1. *तुम्हें पता ही नहीं चला*
वे तुम्हारे गाँव से
खींच लाये है सारी फिजायें
जो बन्द कर दी है संग्रहालयो में
अब वे उनकी इच्छा से
रंग मंच पर नाटक किया करेगी।
थोड़ा- थोड़ा करके
ले लिया है सारा जल, जंगल, जमीन
आसमान ढक लिया है तरंग जाल से
अब वे मांग और पूर्ति के मॉडल में भर दिये हैं
अब उनके बाजार भाव
दलाल स्ट्रीट के डिजिटल स्क्रीन पर रोल होंगे।
उन्होंने तुम्हें दे दी है हवाएँ
सपने दे दिये हैं
मोबाइल और टी वी भी दे दिया है
अब तुम उंगलियों से खेल सकते हो सिर्फ
तुम्हारे पैरो की जमीन तो उन्हीं के पास है।
मजे की बात है
जब ये सब हो रहा था
तुम्हें पता भी नहीं चला
क्योंकि तुम भी नाचते गाते
इसमें उन्हीं के
साथ थे।
2.*पहचान*
बुलंद इमारत की नीव में हमारे पुरखे दबे पड़े हैं
हमें उनकी शिनाख्त दे दो
ताकि दर्ज कर सके इतिहास में
उनकी पहचान।
हमें जरूरत है
अपने दबे इतिहास की
ताकि पढ़ सके पीढ़ियां
जान सके सच्चाई
बची रहे बार-बार भ्रमित होने से।
हम अगर खोदने लगे नींव
हो सकता है
भरभरा कर गिर जाए
तुम्हारे छद्म की बुलंद इमारत।
3 *मैं क्या करूं*
कुछ बातें अनुभूति की
जो शब्दों से परे हैं
शब्दों में आएंगी
तो तुम आत्मग्लानि से भर जाओगे
या विश्वास नहीं होगा तुम्हें
और नफरत से भर जाओगे फिर से।
मैं क्या करूं
तुम्हारी इस आत्म ग्लानि, अविश्वास और नफरत का?
मुझे तो तुमसे
मनुष्य का रिश्ता चाहिए।
4. *तुम विचार से डरते हो*
इतने डरे हुए हो
हमले करते हो ये सोचकर
इस तरह खत्म हो जाएगा एक दिन सब कुछ।
तुम्हारे हमले होते हैं
एक मूर्ति टूटने पर हजारों लोग खड़े हो जाते हैं
जिनके भीतर और मजबूत होते हैं अंबेडकर।
अंबेडकर कोई मूर्ति नहीं है
एक विचार है
मूर्ति तोड़ोगे तो ज्वाला निकलेगी
जो विचार को रोशनी में बदल देगी।
दरअसल
तुम उस विचार से डरते हो
जो इंसान को इंसान बनाकर बराबरी का हक देता है ।
5.*थोड़ा सा डर*
थोड़ा सा डरना मजबूरी है
कि बच्चे भूखे ना मरें।
थोड़ा सा डरना मजबूरी है
कि बच्चे समझदार आदमी बन जाये।
इतना भी मत डरना जिन्दगी के लालच में
कि डर में तुम खदेड़े जाओ।
6.*तुम्हारी खुशी में*
तुम्हारी खुशी में
तुम्हारे लिये ढोल बजा रहे थे
नाच रहे थे तुम्हारे साथ
गा रहे थे तुम्हारी खुशी के गीत
दुआये दे रहे थे तुम्हारी पीढ़ियों के लिये ।
तुम्हारी खुशी में
खा रहे थे तुम्हारे व्यंजन
पी रहे थे तुम्हारे पान
तुम्हारी जी हुजूरी में
बढ़ा रहे थे
तुम्हारा सम्मान |
तुम्हारी खुशी में
तुम्हारे लिये कर रहे थे
वे सब कुछ।
तुम्हारे लिये ही थी खुशी उनकी
वे दोल बजाने वाले
अपने लिये सिर्फ गुस्से से भरे थे।
7. *जीवन महसूस नहीं किया*
सूर्ख फूल तो खिले
छवि भी उभरी आँखों में
महकी मिट्टी भी
कोयल भी कूकी
झरने भी गिरे
जंगल भी फूले
फसले भी लहलहाई
ओठ भी मुस्कराये
जवानी भी आयी
खिलखिलाये बच्चे भी
बच्चे भी खिलाये।
जो तुमने किया
अमूमन वो सब किया
वो सब देखा
बस ! अभाव और अपमान में
सिर्फ जीवन
महसूस नही किया है।
8.*एक आवाज*
एक आवाज
जो दूसरी आवाज को बुला रही होती है
इस तरह आवाज उद्घोष बनने की पूरी संभावना रखती है
जो लांघ जाती है सीमाएं।
एक आवाज
ये सोचकर चुप हो जाती है
मेरी एक आवाज से क्या हो जायेगा
इसी सोच से गुलाम बनी रहती है कई पीढ़ियां।
सबसे पहले एक आवाज ही उठती है
जिसके पीछे फिर भागते हैं हजारों लोग
जन्म लेती हैं क्रांतियां।
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पता: एसोसिएट प्रोफेसर
गणित विभाग
डी ए वी (पी जी) कॉलेज, देहरादून।
मो: 9412369876