दतिया। मुंशी प्रेमचन्द्र साहित्य की अवधारणा बदला चाहते थे। उन्होंने सर्वहारा वर्ग की शाश्वत चिंता की। लेकिन उसके शोषकों को भी मानवीय चरित्र के रूप में प्रस्तुत किया। वे सिर्फ एक लेखक ही नहीं, भारत की गंगा जमुनी तहज़ीब के संरक्षक, संगठन के कार्यकर्ता व स्वाधीनता संग्राम सेनानी भी थे। यह बात आलोचक प्रोफेसर डॉ. केबीएल पांडेय ने कही। वह मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन की दतिया इकाई के तत्वावधान में आयोजित मुंशी प्रेमचन्द्र की 143 वीं जयंती समारोह को मुख्यवक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे।
अध्यक्षता संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामेश्वर प्रसाद गुप्त ने करते हुए प्रेमचंद को कुरीतियों का शत्रु कहा। विशिष्ट अतिथि के तौर पर प्रो. रामकिशोर नीखरा मौजूद थे जिन्होंने प्रेमचंद के हमीर पुर में नौकरी के दौरान हरदौल कहानी लिखने के संस्मरण की चर्चा की। जयंती समारोह का शुभारंभ मुंशी प्रेमचन्द्र के चित्र पर माल्यार्पण के साथ किया गया। कार्यक्रम को अनिल तिवारी, आनंद मोहन सक्सेना, रामभरोसे मिश्र, अजय मिश्र, राजनारायण बोहरे, सीमा उपाध्याय, सोनिया त्रिवेदी, शैलेन्द्र बुधौलिया आदि ने संबोधित करते हुए मुंशी प्रेमचन्द्र की प्रमुख कहानियों नमक का दारोगा, पंच परमेश्वर, पूस की रात, उंपन्यास निर्मला की चर्चा कर उन्हें समाज के चरित्रों का आईना बताया।
शैलेन्द्र बुधौलिया ने ईदगाह के पात्र हामिद के कुछ संवाद अभिनयात्मक ढंग से बोले। कार्यक्रम में एडवोकेट श्रीराम शर्मा, पूरन चन्द्र शर्मा, राज गोस्वामी, मनीराम शर्मा, सुषमा गोस्वामी, मुन्नी कटारे, डॉ. अजय रावत, सुरेश साटम प्रमुख रूप से उपस्थित रह के प्रेमचंद की भाषा, मुहावरे, चरित्रों और मुद्दों पर के बी एल पाण्डेय व कथाकार राज बोहरे से सवाल करते रहे कि लेखक ने आखिर उर्दू मिश्रित हिंदी उन्होंने क्यों अपनाई, दलितों के दुःख की कहानी सदगति व उंपन्यास गोदान में इतना समय क्यों खर्च किया ? उन्हें ब्राह्मणों से क्या विरोध था ? आदि आदि।डॉ. पाण्डेय ने प्रेमचंद को किसी वर्ग जाति का विरोधी नही बताया बल्कि उन्हें मानवीयता का प्रवक्ता कहा।
राज बोहरे ने प्रेमचंद की भाषा पर वक्तव्य दिया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. नीरज जैन ने व आभार इकाई के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने व्यक्त किया।