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Lahak Digital > Blog > Literature > महेश कटारे सुगम की ग़ज़लें
Literature

महेश कटारे सुगम की ग़ज़लें

admin
Last updated: 2023/07/20 at 2:05 PM
admin
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15 Min Read
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1.

तेरी ये निगेहबानी लाहौ ल बला कुब्बत
हर सिम्त परेशानी लाहौ ल बला कुब्बत

छोड़ा नहीं कहीं का गर्दिश में आ गए सब
है तेरी मेहरबानी लाहौ ल बला कुब्बत

बातों में तेरी आकर खतरे में आ गयी है
हम सबकी ज़िंदगानी लाहौ ल बला कुब्बत

सब आंकड़े तरक्की के हो गए हैं बेसुध
पर फिर भी बदगुमानी लाहौ ल बला कुब्बत

ये राष्ट्रवाद तेरा लाशों पै हँस रहा है
घायल है हकबयानी लाहौ ल बला कुब्बत

है मुफलिसी का आलम बढ़ती ही जा रही है
गायब है दाना पानी लाहौ ल बला कुब्बत

बातें सुनाके सबको बेहोश कर दिया है
तेरी ज़हर खुरानी लाहौ ल बला कुब्बत

ईमाँ के शोरोगुल में मनमानियों का आलम
चोरी औ बेईमानी लाहौ ल बला कुब्बत

खतरे भी बिक रहे हैं देखो उसी दुकाँ पर
बिकती है सावधानी लाहौ ल बला कुब्बत

सड़कों पै आ गये है सारे किसान अब तो
खतरे में है किसानी लाहौ ल बला कुब्बत

मेहनत के बाद मिलती हैं देखने को फसलें
कीमत में बेईमानी लाहौ ल बला कुब्बत

फसलों की कीमतों को तय कर रही सियासत
हम देते खाद पानी लाहौ ल बला कुुुब्बत

हमने बनाया जिसको वह हमको ठग रहा है
ये कैसी बदगुमानी लाहौ ल बला कुब्बत

दुनिया में हम सभी को रहना एक मुद्दत
उसको बताते फानी लाहौ ल बला कुब्बत

2.

क्षितिज में ये सूरज का मंज़र तो देखो
ज़मीं आसमां का स्वयंवर तो देखो

घना मेघ बढ़ता चला आ रहा है
फतह करने निकला सिकंदर तो देखो

महक सूंघती है घने गेसुओं की अजी इस हवा का मुकद्दर तो देखो

ये लगता है जैसे अभी हंस पड़ेंगे
तराशे हुए संगमरमर तो देखो

जो बूंदों ने चूमा जमीं के बदन को
सुगंधित के खुलते हुए पर तो देखो

जमीं लाल पीली हंसी हंस रही है
हरी कोंपलों के उठे सर तो देखो

बड़ी खूबसूरत लगेगी ये दुनिया
लिबास ए मोहब्बत पहन कर तो देखो

अलग दास्तां है सुगम जिंदगी की
कभी उस की महफिल में आकर तो देखो

3.

मिली प्रेम की पहली पाती अय,हय,हय
ख़ुशी बनी झरना बरसाती अय,हय,हय

खिली चांदनी चंदा दूल्हा लगता है
तारे लगते बने बराती अय,हय,हय

ठुमुक ठुमुक कर चलें बयारें बासंती
फूल खिले बगिया मुस्काती अय,हय,हय

सागर की छाती पर नाच रहीं लहरें
रेत बनी दुल्हन शर्माती अय,हय,हय

फूलों से श्रंगार किया है क्यारी ने
खुशबू वाले छंद सुनाती अय,हय,हय

फूट कोंपलें हंसती हैं बच्चों जैसी
लाल लाल पलकें झपकाती अय,हय,हय

सजी और संवरी माँ अपने बच्चे को
गोद में रखकर दूध पिलाती अय हय हय

4.

खेत सबई भगवान लगत हैं
पिसी चना वरदान लगत हैं

अब आफत में प्रान लगत हैं
डिग गए सब औसान लगत हैं

जब सें परौ तुषार कका जू
सोत सोत चिल्ल्यान लगत हैं

फसलन कौ हो गऔ डडौरा
ज़िंदा लाश किसान लगत हैं

भैया कोउ सें बोलत नईयां
कछू कहौ खिच्चयान लगत हैं

क़र्ज़ उगावे जब कोउ आवै
दद्दा बस गिगयाँन लगत हैं

5.

