1.
रिश्तों की दीवार खड़ी तो दर का होना बनता है
माता-पिता हैं पास फिर तो डर का होना बनता है
चला आ रहा जो मुद्दत से दुनिया का दस्तूर है यह
पत्नी का हो गया जुगाड़ तो घर का होना बनता है
बिना उड़े न मिले आकाश बड़े बुजुर्ग हैं बता गए
सपने जुटा लिए हैं कुछ तो पर का होना बनता है
घिसट -घिसट ना चले जिन्दगी दौड़ लगाना तो होगा
बोझ जग का ढोना है तो सर का होना बनता है
दिखना है तो जलना होगा धू-धू करके कर्म पथ पर
बहते हुए पसीने से तो तर का होना बनता है
2.
गुस्साई हुई हवा की तस्वीरें बना रहा हूं
उखड़े पेड़ गिरी हुईं शहतीरें बना रहा हूं
गरमाया है मिजाज बेहद सागर का आजकल
बौखलाई लहरों की शमशीरें बना रहा हूं
उगल रही धरती आग कहीं बादल भी फट रहे
बांध सकने में नाकाम जंजीरें बना रहा हूं
सुन बे तूफान तूने चुप समंदर को देखा है
मैं चुपचाप-आदमी की लकीरे बना रहा हूं
माना कि सब कुछ जलाने पर आमादा है सूर्य
मैं उसे तबाह करने की तीरें बना रहा हूं
3.
रिश्तों की रियासत में फसाने ही फसाने हैं
मन जहां कहे ठहरिए ठिकाने ही ठिकाने हैं
दरयाफ्त कर लीजिए मौजूदा हाल दुनिया का
गम अपना सुुनाने को बहाने ही बहाने हैं
हो निकले जो आप लेकर सफीना याद रखना
सफर में समंदर के तूफानें ही तूूफानें हैं
दिल की दरिया में डूब करिए मोहब्बत का नशा
कदम-कदम पे शाकी हैं मयखाने ही मयखाने हैं
चल कर पूछते हैं भूख उसकी मिटती नहीं क्यों
पास जिसके हीरों की खदाने ही खदाने हैं
फसाने- कहानियां
दरयाफ्त- पूछताछ
सफीना- नौका
4.
शब्द-शब्द बोइए
शब्द-शब्द बोइए शब्द-शब्द काटिए
सुधियों के गांव शब्द-शब्द बांटिए
नींद के कथ्य खर्राटों की भाषा
सपनों के पन्ने शब्द-शब्द पाटिए
रजनी के पग शब्दों की बेड़ियां
रश्मिरथी-शीश शब्द-शब्द साटिए
शब्द-शब्द दृष्टि हुए शब्द-शब्द दर्शन
शब्द-शब्द घोंटिए शब्द-शब्द चाटिए
शब्द-शब्द सृष्टि हैं शब्द-शब्द स्रष्टा
शब्दों की टाटी शब्द-शब्द टाटिए
पर्वत-चोटियों पर बरस रहे शब्द
शब्द-शब्द बोलिए शब्द-शब्द डांटिए
5.
उनसे करें और क्या आशा
गाली-गलौज जिनकी भाषा
हृदय हीन है छाती जिनकी
उनसे आखिर क्या प्रत्याशा
मनुष्यता की वे बात करें
पता नहीं जिनको परिभाषा
भला याचना कैसी जिनकी
नहीं सुधरने की अभिलाषा
न कहना किया आगाह नहीं
लगे हाथ जो तुझे निराशा
कविताएं
1. ताकी जब वह चले
झूठ की बैसाखी पर
कब तक चलेगा विकलांग सच
कहां तक जाएगा एक टांग पर
हिलता-कांपता उछल-उछल कर
रोकना-मनाना होगा उसे
कहीं वह असत्य के दस्तावेज पर
हस्ताक्षर न कर दे थक-हार कर
तलवों को रगड़ उंगलियां सीधी करनी होंगी
भरना होगा बल उसकी टांगों में
पहनाना होगा मजबूत तल्ले के जूते
खड़ा करना होगा सीधे तनकर
ताकी जब वह चले
झूठ की चिकनी काली सड़क पर
दो-दो इंच गहरे निशान छोड़ता जाए
2. छाए बादल
दौड़-धूप कर आए बादल
सूरज को ढक छाए बादल
मोर मुदित हैं दादुर हर्षित
झींगुर हर्ष कर रहे प्रदर्शित
वायु बना रथ दौड़ रहा है
मेघदूत हो रहे आकर्षित
खूब सभी को भाए बादल
सूरज को ढक छाए बादल
ताल तलैया कूप भर रहे
लोग नदी को देख डर रहे
पानी -पानी हुई धरा है
मेघराज हर्षनाद कर रहे
साथ दामिनी लाए बादल
सूरज को ढक छाए बादल
देखो हुई प्रकृति बावली
हरियाली भी है उतावली
बादल सखे को देख काला
लो धरती भी हुई सांवली
सागर के हैं जाए बादल
सूरज को ढक छाए बादल
3. सुम मित्र चिकित्सक मेरे भाई!
