दुख
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दुख इस बात का है कि श्रीराम के होते हुए
बार-बार जिंदा हो जाता है रावण
जबकि हम हर साल कर देते हैं दहन
गौर करने की बात है कि
देवताओं के भी होते हैं वर्ण
दुख इस बात का है
कि जब-जब होती है जनगणना
मुझे याद करनी पड़ती है अपनी जाति
दुख इस बात का है
कि बिना जाति का नहीं होता कोई आदमी
कोई माने या मत माने
सरकारी रजिस्टर में अलग से कोई खाना नहीं
जिसमें यह दर्ज कर सकें
कि मेरा कोई धर्म नहीं, कोई जाति नहीं
वर्ण विरोधी सरकार ने
फिर कराई जनगणना
पूछी सबकी जाति!
सबने लिखवाई अपनी-अपनी जाति
मुख्यमंत्री ने भी
सभी मंत्रियों और विधायकों ने भी
सांसदों ने भी, सभी दलों के नेताओं ने भी
किसी ने नहीं लिखवाया दलित
नहीं लिखवाया पिछड़ा
किसी ने अगड़ा भी नहीं
विरोधी थे जो जातपांत के
उन्हें बहुत कष्ट हुआ
दिमाग पर काफी जोर दिया तब
उन्हें याद आई अपनी जाति
कुछ लोग इस बात से बहुत खुश हुए
कि हर जाति की संख्या
सरकारी रजिस्टर में पक्के तौर पर हो गई दर्ज
दुख इस बात का है
कि जिसने तोड़ी जाति
इस रजिस्टर में उसके लिए कोई जगह नहीं
उसकी चिंता नहीं करेगी सरकार
सरकार है भाई सरकार!
जातियों का तोल-मोल करने वाली सरकार!
आदमी नहीं
हिसाब रखती है यह सिर्फ जातियों का
खुलकर खेलती है
जाति-धरम का खेल!
दुख इस बात का है
हर जगह और हर रोज
जितने ही पूजे जा रहे हैं राम
बढ़ रही है रावण की उतनी ही तादाद
दुख है कि जनगणना कर्मी
इस सम्बंध में कुछ नहीं पूछते
दुख इस बात का है कि
नहीं रहा यह
बुद्ध,महावीर और गुरुगोविंद सिंह का प्रदेश
सत्ता के लिए सबको
यहां इसी तरह नचायेगी सरकार
ऐसी जालिम हुकूमत से देश सुरक्षित रहे
बेहद जरूरी है सबको इसकी चिंता करना
दुख इस बात का है कि
जिन्हें इसकी चिंता करनी चाहिए
टूट नहीं रही उनकी तंद्रा
इसीलिए दुख है…बहुत दुख है।
तराजू के पल्ले
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तराजू का एक पल्ला ऊपर है
दूसरा नीचे
नीचे वाला जमीन के करीब है
ऊपर वाला हवा में झूलता
बिल्कुल खाली
हमें लगता है
ऊपर वाले पल्ले पर है सरकार
और नीचे वाले पर जनता
लाचार …बिल्कुल लाचार
देश की आजादी के बाद भी
इसी हाल में हैं तराजू के पल्ले।
आम आदमी
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वह कहता है खुद को दुनिया का
सबसे ईमानदार आदमी
कहता है- सब झूठे हैं जी
मेरे सिवा
कहता है – क्या होता है संविधान
करता है रोज कानून की ऐसी-तैसी
जेल में महीनों से बंद उसके मंत्री
पाते हैं वेतन , चलाते हैं सरकार!
ठेंगे पर अदालत
ठेंगे पर संविधान !
वह आम आदमी महान है जी! महान!!
राजघाट
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सत्याग्रही !
तुम फिर पहुंच गये राजघाट!
गिरफ्तार होने से पहले
समाधि स्थल पर फिर नवाया शीष!
सत्याग्रही ! तुम तो निकले निठाह सत्ताग्रही
राजसिंहासन पर बैठे तो
कूड़े की तरह झाड़ू से बुहार बाहर फेंक दी राष्ट्रपिता की तस्वीर
सत्याग्रही!
तुम कितने मायावी हो
कितने चतुर
राजसिंहासन पर बैठ तूने खूब मचाया उत्पात
संविधान डाल- डाल
तो तुम रहे पात-पात!
सत्याग्रही!
हथकड़ी तो लगेगी नहीं तुम्हें
वह तो सिर्फ आम लोगों को लगती है
तुम तो हो गये आम से खास
सत्याग्रही!
