऐसा होता है, लड़की वालों को यह सब झेलना पड़ता है।’
‘ऐसा ही होगा भइय्या मैं शादी नहीं करूँगी, कहीं न कहीं मेरी नौकरी लग जाएगी, मैं सम्मान से अपनी जिंदगी काट लूँगी। मैं भाभी को कुक्कू को पालने वचन दे चुकी हूँ, मैं उसको पालूँगी, मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि मेरे किसी आचरण से परिवार की प्रतिष्ठा को आँच नहीं आएगी।’
‘पगली कहीं ऐसा होता है,तेरा विवाह मेरी जिम्मेवारी है।’
‘भैय्या वास्तविकता के धरातल पर आइए और सोचिए इस विकट परिस्थिति में आप कैसे अपनी जिम्मेवारी निभा पाएंगे।’
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भविष्य को किसने देखा है, समय अपनी गति से चल रहा था। सुजाता की माता जी पान खाने की बहुत शौकीन थीं। एक दिन बारिस हो रही थी उनके पान समाप्त हो गए थे, पान की तलब उन्हें बेचैन किए थी, उन्होंने सोचा कि क्यों किसी को परेशान किया जाय, वह बिना किसी को कुछ बताए पान लेने के लिए बाजार की तरफ चल पड़ीं, समय को कुछ और मंजूर था, रास्ते में टूटा हुआ बिजली का तार पड़ा था जिसमें करेंट था, वह उसी की चपेट में आ गईं, जब तक लोग उन्हें देखें उनकी मृत्यु हो गई। यह सुजाता के परिवार पर बहुत बड़ा आघात था। उनकी माँ को मोटी पेंशन मिलती थी जिससे परिवार को काफी मदद मिलती थी वह भी बंद हो गई।
माँ के न रहने का समाचार सुनकर सुजाता की दोनों बहनें और बुआ,फूफा भी आए। सांत्वना देना दूर की बात फूफा जी माँ की मृत्यु की जांच करने लगे। उन्होंने रोशन को डांटते हुए पूछा,‘बरसते पानी में भाभी जी पान लेने कैसे चलीं गई? घर के लोग सब कहाँ चले गए थे? तुम कहाँ थे? तुम लोगों की लापरवाही के कारण भाभी की जान गई।’
‘मैं घर पर नहीं था।’ अपने चेहरे पर अपराधी भाव लिए रोशन ने कहा।
अपने फूफा के ऐसे व्यवहार से रोशन और सुजाता दोनों हत्प्रभ थे, दोनों गुमसुम बैठे थे। फूफा थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उन्होंने फिर कहा,‘अब तो तुम लोग खुश होगे कि तुम्हारा बोझ हटा।’
यह बात सुन कर सुजाता से नहीं रहा गया, वह बोली,‘फूफा जी वह आपकी भाभी ही नहीं हम लोगों की माँ भी थीं । वह हम लोगों पर बोझ नहीं हमारा सहारा थीं, उनकी पेंशन से हमारा घर चलता था। हम लोग चुप हैं तो जो आप के मुँह में आएगा आप बकते रहेंगे। आप कितने हमदर्द हैं, हम लोग अच्छी तरह जानते हैं। कभी उनका हाल लेने आए, तेरहवीं तक में तो आए नहीं, अब आए हैं झूठा नाटक दिखाने।’ रोशन ने उसे रोकना चाहा पर वह रुकी नहीं उसने फिर कहा,‘इतनी हम लोगों के ऊपर मुसीबतें आई कभी आप ने आकर सुधि ली है।’
‘देखा इस लड़की की जुबान कितनी लंबी हो गई।’
‘क्यों? सही बात सुनने की हिम्मत नहीं है, तो बेकार का भाषण क्यों देते हैं, बर्दाश्त करने की भी एक सीमा होती है,कितना सहें, आप तो हम भाई बहनों पर माँ को मार डालने का आरोप लगा रहे हैं,देखिए हम लोगों के जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें, हमें अपना जीवन जीने दें।’
सुजाता के फूफा ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि सुजाता इस तरह की प्रतिक्रिया देगी, वह सन्नाटे मे आगए। उन्होंने चिल्लाते हुए सविता की बहनों को अवाज दी जो अपनी माँ के बक्से की खानातलाशी मंे लगीं थी जो भी उसमें काम का सामान निकला उसे अपने पर्स के हवाले किया और फूफा के पास आकर पूछा,क्या हुआ?