तन बीमार मन दूषित है
जन अकुलाए जीवन दूषित है
पथ दूषित प्रचलन दूषित है
बहुविध फैल रहा संक्रमण
जल-थल-आकाश-
पवन दूषित है
पीड़ा के पहाड़ खड़े हैं
संवेदना के बंद घड़े हैं
हृृदय-हृदय धड़कन दूषित है
पुष्पहीन मधुबन दूषित हैं
सौहार्द और विपणन दूषित
वन और उपवन दूषित है
सुन मित्र चिकित्सक! मेरे भाई
हमें रहना होगा जीवित पल-पल
लड़ना होगा मिटाने तक खल-बल
और कराना होगा मुक्त धरा-व्योम को
उनसे जिनसे स्वास्थ्यधन दूषित है
4. शिव नच रहे
डमरू बजा डम डमक डम डम
शिव नच रहे छम छमक छम छम
शिखर पर चांद की मटकी
लटों में गंगा हैं लटकी
गले में सर्पों की माला
कटि पर बाघम्बरी अटकी
त्रिशूल ले चम चमक चम चम
शिव नच रहे छम छमक छम छम
भरकर भभूत भर झोली
चल पड़ी अड़भंगी टोली
नंदी बैल पर चढ़े शंभू
नहीं रथ पर नहीं डोली
कर रहे सब बम बमक बम बम
शिव नच रहे छम छमक छम छम
करके व्याह कैलाशपति
बनेंगे पार्वती के पति
ठिठक देखेगा ब्रह्मांड
रुकेगी काल की भी गति
बरसे मेघ झम झमक झम झम
शिव नच रहे छम छमक छम छम
5. वाह भाई वाह
सुनो भाई डॉक्टर एमडी सिंह!
बड़ी चर्चा है यार तुम्हारी आजकल
हर हाल में सेवा की शपथ लिया था तुमने
कर रहे हो तो नया क्या है
वेदना की सीमाएं टूट रही हैं
मुट्ठी भर संंवेेदना लेकर खड़े हो
ऊंट के मुंह में जीरा नहीं तो क्या है
डूब रही सांसों को
थोड़ी सी हवा क्या दे दिया
लोग तुम्हें पवन देव समझ बैठे
वाह भाई वाह
चुप्पी साधे भूखे रहने को अभिशप्त
नंगे बदन सर्दी सहने को लाचार
दुनिया में एक तुम्ही तो नहीं!
6. डूब गए सब घर
नदी न जाने किस नाव से
घूमने आई शहर
घाट गली चौराहे डूबे
डूब गए सब घर
सड़कें डूबीं
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे डूबे
जो भी मिला सामने सारे डूबे
पुल के नीचे पुल के ऊपर
घूमती रही नदी इधर-उधर
डूब गए सब घर
झोपड़ी डूबी
सब्जी वाले की टोकरी डूबी
मछली वाले की पोखरी डूबी
मंत्री जी का बंगला डूबा
धनी डूबा कंगला डूबा
पहुंच कचहरी नदी ने पीछे मुड़कर
नाविक से पूछा संसद है किधर
डूब गए सब घर
चप्पू ठिठके नाव रुकी
नाविक उतर गिरता पड़ता भागा
खड़ी सामने रास्ता रोक
कमर भर पानी में
स्वरपकड़-यंत्र हाथ में लिए
लड़की को देख चौंक पड़ी नदी
‘मैं नंबर एक खबरी चैनल की हूं रिपोर्टर
पूछ रही हूं तुमसे यमुना!
यह है किसान देश की राजधानी दिल्ली
आकर यहां उड़ा रही हो इसकी खिल्ली
लगा नहीं क्या तुमको डर——‘
डूब गए सब घर
7. तब !
मेरे भीतर का अहंकार
जब तक जीवित है
कह लो कुछ भी
कहलवा लो कुछ भी
मेरे संदर्भ में
किसी से भी कहीं भी
कभी भी
यत्न कर रहा हूं निकल जाए
फिर अहंकार मुक्त मन
जा बैठेगा किसी ग्वहर में
किसी असीम के घर
किसी अनंत के पार
तब !
न मैं न तुम न वह
न कोई
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डॉ एम डी सिंह, गाजीपुर, उत्तरप्रदेश