उषा की धूप
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उषा की धूप
कमरे में आती है
कुछ समय ठहरती है
फिर दूसरी तरफ
मुखातिब हो जाती है
लगता है
धूप निरीक्षण पर निकली हो
यह देखने-परखने के लिए
कमरे में कोई सामान
अव्यवस्थित तो नहीं?
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समय
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समय बीत रहा है
समय जीत रहा है
समय तौल रहा है
समय बोल रहा है
समय के सब अधीन है
समय की हर सांस नवीन है
समय ही बनाता है
समय ही गिराता है
समय ही बिखेरता है
समय ही सजाता है
समय ही साज है
समय ही आवाज़ है
समय ही गीत है
समय ही संगीत है
समय ही सरदार है
समय ही असरदार है
समय न तेरा है
समय न मेरा है
समय ही राग है
समय ही विराग है।
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देना
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यात्रा के दौरान
थकने पर
मैं एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगा
पेड़ ने मुझे
छाया,फूल,फल दिए
मैंने पेड़ को
कुछ नहीं दिया
कभी-कभी
मेरा मन
पेड़ होने का करता है।
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उड़ान
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बूढ़ी माँ
हर रोज
चिड़ियों को दाना खिलाती थी
जब कभी
चिड़िया नहीं आतीं
माँ भोजन करते हुए
बार-बार उन्हें याद करती
माँ और चिड़ियों का संबंध
इतना गहरा और रहस्यमय था
एक दिन
माँ चिड़ियों की तरह पँख लगाकर
उन्मुक्त आकाश में उड़ गयी।
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बच्चा और समुद्र
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माता-पिता की गोद से उतरकर
बच्चा समुद्र की रेत पर
घुटनों के बल चल रहा है
घुटनों से चलता हुआ बच्चा
समुद्र की ओर बढ़ रहा है
बच्चे की आँखों में
समुद्र लहरा रहा है
समुद्र बच्चे को अपनी ओर
आता देख
पीछे जा रहा है
बच्चे के हौसले के सम्मुख
समुद्र सिकुड़ रहा है।
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दोस्त
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दुःखों ने मुझे
दोस्त बनना सिखाया।
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दुनिया
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बसंत
किसी एक फूल के खिलने से नहीं आता
समूची प्रकृति की पुकार है वह
संगीत
किसी एक स्वर के होने से नहीं बनता
वह समग्रता में ग्राह्य बनता है
कोई अच्छी किताब
चंद शब्दों से तैयार नहीं होती
भाषा की एक लंबी साधना
उसे कालजयी बनाती है
कोई भी जीत
किसी एक इंसान की नहीं होती
उसमें अपनों के अनेक हाथ
साथ होते हैं
यह दुनिया
किसी एक होने नहीं
सब के होने से सुंदर बनती है।
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कुर्सी
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कितनी नायाब होती है कुर्सी
इंसान के बैठते ही
कितने अपरिचित
उससे जुड़ जाते हैं
अनेक खोये हुए
अचानक मिल जाते हैं
कुर्सी की एक बड़ी कमी है
इंसान के उतर जाने के बाद
उसके अपने भी
कहीं खो जाते हैं।
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काँपना
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एक दिन
उसका चेहरा याद आया
मैं भौंचक्का
देर तक निहारता रहा
अचानक से
चेहरा मुझसे दूर हो गया
लगा
जैसे मैं अपना ही चेहरा
देख रहा था किसी झील में
पता नहीं
कहाँ से?
