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Reading: नेताजी ने ही सर्वप्रथम महात्मा गाँधीजी को राष्ट्रपिता कहा था : के. विक्रम राव
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Lahak Digital > Blog > Dialogue / संवाद > नेताजी ने ही सर्वप्रथम महात्मा गाँधीजी को राष्ट्रपिता कहा था : के. विक्रम राव
Dialogue / संवाद

नेताजी ने ही सर्वप्रथम महात्मा गाँधीजी को राष्ट्रपिता कहा था : के. विक्रम राव

admin
Last updated: 2023/07/06 at 2:46 PM
admin
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5 Min Read
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के. विक्रम राव Twitter ID: Kvikram Rao
करीब आठ दशक हुये। आज ही के दिन (6 जुलाई 1944) स्वतंत्र बर्मा की राजधानी रंगून (अब यांगून) से प्रसारित अपने उद्बोधन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने महात्मा गांधी को “राष्ट्रपिता” कहकर संबोधित किया था। तब दो माह पूर्व ही (14 अप्रैल 1944) आजाद हिंद फौज ने मोइरंग (मणिपुर) को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्त करा लिया था। कर्नल शौकत अली मलिक उस विजयी टुकड़ी के कमांडर थे। उन्हें तमगाये-सरदारे-जंग से नवाजा गया था। उनके साथ तब थे माइरेंबम कोइरेंग सिंह जो इंफाल में मणिपुर के प्रथम मुख्यमंत्री (1963) बने थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से थे। करीब बीस बरस बाद लखनऊ की एक जनसभा में जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेई ने गाल फुलाते, लटें झटकते, तालु लचकाते कहा था : “पुत्र कभी भी पिता नहीं हो सकता।” सुभाष बोस की भावना को नकार दिया था। इस युवा कान्यकुब्ज विप्र को याद नहीं रहा कि शतपथ ब्राह्मण के अनुसार ऋषि कण्व की आश्रमवासिनी, शकुंत पक्षियों से पालित, मेनकापुत्री शकुंतला और गंधर्व पद्धति से पाणिग्रहण किए पौरव नृप दुष्यंत के शिशु भरत पर ही यह पूरा राष्ट्र “भारत” नामित हुआ था। भले ही उनका राज केवल मेरठ जनपद के हस्तिनापुर में स्थित था। (विष्णु पुराण : खंड 2, पृष्ठ 31)। अटल जी के अत्यंत प्रिय नेता जवाहरलाल नेहरू ने भी बापू की हत्या की रात (30 जनवरी 1948) ऑल इंडिया रेडियो से अपने शोकपूरित भाषण में महात्माजी को “राष्ट्रपिता” कहा था।
जब यह प्रथम प्रधानमंत्री 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर स्वतंत्र भारत का तिरंगा परचम फहरा रहे थे तो उसके ठीक चार वर्ष पूर्व ही (29 दिसम्बर 1943) अण्डमान द्वीप की राजधानी पोर्टब्लेयर में बोस राष्ट्रीय तिरंगा लहरा चुके थे। इतिहास में भारतभूमि का यह प्रथम आजाद भूभाग था। मगर नेताजी बोस पर जवाहरलाल नेहरू का नजरिया 15 जनवरी 1946 के दिन जगजाहिर हो गया था। उसी कालखण्ड में जवाहरलाल नेहरु अलमोड़ा कारागार (दूसरी दफा कैद) से रिहा होकर समीपस्थ रानीखेत नगर (बरास्ते नैनीताल) में जनसभा को संबोधित कर रहे थे। नैनीताल—स्थित इतिहाकार प्रोफेसर शेखर पाठक के अनुसार कांग्रेस-सोशलिस्ट पार्टी के पुरोधा तथा विधायक रहे स्व. पंडित मदनमोहन उपाध्यायजी का परिवार रानीखेत में नेहरु के मेजबान होते थे। वहां इस कांग्रेसी नेता के उद्गार थे : ”अगर मैं जेल के बाहर होता तो राइफल लेकर आजाद हिन्द फौज के सैनिकों का अंडमान द्वीप में मुकाबला करता।” यह उद्धहरण है सुने हुये उस भाषण के अंश का जो काकोरी काण्ड के अभियुक्त रामकृष्ण खत्री की आत्मकथा ”शहीदों के साये में” हैं। इसके पहले संस्करण (अनन्य प्रकाशन, नयी दिल्ली) में है, फिर अगले जनवरी 1968 में विश्वभारती प्रकाशन में भी है। पद्मश्री स्वाधीनता सेनानी स्व. बचनेश त्रिपाठी भी इसका उल्लेख कर चुके हैं।
अर्थात यह तो साबित हो ही जाता है कि त्रिपुरी (मार्च 1939) कांग्रेस सम्मेलन में सुभाष बाबू के साथ उपजे वैमनस्यभाव की कटुता दस वर्ष बाद भी नेहरु ने पाल रखी थी। नेहरु के “आदर्श उदार भाव” के इस तथ्य को सर्वविदित करने की दरकार है।
इसी स्वाधीन भारत में इस क्रांतिकारी जननायक सुभाषचन्द्र बोस की आत्मा को आजादी के अमृत महोत्सव (साढ़े सात दशक) तक प्रतीक्षा करनी पड़ी थी, उचित सम्मान पाने हेतु। नेताजी सदैव उपेक्षित रहे। भारत रत्न जीवित और स्वर्गीय सबको मिलते हैं मगर नेताजी को आज तक नही प्रदान किया गया। बल्कि नेहरू के राज में तो नेताजी की स्मृति को ही मिटाने का प्रयास मुसलसल होता रहा। भला हो नरेंद्र दामोदरदास मोदी का कि नयी दिल्ली के हृदय स्थल इंडिया गेट पर नेताजी की प्रतिमा लग गई। यहां से अपने विशाल भारत साम्राज्य को निहारती रहती थी ब्रिटिश बादशाह जॉर्ज पंचम की पथरीली मूर्ति, जो हटा दी गई। रिक्त पटल पर उनकी 125वीं जयंती (23 मार्च 2022) पर अंग्रेज राज के महानतम सशस्त्र बागी सुभाषचन्द्र बोस की प्रतिमा स्थापित हुई। शायद बागी बोस फिर अपने हक से वंचित रह जाते क्योंकि वहां इंदिरा गांधी की प्रतिमा लगाने की बेसब्र योजना रची गयी थी। स्वाधीन भारत के दो दशकों (नेहरु राज के 17 वर्ष मिलाकर) में यह गुलामी का प्रतीक सम्राट का बुत राजधानी को ”सुशोभित” करता रहा। मानों गोरे तब तक दिल्ली में राज करते ही रहे !
K Vikram Rao
Mobile -9415000909
E-mail –k.vikramrao@gmail.com

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admin July 6, 2023
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