‘अरे होने को क्या बचा है? इस लड़की ने तो मेरी इज्जत उतार कर रख दी, अब मैं समझ लूँगा की भाभी के मरने के बाद मेरी ससुराल ही खत्म होगई, अब मैं कभी यहाँ नहीं आऊँगा, तुम लोगों को रुकना हो तो रुको मैं अब यहाँ एक पल भी नहीं रुकूँगा।’
‘जहाँ आपका सम्मान न हो वहाँ हम लोग रुक कर क्या करेंगी।’ दोनों बहनों ने संवेत स्वर में कहा और सब चले गए।
उनके जाने के बाद सुजाता अपनी माँ का बक्सा खुला देख कर चौंकी, बक्सा देखने पर मालूम हुआ कि उसकी माँ की सोने की जंजीर, कान के टाॅप्स और चांदी के पायल गायब हैं। उसने रोशन को बताया, रोशन ने उससे चुप रहने को कहा। लेकिन उसने अपनी बहन को फोन करके खूब धिक्कारा। सुजाता सोच रही थी कि माँ का जेवर जो कभी मुसीबत में काम आ सकता था वह भी बहनों की हवस की भेंट चढ़ गया।
इस घटना से रोशन को बहुत धक्का लगा, वह गुमसुम रहने लगा। पहले तो सुजाता ने ध्यान नहीं दिया, एक दिन उसने देखा रोशन अकेले बैठा अपने से बात कर रहा था, उसने उससे पूछा,भैय्या क्या हुआ?
‘अंय! मुझे क्या हुआ? चौंकते हुए रोशन ने प्रतिप्रश्न किया।
‘अभी अकेले में आप किससे बात कर रहे थे?
‘मैं बात कर रहा था?’
‘हाँ आप बात कर रहे थे। बताइए न क्या बात है?’
‘मेरे फूफा और बहनें इतने नीचे स्तर तक जा सकते हैं?’
‘भैय्या आपको उन लोगों से अभी तक मोह है?’
‘उन से हम लोगों का खून का रिश्ता है।’
‘भैय्या अब तो जागो,जो रिश्ते, रिश्तों का खून पी रहे हों वह कैसे रिश्ते? असली रिश्तेदार तो अपने पड़ौसी हैं जो हर मौके पर अपने काम आते हैं। जिनको आप खून के रिश्तेदार कहते हैं वह तो हर मौके पर हम लोगों का ज़लील करने में नहीं चूकते। इनसे तो भगवान ही बचाए।’
‘कहती तो तुम ठीक हो।’
रोशन सुजाता के सामने सामान्य होने का नाटक करता पर परोक्ष में वह अपने रिश्तेदारों के व्यवहार और सुजाता का विवाह न हो पाने के पीछे अपने को ही जिम्मेवार मानता था और निरंतर इसी के बारे में सोचा करता था। सुजाता जब उसे देखती वह गुमसुम ही दिखता। एक दिन वह महेंद्र घर आकर उससे बोली,आपके पास कुछ समय है?
‘हाँ,हाँ, बोलो क्या बात है?’
‘मुझे आपसे कुछ बात करनी है।’
‘बोलो, क्या बात करनी है?’
‘भाई साहब मैं आपको अपना बड़ा भाई मानती हूँ। इसी कारण अपनी समस्या आप से कहने की हिम्मत कर रही हूँ।’
‘आप बेफिक्र हो कर अपनी बात कहें।’
उसने अपने ऊपर बीते पूरे घटनाक्रम को बताने के बाद कहा,भैय्या को न जाने क्या हो रहा है?
‘क्या हो रहा है?’
‘दिन प्रति दिन वह गुमसुम होते जा रहे हैं और उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा है। यह तो आप जानते ही हैं कि उनके सिवा अब और तो कोई मेरा है नहीं।’
‘ठीक है, कुछ सोचते हैं।’
सुजाता अपने घर चली गई। महेंद्र अपने मित्र राहुल जो मानसिक रोगों का डाक्टर है उसे सारी बातें बता कर उसकी मदद मांगी। उसने शाम को अपने क्लीनिक पर बुलाया। मैं रोशन और सुजाता को लेकर उसके क्लीनिक पर गया, उसने सुजाता और रोशन से करीब घंटे भर तक पूछ-ताछ करता रहा और उन लोगों से दूसरे दिन आने को कहा। रात में राहुल का फोन आया, उसने बताया‘,रोशन डिप्रेशन में जा रहा है? कुछ दिन इसकी कौंसिलिंग करनी पड़ेगी।’
‘कितना खर्च आएगा।’
‘इनकी आर्थिक स्थिति कैसी है?’
‘बिल्कुल अच्छी नहीं है,यह क्यों पूछा?’
‘सुजाता क्या तेरी रिश्तेदार है?’
‘रिश्तेदार नहीं है, मेरी पड़ौसी है, पर किसी रिश्तेदार से अधिक है,बहुत मुसीबत में है।’
‘कैसी मुसीबत?’
