By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept

Lahak Digital

News for nation

  • Home
  • Lahak Patrika
  • Contact
  • Account
  • Politics
  • Literature
  • International
  • Media
Search
  • Advertise
© 2023 Lahak Digital | Designed By DGTroX Media
Reading: वेद प्रकाश की कविताएं
Share
Sign In
0

No products in the cart.

Notification Show More
Latest News
वरिष्ठ कवि और दोहाकार डॉ सुरेन्द्र सिंह रावत द्वारा संकलित व सम्पादित सांझा काव्य संग्रह ‘काव्यान्जली 2024’ का लोकार्पण हुआ*
Literature
राकेश भारतीय की कविताएं
Literature
कमल हासन की मणिरत्नम निर्देशित फिल्म *ठग लाइफ* 5 जून को होगी रिलीज
Uncategorized
*कैदियों को कैंसर के बढ़ते खतरे से जागरूक करने के लिए तिहाड़ जेल वन में कार्यक्रम का आयोजन हुआ*
Motivation - * प्रेरक *
“वीकेएस.फिल्म एकेडमी” मुम्बई ने दो चर्चित नाटकों “राजकुमारी जुलियाना” और “मेरा पति सलमान खान” का शानदार मंचन किया*
Entertainment
Aa

Lahak Digital

News for nation

0
Aa
  • Literature
  • Business
  • Politics
  • Entertainment
  • Science
  • Technology
  • International News
  • Media
Search
Have an existing account? Sign In
Follow US
  • Advertise
© 2022 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
Lahak Digital > Blog > Literature > वेद प्रकाश की कविताएं
Literature

वेद प्रकाश की कविताएं

admin
Last updated: 2024/07/29 at 7:22 AM
admin
Share
11 Min Read
SHARE

मैं हवा के झोंका की तरह आऊंगा

मैं हवा के झोंका की
तरह आऊंगा
पेड़ झूमने लगेंगे
पक्षियों के कलरव से
धरती गूंज उठेगी
आकाश समुद्र की ओर
झुकने लगेंगे
समुद्र बादल का एक टुकड़ा
आकाश की ओर उछाल देगा
बादल धरती को सराबोर कर देंगे
मैं हवा के झोंका की
तरह आऊंगा
धरती हरियाली से
भर उठेगी
हरियाली झूला पर बैठ
आकाश चूमने लगेगी

Contents
मैं हवा के झोंका की तरह आऊंगासुषमा

नींद, जो दरवाजे की रखवाली
करता है
गुलमोहर की कमजोर टहनियां, पीपल पर बैठे गौरेये का झुंड

आज तो सब बेखौफ बिना डर
सबको अपना रहे
कभी जो गिद्ध से डरा करते थे
वे आज उसी नदी में
तैर रहे , डूब रहे ,
पंख तो इस तरह झाड़ते हैं
जैसे सभी बूंदे टूट कर मोती
बन जाएंगी
मैं हवा के झोंका की
तरह आऊंगा
मोतियां हंस बन जाएंगी

तुम देखना
उन पैरों के निशान
जिनकी रेखाएं
तुमसे मिलकर
एक हो जाती थीं
मैं जानता हूं
रोशनी और अंधेरे का फर्क
मैं यह भी जानता हूं
रोशनी के पहले का समय
और , अंधेरे का गहन होने का रंग
हो सकता है, यह किसी दूसरे
देश की बात हो
या, जंगल के उस ओर की बात हो जहां न मैं जा चुका हूं, न तुम
फिर भी, तुम्हारी आहट से
इस घने जंगल में शोर होने लगता है,

रोशनी आने के लिए बेचैन हो उठती है

अंधेरा छिपने लगता है
काश! ऐसा भी होता कि
जो मानचित्र तुम्हारे पास है
जो कंपास तुम्हें रास्ता बताता है

किसी दिन तुम उसे देखना भूल जाते

वह गहराई, वह लंबाई

मैं यह कहता हूं कि
तुम्हें दूरी पता नहीं चलता
तुम यहीं के होकर रह जाते

मैंने तुम्हें रास्ता भटकते हुए देखा है

तुमने अपने चश्मे का नंबर तो सही करवा लिया
लेकिन, अभी तुम चौराहों को नहीं पहचान पाते
तुमने कई बार बताया
जाना था रेलवे स्टेशन, विश्वविद्यालय सब्जीमंडी ,फल वाले के पास

तुम आजतक न गोलगप्पा खा सके
न गुलाब जामुन, न आईसक्रीम
तुम जानते हो
इस भटकाव का मतलब

ये बहुमंजिली ईमारतें
तुम्हें थका देती हैं
तुम किस फ्लोर पर जाना चाहते हो, तुम यह भी भूल चुके हो

मोबाईल में संदेश
जब मिटाया जाता है वह संदेश
फिर, कभी नहीं देखा जा सकता
तुम अपने से ऐसा व्यवहार करके, कुछ भी सिद्ध न कर सकोगे
तुम्हारे पास जो शब्द है, या
जिस शब्दकोष मेंअपना जीवन देखते हो
वह पुराना हो गया है
उसका अस्तित्व संदेह में आ गया है, तुम उसके साथ क्यों रहते हो!
यह तुम जानो
इतना तो तय है कि तुम

जब तक अपने तरह से रहना नहीं सीख लेते
या जहां रह रहे हो
वह जगह तुम्हें अपना नहीं लेता, तुमको पहचान लेना चाहिए
तुम्हारा अपना कुछ नहीं है
तुमने जिसे अपना समझा
वह अपना था ही नहीं
कितना अच्छा लगता है!
दूसरे में से अपने को देखना

लोग कहते हैं
कहते रहे हैं
कहते रहेंगे

इस बात का जीवन पर
जीवन में असर नहीं होना चाहिए, तुम्हारा अलहदा होना
तुमको जीवन देता है
मैं नहीं समझता कि, इस जीवन को, तुम कैसे अपनाओगे!

तुमने एक आवरण से अपने को
ढक लिया है
यह तुम्हारे लिए प्रतिकूल
स्थिति बनाता है
लेकिन, तुम कहां ?
तुम्हारे लोग कहां ?
वातावरण, स्थितियां
वायुमंडल, वातायन
तुम सबसे अलग
और, कहीं और के हो कर रह गए
यह अलग होना
और, संपृक्त होना
और, कुछ नहीं
मात्र जीवन को जीवन से जोड़ने का, सूत्र है
तुम समझ ही नहीं पाते
आना और जाना
तुम देख ही नहीं सकते
खिलना और गिर जाना
तुम्हारा स्पर्श
बारिश की पहली बूंद है
जेठ की तपती धरती पर
बादल का आ जाना
पूस में आकाश पर
सूरज का छा जाना
और, कुछ नहीं

दुनिया को देखने का
पारदर्शी तरीका
तुमने ही ईजाद किया है

मैं हवा के झोंका की तरह आऊंगा
तुम श्रृंगार से सराबोर हो उठोगे
तुम भूल जाओगे
इत्र की महक, फूलों का रंग
बेचैनी का ऊहापोह
इस कमरे से उसे कमरे तक

जाने में घंटों व्यय कर दोगे
बनावट के सामान को कूड़ा
मूल और प्राकृतिक
और, जो भी तुमने अपने श्रम से, अर्जित किए हैं
जो भी तुम्हारे व्यक्तिगत व्यवस्था में, आस्था या परंपरा की तरह
चिपके हैं
उन्हें कोई पदवी न देकर
अपनाने की कोशिश करना
निहायत निजी हो सकता है
लेकिन , परहेज नहीं कर पाओगे, तुम्हारी यही विशेषता है
तुम हमेशा पत्थर को पत्थर, आग को आग, रोशनी को रोशनी
कहने से परहेज नहीं करते
तुम यह भी जानते हो
तुम्हारे पैर और हाथ
तुम्हारा साथ नहीं देंगे
तुम उड़ भी नहीं सकोगे
यह घरौंदा अपनाते, अपनाते
तुम घरौंदा होते गए
सोचो, पक्षी होना कितना मुश्किल है

