प्रयास ही कहना उचित है क्योंकि मैं कहानीकार हूँ ही नहीं। कुछ कथालेख पढ़कर लगा कि प्रयास करना चाहिए।
साहित्य के विधाओँ की समझ नहीं है। कोई भी प्रयास करता हूँ तो सफलता नहीं ही मिलती है परन्तु संभवतः कभी मिल ही जाए, अतः फिर-फिर प्रयास करता रहता हूँ।
कहानी मेरी नहीं है। मेरे पिताजी सुनाया करते थे। वे मात्र चौथी कक्षा तक पढ़े थे, परन्तु उर्दू, हिन्दी, गुरमुखी, बेंगाली भाषाओं के जानकार थे और राजस्थानी, हरियाणावी भी बोलते थे।
आर्यसमाजी थे, अतः वेद के भी जानकार थे और नियमित रूप से नित्य प्रातः संध्यावंदन और अग्निहोत्र करते थे।
वे कभी-कभी हम बच्चों को बैठाकर कहानियाँ सुनाते रहते थे। उन्हीं कहानियों में से एक यह गंगावतरण की कहानी भी है।
राजा सगर के राज्य में जल की बहुत कमी थी। बरसात कम होती थ। कई कई वर्ष होती ही नहीं थी। अकाल और अकाल मृत्यु होती रहती थीं। इस कारण राजा बहुत चिंतित रहता था। जल की यह समस्या पीढ़ियों से चली आ रही थी पर समाधान हो नहीं रहा था। एक वर्ष को 60,000 जन की अकाल मृत्यु हो गयी।
सगर के पुत्र अँशुमान को भी यह समस्या विरासत में मिली। उसने भी सभी विद्वानों से विचार विमर्श किया और समाधान का प्रयास किया।
अँशुमान के पुत्र भगीरथ ने इसके समाधान का बीड़ा उठाया और कुछ समर्पित साथियों के साथ निकल पड़ा।
वर्षों के अनुसंधानपूर्ण भ्रमण के पश्चात् वे हिमालय की तलहटी तक पहुँचे। यह तब की बात है जब हिमालय उग रहा था। ऊँचा तो था परन्तु आज जितना नहीं।
फिर भी भगीरथ एन्ड कम्पनी को वहाँ अथाह हिमनदों का भंडार मिला। उनकी हिम्मत बढ़ी।
हिमालय का विस्तार तब भी बहुत अधिक था और बर्फ़ का भंडार यूँ लगता था मानों ब्रह्मा जी का कमंडल औंधा होकर हिम कण बरसा रहा हो।
भगीरथ ने उस क्षेत्र के क्षत्रप भगवान शिव की पूजा आराधना की और उन्हें प्रसन्न किया। उस क्षेत्र की विभिन्न जटाओं-शिखरों पर जमें और गर्मी पड़ने पर पिघलकर बहने वाले जल को एक धारा में समाहित करने की अनुमति प्राप्त कर ली।
उसके बाद तो बस आगे आगे भगीरथ की टीम उन धाराओं का एकीकरण करती हुई, उस धारा के अवरोध रहित बहाव को सुनिश्चित करती हुई आगे बढ़ने लगी और पीछे-पीछे गंगा बहती चलती रही।
राह के सभी कंटकों, अवरोधों को झेलते, दूर करती हुई यह टीम सतत् चलते चलते इस गंगामाता की विशाल धारा के साथ अपने गंतव्य पर पहुँच गई और उस राज्य में एक सागर निर्मित हो गया जिसे गंगासागर का नाम दिया गया।
इस प्रकार उस भगीरथ प्रयास से गंगा धरती पर उतरी, बंग की खाड़ी तक पहुँची और इस देश के इस क्षेत्री जल की समस्या सदा के लिए हल हो गई।
फिर हम सभी बालक गंगा मैया की जय के साथ इस कथा का समापन कर लेते थे।
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✍️ रामावतार ‘निश्छल’