मैंने राहुल को सुजाता की पूरी स्थिति बताई,राहुल ने कहा,‘फिर तो इसकी मदद करनी चाहिए, तुम इन दोनों को हर दूसरे दिन शाम को भेजते रहो।’
‘धन्यवाद यार।’
‘धन्यवाद कैसा यार, मैं भी इंसान हूँ रोशन बहुत जरूरतमंद है उसकी मदद होनी चाहिए।’
रोशन की कौंसलिंग चल रही थी, कुछ लाभ भी दिख रहा था। सुजाता को भी लग रहा था कि शायद रोशन अब ठीक हो जाएगा।
सुजाता के फूफा की काफी उम्र भी होगई थी, पुराने हृदय रोगी थे एक दिन उनको हृदयाघात पड़ा और वह चल बसे। रोशन को कहीं से खबर लगी और वह अपनी बुआ के यहाँ पहुँच गया। उसे देखते ही उसकी बुआ बिफर कर बोली,‘मेरा सुहाग लूट कर तुम लोगों को चैन आगया होगा।’
‘ऐसा क्यों कह रहीं है आप?’
‘क्यों न कहूँ , उस दिन सुजाता उनको अगर ऐसा जवाब न देती तो उनको दौरा न पड़ता, तुम्हीं लोगों ने उनको मार डाला, अब आए हो घड़ियाली आँसू बहाने, दूर हो जाओ मेरी निगाहों से।’
रोशन को काटो तो खून नहीं, वहाँ से अपमानित होकर, अपने में खोया हुआ चला आ रहा था कि चालीस दुकान के पास तेज रफ्तार ट्रक से टकरा गया, भीड़ और पुलिस ने ट्रक को पकड़ लिया था। मोहल्ले का मामला था लोगों ने रोशन को पहचान लिया सुजाता को खबर दी गई। उसके ऊपर तो दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा, वह सोच ही नहीं पा रही थी कि वह क्या करे?
पुलिस ने लाश का पंचनामा किया और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। मोहल्ले वालों के सहयोग से अंतिम संस्कार हुआ। ट्रक का मालिक संबंधित दरोगा से मिलकर सुजाता से समझौते की पेशकश की। चूँकि ट्रक के मालिक ने दरोगा की जेब गर्म कर दी थी, उसने सविता को समझाया कि मुकदमा से कुछ भी नहीं होगा, यह ट्रक मालिक से तुम्हें अच्छा-खासा दिलवा देंगे जो तुम्हारे काम आएगा। सविता ने पड़ौसियों को बुलवाया, सब लोगों ने मिल कर तय किया कि दरोगा ठीक कह रहे हैं। मामला डेढ़ लाख में तय होगया।
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रोशन के न रहने के बाद घर अजीब सन्नाटे से भर गया। उसके मन में न जाने क्या.क्या चल रहा था, आगे सब अंधेरा ही दिख रहा था, कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। सोचते.सोचते वह अपने अतीत में उतर गई। उसे अपनी दूसरी बहन का विवाह समारोह दिखा, उसमें आया हुआ उसके मामा के लड़के का साला मयंक दिखा, बड़ा सुंदर हंसमुख था मयंक,रिश्ता ही ऐसा था, वह मजाक-मजाक में ही अपने दिल की बात कह गया। झूँठ नहीं बोलूँगी मुझे बहुत अच्छा लगा था, मैंने उससे हाँ कर दी।
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समय अपनी गति से चल रहा था। कुक्कू भी पाँच साल का हो गया था। छोटे निजी स्कूलों की हालत बहुत खराब हो चुकी थी। एक तरह से बंद होने की कगार पर आगए थे। सुजाता जिस स्कूल में पढ़ाती थी वह बंद होगया था। उसके ऊपर जीवन चलाने का बोझ बहुत बढ़ गया था,किसी तरह ट्यूशन से जिंदगी ढो रही थी। एक दिन मयंक उससे मिलने उसके घर आया, घर पर कुक्कू मिला उसने बताया सुजाता पार्क में है, वह पार्क में पहुँचा तो देखा कि वह आसमान की ओर ताक रही है। मयंक ने किसी अनिष्ट की आशंका से उसको आवाज दी सुजाता! क्या हुआ?
वह लगता कि जैसे वह तंद्रा में है लगा जैसे उसने सुना ही न हो। उसने दुबारा आवाज दी तो जैसे वह सोते से जागी, उसने कहा,अंय!तुमने कुछ पूछा क्या?
‘हाँ, मैंने पूछा तुम ठीक तो हो?’
‘मुझे क्या होगा, मैं ठीक हूँ।’
‘फिर क्या सोच रहीं थी?’
‘और क्या सोचना है सिवा इसके कि मेरे बाद कुक्कू का क्या होगा।’
‘सब ठीक होगा।’
वह सामान्य हुई, उसने मयंक को देख कर पूछा,‘तुम कब आए मयंक?’
‘अरे वाह बगैर पहचाने ही बात कर रही थी।’
‘मैं कुक्कू के भविष्य के सोच में इतना डूबी थी, इसलिए तुम्हारा आना न जान सकी, क्या तुमने ही कहा था, कि सब ठीक होगा, कैसे ठीक होगा?’
