1.
जागृत मैं अनुभूतियों की भाषा कह तो लिखूं
प्रेम के पराकाष्ठा की परिभाषा कह तो लिखूं
ऐ मित्र इतना उदास तू दिख आजकल क्यों रहा
छीन लाकर प्रलय से प्रबल आशा कह तो लिखूं
कैसे कहते हो कि अब कुछ किया जा सकता नहीं
जो जगा दे मृतकों में भी जिज्ञासा कह तो लिखूं
छोड़ते ही नहीं तुम कदापि निद्रा की तमस को
जागरण की उठे प्रचंड अभिलाषा कह तो लिखूं
आंसुओं से कूप गहरे और ना तू भर साथी
आपदा से प्राणदाई प्रत्याशा कह तो लिखूं
2.
मौत के हाथों उन सभी ने हयात बेच दी
ख्वाबों के कारोबारियों ने रात बेच दी
सोच रहे हैं अब सभी किसको क्या मिला
बाजीगरों ने तो हाथो- हाथ बात बेच दी
बेसब्र थे सभी जिससे मिलने को अब तलक
मिलते ही मौका उसने मुलाकात बेच दी
बाराती पसोपेश में वो करें तो क्या करें
दूल्हों ने अपनी-अपनी बारात बेच दी
साहिब को फिक्र अपने इम्तिदाद की पड़ी
बंटती जो मज़लूमों में खैरात बेच दी
हयात- जिंदगी
बाजीगर- तमाशा दिखाने वाला
पसोपेश- अनिर्णय
इम्तिदाद- विस्तार
मजलूम-गरीब
3.
चलने की बात कर रहे हो पता पता नहीं तुम्हें
हटने की बात कर रहे हो ख़ता पता नहीं तुम्हें
ग़ज़ल क्या चीज है दीवान पर दीवान तुम तो
कहने की बात कर रहे हो क़ता पता नहीं तुम्हें
तरक्की की तारीफ में तस्वीरों का मुजाहिरात
सपनों की बात कर रहे हो अता पता नहीं तुम्हें
शराब भी है शाकी भी औ शराबी भी हैं डटे
बचने की बात कर रहे हो नशा पता नहीं तुम्हें
सब किस बात से हैं लोग बेहद घबराए हुए यहां
लड़ने की बात कर रहे हो वजा पता नहीं तुम्हें
ख़ता – अपराध
क़ता- चार लाइनों की एक बंद
मुजाहिरात- प्रदर्शन
वजा- डर,भय
4.
अच्छा लगता है
गुस्से में तेरा चुप हो जाना अच्छा लगता है
कुछ ना करना फिर भी पछताना अच्छा लगता है
तेरे गेशुओं में कभी हातिल नजर आई थी
अब सफेद बगूलों का ठिकाना अच्छा लगता है
पता कुछ चला ही नहीं हमें कब दोपहर बीती
समय के पीठ लिखा यह फसाना अच्छा लगता है
सजाकर सुर अद्भुत जिंदगी के साज पर साथी
मिलकर गा रहे जो हम तराना अच्छा लगता है
मिला जो सर जांघों पर रख सहलाने का मौका
वह गम को भुलाने का बहाना अच्छा लगता है
5.
बात कर लेते हैं कुछ कायदे कानून की सुनिए
ताल पर ताल ठोक रहे जीत के जुनून की सुनिए
सुनता है जो हर आदमी की सारी बात ध्यान से
रटते जिसे काजिओ वकील उस मज़मून की सुनिए
राजा हो या रंक सभी हैं जिसके फ़रीक़ मुद्दत से
आंख मून खड़ी ले तराजू उस खातून की सुनिए
वह करता है जो शिद्दत से हिफ़ाज़त अपने मुल्क की
दिलो जां से लगे ख़िदमत में अफ़लातून की सुनिए
करता है जो साफ बेजा दिलो दिमाग की हरकतें
हर खासो आम के पास जो उस दातून की सुनिए
जुनून- धुन, पागलपन
काजी-जज, मजमून- विषय, लेख
फ़रीक़- वादी प्रतिवादी पक्ष का कोई व्यक्ति
खातून- सम्मानित महिला
हिफ़ाज़त-सुरक्षा, सिद्दत- कठिन परिश्रम से
ख़िदमत-सेवा , अफ़लातून- चतुर, तेज बुद्धि वाला,बेजा- अनुचित, हरकत-शरारत
6.
लगी नहीं हो कहीं आग तो माचिस तलाशिए
जो रहने नहीं दे चैन से खारिश तलाशिए
ना मचते दिख रही हो खलबली गर लोगों में
है जज्ब जरूर उसमें कोई साजिश तलाशिए
होना यूं भी नहीं ठीक कि बंटे रेज़ा-रेज़ा
जो नजरों में न समाए वो गारिश तलाशिए
जूते की शान में नहीं पढ़िए कसीदे और
जो मनमाफिक उसे बदल दे पालिश तलाशिए
जाएगी नहीं गर्मी करने से घरों को ठंडा
जो सूरज को भी पी जाए बारिश तलाशिए
खारिश-खुजली, जज्ब-घुला होना
रेज़ा-रेज़ा – तिनका-तिनका
गारिश- तेज चमकदार तीखा रंग
कसीदे पढ़ना- शायरी में प्रसंशा के गीत गाना
7.
छींक भी खबर है :
किसी की पीक भी खबर है
किसी की छींक भी खबर है
जान देकर भी हम मुफ़लिस
किसी की भीख भी खबर है
होता गड़बड़ बस हमारा
किसी की ठीक भी खबर है
राह नर्ई दे भी हम नहीं
किसी की लीक भी खबर है
घर जले पर भी खबर नहीं
किसी की सींक भी खबर है
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डाॅ एम डी सिंह, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश।