हम दोनों
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कभी-कभी
उससे सुख-दुख की
हँसी मज़ाक की बात हो जाती है
जज़्बात की भी बात हो जाती है
हम दोनों पहले से अधिक सह्रदय हो जाते हैं
पहले से ज्यादा सहज,सरल
दोनों की बहुत सारी आदतें,
भाव-विचार
एक-दूसरे से मिलते हैं
जैसे शब्द अर्थ से मिलते हैं
जैसे ध्वनि संगीत से मिलती है
जैसे धूप धरती से मिलती है
वैसे ही हम दोनों एक-दूसरे से मिलते हैं
कुछ समय के लिए
हम दुनियादारी से दूर चले जाते हैं
एक दूसरे को जीते हुए
सब भूलकर
उतने ही एकाग्र और पवित्र
जैसे होती हैं प्रार्थनाएँ
हम दोनों प्रार्थना के शब्द होना चाहते हैं
जो सदा साथ रहकर सार्थक बने रहें।
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माँ का भय
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मैंने बेटा जना
प्रसव पीड़ा भूल गयी
वह धीरे-धीरे हँसने-रोने लगा
मैंने स्त्री होना बिसरा दिया
उसने तुतली भाषा में माँ कहा
मैं हवा बनकर बहने लगी
वह जवान हुआ
मैं उसके पैरों तले की मिट्टी वारती फिरूँ
उसके सिर सेहरा बंधा
मुझे याद आया
मैं भी एक रोज ब्याहकर आयी थी
इसके पिता संग
कुछ दिनों बाद मैंने जाना
ईश्वर अरूप है
और सारे पौधे
बिन पानी सूख गए हैं
नहीं सोचती कि आसमान से
कोई देवदूत उतरेगा
नहीं आँकना चाहती
जीवन के आँकड़े
मुझे कुछ पतझड़ और देखने हैं
उसके बाद एक अंतहीन बसंत
होगा मेरे चारों ओर
नहीं सोचती
कि मेरे मरने के बाद
बेटा क्या करेगा…..?
वह जानता होगा
हर सुबह
शाम में ढल जायेगी
मैं उस दिन से डरती हूँ
जब मेरा पोता
अपने पिता को छोड़कर दूर जायेगा
और उसे पहली बार अहसास होगा
किसी को अकेला छोड़कर जाने का दुःख
कितना जानलेवा होता है
उस दिन वह रह-रहकर
माँ को ज़रूर याद करेगा ।
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बच्ची का सवाल
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छोटी बच्ची
न पेटभर खाती है,न पीती है
सिर्फ एक सहारे पर जीती है
एक रोज माँ आएगी
उसका माथा चूमेगी
बालों की चोटी करेगी
उसे शेर की कहानी सुनाएगी
फूलों में फिर से
रंग आ जायेगा
हर शाम पापा से पूछती है-
माँ कब आयेगी?
पापा कुछ नहीं बोलते
बच्ची मौन का बंधन तोड़ती है
माँ कब आयेगी ?
पापा कहते हैं कल
बच्ची बेताबी से
कल को सिरहाने रख सो जाती है
अगली सुबह
फिर वही पिछला सवाल-
माँ कब आयेगी?
पापा जेब से चॉकलेट निकाल
रख देते हैं बिटिया के हाथ पर
वह चली जाती है
लेकिन छोड़ जाती है
एक नया सवाल
क्या एक बच्ची के लिये?
उसकी माँ की अहमियत
सिर्फ एक चॉकलेट है ।
*
कीड़े
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कीड़े
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कीड़े कहीं भी
लग जाते हैं
अन्न,फल
पेड़-पौधा
लकड़ी,कपड़ा
यहाँ तक की
शरीर भी कीड़ों की पहुँच से
बाहर नहीं है
कीड़े बहुत घातक होते हैं
कुछ भी मिटा सकते हैं
वे सबसे ज्यादा
खतरनाक तब होते हैं
जब हमारे विचारों में
घर बना लेते हैं।
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साइकिल
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जीवन में
मैं बहुत सारी साइकिलों पर बैठा
उनमें पारिवारिक सदस्यों,रिश्तेदारों
और यारों-दोस्तों की साइकिलें ही अधिक थीं
कभी-कभार
अजनबियों की साइकिलों पर भी बैठने का अवसर मिला
एक समय वह भी था
जब मान और शान की
सवारी मानी जाती थी साइकिल
मेरी जीवन-यात्रा में
अनेक साइकिलों का साथ रहा
समय की आवाजाही में
कुछ साइकिलें खराब हो गयीं
और कुछ हो गयी गुम
स्मृतियों के संसार में
एक साइकिल बची रही
जिस पर बैठकर
मैं पहली बार शहर गया था
पिताजी संग दशहरा देखने के लिए
वहीं पर मैंने
सैकड़ों साइकिलें देखी थीं एक साथ
घर लौटते हुए
पिताजी ने खिलाई थी
गरमागरम रस भरी जलेबी
जिसकी चाशनी की मिठास
जिंदा है आज भी मेरे स्वाद में
जब कभी
यादों की सड़क पर निगाह जाती है
दूर से ही दिखती है चलती हुई साइकिल।
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शेर-बेटा
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बारह वर्षीय बच्चे की
सप्ताह में
तीन दिन डायलेसिस होती है
बच्चा हर बार
ना-नुकुर
आनाकानी करता है
रोग की रस्सी पर
चलते हुए बच्चे को
माता-पिता बाहों में भरकर
कहते हैं-
यह हमारा शेर बेटा है
बच्चा
हौसले से हाथ मिलाता हुआ
माता-पिता की ओर देखता है एकटक
माता-पिता
नन्हें शेर को खामोशी से
डॉक्टर और नर्स के साथ
जाता हुआ देखते हैं।
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हरसिंगार
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काम पर आते-जाते हुए
रास्ते में
हरसिंगार का एक पेड़ आता है
उसकी जादुई खुशबू
हर आने-जाने वाले को रोक लेती है
राहगीर कुछ देर ठहर कर
गंध के गिलास से
सुरभित शरबत पीता है
हरसिंगार
न जाने
कितने इंसानों में जीता है।
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बच्चा और पिता
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बीमारी से ग्रस्त
बिस्तर पर लेटा हुआ बच्चा
दरवाजे के शीशे से
पिता को अपनी ओर झांकते हुए देखता है
लेटे-लेटे
पिता को एक फ्लाइंग किस भेजता है
बच्चे का प्यार
पिता के माथे पर चिपक गया है