‘अरे, हम तुम मिल कर नया जीवन प्रारंभ करेंगे और कुक्कू हमारे जीवन का एक हिस्सा होगा।’
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‘अच्छा किया आपने, शर्मा जी ने आपके परिवार के बारे में मुझे भी बताया था,मैं स्वयं ही आप लोगों से मिलना चाहता था यह अच्छा हुआ आप ही आगईं।’
उसके जाने के बाद पत्नी ने बताया इस का नाम सुजाता बाजपेई है शायद हमें अपनी बिरादरी का समझ कर मिलने आई थी। एम.ए. में जुहारीदेवी महाविद्यालय में पढ़ती है, मुझसे साफ-साफ तो नहीं कहा पर मुझे उसकी बातों से ऐसा लगा कि उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, वह ट्यूशन के फिराक में आई थी।’
‘ठीक तो है, रीमा को पढ़ाने के लिए उससे कह देना।’
‘ठीक है।’
सुजाता मेरी बेटी रीमा को पढ़ाने आने लगी। वह बहुत मेहनती लड़की थी इसके साथ वह बहुत संकोची भी थी। गाँव से फसल की चीजें जब आती थीं तो पत्नी उसे देती थी उसे भी लेने में वह उसे बहुत संकोच करती थी, उसको मेरे घर बेटी को पढ़ाते काफी समय होगया था वह अब पत्नी से काफी खुल गई थी और वह उनसे अपनी घरेलू समस्याओं को भी पत्नी से साझा कर लिया करती है। यह स्त्रियों का खास गुण होता है कि वह दूसरों की बातों को बहुत जल्दी जान लेती है। सुजाता और उसकी पत्नी में काफी अंतरंगता हो गई थी। वह रोज-रोज कुछ न कुछ उसके बारे में बताया करती थीं। एक दिन उन्होंने सुजाता के परिवार के बारे में बताया।
उसके के परिवार में उसकी माँ,भाई,भाभी और एक भतीजा कुक्कू था,दो बड़ी बहने थीं जिनकी शादियाँ उसके पिता अपने मरने से पहले कर गए थे। उसके पिता लोको शेड के इंचार्ज थे, उसका भाई रोशन पढ़ने में ठीक नहीं था, इसलिए उसे रेल्वे लोको शेड में लेबर लगवा दिया था, वह काफी दुबला-पतला और बीमार सा दिखता था, पर बड़ा व्यवहार कुशल था, मुहल्ले में उसका सबसे अच्छा व्यवहार था। एक दिन पता चला कि उसकी पत्नी अचानक बीमार पड़ गई, उसने उसे रेल्वे अस्पताल में भर्ती करवाया। महीने भर करीब भर्ती रही पर वहाँ के इलाज से फायदा नहीं हुआ तो उन्होंने उसे मधुराज नर्सिंग.होम में भर्ती करवाया पर वहाँ से भी कोई लाभ नहीं हुआ और अस्पताल ने डिस्चार्ज कर दिया। वह घर ले आए। सुजाता का अपनी भाभी से बड़ा लगाव था, वह उनकी बीमारी से बड़ी व्यथित थी। अस्पताल से आने के बाद उसकी भाभी की मनोदशा बहुत खराब हो गई थी, वह जान गई थी कि अब वह नहीं बचेगी। एक दिन सुजाता ने उसे रोते देख लिया तो उसने अपनी भाभी से कहा, आप रोती क्यों हैं, आप ठीक हो जाएंगी।’
‘सुजाता क्यों झूठे आश्वासन दे रही हो,मैं मृत्यु को अपनी ओर आते क्षण प्रति क्षण देख रही हूँ, मैं उससे बिल्कुल नहीं डरती हूँ।’
‘फिर क्या बात है, भाभी रो क्यों रही हो?
‘सुजाता सोचती हूँ मेरे बाद कुक्कू का क्या होगा?
‘आप चिंता न करें, मैं तो हूँ।’
‘अरे तुम कितने दिन की हो तुम्हारी शादी हो जाओगी, तुम अपने घर चली जाओगी।’
‘मैं लड़के वालों से कुक्कू को अपने साथ रहने की शर्त रखूँगी।’
‘क्या उल्टी गंगा बहाती हो सुजाता, शर्त लड़के वाले रखते हैं लड़की वाले नहीं, वह कभी यह बात नहीं मानेंगे।’
‘अगर नहीं मानेंगे तो मैं विवाह नहीं करूँगी, बस कुक्कू को पालूँगी।’
और वही हुआ कोई भी लड़के वाला कुक्कू को रखने को तैय्यार नहीं हुआ, और सुजाता ने शादी नहीं की। एक दिन उसने सुजाता के घर के सामने एक कार खड़ी देखी तो उसने पत्नी से पूछा,‘क्या सुजाता के भाई ने कार ली है?’
