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Reading: समीक्षा : काव्य संग्रह “कारवां चलता रहा” की प्रेम भरी, मार्मिक कविताएं : विजय कुमार तिवारी
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Lahak Digital > Blog > Literature > समीक्षा : काव्य संग्रह “कारवां चलता रहा” की प्रेम भरी, मार्मिक कविताएं : विजय कुमार तिवारी
Literature

समीक्षा : काव्य संग्रह “कारवां चलता रहा” की प्रेम भरी, मार्मिक कविताएं : विजय कुमार तिवारी

admin
Last updated: 2024/01/05 at 10:08 AM
admin
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15 Min Read
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भुवनेश्वर में 18-19 नवम्बर 2023 को सम्पन्न हुए ‘परिचय साहित्यिक उत्सव 2023’ के बहुभाषी साहित्यिक कार्यक्रम में उड़िया के चर्चित कवि हिमांशु परिदा जी से मिलना इस सन्दर्भ में कुछ अधिक ही सुखद रहा कि उन्होंने हिन्दी में भी कविताएं लिखी हैं। सुखद यह भी है कि हम दोनों ने भारतीय स्टेट बैंक में,बिहार में सेवा की है और आज हम दोनों उड़ीसा में रहते हुए स्वतंत्र लेखन करने में लगे हैं। आपका जन्म उड़ीसा के कालाहांडी जिले में हुआ है और आजकल आप कटक में रह रहे हैं। आपका बचपन कालाहांडी के दूर-दराज गाँवों में बीता और वहाँ की नैसर्गिक, प्राकृतिक छटा ने आपको कवि बना दिया। उड़िया भाषा में आपकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। आप अंग्रेजी साहित्य के छात्र रहे हैं। ”कारवां चलता रहा” संग्रह में आपकी 56 कविताएं हैं जो भिन्न-भिन्न भाव-भूमि से ओत-प्रोत हैं। बेतिया,बिहार के लेखक सुरेश कुमार गुप्ता जी ने इस संग्रह की सुन्दर भूमिका लिखी है। उनका यह कथन समझने योग्य है-”उनकी कविताओं का नायक सूक्ष्म नहीं है. स्थूल है जो ज्ञानेन्द्रियों के हर क्रियाकलाप का प्रयोग करता है। उनकी कविताओं का नायक चीखता नहीं है अपितु शांत शब्दों में सिर्फ उलाहना देता है।”

प्रायः सभी रचनाकार,लेखक,कवि जीवन के नाना अनुभवों को अपनी साहित्यिक विधाओं का आधार बनाते हैं। आसपास समाज में व्याप्त संगतियों-विसंगतियों, विकृतियों,जटिलताओं और सुखद संयोगों की चर्चा करते हैं और सावधान करते हैं। कवि अनुभव करता है,स्वयं डूबता है और लोगों को डुबाता है। उसका लिखा उस कालखण्ड का कोई ऐतिहासिक दस्तावेज ही होता है चाहे विधा कोई भी हो। कविता आनंद देती है,साथ ही हमारे भीतर संवेदनाएं,करुणा,प्रेम जगाती हैं। इस तरह हर कवि या रचनाकार को सहजता से स्वीकार करना चाहिए और उसके लेखन को साहित्य में जगह देनी चाहिए।

जब कोई इतर भाषी कवि हिन्दी में गद्य या पद्य लिखता है,दोनों भाषाओं के शब्द मिलकर साहित्य को समृद्ध करते हैं। कभी-कभी जटिलता की स्थिति बनती है या कभी अत्यन्त सामान्यीकरण उभरता है। हिमांशु परिदा मूलतः उड़िया के कवि हैं और उनकी हिन्दी की शब्दावली बोलचाल वाली दिखाई देती है जिसमें उर्दू शब्दों की भरमार है। उन्होंने हिन्दी को पकड़ने की कोशिश की है और उनका यह प्रयास सार्थकता के साथ रोचक तरीके से चित्रित हुआ है।