इक्कीसवीं जब सदी देखता हूं
त्रासद बहुत जिंदगी देखता हूं

बेचैनियों में उलझती हुई सी
हारी ,थकी, खलबली देखता हूं

पानी न मछली न लहरें,न मौजें
रेतीली सूखी नदी देखता हूं

पत्थर हुए दिल धड़कते कहां से
बैठी वहां खामुशी देखता हूं

आंसू कुंवारे, अपाहिज उम्मीदें
विधवा हुई हर खुशी देखता हूं

रिश्तो में आई है कड़वाहटें सी
दिल की पतंगें कटी देखता हूं

ठहरी है अधरों पै इक थरथराहट
आंखों में सूखी नमी देखता हूं

स्वच्छंद होती हठीली सियासत
जुल्मों भरी ज्यादती देखता हूं

अन्यायियों की जुड़ी हर सभा में
लुटती हुई द्रोपदी देखता हूं

6.

हम तो हैं कमज़ोर दलित हम क्या करते
थे गुंडे हथियार सहित हम क्या करते

तेल डालकर जला गए सारी बस्ती
हम सारे रह गए व्यथित हम क्या करते

लाश ढंकी थी शक्ल तलक न दिखलाई
अर्ध रात्रि जलवाई त्वरित हम क्या करते

कैद घरों में, कुछ कहने पर पाबंदी
क्रूर पुलिस थी रहम रहित हम क्या करते

बचा रहे थे वे असली हत्यारों को
सब कुछ था षड्यंत्रजनित हम क्या करते

सत्ता और सियासत इसमें शामिल थी
सत्य खड़ा रो रहा चकित हम क्या करते

उनकी झूठी बातों में चुन लिया उन्हें
हम फिर से हो गयेे भ्रमित हम क्या करते

7.

हादसों के बाद में कितनों को इमदादें मिलीं
टीसते किस्से मिले हैं जागती रातें मिलीं

जानती हैं प्यार का ज़ज़्बा, अदब, शालीनता
शुक्र है इस दौर में भी सभ्य औलादें मिलीं

भाई जैसे दोस्त मिलना खुशनसीबी है मेरी
दोस्ती के नाम पर खुशियों की सौगातें मिलीं

कुछ मिलीं बदमाशियां, बेईमानियां, धोखे, फ़रेब
ज़िन्दगी में और भी कुछ तो खुराफ़ातें मिलीं ं

ज़िन्दगी ज़्यादा बुरी भी तो नहीं है दोस्तो
दर्द की दौलत मिली खुशियों की बरसातें मिलीं

8.

मेरी सहधर्मिणी है पीर मेरी
यही है जीस्त की जागीर मेरी

लिखी है मैंने ही अपनी तरह से
वगावत से भरी तकदीर मेरी

मिटाना उसको अब मुमकिन नहीं है
दिलों में छप गई तस्वीर मेरी

करो महसूस तो अहसास होगा
हवाओं में घुली तासीर मेरी

सुगम ने तोड़कर ही फैंक दी है
गुलामी की पड़ी जंजीर मेरी

9.

धूल से है धूसरित ये देह काली
खूबसूरत सी मधुर मुस्कान वाली

जंग लड़ने ज़िन्दगी की चल पड़ी है
सोच भी है जीत की इम्क़ान वाली

और अब अन्याय सह सकती नहीं है
जग गई है चेतना सम्मान वाली

कब तलक गुमनाम जीवन जी सकेगी
अब प्रतिष्ठा चाहिए पहचान वाली

कर लिया है स्वेद, श्रम को सिद्ध उसने
बन गई संघर्ष से वरदान वाली

देखते वो भी हिक़ारत से कमीने
बास जिनसे आ रही अजवान वाली

बास… गंध

10.

