चलो, प्रेम से परहेज करते हैं
सुनो! चलो,
प्रेम से परहेज करते हैं
सुना है पानी और तेल कभी
मिलते नहीं हैं !!
अच्छा क्या ऐसा हो सकता है
तुम मेरे गोपित प्रेमी बनो, और
मैं भी तुम्हारी गुप्त प्रेमिका बनी रहूॅंगी।
कभी अंधेरे में मैं कविताएं लिखूँ
और तुम परछाई बन उसे पठन करना।
तुम खिड़की के शीशे में मेरी छवि अंकित करना
मैं बारिश के छिटें बनकर उन्हें
मिटा दिया करुॅंगी।
हम आमृत्यु यह खेल खेल खेलते रहेंगे
न मैं मुहब्बत का इजहार करुॅंगी और
न तुम प्रेम का स्वीकृति देना।
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आसमान के उस पार
कभी-कभी सोचुॅं
पंख लगा कर उड़ जाऊॅं;
आसमान के उस पार कौन है
एक झलक देख आऊॅं मैं।
वह कौन है?
वह सच है तो क्या मैं झूठ हूॅं?
वह सफेद है, मैं काला हूॅं?
वह अगर मुक्त है, तो –
मैं बंदी क्यों हूॅं?
वह वहाॅं है , मैं यहाॅं क्यों हूॅं?
कौन है वह?
अगर वह ईश्वर हैं, तो –
वह दूर क्यों हैं?
जलती हुई जग में
वह शान्त क्यों है?
कभी-कभी मैं सोचूँ
इन सारे प्रश्नों के उत्तर
उससे माॅंगू, कि –
अगर हम सब यहाॅं हैं
वह हमसे दूर –
आसमान के उस पार क्यों है?
मैं अगर उनमें हूॅं, तो –
वह मुझमें क्यों नहीं है?
कभी-कभी मैं सोचूँ
सारे प्रश्नों को समेट कर
उनमें विलीन हो जाऊॅं मैं।
और हमेशा के लिए चल दूॅं
आसमान के उस पार मैं।
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गुस्सा
यूॅं बात-बात पर उनका गुस्सा होना
और ज़रा सा मनाने पर हीं
हॅंसते हुए मान जाना
इज़हार-ए-मुहब्बत हीं तो है।
ओह् …
उनका गुस्सा
एक अजीब सी कशिश है
दूर होने के बजाय हम
नजदीक होते जाते है ।
गुस्सा आग बराबर होता है
कभी-कभी गुस्से में भी
प्यार छुपा रहता है।
यूॅं तो हमें भी कभी उनपर
गुस्सा आता है
पर कैसे कहूॅं कि वह हमारे
अपने नहीं हैं ।
राधा जब कान्हा से
गुस्सा करती हैं
बड़े प्यार से बंशीधर उन्हें
मनाते हैं।
प्रेमी प्रेमिका के गुस्सा तो
लगा रहता है,
एक के चेहरे पर गुस्सा और
एक की आंखों में प्यार
सदा रहता है।
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समर्पण
तुम और मैं
एक जैसे हैं पर
एक नहीं।
मेरा दामन कांटों से भरा है
तुम फूलों के खरीददार
तुम मुहब्बत की सौदागर
मैं रिश्तों की धरोहर।
मैं पहाड़ी नदी
तुम शान्त सागर
फिर भी
कहीं-न-कहीं
कभी-न-कभी
कांटों की घेरें में जैसे
फूल खिलते हैं
मुहब्बत को रिश्ते का
नाम मिलता है,
सागर भी नदी को
अपना बना लेता है।
तुम और मैं भी
हम होते हैं,
मुझमें तुम और
तुममें मैं,
विलीन हो जाते हैं ।
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मनीषा पाॅल
विश्वनाथ चारिआलि, असम
मो: 97065 54889