तुम उड़ते रहे
किसी बेमकसद पतंग की तरह
एक दिन पेड़ की टहनियों ने तुम्हें
गले लगा लिया
हवा ने अपनी लय सिखा दी
बादल से तो तुम्हारी कभी बनी ही नहीं, तुम गमले में उग कर
पेड़ की तरह छतनार नहीं हो सकते, तुम्हें पेड़ के बीच से
पीपल की तरह उगना है
तुमको मैं जानता हूं
हवा का झोंका तुमको
देवदार बना देंगे, चीर बना देंगे

सागौन और यूकेलिप्टस बना देंगे
तुम चुपचाप उनकी
अठखेलियों में शामिल हो जाओगे।

सुषमा

मैं जिस तरह तुमको देखता हूं
कोई न देखे उस तरह

मैं देखता हूं फूल की तरह
आकाश में भरे हुए बादल के बीच
एक चांद की तरह
मैं महसूस करता हूं
खुशबू की तरह
हवा जो तुम्हें छू कर चली गई
वह दूर देश से
तितलियों को जरूर लाएगी
मैंने कभी नहीं सोचा
धरती की नमी
तुम्हें इस तरह सींचती है
जैसे तुम्हारी जड़ें
इस धरती को पकड़े हुए हैं

मैं जब पहाड़ों के बारे में सोचता हूं, मुझे याद आ जाते हैं
चीर और देवदार
जो संतों की तरह
रास्ता बताते हैं
लोग बाग
अनुसरण करते हैं
याद आती है, कभी-कभी वह झाड़ियां जो खुद को उलझा कर
पहाड़ों को बांधे रहती हैं
ये जो परजीवी लतरे हैं
देखता हूं सभी पेड़ों को
आपस में बांध देती हैं
छोटे और बड़े का फर्क
समाप्त हो जाता है

ऑक्सीजन के लिए
बहुत मुश्किल आती है
जब साधु और सन्यासी
विलुप्त होने लगते हैं
समय धीमा हो जाता है
समय पीछे होने लगता है
उकेरे गए कुछ चित्र
काम नहीं आते
लोगों को लगता है
घरों में घिरी हुए शानदार
मूर्तियां जो सोने और जवाहरात
से लदी फदी हैं
जंगलों में घूमने वाले लोग
तो नंग धरंग यूं ही रहे
आखिर यह सब क्या है?
लोग जानना चाहते हैं
कौन बताएगा?
चारों ओर सन्नाटा पसरा है
कवि क्या करें ?

समय मिले तो सोचना
यह जो तुम्हारे बारे में सोच रखा है
वह किसी तीसरी दुनिया का अजूबा नहीं
कभी-कभी महसूस करना चाहिए
जो चीजें तुम्हारे लिए नहीं
देखना चाहिए
बालू हाथ से क्यों फिसल जाता है?

सोचना चाहिए
तुम कोई अलग से तो हो नहीं
आओ न ऐसा करें, कि

गिरती ओस को भाप बनने से पहले

अणु में बदलने की कोशिश की जाए

हम अच्छा को अच्छा
बुरा को बुरा कहना जानते हैं
हमको बाजीगरी नहीं आती
हम जादू तो जानते ही नहीं
करिश्मा हमारी जद के बाहर
हमारी सीमा ही हमारा वजूद है
हम बर्फ को ठहरा हुआ देखते हैं

सूरज निकलने के बाद
बर्फ का पता ठिकाना बदल जाता है, हमारे रास्ते विरल हैं
हम जिधर निकल जाते हैं
चौराहे हमें कभी नहीं रोकते
चौराहे जानते हैं, एक आदमी जब निपट अकेला होता है सड़क ही उसका साथ देती है
आओ एक सड़क ही बनाया जाए

टी पॉइंट पर चाय पीते हुए
कुछ लोग सिगरेट का कश लेना नहीं भूलते
चाय से उठती भाप
जब बादल में बदलने को उतावली होती है
चूल्हे की आग बहुत लाल हो जाती है, कोयला सोच भी नहीं सकता
इस लाली के बारे में
यह एक नियति है
जिसे बदला नहीं जा सकता
इस नियति को जीने वाले

