कांति कुमार जैन के ‘लौट कर आना नहीं होगा’, ‘तुम्हारा परसाई ‘,’ बैकुंठपुर में बचपन’, ‘जो कहूंगा सच कहूंगा’और ‘अब तो बात फैल गई’ संस्मरण लिखे है। ‘ तुम्हारा परसाई’ कांति कुमार जैन ने अपने मित्र हरिशकर परसाई जी पर लिखा हुआ संस्मरण है। इसमें लेखकने लिखा है कि – “हरिशंकर परसाई जी के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व के शुभ पक्षों पर ,अशुभ पक्षों पर काले और सफेद पक्षों पर वही लिखा है जो सत्य है और मेरा जाना हुआ है।“ (1) हरिशंकर परसाई और कांति कुमार जैन मित्र थे। हरिशंकर परसाई का जन्म सन 1922 को और कांति कुमार जैन का जन्म सन 1932 को हुआ था। इस प्रकार दोनों की उम्र में 10 वर्षों का फासला था।पर मित्रता में उम्र कोई बाधा- बंधन नहीं होती ।परसाई जी भी ऐसा मानते थे। कांति कुमार जैन ने परसाई जी पर ‘तुम्हारा परसाई ‘पुस्तक लिखकर हिंदी लेखक को के सामने ऐसा प्रारूप रखा है, जो बहुत दिन तक अनन्य बना रहेगा ।
कांति कुमार जैन ने परसाई जी के बारे में कई नयी जानकारियॉं और विश्तस्त सूचनाऍं दी हैं, अपने मौलिक मंतव्य प्रकट किए हैं और साहित्य संबंधी अपनी चिंताऍं प्रकट की हैं इसमें। पहले हम उनकी नामोंपाधी से ही शुरू करते हैं -“लगता है परसाई लोग परसाई थे-अन्य धर्मधुरीण ब्राह्मण इन गंगाबीबी ब्राह्मणों के साथ पंक्ति में बैठने के लिए तैयार नहीं होते थे अतः पंगत के बाहर के इन ब्राह्मणों को परसों देकर बिंदा करने की परंपरा थी। परसों यानि बुंदेलखंड में वह सीधा जो आहूत ब्राह्मण घर ले जा सके। जमानी आने पर झूमकलाल को घर बनाने के लिए जो स्थान मिला होगा, वह गांव के बाहर ही होगा। परसे में यानी गैंवड़े के बाहर, मैदान में। मध्यकाल में ग्राम की सीमा पर गौंमुंडों से एक मेंड बना दी जाती थी जो गैंवडा कहलाती थी -धीरे-धीरे यह गैंवडा प्रातः कालीन शौच कर्म के लिए निश्चित हो गया, गैंवड़े जा रहे हैं, मैदान जा रहे हैं, परसा गड़े जा रहे हैं-एक ही बात। मूल धारा में नहीं ,मूल धारा के बाहर थे परसाई लोग।” (2) परसाई जी ने बड़े होकर जो लिखा है वह भी मूल धारा के बाहर का था। ‘तुम्हारा परसाईं ‘ परसाई जी की जीवन गाथा भर नहीं है -एक कस्बाई शहर के नवोदित लेखक के अर्जन, संघर्ष की भी गाथा है। इसमें परसाई जी को खंड खंड में, प्रसंगों में याद किया गया है।
कांति कुमार जैन का ‘ लौट कर आना नहीं होगा’ इसमें भी ‘ हरिशंकर परसाई: टिटहरी कभी नहीं हारती’ में हरीशंकर परसाई के बारे में लिखा है। कांति कुमार जैन लिखते हैं कि-“परसाई जी को मैं जब भी देखा तो रेल की लाइनों के ऐसे किनारे के मकान में रहते देखा या बदबूदार नाले के ऐन बगल में मकानों में। मकान नं. 1312, मकान नं. 1250, मकान नं. 1533 या मकान नं. 