‘कार और सुजाता का भाई! उसकी बहन आई होगी, उसी के पास कार है।’
‘फिर तो सुजाता की भाभी के बीमारी में उन्होंने रोशन की मदद की होगी?’
‘जब तक वह अस्पताल में भर्ती रही उनकी शक्ल नहीं दिखाई दी, हो सकता है आज मातमपुर्सी करने आई होगी।’
‘कैसी बहन है?’
‘सुजाता बता रही थी कि बड़ी दुष्ट है, आप मदद करने की बात करते हैं वह तो अभी भी उसके यहाँ से ले जाने के फेर में रहती है।’
‘सुनते हैं कि उसकी दोनों बहनें पैसे वाली हैं।’
‘क्या पैसे वाले लालची नहीं होते हैं।’
कुक्कू दो साल का था पर वह ठीक से बोल नहीं पाता था,रोशन ने उसे रेल्वे अस्पताल में दिखाया, वहाँ के उपचार से थोड़ा फर्क तो आया पर पूर्ण रूप से ठीक न हो सका। अगले साल रोशन सेवामुक्त होगया। उसकी और माँ की पेंशन से बस घर का काम चल रहा था। रोशन और उसके घर वालों का बस कुक्कू की चिंता खाए जा रही थी। सुजाता का एम,ए. पूरा होगया था, वह नौकरी के लिए खूब हाथ.पैर मार रही थी पर कहीं जुगाड़ नहीं लग रहा था। अध्यापकी के लिए बी.एड. आड़े आ रहा था। घर की परिस्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बी.एड. कर सके और उसके समर्थ फूफा और बहिनें जाने किस जन्म की दुश्मनी निभा रहे थे। उसने हार कर प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने की सोची। प्राइवेट स्कूलों का हाल जग जाहिर है देते हैं कुछ और हस्ताक्षर कुछ पर करवाते हैं। काम भी खूब करवाते हैं, लोगों की मजबूरी का नाजायज फायदा उठाते हैं।
वह ब्याह लायक हो रही थी रोशन के पिता थे नहीं उसके ब्याह की जिम्मेवारी भी रोशन की थी। रोशन खूब हाथ.पैर मार रहा था पर कहीं भी काम बनता नहीं दिख रहा था। जातीय संगठनों की शरण में गया पर उचित दहेज न जुटा पाने के कारण सुजाता के शादी का जुगाड़ नहीं बन पा रहा था।
सुजाता को इस बात का अहसास था कि रोशन उसकी शादी के लिए बहुत परेशान है। उसने रोशन से कहा,‘भइय्या क्यों इतने परेशान होते हैं?’
‘तेरे ब्याह के लिए मैं नहीं परेशान होऊँगा तो कौन होगा सुजाता, बड़ी आस लगा कर फूफा जी के पास गया था कि वह कुछ मदद करेंगे, पर वह उल्टा मेरा हिसाब माँगने लगे।’
‘कैसा हिसाब भैय्या?’
‘यही कि पिता जी का रुपया कहाँ गया, अम्मा का जेवर कहाँ गया, मेरे फंड का पैसा कहाँ गया?’
‘क्या यह वह भूल गए कि बाबू जी ने दो बहनों, दो बेटियों और एक बेटे की शादी की बहनों,बेटियों और बेटे की शादी में तो उन्हीं का पैसा खर्च हुआ था कोई फूफा जी ने तो रुपया लगाया नहीं था। उनको मेरा हिसाब लेने का क्या अधिकार है, आपको उन्हें ठीक से उत्तर देना चाहिए था।’
‘सुजाता, वह बड़े हैं, इसीलिए मैं चुप रहा।’
‘बुआ जी उस समय नहीं थी क्या?’
