1. हँसना
हँसने के लिए सबसे अच्छी जगह
ढूँढ़ रखी है मैंने आपकी ऊब से
आप ही को बचाने के लिए
आप हँसना लगभग भूल जो गए हैं
हँसने वाली वह जगह बिलकुल दृश्य में है
उस हँसने वाली लड़की के बेहद नज़दीक़ भी
जो हंसगति से चलती है पृथ्वी पर
मेरा यह हँकारा चाहें तो स्वीकार लें
मेरा यह आमंत्रण चाहें तो अस्वीकार लें
क्योंकि वह दिल्लगीबाज़ लड़की ठहरी
आप ऊब को ही अपनी हँसी बनाने वाले जन
ठट्ठा मारना तो जैसे आप भूल ही चुके हैं
ऊबे हुए यारों के बीच उठ-बैठकर
यह बात
किसी विनोद में
दिल्लगी या मज़ाक़ में
नहीं लिखी जा रही यहाँ
राजनीति, इतिहास, भूगोल
सब यही बताता आया है
आपका आग्रह तक
कि अब आप ख़ुश रहना भूल चुके हैं
हँसना तो ख़ैर आपने सीखा ही नहीं उस लड़की से
या मेरे हँकारा या मेरे आमंत्रण से या हँसी-दिल्लगी से
हँसना जबकि मेरे लिए
और उस लड़की के लिए
सहज रहा है किसी हँसोड़ के जैसा
तभी कह रहा हूँ आइये
कविता के इस एकांत में
वेगपूर्वक हर्षध्वनि निकालिए प्रसन्नचित्
जिसे आप भूल चुके हैं दिनों-महीनों से।
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2. क्या मेरा कोई घर है
क्या मेरा कोई घर है
या आपका या इसका-उसका
कोई घर कहाँ दिखाई देता है सच में घर जैसा
घर अब आखेटस्थल लगता है शिकार से भरा
जो जगह बची रह गई है वह क़त्लगाह लगती है
ज़्यादातर घर अब
जंगल का समाज बन रहा है
जहॉं जंगल की सभा लग रही है
मेरा यह कहा कथन एक झूठ कथन लग रहा हो
तो लगने दीजिए, यह झूठ है, तब भी इसमें सच यही है
हर घर एक अरण्य, एक जंगल बन रहा है चतुराई से
जिस घर में यानी जिस अरण्य में, जिस जंगल में
हम एक नई पाठशाला बना रहे बाईसवीं सदी की
इस नई पाठशाला में मैं भी, आप भी
यह-वह भी एक नया पाठ
आरंभ कर रहे अपने-अपने बच्चों के लिए
विषय यही है कि :
हमारे अलावे बाक़ी बचे लोग
बेहद ख़तरनाक जानवर जैसे हैं
बाक़ी सब लोग हमारे शत्रु हैं
जिनसे बस घृणा की जा सकती है
अगर यह झूठ कथन है मेरा
आपका तो हमेशा सच कथन होता है
तब फिर मेरे बच्चे से किसी उस्ताद ने
ऐसा क्यों कहा कि तुम मलेच्छ लोग
हमारे भारत को छोड़कर चले क्यों नहीं जाते
किसी दूसरे मुल्क किसी दूसरी जगह
यह इक्कीसवीं नहीं
बाईसवीं सदी की तैयारी चल रही है
मेरे, आपके, इसके-उसके घर में
समय और हवा, सब मुनासिब-माकूल जो है
ऐसे घर के लिए
ऐसे अरण्य के लिए इन दिनों
सच जो बचा रह गया है
यही बचा रह गया है
इतना भर बचा रह गया है
आप ख़ुद को पढ़ा-लिखा, ख़ुद को जेंटलमैन जो कहते रहे हैं
मुझे गालियाँ देते रहे हैं, मेरे बच्चों को घृणा, मेरे देश को एक नई क़ैद
आप ने समझा क्या है, आप जो बड़े प्रगतिशील, वैज्ञानिक सोच वाले
कहे और सुने जाने का ढोंग रचते रहे हैं, जबकि आप हैं बेहद दकियानूस
आप जैसे धर्मात्मा की कृपा जिसे चाहिए, उसे अपनी कृपा ज़रूर दीजिए
लेकिन मेरे घर पर, मेरे देश पर कृपा इतनी भर कीजिए, इतना एहसान कीजिए
घर को घर रहने दीजिए और देश को देश आने वाली सदियों के लिए।
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3. खूँटा
सरकारें अब योजनाएँ नहीं बनातीं
हमारे-तुम्हारे लिए
