संबलपुर (ओडीसा) में सेठ मूलचंद चाचा जी का बहुत ही शानदार घर था. वह शहर का सबसे सुन्दर घर माना जाता था. लोग उसे देखते, तो उसकी बड़ाई किये बिना नहीं रह पाते थे।
एक बार चाचा जी किसी काम से कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर थे।
कुछ दिनों बाद जब वह वापस लौटे तो देखा कि उसके मकान से धुआं उठ रहा है. करीब जाने पर उसे घर से आग की लपटें उठती हुई दिखाई पड़ी. उनका सुन्दर घर जल रहा था. वहाँ बहुत सारी भीड़ जमा थी, जो उस घर के जलने का तमाशा देख रही थी।
अपने सुन्दर घर को अपनी ही आँखों के सामने जलता हुए देख चाचाजी
चिंता में पड़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे? कैसे अपने घर को जलने से बचाये? वह लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा कि वे किसी भी तरह उसके घर को जलने से बचा लें।
उसी समय उसका बड़ा बेटा वहाँ आया और बोला, “ पिताजी, घबराइए मत. सब ठीक हो जायेगा।”
इस बात पर कुछ नाराज़ होता हुआ पिता बोला, “कैसे न घबराऊँ? मेरा इतना ख़ूबसूरत घर जल रहा है।”
बेटे ने उत्तर दिया, “पिताजी, क्षमा कीजियेगा. एक बात मैं आपको अब तक बता नहीं पाया था. कुछ दिनों पहले मुझे इस घर के लिए एक बहुत बढ़िया खरीददार मिला था. उसने मेरे सामने मकान की कीमत की 3 गुनी रकम का प्रस्ताव रखा।
सौदा इतना अच्छा था कि मैं मना नहीं कर पाया और मैंने आपको बिना बताये सौदा तय कर लिया।”
ये सुनकर चाचाजी की जान में जान आई। उसने राहत की सांस ली और आराम से ऐसे खड़ा हो गया, जैसे सब कुछ ठीक हो गया हो। अब वह भी अन्य लोगों की तरह दर्शक बनकर उस घर को जलते हुए देखने लगा।
तभी उसका दूसरा बेटा आया और बोला, “पिताजी हमारा घर जल रहा है और आप हैं कि बड़े आराम से यहाँ खड़े होकर इसे जलता हुआ देख रहे हैं। आप कुछ करते क्यों नहीं?”
“बेटा चिंता की बात नहीं है। तुम्हारे बड़े भाई ने ये घर बहुत अच्छे दाम पर बेच दिया है। अब ये घर हमारा नहीं रहा। इसलिए अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता” मिलिंद जी बोले।
“पिताजी भैया ने सौदा तो कर दिया था, लेकिन अब तक सौदा पक्का नहीं हुआ है।. अभी हमें पैसे भी नहीं मिले हैं। अब बताइए, इस जलते हुए घर के लिए कौन पैसे देगा?”
यह सुनकर वे फिर से चिंतित हो गये और सोचने लगे कि कैसे आग की लपटों पर काबू पाया जाए। वे फिर से पास खड़े लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा।
तभी उनका तीसरा बेटा आया और बोला, “पिता जी घबराने की सच में कोई बात नहीं है, मैं अभी उस आदमी से मिलकर आ रहा हूँ, जिससे बड़े भाई ने घर का सौदा किया था। उसने कहा है कि मैं अपनी जुबान का पक्का हूँ। मेरे आदर्श कहते हैं कि चाहे जो भी हो जाये, अपनी जुबान पर कायम रहना चाहिए। इसलिए अब जो हो जाये, जबान दी है, तो घर ज़रूर लूँगा और उसके पैसे भी दूंगा।”
चाचा जी फिर से चिंतामुक्त हो गया और घर को जलते हुए देखने लगा।
घटना का संदेश:
एक ही परिस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार भिन्न-भिन्न हो जाता है और यह व्यवहार उसकी सोच के कारण होता है। उदाहारण के लिए जलते हुए घर के मालिक को ही लीजिये। घर तो वही था, जो जल रहा था।
लेकिन उसके मालिक की सोच में कई बार परिवर्तन आया और उस सोच के साथ उसका व्यवहार भी बदलता गया। असल में, जब हम किसी चीज़ से जुड़ जाते हैं, तो उसके छिन जाने या दूर जाने पर हमें दुःख होता है। लेकिन यदि हम किसी चीज़ को ख़ुद से अलग कर देखते हैं, तो एक अलग सी आज़ादी महसूस करते हैं और दु:ख हमें छूता तक नहीं है। इसलिए दु:खी होना और ना होना पूर्णतः हमारी सोच और मानसिकता (mindset) पर निर्भर करता है। सोच पर नियंत्रण रखकर या उसे सही दिशा देकर हम बहुत से दु:खों और परेशानियों से न सिर्फ बच सकते हैं, बल्कि जीवन में नई ऊँचाइयाँ भी प्राप्त कर सकते हैं।
समझौता गमो से कर लो
जिन्दगी मे गम भी मिलते हैं।
पतझड़ आते ही रहते हैं
ये मधुवन फिर भी खिलते हैं।
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सीए, विनोद अग्रवाल
विनोद पोजिटिव फाऊंडेशन
शिक्षायतन फाऊंडेशन
लेक डिस्ट्रिक्ट कोलकता
9830347770