दर्द
चुप नहीं रहा समाज
देखकर उसकी विक्षिप्तता
उसके सोच- व्यवहार में आई कमी को
यह जो दिख रही थी उसकी सक्रियता- सी
यह उसकी महत्वाकांक्षा नहीं थी
यह उसमें आया अनावश्यक पिछड़ापन था
उसे दंडित किया
सहा नहीं
क्षमादान नहीं किया
उसके उट-पुटांग कार्यों पर समाज ने
समाज के पास न समय था
न धैर्य न कोई तरीका
उसके असंतुलन के उपचार का
समाज भूला गया उसका संघर्ष
उसकी उपलब्धियां सारी
और लग गया उसकी खिल्ली उड़ाने में
उसी की चर्चा में थोड़ा क्रूर होकर
उसपर पत्थर फेंके
थूके
गालियां दीं भद्दी-भद्दी
छेड़ा तरह तरह से
ताने मारे
और उसे पीटा भी
उसके पीछे पड़कर
सबने मनोरंजन किया अपना
उसके सम्मान की कोई बात नहीं थी
इतना किया जा सकता था
उसे छोड़ा जा सकता था
उसकी जगह उसके हाल पर।
रोशनी
हम जिस गली- कूचे में रहते हैं
अक्सर यहां रोशनी नहीं आती है
आती भी है तो आने जैसी नहीं आती
आती है और चली जाती है
कभी जो ठहरने लगे यह रोशनी
तो हम भाग जाते हैं
अंधेरे कक्ष में
हमें आदत पड़ गई है जीने की
अंधेरे में
हम जीते हैं मानकर रोशनी
अपने अंधेरे को
वह अपनी रोशनी जो दिखती है
पराई- सी
बहुत खलती है हमें
हम सच से डरते हैं
और जीते हैं झूठ की दबंगई में
ऐसा नहीं है कि
हम दीप नहीं जलाते हैं
पटाखे नहीं फोड़ते हैं
रोशनी की तरफ जाने के लिए
हम मिसाइल भी छोड़ते हैं
मगर यह सब
और बढ़ा देता है अंधेरे को
कम नहीं करता है
हमें खूब आता है गुम हो जाना
अपने ही उगाए
एक भयानक शोर में।
प्रेम
प्रेम को छोड़ दिया गया है
दिल के भरोसे
दिल कभी जीतता है
छोटी सी दुनिया प्रेम की
कभी हार जाता है
कभी युद्ध नहीं हुआ प्रेम के लिए
नफरत के लिए होते रहे हैं
बड़े-बड़े युद्ध
प्रेम की बाढ़ नहीं आती
नफरत की आती है सुनामी भी
नफरत उजाड़ती रही है
दुनिया को बार-बार
प्रेम बचाने के लिए नहीं बनाया गया
कोई परमाणु बम
नफरत बढ़ाने के लिए
कितने ही
फूल मुरझा जाते हैं खिलकर
कांटे नहीं
टीसती रहती है चुभन
कांटे की देर तक
वह अमृत बूंद नहीं मिलती
जिसे रखकर होंठ पर
अमर हो जाए कोई
जहर मिलता है बाजार में
व्यर्थ नहीं जाता है
जिसका असर कभी।
रंग
रंग बिखेरे थे उसने
बहुत से
पर सब फीके, धब्बों से दीखते थे
गहरा, चटक कोई नहीं
खुद उसका मन नहीं रंगा था गहरे रंग से
तो वह क्या रंग सकता था
किसी और को
ना कोई विचार था उसके पास
ना कोई खास समझ
सिर्फ चालाकी दिखाई थी उसने
रंग बिखेरने में
अलसाया, उदास, कर्तव्य विमुख
दिशाहीन रहा था
भीतर से वह
बाहर से उसने दिखायी थी
खूब गर्जना-तर्जना
वह निपटता रहा था
सिसकियों से
झकोरों से
जब तूफान आया
तो धुल गये थे
उसके बिखेरे सभी
फीके, दाग-धब्बों से रंग।
युद्ध में मारा गया एक बच्चा
(फिलिस्तीन में चल रहे युद्ध के संदर्भ में)
(फिलिस्तीन में चल रहे युद्ध के संदर्भ में)
मैं युद्ध में मारा गया एक बच्चा हूं
मैं नहीं जानता था
कि कोई युद्ध चल रहा है
मैं निकल रहा था घर से गेंद खेलने
और बच्चों के साथ
एक गोला आया
गिरा हमारे ऊपर
मैं लहूलुहान होकर चूर हो गया
मर गया
मेरे साथ चल रहे बच्चे मारे गए
मेरे मां-बाप
भाई-बहन
पड़ोसी भी मारे गये
सब मारे गए
अब कोई गाड़ी लेकर आएगा
हमें दफना देगा दूर ले जाकर
वह आंसू नहीं बहाएगा हमारे लिए
वह करेगा यह सब
एक काम की तरह
अब मुझे कोई याद नहीं करेगा
अब मैं सपना नहीं हूं किसी का
अपने देश का भविष्य नहीं हूं
मेरी मृत्यु एक समाचार भर है
मेरा कभी नाम नहीं लिया जाएगा
मेरी मृत्यु व्यर्थ चली गई है।
मानसून यहां भी आया है
मानसून यहां भी आया है
और पूरी रफ्तार से आया है यहां मानसून
कहा तो किसी ने
तीन गुनी रफ्तार से आया है मानसून
इस बार देश में
यह मानसून उसी तरह से आया है देश में
जैसे देश की सरकार आती है
सरकार होती है पूरे देश की
मगर वह नहीं बरसती पूरे देश में
एक समान
कहीं खूब बरसती है
कहीं बिल्कुल नहीं
बरसती है
मुंबई कोलकाता दिल्ली चेन्नई में
मथुरा काशी अयोध्या कश्मीर में
और बरसती रह जाती है वहीं
वैसे ही
जहां मन होता है
यह मानसून वहां बरसता रहता है
मुसलाधार
यहां धूप बरस रही है
तीन गुनी रफ्तार से
यह विदर्भ नहीं है
लेकिन मानसून बरसता है यहां
विदर्भ में बरसने की तरह
झूठ बरसने की तरह।
विषवृक्ष
यह एक विषवृक्ष है
खूब बड़ा हो रहा है
खूब फैल रहा है
खूब हरा- भरा है
फल- फूल नहीं लगते
इस वृक्ष में
कभी लगता है फूल तो
नहीं होती इसमें कोई सुगंध
फल आता है तो बहुत जहरीला
किसी के किसी काम का नहीं
कोई चख नहीं पाता
आत्महत्या करनी होती जिसे
वह इसे खाता है मजे से
जो आते हैं आश्रय के लिए
इसकी छांव में
भूले- भटके
या कोई खिंचा चला आता है
इसके रंगीन आकर्षण में
उसे निगल जाता है यह वृक्ष
फिर पता नहीं चलता
उसके अस्तित्व का
इस वृक्ष की शाखा, टहनी, पत्ते
सभी खूंखार
दूसरे वृक्ष की छांव में रहने वाले हों
या उस तरफ से गुजरने वाला कोई राही
उसे झपट्टा मारकर दबोचता
और फिर लील जाता है यह वृक्ष
इधर पिछले वर्षों बिखेरे गए
इसके अनगिनत बीज चारों तरफ
जो अब उगते जा रहे हैं
बड़े शान से।
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अशोक शुभदर्शी, जमशेदपुर, झारखंड।