इतिहास हो जाते हैं
इतिहास में जाने से पहले
किसी अध्ययन की नहीं
अपितु तर्कों की जरूरत पड़ती है
तर्क जो निष्कर्ष तक ले जाते हैं

यह जो वातावरण
बुन रखा है तुमने
जीवन को जीने का
जो तरीका तुम्हारा है
तुम धरती को अपना
आकाश को अपना
वायु को अपना
घोषित कर दिए
साथ ही, यह भूलने लगे
अकेले का अस्तित्व
अकेलापन आदमी होने की
इजाजत नहीं देता
यह दूसरी बात है
तुम अकेले रहकर भी
अकेले न रह सके

मैंने एक ही बार कहा
तुमने दुनिया के धर्मग्रंथों का सार
मुझे समझा दिया
मैं आदमी की तरह रहते हुए
तुम्हारे नींव का एक ईंट
बनने की कोशिश करता रहा
बहुत मुश्किल होता है
दूसरों के सांचे में
अपने को ढालना
_____________________________

वेद प्रकाश
गोरखनाथ मंदिर, भाटी विहार, राजेंद्र नगर पश्चिम,
गोरखपुर – 273015
मोबाइल नंबर – 95590 97457

You Might Also Like

वरिष्ठ कवि और दोहाकार डॉ सुरेन्द्र सिंह रावत द्वारा संकलित व सम्पादित सांझा काव्य संग्रह ‘काव्यान्जली 2024’ का लोकार्पण हुआ*

राकेश भारतीय की कविताएं

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक संस्था “मेधा साहित्यिक मंच” ने किया “कविता की एक शाम” का आयोजन हुआ,

कृष्ण-कृष्णा की प्रेमावस्था… (कुछ शास्त्रीय चरित्रों पर मुक्त विमर्श)!- यूरी बोतविन्किन

जवाहरलाल जलज की कविताएं

Sign Up For Daily Newsletter

Be keep up! Get the latest breaking news delivered straight to your inbox.
[mc4wp_form]
By signing up, you agree to our Terms of Use and acknowledge the data practices in our Privacy Policy. You may unsubscribe at any time.
admin July 29, 2024
Share this Article
Facebook Twitter Copy Link Print
Share
Previous Article हरिशंकर परसाई के विशेष संदर्भ में कांतिकुमार जैन के संस्मरण
Next Article “शौकन” गाने पर जान्हवी कपूर के डांस मूव्स और जुबिन नौटियाल और शाश्वत सचदेव की मनमोहक आवाज़ों ने “उलझ” मुंबई इवेंट को और भी शानदार बना दिया*
Leave a comment Leave a comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Stay Connected

235.3k Followers Like
69.1k Followers Follow
11.6k Followers Pin
56.4k Followers Follow
136k Subscribers Subscribe
4.4k Followers Follow
- Advertisement -
Ad imageAd image

Latest News

वरिष्ठ कवि और दोहाकार डॉ सुरेन्द्र सिंह रावत द्वारा संकलित व सम्पादित सांझा काव्य संग्रह ‘काव्यान्जली 2024’ का लोकार्पण हुआ*
Literature June 11, 2025
राकेश भारतीय की कविताएं
Literature June 5, 2025
कमल हासन की मणिरत्नम निर्देशित फिल्म *ठग लाइफ* 5 जून को होगी रिलीज
Uncategorized May 21, 2025
*कैदियों को कैंसर के बढ़ते खतरे से जागरूक करने के लिए तिहाड़ जेल वन में कार्यक्रम का आयोजन हुआ*
Motivation - * प्रेरक * May 19, 2025
//

We influence 20 million users and is the number one business and technology news network on the planet

Sign Up for Our Newsletter

Subscribe to our newsletter to get our newest articles instantly!

[mc4wp_form id=”847″]

Follow US

©Lahak Digital | Designed By DGTroX Media

Removed from reading list

Undo
Welcome Back!

Sign in to your account

Register Lost your password?