कवि के मन में कविता की कोई भिन्न भाषा है,वह उस भाषा में बोलना,गाना चाहता है और कविता को ही जीवन बनाना चाहता है। शब्दों का जादू,रिश्तों की खुशबू,भावों की महफिल,गम और खुशी सबको समेटे हुए कोई धुन गुनगुनाना चाहता है। वह अहसास करता है,मन की आँखों से देखता है और अपनी प्रिया के होने,न होने से उसे कोई अंतर नहीं पड़ता। जीवन में अन्तर्दृष्टि का खुल जाना स्वयं में बहुत कुछ सहज होने लगता है। उनका आग्रह है,जीवन में दोस्त हों या दुश्मन,साथ निभाना चाहिए। कवि प्रेम में जीता है और अपनी प्रेमिका या पत्नी के साथ मन ही मन संवाद करता है। शायद उनके जीवन में संयोग के बजाए वियोग अधिक है। ऐसे में वह ‘आपका साथ’,आज का दिन, सफर ये बस साथ-साथ जैसी सहज कविताएं लिखता है,भाव देखिए-आप चाहे दोस्ती में मुझे गले लगाओ/या दुश्मनी में मेरा सर फोड़ो/मुझे कोई एतराज नहीं इसमें/मगर मेरे साथ-साथ रहो/कभी दुनिया न बोले कि/तुमने ठुकरा दिया मुझे राहों में। ‘कारवां चलता रहा’ कविता में उन्होंने अल्हण, मनमौजी जीवन का दृश्य दिखाया है-कारवां चलता रहा/हम भी साथ चलते रहे। वह बार-बार जताने की कोशिश करता है कि उसे जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ता। सच यह है कि बहुत फर्क पड़ता है और यह भाव कवि की हर रचना में उभरता है। उसे दुख है-आपने सीप समझ के मुझे फेंक दिया। ये सारे उलाहनाओं के भाव प्रेम की दशा में व्यक्त होते हैं। कवि को अपनी गलती का अहसास होता है जब प्रेमिका छोड़कर जा चुकी है,पंक्ति देखिए-हमको अब ये पता चला/जब आप जा चुके थे/असल में आप हमारे हैं/ये समझने की गलती हम कर बैठे थे। हर प्रेमी ऐसी परिस्थितियों में ‘यह हमारी गलतफहमी थी’ और ‘तुम जहाँ भी रहो खुश रहो’ जैसी कविताएं लिखता ही है।

कविता का भाव देखिए-जब मैं तुम्हारे पास पहुँचता हूँ/तो मुझे यकीन होता है/कि मेरी भी जमीं है/मेरा आसमान है। जो अपने स्वजनों से दूर रहकर जीविका के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान भटकते रहते हैं,इस कविता में वैसे ही लोगों की पीड़ा अभिव्यक्त हुई है। ‘रेलिंग’ कविता के बहाने उन्होंने आपसी विश्वास और प्रेम को दर्शाया है। ‘मोल-अनमोल’ में वह अपनी अनमोल स्मृतियों को अपना सहारा मानता है और सुखद जीवन जीता है। कवि प्रेमी है,वह प्रेम करता है,मोल नहीं लगाता। ‘आपका मोल’,’मोल’ जैसी कविताएं संकेत कर रही हैं,कवि से छिन गया है,उनकी प्रेमिका की खूबसूरती,जवानी फिर भी वह यादों में बसाए हुए है।’दीवार’ कविता स्वयं में रहस्य की तरह है-मैंने तुम्हें दीवार समझा/ और तुमने मुझे सहारा सोचा/मगर कौन किसी के बल पर खड़ा/ये किसी को नहीं पता। आपसी रिश्ता धागे और पतंग का है। कवि स्वीकार करता है-हम तो वैसे एक काँच का टुकड़ा/आपके उजाले में हम चमक रहे थे। उन्हें अपनी गलतफहमी और अपनी भूल का अहसास है। ‘वक्त चलता गया’ जीवन में दार्शनिक चिन्तन लिए कविता है,कवि को उसका प्यार नहीं मिल पाया और वह कभी दुल्हा नहीं बन पाया। प्रेम में पिछड़ गए प्रेमी की भावनाएं यथार्थतः उभरी हैं इस कविता में। उन्हें अपने लोगों से शिकायत है,उन्होंने सबको चाहा परन्तु उसका प्रतिफल नहीं मिला। वह अपनी बातें,भावनाएं बिंबों के सहारे व्यक्त करता है,किसी को दोष नहीं देता,अपने तरीके से दृश्य रचता है और यादों में खोया रहता है। प्रेम की इन कविताओं में हारे हुए प्रेमी के सारे भाव सहजता से उभरते हैं और उनका पीड़ित मन आहें भरता है। उन्होंने सहज भाव से लिखा है-आपको पाने के लिए सब कुछ किया और यह मुहावरा दुहरा रहे हैं-प्यार में और लड़ाई में जीतने के लिए/अपनाया जा सकता है कोई भी तरीका।

