बहुत दुखद खबर है कि कोलकाता के साहित्य जगत में हमारे लगभग चार दशक से भी ज़्यादा समय के साथी परशुराम जी नहीं रहे । फ़ेसबुक पर मित्रों की पोस्ट के ज़रिए ही पता चला कि कल (12 जुलाई को ) बेंगलुरू में बेटे के घर पर उनका निधन हो गया । वहाँ वे पैर की चोट के इलाज के लिए गए हुए थे ।
परशुराम जी सत्तर के दशक के मध्य से ही कोलकाता के जनवादी साहित्य आंदोलन में सक्रिय थे । अनेक लघु पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाशित होते रहते थे और उन्होंने खुद भी ‘बोध’ नाम से एक पत्रिका का प्रकाशन और संपादन किया था । इसके अलावा और भी कई पत्रिकाओं के संपादन से वे संबद्ध थे ।
परशुराम जी ‘राष्ट्रीय जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा’ के सक्रिय संस्थापक सदस्यों में एक थे ।
परशुराम जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के किशुनपुरा गांव में 15 जनवरी 1945 के दिन हुआ था । कोलकाता में वे विज्ञान में स्नातक हुए और यहीं पर एक बैंक में काम किया ।
पाँच साल पहले ही सन् 2019 में उनके लेखों का एक संकलन प्रकाशित हुआ था — ‘आलोचना का सांस्कृतिक आयाम’ । प्रगतिशील साहित्य आंदोलन की ख़ास परंपरा में ही वे साहित्य में विचारधारा की भूमिका को दृढ़ता के साथ सबसे प्रमुख मानते थे और जहां भी उन्हें अपने विचारधारात्मक आग्रहों से विचलन का अनुमान होता था, उस पर कलम उठाने में जरा भी हिचकते नहीं थे। वैश्वीकरण के ख़तरों के प्रति हमेशा चौकन्ने रहते थे ।
उनके न रहने से कोलकाता के साहित्य जगत में विचारधारा की लड़ाई निश्चित रूप से कुछ और कमजोर हुई है ।
उनकी स्मृतियों के प्रति हम आंतरिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके सभी परिजनों के प्रति संवेदना ।
—–
कोलकाता