एक पत्थर आया
और झील का नील जल
थरथरा कर कांप गया।
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रूठना
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नील नभ के कोने में
एक शुभ्र मेघ अकेला है
दूर-दूर तक
अगल-बगल भी कुछ नहीं है
लगता है
माँ से रूठकर
कोई बालक
घर के किसी कोने में बैठा है।
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स्त्री और चिड़िया
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पार्क में एक स्त्री
अपने बच्चे को चिड़िया दिखा रही है
बच्चा चिड़िया देखकर चहक रहा है
बच्चे की खिलखिलाहट
स्त्री के चेहरे पर चमकती है
एक समय था
स्त्री जब लड़की थी
और वह एक चिड़िया बनना चाहती थी
उड़ना चाहती थी उन्मुक्त आकाश में
लेकिन!बन न सकी
आज अपने शिशु संग
चिड़िया को फुदकते,चहकते उड़ते हुए देखा
स्त्री के सपने की चिड़िया जी उठी
और स्त्री ने उसे
अपने शिशु के उल्लास के आसमान में
दूर तक उड़ते हुए देखा।
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जाति धर्म प्रांत से परे
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मेट्रो ट्रेन में
तीन-चार साल का सुंदर-सलोना बच्चा
स्वच्छंद घूम रहा है यहाँ से वहाँ
किसी को छेड़ता
किसी का सामान छूता
किसी को देखकर
हँसता-मुस्कुराता बेवजह,बेबात
नहीं जानता सामने वाले
इंसान की जाति,धर्म,प्रांत
वह तो बालपन की मस्ती का बेताज बादशाह है
जो बेरोकटोक
अपनी हसरतों के हाथी पर सवारी करता है
मुसाफिरों की निगाह के केंद्र में है बच्चा
हर कोई
उसे अपनी ओर बुलाता है
बच्चा अपनी स्नेह-शरारत की रस्सी से
हर किसी को अपनी तरफ खींचता है
जब कोई इंसान
जाति,धर्म,प्रांत से परे होता है
तब वह
किसी बच्चे की तरह आकर्षित करता है
अपनी ओर।
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रंग
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मेरे कमरे से बाहर
एक हरा पेड़
और नीला आसमान दिखता है
हरा और नीला रंग
मेरे रक्त के लाल रंग को
दुरुस्त रखते हैं।
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जिंदा
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एक समय
वह असली में था
फोटो में नहीं था
अब वह फोटो में है
असली में नहीं है
जब कभी
उसको फोटो में देखता हूँ
वह असली में दिखता है।
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पिता और कविता
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पिता पर
अनेक कवियों ने कविताएँ लिखी हैं
हर कवि ने
अपने पिता को केंद्र में रखते हुए कविता रची है
पढ़ने वाले को लगता है
वे भिन्न-भिन्न पिताओं पर लिखी
अलग-अलग कविताएँ हैं
वास्तव में
वे सभी कविताएँ
किसी एक पिता पर लिखी हैं
फ़र्क इतना है
सभी कविताओं में पिता एक है
और पिता को देखने वाली
आँखें अनेक हैं।
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अकेला
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चलते-चलते
कई बार
दूर-दूर तक
रास्ता निपट सुनसान लगता है
मन में
अकेले होने का
एक खौफ पैदा होता है
फिर सोचता हूँ
आसपास कोई दूसरा नहीं
फिर
कैसा डर?
किससे डर?
निर्भय होकर
चलूँ अपनी डगर।
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नयन
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जाड़ा आने पर
बूढ़ी माँ
आँगन में एक खाट पर बैठ जाती है
उषा की सुनहरी धूप
माँ के चेहरे पर विराजती है
उस वक़्त
माँ और धूप को
एक साथ देखना
बहुत आत्मीय लगता है
माँ और धूप
जिंदगी के दो नयन हैं
जिनसे मैं
इस जगत को देखता हूँ।
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जीवन-परिचय
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नाम: जसवीर त्यागी
शिक्षा: एम.ए, एम.फील,
पीएच.डी(दिल्ली विश्वविद्यालय)
सम्प्रति: एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज
राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015
प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ, आजकल, कादम्बिनी, जनसत्ता, हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, कृति ओर, वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।
*अभी भी दुनिया में*- काव्य-संग्रह।
*कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी भाषाओं में अनुवाद*
*सचेतक और डॉ रामविलास शर्मा*(तीन खण्ड)का संकलन-संपादन।
*रामविलास शर्मा के पत्र*- का डॉ विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन।
सम्मान: *हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।*
संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018
मोबाइल:9818389571
ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com