वह प्रेम की नाना तरह की कल्पनाएं करता है और सुखद अनुभूतियों में खो जाता है। प्रेमी,अपनी प्रेमिका के पास जाने,स्पर्श करने,प्यार जताने के लिए नाना उद्यम करता है। यहाँ ‘काटना’ कविता में प्रेमी स्वयं की तुलना मच्छर से करता है। हिमांशु परिदा की उड़ान देखने लायक है और उन्होंने विस्तार से भावनाओं,स्थिति-परिस्थिति व प्रेमी-प्रेमिका के बीच के दृश्यों को चित्रित किया है। नायिका सहजता से स्वीकार नहीं करती,बेरहमी से पेश आती है,ठुकराती है जबकि प्रेमी प्यार में डूबा हुआ है,उसे धैर्य नहीं है,खुलकर अपनी भावनाएं व्यक्त करता है। ‘मैं परेशान हूँ’ हजारों,लाखों, बेचैन उश्रृँखल प्रेमियों की ओर से लिखी गई कविता है। यह कहानी है,कविता नहीं है। हिन्दी,उर्दू के शब्दों के साथ प्रेम में संयोग-वियोग के,पीड़ा-दर्द,उलाहनाओं के, आरोप-प्रत्यारोप के सारे जीवन्त दृश्य उभरे हैं। प्रेमिका नायिका-भेद के नाना स्वरूपों में दिखाई देती है। उसका मानिनी रुप अधिक चित्रित हुआ है इन रचनाओं में और वह सहजता से उपलब्ध नहीं होती। ‘भूकम्प’ कविता में नायिका की अस्वीकृति, अकड़ प्यार के बिना धराशाई होते दिखाई देता है जबकि प्यार नाजुक लगता है जिसे कोई गिरा नहीं सकता।

उनकी अधिकांश कविताएं संकेत देती हैं,वह प्रेम में असफल हुआ है और यादों में प्रेम को जीवित रखता है। विदाई,हम तो बस बोलते रहे,मैं टूट गया,पत्थर,सबका हुआ और किसी ने मेरी आदत को बिगाड़ के रखा था जैसी सारी कविताओं में प्रेमी मिल नहीं पाता है और तद्जनित पीड़ा झेलने को बाध्य है। ‘टूट गया’ जैसी कविता संवाद करती है,प्रश्न करती है और टूटे हृदय से फरियाद करती है। ‘कल रात-1,कल रात-2 के सारे दृश्य प्रेम,मिलन और विछोह के हैं। वह और उनकी प्रेमिका दोनों जबरदस्त प्रेमी हैं,जोश से भरे रहते हैं और सारे बंधनों को तोड़ते दिखते हैं फिर भी प्रेमिका मिलते-मिलते रह जाती है। ऐसी कविताएं साहित्य की धरोहर भले न बने,प्रेमी-प्रेमिकाओं के मन को धड़काती रहेंगी।

कवि ने ‘मेरे गुरूर का परदा’ कविता में दुनिया को प्रेम की सीख समझाने का प्रयास किया है। किसी का प्यार जीवन में उजाला भर देता है। किसी का नर्म अंदाज पहाड़ों को पिघला देता है। उनके बिंब रोशनी फैलाने वाले हैं।’जब वो मेरे करीब आयीं थी’,’सारा दिन हम बैठते रहे’,’आप तो चुप रहे’ जैसी कविताओं के पीछे उनके जीवन की कहानियाँ हैं। सन्दर्भ प्रेम की भावनाओं से भरे हैं। दृश्य देखिए- मन में कोई अंजान-सी महक उठी थी,उनकी आँखों से बातें छलकती थीं,छोटी-सी मुलाकात थी/मगर मेरे लिए एक नयी राह मिल गयी थी। वह अपनी प्रेमिका से मिलता है,पास बैठता है परन्तु मौन पसरा रहता है और बाद में उलाहनाओं से भरी कविताएं लिखता है। प्रेम में नाम-बदनाम होने का भय होता है,इसलिए प्रेमिका चुप रहती है। ‘डर-1’ और ‘डर-2’ कविताओं में कवि प्यार में डरने का चित्र खींचता है। यह डर प्यार बढ़ाने वाला है। उन्होंने अपने डर की सम्पूर्ण परिस्थितियों का उल्लेख किया है और स्वीकार किया है-सबने कहा कि मैं आप से डरता हूँ। मन के भाव हर कविता में बार-बार उभरते हैं, वह भूल जाता है,इसे साहित्य में पुनरुक्ति दोष माना जाता है। ‘रद्दी’ की सामान्य परिभाषा है,जो अब किसी काम का नहीं है,अक्सर लोग फेंक देते हैं या कहीं रखकर भूल जाते हैं। कवि का भाव दूसरा है-जो यादों में बसते हैं वो तो कभी भी/अनावश्यक होते नहीं हैं। ‘यादें’ कविता की सहज स्वीकारोक्ति देखिए-मेरे पास और कुछ नहीं/बस आपकी यादें हैं। रिश्ता,बदनाम,वो छोटा सा कागज का टुकड़ा और आपको याद करेंगे,ये सभी कविताएं एक ही भाव-संवेदनाओं में रची-पगी हैं। उनके जीवन में संयोग से अधिक वियोग की परिस्थितियाँ हैं, ऐसे में सब कुछ यादों में अटा पड़ा है। अधूरे प्यार में नाम-बदनाम का खेल खूब चलता है। कवि भी इससे मुक्त नहीं हो पाता। प्रेमिका बार-बार बिछड़ती है,बार-बार न मिलने का भय सताता है परन्तु वह आश्वस्त करता है-पता नहीं फिर कभी आपसे मिल पाएंगे/मगर हर पल हर दिन आपको याद करेंगे। प्रेम का एक सच यह भी है-जिसको हम बहुत चाहते हैं/उससे ही हमको बिछड़ना पड़ता है।