बल्कि जैसे पशुओं को बांधा जाता है
किसी खूँटे में वध करने के लिए
वैसे ही बांधा जाता है हमें-तुम्हें
प्रत्येक आम बजट में हमारे-तुम्हारे लिए
सुविधाएँ गढ़ते हुए अबूझ
हमारा-आपका स्वभाव भी उन्हीं पशुओं जैसा
होता गया है होता गया है
जैसा वध-स्थल के पशुओं का होता जाता है निरंतर
हम-आप कबतक सरकारों की विफलताओं की
ऐतिहासिकता का हिस्सा बनते रहेंगे
शताब्दियों-शताब्दियों से बिना आगा-पीछा सोचे
जो स्थितियाँ किसी खूँटे की है अनंतकाल से
पशुओं को बांधने के लिए ज़मीन में गड़ी-सी
उन्हीं स्थितियों में जीने को विवश हम-आप
हारे हुए हम-आप कबतक नहीं उठेंगे
निरंकुश सरकारों निरंकुश बजटों के विरुद्ध।
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4. मैं अपनी भाषा में राजा का विरोध करता हूँ
मैं सोना चाहता हूँ चाँद को
ज़ोर से दबाए हुए अपने सीने से
सोना भी एक कला रही है पुरातन समय से
मगर क्या उनको कभी सोना आया है
जो युद्ध में भरोसा रखते हैं
जो हत्या में भरोसा रखते हैं
जो परमाणु में भरोसा रखते हैं
जो नींद में जाने से पहले
मेरी तरह गाय का दूध नहीं
गर्म ख़ून पीते हैं आदमी का
आपने कभी यह बात सुनी है
कि एक राजा किसी भी देश का हो
सो पाया है अपनी भूखी प्रजा की बेफ़िक्र नींद
मैं अपनी भाषा में राजा विरोध करता हूँ
उस राजा का
जो न ख़ुद सोता है
न सोने देता है मुझे
वसंत के पत्तों को चूमते
जैसे हम अपनी प्रेमिका को चूमते हैं।
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5. तुम्हारे ख़्वाबों का शहर कैसा है
तुम्हारे ख़्वाबों का शहर कैसा है
मेरे ख़्वाबों के शहर में तुम आते हो
काले घोड़े पर सफ़ेद लिबास में
मेरी मुहब्बत का गीत गाते
जानेमन, मेरे शहर में कोई गीत नहीं लिखता
न मुहब्बत का सबक़ कोई याद करता है
न कभी कोई इसकी ज़रूरत महसूस करता है
मेरे ख़्वाबों के शहर में तो तुम्हारे लफ़्ज़
किसी परिंदे के मनमाफ़िक उड़ा किए हैं
प्यार यहाँ हर किसी की आदत में शामिल है
जानेमन, तुम ख़्वाब काहे से बुनती हो
तुम्हारी सिखाई सुईकारी से मेरी जान
तुम परिंदों को काहे से बुलाती हो छत पर
तुम्हारे लिखे गीत सुना-सुनाकर मेरी जान
तुम प्यार का सबक़ कैसे याद कर लेती हो
तुम्हारी तस्वीर को देख-देखकर मेरी जान
जानेमन, मेरे शहर में तो मेरे घोड़े के पाँव से
नाल चुराकर भाग जाता है शहर का हाकिम
मेरी नाव का लंगर लेकर भाग जाता है
मेरे ख़्वाबों के शहर का हाकिम
तुम्हारे लिखे गीत से बहुत डरता है
इंक़लाब आ जाने से ख़ाएफ़ रहता है
जानेमन, मेरे शहर के लोग हाकिम से जा मिलते हैं
मेरे गीत की शिकायत कर देते हैं ख़त लिखकर
फिर शहर का हाकिम मुझ पर कई बंदिशें लगा देता है
मगर मुझको मालूम है तुम्हारी फ़ितरत के बारे में
तुम किसी हाकिम की कोई बंदिश कहाँ मानोगे
तुम घोड़े की नाल नाव का लंगर सब छीन लाओगे
शहर के हाकिम के घर घुसकर मेरी जान।
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● संपर्क : हुसैन कॉलोनी, नोहसा बाग़ीचा, नोहसा रोड, पूरब वाले पेट्रोल पाइप लेन के नज़दीक, फुलवारीशरीफ़, पटना-801505, बिहार।
मोबाइल : 09835417537, 9199518755