‘थीं, पर उन्होंने भी कुछ नहीं कहा,इस जमाने में गरीब का साथ कोई नहीं देता।’
‘क्या आप उनसे भीख मांगने गए थे? आप तो उनसे संबंध पूछने के लिए गए थे।’
‘शायद उन्होंने समझ लिया होगा कि कहीं उन्हें ही शादी न करना पड़ जाय। इसीलिए उन्होंने ऐसा व्यवहार किया।’
‘भैय्या बहुत हो गया, दुनिया में ऐसे भी लोग होते हैं जिनके विवाह नहीं होते, मैं भी विवाह नहीं करूँगी, अब आप को और अपमानित होते नहीं देख सकती।‘
‘अरे कहीं ऐसा होता है, लड़की वालों को यह सब झेलना पड़ता है।’
‘ऐसा ही होगा भइय्या मैं शादी नहीं करूँगी, कहीं न कहीं मेरी नौकरी लग जाएगी, मैं सम्मान से अपनी जिंदगी काट लूँगी। मैं भाभी को कुक्कू को पालने वचन दे चुकी हूँ, मैं उसको पालूँगी, मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि मेरे किसी आचरण से परिवार की प्रतिष्ठा को आँच नहीं आएगी।’
‘पगली कहीं ऐसा होता है,तेरा विवाह मेरी जिम्मेवारी है।’
‘भैय्या वास्तविकता के धरातल पर आइए और सोचिए इस विकट परिस्थिति में आप कैसे अपनी जिम्मेवारी निभा पाएंगे।’
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भविष्य को किसने देखा है, समय अपनी गति से चल रहा था। सुजाता की माता जी पान खाने की बहुत शौकीन थीं। एक दिन बारिस हो रही थी उनके पान समाप्त हो गए थे, पान की तलब उन्हें बेचैन किए थी, उन्होंने सोचा कि क्यों किसी को परेशान किया जाय, वह बिना किसी को कुछ बताए पान लेने के लिए बाजार की तरफ चल पड़ीं, समय को कुछ और मंजूर था, रास्ते में टूटा हुआ बिजली का तार पड़ा था जिसमें करेंट था, वह उसी की चपेट में आ गईं, जब तक लोग उन्हें देखें उनकी मृत्यु हो गई। यह सुजाता के परिवार पर बहुत बड़ा आघात था। उनकी माँ को मोटी पेंशन मिलती थी जिससे परिवार को काफी मदद मिलती थी वह भी बंद हो गई।
माँ के न रहने का समाचार सुनकर सुजाता की दोनों बहनें और बुआ,फूफा भी आए। सांत्वना देना दूर की बात फूफा जी माँ की मृत्यु की जांच करने लगे। उन्होंने रोशन को डांटते हुए पूछा,‘बरसते पानी में भाभी जी पान लेने कैसे चलीं गई? घर के लोग सब कहाँ चले गए थे? तुम कहाँ थे? तुम लोगों की लापरवाही के कारण भाभी की जान गई।’
‘मैं घर पर नहीं था।’ अपने चेहरे पर अपराधी भाव लिए रोशन ने कहा।
अपने फूफा के ऐसे व्यवहार से रोशन और सुजाता दोनों हत्प्रभ थे, दोनों गुमसुम बैठे थे। फूफा थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उन्होंने फिर कहा,‘अब तो तुम लोग खुश होगे कि तुम्हारा बोझ हटा।’
यह बात सुन कर सुजाता से नहीं रहा गया, वह बोली,‘फूफा जी वह आपकी भाभी ही नहीं हम लोगों की माँ भी थीं । वह हम लोगों पर बोझ नहीं हमारा सहारा थीं, उनकी पेंशन से हमारा घर चलता था। हम लोग चुप हैं तो जो आप के मुँह में आएगा आप बकते रहेंगे। आप कितने हमदर्द हैं, हम लोग अच्छी तरह जानते हैं। कभी उनका हाल लेने आए, तेरहवीं तक में तो आए नहीं, अब आए हैं झूठा नाटक दिखाने।’ रोशन ने उसे रोकना चाहा पर वह रुकी नहीं उसने फिर कहा,‘इतनी हम लोगों के ऊपर मुसीबतें आई कभी आप ने आकर सुधि ली है।’
‘देखा इस लड़की की जुबान कितनी लंबी हो गई।’
‘क्यों? सही बात सुनने की हिम्मत नहीं है, तो बेकार का भाषण क्यों देते हैं, बर्दाश्त करने की भी एक सीमा होती है,कितना सहें, आप तो हम भाई बहनों पर माँ को मार डालने का आरोप लगा रहे हैं,देखिए हम लोगों के जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें, हमें अपना जीवन जीने दें।’
सुजाता के फूफा ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि सुजाता इस तरह की प्रतिक्रिया देगी, वह सन्नाटे मे आगए। उन्होंने चिल्लाते हुए सविता की बहनों को अवाज दी जो अपनी माँ के बक्से की खानातलाशी मंे लगीं थी जो भी उसमें काम का सामान निकला उसे अपने पर्स के हवाले किया और फूफा के पास आकर पूछा,क्या हुआ?
‘अरे होने को क्या बचा है? इस लड़की ने तो मेरी इज्जत उतार कर रख दी, अब मैं समझ लूँगा की भाभी के मरने के बाद मेरी ससुराल ही खत्म होगई, अब मैं कभी यहाँ नहीं आऊँगा, तुम लोगों को रुकना हो तो रुको मैं अब यहाँ एक पल भी नहीं रुकूँगा।’
‘जहाँ आपका सम्मान न हो वहाँ हम लोग रुक कर क्या करेंगी।’ दोनों बहनों ने संवेत स्वर में कहा और सब चले गए।
उनके जाने के बाद सुजाता अपनी माँ का बक्सा खुला देख कर चौंकी, बक्सा देखने पर मालूम हुआ कि उसकी माँ की सोने की जंजीर, कान के टाॅप्स और चांदी के पायल गायब हैं। उसने रोशन को बताया, रोशन ने उससे चुप रहने को कहा। लेकिन उसने अपनी बहन को फोन करके खूब धिक्कारा। सुजाता सोच रही थी कि माँ का जेवर जो कभी मुसीबत में काम आ सकता था वह भी बहनों की हवस की भेंट चढ़ गया।
इस घटना से रोशन को बहुत धक्का लगा, वह गुमसुम रहने लगा। पहले तो सुजाता ने ध्यान नहीं दिया, एक दिन उसने देखा रोशन अकेले बैठा अपने से बात कर रहा था, उसने उससे पूछा,भैय्या क्या हुआ?