राजघाट पर तुम्हें देख सब हैं दंग
अभी तो तुमने बापू की तस्वीर भर हटाई है
मौका मिलते ही तुम तो बदल दोगे तिरंगे का रंग
बाप रे!
तुम तो कर दोगे देश का अंग भंग!
घोंसले
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खुले आसमान में उड़ती चिड़िया
करती है देश-देशांतर की यात्राएं
मजबूत पंख हैं उसके पास
इन पंखों से वह जगत नाप लेती है
उसके पास नहीं है अदहन जैसा मन
कपास जैसा बगबग सफेद मन है उसका
ऐसी ही कपास से कबीर बुनते थे चादर
इस समय नहीं है किसी के पास
कबीर की बुनी चादर
महलों में कभी नहीं रहती चिड़िया
मड़ई में भी नहीं,
महल और मड़ई में दिखती है जरूर
रहती है तो सिर्फ अपने घोंसले में
नीड़ के निर्माण में चिड़िया
नहीं करती ठूंठ और हरे-भरे पेड़ों में भेद
उसे चाहिए सिर्फ सुरक्षित जगह
महल हो या मड़ई
खतरा कहीं भी हो सकता है
हरे-भरे पेड़ों पर भी
घोंसले के लिए
चिड़िया खोज लेती है सुरक्षित जगह
जो जगह सुरक्षित नहीं
वहां एक तिनका भी नहीं रखती
तिनके-तिनके जोड़ कर
बनाती है वह घोंसला
बया के घोंसले तो ऐसे होते हैं
ऐसे बुने हुए , इतने खूबसूरत
जिनका आंधियां भी कुछ बिगाड़ नहीं पातीं
बड़े-बड़े पेड़ों की ऊंची-ऊंची डालों से झूलते
अपने घोंसले में बया
सुबह-शाम गाती है मंगल गीत
आदमी के पास है
अदहन जैसा मन
आदमी ने छोड़ दिया मंगल गीत गाना
चिड़िया के पास है विस्तृत आकाश
आकाश गाता है विराटता का राग
विराटता का यही राग गूंजता है उसके घोंसले में
अंतरिक्ष में घूमती नन्हीं गेंद- सी धरती पर
निष्ठुर-राग रचती हैं हवेलियां
बर्बरता की कथाएं बांचती हैं गनचुंबी इमारतें
चिड़िया ऐसा जुल्म कभी नहीं करती
हमने जब भी और जहां भी देखा
सूरज ढलते ही चिड़िया
हमेशा अपने बनाये घोंसले में ही दिखी
और उसका मन दिखा हमेशा
कपास जैसा सफेद बगबग
चिंता इस बात की है
कि मद्धिम आंच में भी खौल रहा है
आदमी का अदहन जैसा मन
बस चले तो वह धरती के भी टुकड़े कर दे।
बांध
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नदियों को मत बांधो
मर जायेंगी
पहले पहल इनके किनारे ही बसीं सभ्यताएं
नदियां मरेंगी तो
मुश्किल हो जायेगा इनका जीवित रहना
शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह खां
जानते थे नदियों की अहमियत
इसलिए गहे रहे जीवन भर काशी
नहीं गये अमेरिका
उनकी शहनाई की धुनों पर लट्टू
अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने चाहा
उन्हें ले जाना
सदा-सदा के लिए अपने देश
हमेशा-हमेशा के लिए बना लेना अमेरिकी
खां साहब ने तब उनसे
बहुत ही मासूमियत से पूछा एक प्रश्न
और निरुत्तर रह गये रीगन
कहा रीगन से –
माना आप मुझे वहां हर सुविधा दे दोगे
बाकी गंगा कहां से लाओगे वहां ?
नदियों का महत्व जानते थे बिस्मिल्लाह खां
नहीं गये अमेरिका
गंगा तट पर ही रहे आजीवन
नदियों का मरना संगीत का मरना है
नदियों का सूखना
सभ्यता का
नदियों के निर्मल जल से
निकलती है मंगल ध्वनि
फूटते हैं जीवन के कई -कई राग
गंगा की ध्वनि से बिस्मिल्लाह ने रचे कई राग
और धन्य हो गई शहनाई
नदियों को बांधोगे तो मर जायेंगी
जैसे तिल-तिल कर मर रही है गंगा
मर रही है यमुना
और भी कई नदियां
नदियां मरेंगी
तो मौन हो जायेगी बिस्मिल्लाह खां की शहनाई
नहीं फूटेगी कान्हा की बांसुरी से कोई टेर
बांधोगे नदियों को
तो सूख जायेगा जीवन – राग
और तब, कुछ नहीं बचेगा।
– अनिल विभाकर, पटना