प्रेम में परिचय होता है,देखा-देखी और संवाद होता है फिर रूठने-मनाने या बुरा मान जाने,उलाहनाएं देने और न जाने कितने झमेले प्रेमी-प्रेमियों को झेलने पड़ते हैं। उनकी प्रेमिका अक्सर बुरा मान जाती है,नजरंदाज करती है और शिकायतें भी। वह कुछ स्वाभाविक प्रश्न करता है,सफाई देना चाहता है और उसे पत्थर दिल समझता है। छोटी सी भिन्न भाव की कविता देखिए-बुराइयों को मैं सलाम करता हूँ/मैं अपने देश के गरीबों में रहती हुई/अमीरी का सलाम करता हूँ। ‘एक एहसास’ में वह अपने प्यार का इजहार करता है। ‘कद्रदान’ कविता की सच्चाई देखिए-कोई कद्रदान न हो तो/ जिंदगी बेकार सी होती है। ‘बातों में’ कविता का आशय सही है-सब कुछ बोला नहीं जाता,कुछ समझना पड़ता है,कुछ आँखों से बयां होती है,कुछ बदन से छलकता है। अंत में कविता संदेश देती है-तुम तो बस सुना करो दिल की बात/जो निःशब्द हैं/जिसको कभी भी कह न सके हम बातों में। ‘जाना है तुम्हें मालूम है मुझे’ साधारण जाने के साथ अनंत यात्रा का संदेश देती कविता है। ‘तुम्हारी नफरत’ कविता प्यार और नफरत समझाती है तथा जीवन मे पड़ने वाले प्रभावों को दिखा देती है। वह प्रियतमा की जवानी,हँसते हुए होंठ,आँखों में बूँद-बूँद टपकता पानी और जीने का हौसला देती ख्वाहिशें देखकर प्यार करता है और मानता है-तभी तो अपना घर बना सका/तुम जब आए मेरे जिंदगी में/मेरा संसार महक उठा। कवि रात-रात भर स्टेशन पर प्रतीक्षा करता है परन्तु गाड़ी नहीं आती। ‘कल रात की बात’ भावुक करने वाली कविता है। संग्रह की अंतिम कविता है ”ऐसे तो नासूर नहीं हूँ मैं।” यहाँ नायिका की चाहत बस इतनी सी है-मेरी तरफ देखने में तो आपको कोई/अधिकार जताना नहीं है/बस देखो तो दिल बहल जाता है/जो चीज सब की होती है/उसमें तो आपका भी हक है/जैसे खुली हवा/खुला आसमान/खुशबू किसी की होती नहीं है। कवि इस तरह प्रेम के लिए कोई नवीन दृश्य रचता है, खुलापन दिखाता है और उनकी नायिका बस एक बार देख लेने का आग्रह करती है।

इस तरह देखा जाए तो कवि गहरा प्रेमी है,वह नाना तरीके से अपने प्रेम को जीवन्त करता है। उसके जीवन में प्रतीक्षा और वियोग अधिक है। हिन्दी में रची इन कविताओं के पीछे सोचता हुआ कवि का मन उड़िया संस्कृति से ओत-प्रोत है। उनके शब्द और भाव कई बार तालमेल नहीं बना पाते इसलिए कहीं-कहीं भटकाव दिखता है। हिन्दी के साथ उर्दू के शब्द खूब प्रयुक्त हुए हैं और चलती-फिरती शब्दावली का प्रयोग कविता को कई बार गम्भीर नहीं होने देती। वह बार-बार मनुहार करता है और नाना तरह से सफाई देता है। कवि ऐसा प्रेमी है,अपने जीवन की उपलब्धियों के लिए पत्नी या प्रेमिका को श्रेय देता है और सम्पूर्ण नाकामियाँ अपने सिर बाँध लेता है।

—————

समीक्षित कृति: कारवां चलता रहा (कविता संग्रह)

कवि/साहित्यकार: हिमांशु परिदा

मूल्य: रु 100/-

प्रकाशक: उन्नयन प्रकाशन,मुजफ्फरपुर

विजय कुमार तिवारी

(कवि, लेखक,कहानीकार,उपन्यासकार,समीक्षक)
टाटा अरियाना हाऊसिंग,टावर-4 फ्लैट-1002
पोस्ट-महालक्ष्मी विहार-751029
भुवनेश्वर,उडीसा,भारत

मो: 9102939190

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