1527-सब के सब किराए के मकान थे, नेपियर टाउन में, रेलवे लाइन और नाले के बीच में। इनमें से कोई मकान बड़ा नहीं था, परसाई जी के लिए लिखने ,पढ़ने या सोने का जो कमरा होता ,वह मकान में घुसते ही पहिला कमरा होता। यही मित्रों, परिचितो, अपरिचितों से मिलने का कमरा भी होता।” (3) कोई भी उनसे मिलने आता इसमें बैठकर बातचीत होती। रेलगाड़ी गुजराती तो परसाई जी जिस मकान में रहते थे उसकी छते और दीवारें भी कांपती थी।परसाई जी का किराए का घर पटरियों से बिल्कुल लगा हुआ था और मेरा पटरिया से थोड़ा दूर-100 दूर था।
कांति कुमार जैन लिखते हैं कि -“मैं बचपन में एक चिड़िया देखी थी। टिटहरी। संस्कृत की है टिटि्टभि। रात को यह चिड़िया अपने पैर ऊपर की और करके सोती है। लोक में यह मान्यता है कि टिटहरी को आकाश के गिरने का बड़ा डर होता है। दिन को आकाश टूटकर धरती पर गिरने लगेगा तो बहुत से लोग धरती को बचाने वाले, आकाश को थामने वाले दौड़े आएंगे या रात वे अंधेरे में जब सब सो रहे हैं ,आकाश टूट जाये तो धरती को कौन बचाएगा ? टिटहरी यह सोच सोच कर बड़ी चिंतित रहती है। नन्ही सी जान ,रात के अंधेरे में वसुधा की रक्षा के लिए टांगें ऊपर कर सोती है।
परसाई जी भी टिटहरी ही थे ।जब चारों ओर अंधकार व्याप्त हो ,सारे मूल्य एक-एक कर धरायसाय हो रहे हो ,पृथ्वी को बचाने वाला कोई न दिखता हो तब परसाई जी ने ‘वसुधा ‘निकली “जो घर जारे अपना चलो हमारे साथ”का उद्घोष करते हुए, लंगोटी में फाग खेलते हुए; यारों ,मित्रों, आत्मीयों,अच्छे काम में विश्वास करने वालों के भरोसे ।पता नहीं टिटहरी गिरने वाले आसमान को थाम पाती है या नहीं पर नन्ही सी टिटहरी की आस्था, उसका संकल्प, उसका खेत न छोड़ने का हौसला ,धरती को बचाने का उसका दुदॅभनीय पौरुष अपने आप में बड़ी बात है। यह बड़ी बात पर हरिशंकर परसाई में थी।” (4) उनकी वैचारिक निष्ठा की पारदर्शी ईमानदारी ने परसाई जी को बड़ा बना दिया था। लेखख लिखते हैं कि-” परसाई जी शायद पिछले जन्म में टिटहरी थे। इस जन्म में भी उन्होंने टिटहरी जैसा होना स्वीकार किया । परसाई जैसे लोग शायद हर जन्म में टिटहरी ही होते हैं -अपने प्रयासों के फलस्वरुप भरभराते हुए आसमान से पृथ्वी को संभालने वाले। (5)
‘तुम्हारा परसाई ‘और” लौट कर आना नहीं होगा’संस्मरण कान्ति कुमार जैन ने अपने मित्र हरिशंकर परसाई जी की स्मृतियों को याद करते हुए लिखा है।
संदर्भ सूची:
(1) ‘तुम्हारा परसाई ‘, कांति कुमार जैन, वाणी प्रकाशन, द्वितीय संस्करण 2022,’ तुम्हारा परसाई ‘में मेरा क्या है?, पृष्ठ.5
(2) ‘तुम्हारा परसाई ‘कांति कुमार जैन, वाणी प्रकाशन, द्वितीय संस्करण 2022, पृष्ठ.288, 289
(3) ‘लौट कर आना नहीं होगा’, कांति कुमार जैन, वाणी प्रकाशन, द्वितीय संस्करण 2022, पृष्ठ.65
(4) वहीं, पृष्ठ.78
(5) वहीं, पृष्ठ.78
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पढियार उषाबेन नानसिंह, पीएचडी शोधार्थी, श्री गोविंद गुरु यूनिवर्सिटी, गोधरा, गुजरात, JAYAMBEHLL@GMAIL.COM MO : 7778006564