‘अंय! मुझे क्या हुआ? चौंकते हुए रोशन ने प्रतिप्रश्न किया।
‘अभी अकेले में आप किससे बात कर रहे थे?
‘मैं बात कर रहा था?’
‘हाँ आप बात कर रहे थे। बताइए न क्या बात है?’
‘मेरे फूफा और बहनें इतने नीचे स्तर तक जा सकते हैं?’
‘भैय्या आपको उन लोगों से अभी तक मोह है?’
‘उन से हम लोगों का खून का रिश्ता है।’
‘भैय्या अब तो जागो,जो रिश्ते, रिश्तों का खून पी रहे हों वह कैसे रिश्ते? असली रिश्तेदार तो अपने पड़ौसी हैं जो हर मौके पर अपने काम आते हैं। जिनको आप खून के रिश्तेदार कहते हैं वह तो हर मौके पर हम लोगों का ज़लील करने में नहीं चूकते। इनसे तो भगवान ही बचाए।’
‘कहती तो तुम ठीक हो।’
रोशन सुजाता के सामने सामान्य होने का नाटक करता पर परोक्ष में वह अपने रिश्तेदारों के व्यवहार और सुजाता का विवाह न हो पाने के पीछे अपने को ही जिम्मेवार मानता था और निरंतर इसी के बारे में सोचा करता था। सुजाता जब उसे देखती वह गुमसुम ही दिखता। एक दिन वह महेंद्र घर आकर उससे बोली,आपके पास कुछ समय है?
‘हाँ,हाँ, बोलो क्या बात है?’
‘मुझे आपसे कुछ बात करनी है।’
‘बोलो, क्या बात करनी है?’
‘भाई साहब मैं आपको अपना बड़ा भाई मानती हूँ। इसी कारण अपनी समस्या आप से कहने की हिम्मत कर रही हूँ।’
‘आप बेफिक्र हो कर अपनी बात कहें।’
उसने अपने ऊपर बीते पूरे घटनाक्रम को बताने के बाद कहा,भैय्या को न जाने क्या हो रहा है?
‘क्या हो रहा है?’
‘दिन प्रति दिन वह गुमसुम होते जा रहे हैं और उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा है। यह तो आप जानते ही हैं कि उनके सिवा अब और तो कोई मेरा है नहीं।’
‘ठीक है, कुछ सोचते हैं।’
सुजाता अपने घर चली गई। महेंद्र अपने मित्र राहुल जो मानसिक रोगों का डाक्टर है उसे सारी बातें बता कर उसकी मदद मांगी। उसने शाम को अपने क्लीनिक पर बुलाया। मैं रोशन और सुजाता को लेकर उसके क्लीनिक पर गया, उसने सुजाता और रोशन से करीब घंटे भर तक पूछ-ताछ करता रहा और उन लोगों से दूसरे दिन आने को कहा। रात में राहुल का फोन आया, उसने बताया‘,रोशन डिप्रेशन में जा रहा है? कुछ दिन इसकी कौंसिलिंग करनी पड़ेगी।’
‘कितना खर्च आएगा।’
‘इनकी आर्थिक स्थिति कैसी है?’
‘बिल्कुल अच्छी नहीं है,यह क्यों पूछा?’
‘सुजाता क्या तेरी रिश्तेदार है?’
‘रिश्तेदार नहीं है, मेरी पड़ौसी है, पर किसी रिश्तेदार से अधिक है,बहुत मुसीबत में है।’
‘कैसी मुसीबत?’
मैंने राहुल को सुजाता की पूरी स्थिति बताई,राहुल ने कहा,‘फिर तो इसकी मदद करनी चाहिए, तुम इन दोनों को हर दूसरे दिन शाम को भेजते रहो।’
‘धन्यवाद यार।’
‘धन्यवाद कैसा यार, मैं भी इंसान हूँ रोशन बहुत जरूरतमंद है उसकी मदद होनी चाहिए।’
रोशन की कौंसलिंग चल रही थी, कुछ लाभ भी दिख रहा था। सुजाता को भी लग रहा था कि शायद रोशन अब ठीक हो जाएगा।
सुजाता के फूफा की काफी उम्र भी होगई थी, पुराने हृदय रोगी थे एक दिन उनको हृदयाघात पड़ा और वह चल बसे। रोशन को कहीं से खबर लगी और वह अपनी बुआ के यहाँ पहुँच गया। उसे देखते ही उसकी बुआ बिफर कर बोली,‘मेरा सुहाग लूट कर तुम लोगों को चैन आगया होगा।’
‘ऐसा क्यों कह रहीं है आप?’