अश्क आँखों की शान होते हैं
दर्दे दिल की ज़ुबान होते हैं

कामयाबी के खुशनुमा तोहफे
उम्र भर की थकान होते हैं

इश्क का इम्तहान मत लीजे
हौसले आसमान होते हैं

रास्ता ठीक है वही जिसमें
ज़िंदगी के निशान होते हैं

मसअलों से निजात मिलने पर
घर में अम्नो अमान होते हैं

जो मिलेंगे वतन परस्ती में
ज़ख्म वो ज़ाफ़रान होते हैं

11.

मैंने हिलाया खौफ़ को बुनियाद की तरह
करके दिखाया इक नई ईज़ाद की तरह

अपना बना के भूलना आदत नहीं मेरी
रिश्तों की देखभाल की औलाद की तरह

लड़कर लिये हैं आज तक अपने सभी हुकूक
कुछ भी नहीं मिला हमें इमदाद की तरह

दुश्वारियों में ये कभी टूटे झुके नहीं
मेरे उसूल हैं किसी फौलाद की तरह

हमने दिखाया आईना धब्बे निकल सकें
तुमने लिया है पेशतर प्रतिवाद की तरह

12.

उदासी का मंजर सवेरे सवेरे
ये बरपा है घर घर सवेरे सवेरे

कहीं आग भड़की जली सारी बस्ती
हुए लोग बेघर सवेरे सवेरे

उठी हूक बेचैन सा हो रहा है
बना दिल समंदर सवेरे सवेरे

यकीनन हुआ कुछ जुड़ा है जो मजमा
मेरे घर के बाहर सवेरे सवेरे

उड़े जाल लेकर गगन में परिंदे
हां ताकत लगाकर सवेरे सवेरे

शहर ले रहा है खुमारी में करवट
हटा मुंह से चादर सवेरे सवेरे

13.

तेरी ज़ुबाँ पर हमारा चर्चा कमाल है ये
पनप रहा है अज़ीज़ रिश्ता कमाल है ये

सफ़र में कोई न हमसफ़र था मलाल सा था
हुआ है कोई ग़ज़ब करिश्मा कमाल है ये

कई उमंगें दिलों के अंदर तड़प रहीं थीं
उठाया जायेगा उनसे पर्दा कमाल है ये

गुनाह जिसको ज़माना अब तक बता रहा था
करेगा उसको वो आज सज़्दा कमाल है ये

हमें तुम्हारी मिली है सोहबत नसीब देखो
मुहब्बतों का हुआ है ज़लवा कमाल है ये

अज़ीज़…. प्रिय

14.

बात की बात से वो बात निकल कर आये
बात तब है वो मेरे पास में चल कर आये

मैं तो उस दिन के लिए मुंतज़िर बैठा हूँ अभी
जब किसी रोज़ वो पहलू में उछल कर आये

सख़्त पहरे हैं मेरे चाहने वालो सुन लो
मुझसे मिलने को जो आये वो संभल कर आये

शाम का वक्त है सूरज ने संदेशा भेजा
रात की चांदनी आंगन में टहल कर आये

बस उसी याद को मैं आज सरहाने रक्खूं
जो किसी शक्ल या अहसास में ढल कर आये

15.

हो गई मुस्कान किस्सों की तरह
दर्द भी लगते हैं अपनों की तरह

हाँ मुहब्बत ले चुकी माँ की जगह
जोड़कर रखती है धागों की तरह

फ़र्ज़ का जिम्मा पिता जैसा मेरा
साथ है मज़बूत हाथों की तरह

भाईयों जैसे हुए हैं ग़म सभी
मुफलिसी, मस्ती है बहनों की तरह

एक बीबी की तरह हिम्मत मेरी
हाथ के छाले हैं बच्चों की तरह

मैं बहुत ख़ुद्दार दुनियादार हूँ
बांधता हूँ सबको रिश्तों की तरह

16.

तेरे सफ़र के साथ ही मेरा सफ़र भी है
अफ़सोस मगर देखिये तू बेख़बर भी है

माना कि ज़िन्दगी में हैं शामो सहर के रंग
मत भूल कि तपती हुई सी दोपहर भी है

तेरे तसब्बुरात में ज़िंदा है अभी तक
तेरा ही नहीं दोस्त वो मेरा शहर भी है

आता रहा है ग़म का कहर चेहरा बदलकर
आकर हमारे पास हुआ बेअसर भी है

तन्हा कहाँ किया है कभी कोई भी सफ़र
मौसम के साथ साथ रहा रहगुज़र भी है

आज़ाद परिंदों ने ये ऐलान कर दिया
उनके दिलों में अब नहीं सैयाद का डर है

17.