एक-दूसरे को निहारते हुए
बच्चा और पिता
एक पेंटिग में बदल गए हैं
बच्चा पिता
और पिता बच्चा हो गए हैं।
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स्मृति
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स्मृति
वो कविता है
जिसे अनपढ़ भी
पढ़ लेता है।
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आंधी
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अंधी आंधी ने
दीवार से
दो छोटे गमलों को
धक्का दे दिया
गमले और पौधे
दूर जा गिरे
शाम को
जब मैं काम से घर लौटा
मासूम पौधों को निर्जीव पाया
शाम को
मैंने खाना नहीं खाया।
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बँटवारा
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फलों के साथ-साथ
पेड़ की टहनी
और पत्तों का भी बँटवारा तय था
पेड़ की जड़ से फल तक
उनकी पैनी निगाह थी
बँटवारा करने वालों की
प्राथमिकता में था पेड़
पेड़ की पीड़ा
बँटवारे से बाहर थी।
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बड़ा
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दुःख में
जो इंसान
दूसरे इंसान के संग खड़ा है
वही इंसान
सच में बड़ा है।
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अधूरा-जीवन
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कोई कविता
मन में कौंधती है
लिखने के लिए
कागज कलम तैयार करता हूँ
कुछ पंक्तियों के बाद ही
कलम थम जाती है
आगे बढ़ती नहीं
मन को बहुत साधता हूँ
कि पूर्ण कर सकूँ कविता
तमाम प्रयास विफल होते हैं
लाख चाहने पर भी
उद्देश्य में सफल नहीं होता
एक आधी-अधूरी कविता
कामना के कागज पर अपूर्ण छूट जाती है
ज्यों स्मृतियों की स्लेट पर
अधूरा छूट जाये कोई जीवन।
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रोशनी
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पंद्रह वर्षीय लड़का
एक ऑफिस में
सहायक का काम करता है
रात को
लालटेन की रोशनी में
अपनी पढ़ाई करता है
पढ़ता हुआ लड़का
मुझे प्रेरक लगता है
मैं पढ़ते हुए लड़के के
अंदर-बाहर
एक रोशनी देखता हूँ।
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सूनी डाल
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डालियों पर खिले
रंग-बिरंगे फूल
देखते ही देखते झर गये
ह्रदय को बींध जाये
ज्यों कोई जंगली शूल
दूर से ही दिखती है
सूनी-सूनी डाल
और झरे हुए फूल।
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माँ और बच्चा
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संसार से विदा हुए
अपने बारह वर्षीय बच्चे को याद करती
रोते-रोते नींद में चली गयी है माँ
नींद के स्वप्न में भी
खोज रही है अपना बच्चा
पुकार रही है उसका नाम
बेसुध,घबरायी मारी-मारी डोल रही है
यहाँ-वहाँ
वह माँ है
यथार्थ हो या हो स्वप्न
हर जगह वह माँ है
माँ के लिए
सर्वस्व सिर्फ उसका बच्चा है।
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जुड़ाव
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जो डाल
अपने पेड़ से जुड़ी रहती है
बरसों-बरस
नरम और हरी रहती है
एक बार टूटने पर
कुछ समय बाद सूख जाती है।
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बच्चा और माँ
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बच्चा
माँ शब्द के ऊपर लगने वाला
ममत्व का चंद्रबिंदु है।
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आश्रय
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पेड़ से एक पुष्प
टूटकर गिरा है
जमीन से मैंने उसे उठाया
और घर के गमलों में लगे
पौधों के मध्य सजा दिया
फूल को एक आश्रय मिल गया
पौधों को मिल गया एक फूल
यह जीवन परस्पर
एक-दूसरे के मिलने से सार्थक होता है।
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भरना
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पेड़ पर
कम पत्ते शेष बचे थे
कुछ चिड़ियाँ
कहीं से उड़ती हुई आयीं
और पेड़ पर बैठ गयीं
उनकी चहचाहट ने पेड़ को
अधिक आत्मीय और आकर्षक बना दिया
कभी-कभी
समय जिसे खाली कर देता है
उसे चिड़ियाँ भर देती हैं।
जीवन-परिचय
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नाम: जसवीर त्यागी
शिक्षा: एम.ए, एम.फील,
पीएच.डी(दिल्ली विश्वविद्यालय)
सम्प्रति: एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज
राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015
प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ, आजकल, कादम्बिनी, जनसत्ता, हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, कृति ओर, वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।
*अभी भी दुनिया में*- काव्य-संग्रह।
*कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी भाषाओं में अनुवाद*
*सचेतक और डॉ रामविलास शर्मा*(तीन खण्ड)का संकलन-संपादन।
*रामविलास शर्मा के पत्र*- का डॉ विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन।
सम्मान: *हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।*
संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018
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