‘क्यों न कहूँ , उस दिन सुजाता उनको अगर ऐसा जवाब न देती तो उनको दौरा न पड़ता, तुम्हीं लोगों ने उनको मार डाला, अब आए हो घड़ियाली आँसू बहाने, दूर हो जाओ मेरी निगाहों से।’
रोशन को काटो तो खून नहीं, वहाँ से अपमानित होकर, अपने में खोया हुआ चला आ रहा था कि चालीस दुकान के पास तेज रफ्तार ट्रक से टकरा गया, भीड़ और पुलिस ने ट्रक को पकड़ लिया था। मोहल्ले का मामला था लोगों ने रोशन को पहचान लिया सुजाता को खबर दी गई। उसके ऊपर तो दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा, वह सोच ही नहीं पा रही थी कि वह क्या करे?
पुलिस ने लाश का पंचनामा किया और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। मोहल्ले वालों के सहयोग से अंतिम संस्कार हुआ। ट्रक का मालिक संबंधित दरोगा से मिलकर सुजाता से समझौते की पेशकश की। चूँकि ट्रक के मालिक ने दरोगा की जेब गर्म कर दी थी, उसने सविता को समझाया कि मुकदमा से कुछ भी नहीं होगा, यह ट्रक मालिक से तुम्हें अच्छा-खासा दिलवा देंगे जो तुम्हारे काम आएगा। सविता ने पड़ौसियों को बुलवाया, सब लोगों ने मिल कर तय किया कि दरोगा ठीक कह रहे हैं। मामला डेढ़ लाख में तय होगया।
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रोशन के न रहने के बाद घर अजीब सन्नाटे से भर गया। उसके मन में न जाने क्या.क्या चल रहा था, आगे सब अंधेरा ही दिख रहा था, कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। सोचते.सोचते वह अपने अतीत में उतर गई। उसे अपनी दूसरी बहन का विवाह समारोह दिखा, उसमें आया हुआ उसके मामा के लड़के का साला मयंक दिखा, बड़ा सुंदर हंसमुख था मयंक,रिश्ता ही ऐसा था, वह मजाक-मजाक में ही अपने दिल की बात कह गया। झूँठ नहीं बोलूँगी मुझे बहुत अच्छा लगा था, मैंने उससे हाँ कर दी।
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समय अपनी गति से चल रहा था। कुक्कू भी पाँच साल का हो गया था। छोटे निजी स्कूलों की हालत बहुत खराब हो चुकी थी। एक तरह से बंद होने की कगार पर आगए थे। सुजाता जिस स्कूल में पढ़ाती थी वह बंद होगया था। उसके ऊपर जीवन चलाने का बोझ बहुत बढ़ गया था,किसी तरह ट्यूशन से जिंदगी ढो रही थी। एक दिन मयंक उससे मिलने उसके घर आया, घर पर कुक्कू मिला उसने बताया सुजाता पार्क में है, वह पार्क में पहुँचा तो देखा कि वह आसमान की ओर ताक रही है। मयंक ने किसी अनिष्ट की आशंका से उसको आवाज दी सुजाता! क्या हुआ?
वह लगता कि जैसे वह तंद्रा में है लगा जैसे उसने सुना ही न हो। उसने दुबारा आवाज दी तो जैसे वह सोते से जागी, उसने कहा,अंय!तुमने कुछ पूछा क्या?
‘हाँ, मैंने पूछा तुम ठीक तो हो?’
‘मुझे क्या होगा, मैं ठीक हूँ।’
‘फिर क्या सोच रहीं थी?’
‘और क्या सोचना है सिवा इसके कि मेरे बाद कुक्कू का क्या होगा।’
‘सब ठीक होगा।’
वह सामान्य हुई, उसने मयंक को देख कर पूछा,‘तुम कब आए मयंक?’
‘अरे वाह बगैर पहचाने ही बात कर रही थी।’
‘मैं कुक्कू के भविष्य के सोच में इतना डूबी थी, इसलिए तुम्हारा आना न जान सकी, क्या तुमने ही कहा था, कि सब ठीक होगा, कैसे ठीक होगा?’
‘अरे, हम तुम मिल कर नया जीवन प्रारंभ करेंगे और कुक्कू हमारे जीवन का एक हिस्सा होगा।’
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जयराम सिंह गौर,
180/12 बापूपुरवाकाॅलोनी,किदवईनगर,
पोस्ट टी.पी.नगर,कानपुर-208023,
मो. 9451547042,7355744763