रोज़ कुछ ख़ास ही लिखने की तमन्ना मेरी
अपने अंदाज़ में जीने की तमन्ना मेरी

पंख पैरों में उगाने का हुनर सीख लिया
दूर आकाश में उड़ने की तमन्ना मेरी

शर्त को फैंक दिया गर्त समझकर मैंने
जु़ल्म से और भी लड़ने की तमन्ना मेरी

चाहता हूँ कि जियूँ सिर्फ सदाक़त के लिए
और इसके लिए मरने की तमन्ना मेरी

नाम तुम अपना लिखा लेना मेरे कामों पर
कुछ तो बेनाम ही करने की तमन्ना मेरी

18.

हर्र, बहेरे, आंवले जैसी हमारी शाइरी
ज़िन्दगी के सिलसिले जैसी हमारी शाइरी

राह की दुश्वारियों में भी रही करती सफ़र
पांव आये आबले जैसी हमारी शाइरी

वक्त और हालात से हर हाल में लड़ती रही मुफ़लिसों के मरहले जैसी हमारी शाइरी

ज़ुल्म, बढ़ती ज्यादिती के मुख़्तलिफ़ ललकारती
खौफ़ में भी ज़लज़ले जैसी हमारी शाइरी

जो हमेशा प्यार की परछाईं सा बनकर रहा
बस सुगम उस मनचले जैसी हमारी शाइरी

19.

चने की घेंटी भरी हुई है, मज़ा ये गेहूँ की बाल का है
फसल ने ओढ़ी हरी चुनरिया नज़ारा बेशक़ कमाल का है

हमारी मेहनत हुई सुहागिन खुशी का सिंदूर हॅंस रहा है
हराम का कुछ नहीं यहाँ पर, मिला जो सब कुछ हलाल का है

कहाँ मिलेगा, मिलेगा कैसे, बताओ उत्तर सुकून वाला
खड़ा हुआ जो सवाल बनकर, सवाल तो उस सवाल का है

ये ज़ुल्म सारे करेंगे भी क्या, रही हथेली पे जान जिनकी
दबाये वो दब नहीं सकेंगे असर लहू के उबाल का है

मुहब्बतों की करेंगे खेती, खिलायेंगे गुल खुशी के मिलकर
कटेगी नफ़रत, बढ़ेगी उल्फ़त, ये वक्त मिटते मलाल का है

20.

चार रोटी इक कटोरी दाल सब को चाहिए
कौन सा दुनिया का सारा माल हमको चाहिए

लालची के सब्र की तो इंतहा होती नहीं
सारी दुनिया का सकल तत्काल उसको चाहिए

बाद मरने के किसी के साथ कुछ जाता नहीं
गढ़ने, जलने को ज़मीं थोड़ी सी सबको चाहिए

पेंढ़ वो भरते रहें दरबार में सज्दे करें
कुर्सियां, पद, मान की भरमार जिनको चाहिए

है जिन्हें गफ़लत कि इस दुनिया के वे सरदार हैं
हाथ में सत्ता, कई खूंखार उनको चाहिए

21.

तू कर रहा है व्यर्थ की बकवास अबे चुप
सबको ही पता है तेरा इतिहास अबे चुप

नस नस में विष भरा है तेरी क्रूरताओं का
मैं जानता हूं कितना है बिंदास अबे चुप

उन सबके लिए जानते पहचानते हैं हम
जो भी है तेरी जिंदगी में खास अबे चुप

बनता तो है फकीर भरा राग द्वेष से
होती नहीं है तृप्त तेरी प्यास अबे चुप

शौहरत तो तेरी सूप के कोने की तरह है
कोरा ही बना फिर रहा आकाश अबे चुप

फोटो खिचाने, वस्त्र बदलने से न फुर्सत
तुझ पर करेगा मुल्क ये विश्वास अबे चुप

वीरानियों को सब्ज़ बताता है गर्व से
नकली है तेरा दौर ए मधुमास अबे चुप


महेश कटारे सुगम, बीना, मध्यप्रदेश

मो: 97130 24380

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