बिहार स्टार्ट-अप तथा जीरो लैब द्वारा डेवलपमेन्ट मैनेजमेन्ट इन्स्टीच्यूट में विद्यार्थियों को स्टार्ट-अप के क्षेत्र में अवसरों तथा बिहार सरकार द्वारा प्रदान की जा रही सुविधाओं के बारे जानकारी देने के लिए आउटरीच कार्यक्रम चलाया गया जिसमें संस्थान के निदेशक प्रो0 देबीप्रसाद मिश्रा ने विद्यार्थियों से कहा कि रोजगार मांगने वाले की जगह रोजगार दाता बनें। उन्होंने कहा कि अपनी स्टार्ट-अप इकाई प्रारंभ करके अपना कल्याण तो कर ही सकते हैं, सैकड़ों दूसरे लोेगों को भी रोजगार दे सकते हैं।
उद्योग विभाग के विशेष सचिव दिलीप कुमार ने कहा कि बिहार स्टार्ट-अप पाॅलिसी के तहत 10 वर्षों के लिए 10 लाख रूपये तक की ब्याज रहित सीड फंडिंग की व्यवस्था की गई है। महिलाओं द्वारा प्रारंभ स्टार्ट-अप को 5 प्रतिशत अधिक तथा अनुसूचित जाति/जनजाति तथा दिव्यांगों के स्टार्ट-अप को 15 प्रतिशत अधिक राशि सीड फंड के रूप में देने का प्रावधान इस नीति के तहत किया गया है। एक्सीलेरेशन प्रोग्राम में भागीदारी के लिए 3 लाख रूपये तक के अनुदान का प्रावधान स्टार्ट-अप नीति में है। एन्जेल निवेशकों से निवेश प्राप्त होने पर कुल निवेश का 2 प्रतिशत सफलता शुल्क और सेवी पंजीकृत कैटेगरी-1 तथा एन्जेल समूह से प्राप्त फंड के बराबर अधिकतम 50 लाख रूपये तक के मैचिंग लोन की व्यवस्था बिहार स्टार्ट-अप फंड से की जाती है।
जीरो लैब की दीप्ति आनन्द ने बताया कि स्टार्ट-अप के लिए आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था भी बिहार स्टार्ट-अप नीति के तहत की जा रही है। पटना में दो प्रमुख स्थानों पर को-वर्किंग स्पेस, रिसर्च एण्ड डेवलपमेन्ट लैब, काॅमन साॅफ्टवेयर एण्ड हार्डवेयर सुविधा, क्वालिटी एश्योरेन्स लैब आदि की व्यवस्था की गई है। साथ ही स्टार्ट-अप को लीगल, एकाउन्टिंग, तकनीकी, पेटेन्ट, निवेश और बैंकिंग सुविधाओं को प्रदान करने की व्यवस्था भी राज्य सरकार द्वारा की गई है।
स्टार्ट-अप टीम के शिवेन्द्र कुमार ने बताया कि स्टार्ट-अप के क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं। यह युवाओं को अपनी ओर आकर्षित भी करता है। लेकिन स्टार्ट-अप और पारंपरिक व्यवसाय में फर्क होता है। पारंपरिक व्यवसाय के लिए नये आइडिया की आवश्यकता नहीं होती। पहले से चल रहे व्यवसायिक माॅडल पर नया व्यवसाय प्रारंभ करना होता है। पारंपरिक व्यवसाय में तुरंत ही लाभ मिलना प्रारंभ हो जाता है। लेकिन उसके विस्तार की सीमा होती है। उदाहरण के लिए किराना दुकान या आटा चक्की उद्योग के विस्तार की एक सीमा है। लेकिन जब नये आइडिया के साथ स्टार्ट-अप प्रारंभ किया जाता है तो उसके विस्तार की असीम संभावनाएँ होती है।
डेवलपमेन्ट मैनेजमेन्ट इन्स्टीच्यूट के डाॅ. एस राजेश्वरन ने कहा कि इनोवेशन तथा नये आइडिया को स्टार्ट-अप के आवश्यक अवयव हैं। पारंपरिक व्यवसाय में अन्वेषण और नवाचार का होना जरूरी नहीं है। स्टार्ट-अप में फोकस लाभ कमाने से अधिक व्यवसाय का विस्तार करने पर होता है। व्यवसाय के विस्तार के बाद एन्जेल इन्वेस्टर्स से निवेश की संभावना बढ़ जाती है और वैसी स्थिति में स्टार्ट-अप को बड़ा लाभ प्राप्त होता है।
एग्रीक्स के डाॅ. नीलय पाण्डेय ने विस्तार से अपने स्टार्ट-अप जर्नी के बारे में बताया। कार्यशाला में शोभना गुप्ता, शुभम कुमार एवं रंजीत कुमार मिश्रा ने भाग लिया।
बिहार स्टार्ट-अप पर कार्यशाला
Leave a comment
Leave a comment