अतुकांत ग़ज़लें
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1.
मैं, मेरी जुबां, मेरी आदतें,
तुम्हें मुझसे मैंने जुदा किया
कौन कहता है सिर्फ़ रुलाता है
बहलाता भी है दिलों का दर्द।
यहीं रहता हूँ मिलना है तो आइयेगा
ये मयकदे का रास्ता ही मेरा पता है।
ज़माना बड़े शौक़ से सुनता था कभी
मैं अ दोस्त ऐसी भी आवाज रहा हूँ।
माना कि नामुकम्मल है नाकाम है
शुक्र है अपनी क़ोई दास्तान तो है
कभी इक लंबी तड़प कभी हज़ारों उम्मीदें
वक़्त सा है ये तेरे इंतज़ार का रोग।
सन्नाटों की भी आदत डाल लीजिये
सबके नसीब में शहनाइयां नहीं होती।
छुपाकर रख लूँगा तेरी खुशबू कहीं
इक बार मेरे क़रीब तुम आओ तो।
तन्हाई बोलती है रात की ख़ामोशी में
हमने अक्सर चुप रहकर देखा है।
तन्हाई का आलम, रात का साया और हम
कल देर तक तेरा ज़िक्र करते रहे।
2.
यहीं सोचकर कि मैं जी सकता हूँ
कई बार तुझे भुलाना चाहता हूँ।
क्या नाम दूँ उसकी सादगी को बताइये
मेरा क़ातिल अपनी ख़ता जानना चाहता है।
तुम्हें भी है कुछ ख़्याल मेरा
इसी ख़्याल को जी रहा हूँ मैं।
जुनूँ कहिये इस या दीवानगी मेरी
हर नज़र में वो नज़र तलाशता हूँ।
क्यूँ जाता नहीं अब ये वहम भी
वही आहट सी है वही निशां से।
क्या हुआ वो दर्द ना पूछ
तेरी अमानत है छुपा रखा है।
वो पूछते हैं मुझसे मयकशी का ज़ाइक़ा
कोई सुकूने-इबादत बता दो, उनको बताना है।
क्या जीना हुआ कि हरपल मरे कोई
उसने समझाया मुझे कि जीया करूँ।
कभी सोचता हूँ ख़ुद को भी ना याद करूँ
कभी बार बार तेरी याद गुनगुनाना चाहता हूँ।
हर सांस हर धड़कन में बस दर्द है
कभी पढ़कर देखना ये चेहरे बेदर्द से।
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डॉ. जोगेन्दर सिंह, रोहतक