1 .
सधे हुये आखेटक बैठे चारों ओर मचान पर
सधे हुये आखेटक बैठे चारों ओर मचान पर
जाने कब से सोच रहा हूँ मैं भी कोई गीत लिखूं ,
खुशियों में खोये सोये अपने हिंदुस्तान पर!!
इतनी दूर आ गये हम उत्पादन के इतिहास में,
भूल गये अंतर करना अब भूख और उपवास में!
बन्द किबाड़ों भीतर जाने लक्ष्मी कैसे चली गयी,
यहाँ लिखे भर रहे लाभ-शुभ पूरे खुले मकान पर!!
जाने कब से सोच रहा हूँ मैं भी कोई गीत लिखूं…
शेष नहीं कोई संवेदन सम्वादों में कथ्य में,
असली नाटक खेल रहे हैं कलाकार नैपथ्य में!
तिनका दाबे दांतों में सारा जंगल भयभीत है,
सधे हुये आखेटक बैठे चारों ओर मचान पर!!
जाने कब से सोच रहा हूँ मैं भी कोई गीत लिखूं …
नाम लिखे हर दरवाजे पर फिर भी सभी अपरिचित हैं
सब जुलूस में शामिल लेकिन सबके अलग अलग हित हैं !
शब्द शब्द में मोलभाव है जीवन बस क्रय विक्रय हैं,
अक्सर लोग मिला करते अब बैठे किसी दुकान पर !!
जाने कब से सोच रहा हूँ मैं भी कोई गीत लिखूं …
इंकलाब के कंठ मुखर हैं अब दरबारी बातों में,
नाच रहे चेतक के वंशज घुँघरू पहन बरातों में !
साध रहे सब योग जोड़ते हाथ उभरते सूरज को,
चौंच खोल कर बगुले बैठे परम अहिंसक ध्यान पर !!
जाने कब से सोच रहा हूँ मै भी कोई गीत लिखू!
खुशियो में खोये सोये अपने हिंदुस्तान पर!!
2.
संधि पत्र
अंधकार के साथ जिन्होंने संधि पत्र लिख दिए खुशी से,
उन्हें सूर्य के संघर्षों का कोई क्या महत्व समझाये !
मैले संदर्भों पर जीवित यह ऐसी आधुनिक ऋचाएं ,
मोहक मुखपृष्ठों पर जैसे अपराधों की सत्य कथाएं!!
सबके सिर पर धर्म ग्रंथ है सबके हाथों में गंगाजल
किस न्यायालय में अब कोई झूठ सत्य का न्याय कराये…..
प्रश्न लौट आते अनाथ से कहीं नहीं मिलता अपनापन,
अपने सतही रूप गर्व में खोया सा लगता हर दर्पण!
अलग-अलग आलाप ले रहे जहां बेसुरे कंठ चीख कर ,
उस महफिल में सरगम की मर्यादा बोलो कौन बचाये!!
अंधकार के साथ जिन्होंने संधि पत्र लिख दिए खुशी से,
उन्हें सूर्य के संघर्षों का कोई क्या महत्व समझाये!!
आकुल संवेगों ने कितनी व्यथा सही तब पायी भाषा !
पाखंडी शब्दों ने लेकिन दूषित कर दी सब परिभाषा !!
हर क्यारी में जहां लगी हैं नागफनी की ही कक्षाएं
उन्हें सूर्य के संघर्षों का कोई क्या महत्व समझाये!!
दर्द कथ्य का क्या जाने ये चौड़े चौड़े रिक्त हाशिए ,
कैसा राजयोग तिनकों ने वृक्षों के अधिकार पालिए!
सब ऐसे सहमे सहमे हैं जैसे चलते हुए सफर पर
गांव पास आए दुश्मन का ज्योंही तभी रात हो जाये!!
अंधकार के साथ जिन्होंने संधि पत्र लिख दिए खुशी से,
उन्हें सूर्य के संघर्षों का कोई क्या महत्व समझाये!!
3.
कितना कम समय
कितना कम समय
डाल पर अब पक न पाते फल हमारे पास कितना कम समय है!
कौन मौसम के भरोसे बैठता है
चाहतों के लिए पूरी उम्र कम है!
मंडियां संभावनाएं तौलती है
स्वाद के बाजार का अपना नियम है!
मिट्ठूओं का वंश है भूखा यहां तक आगया दुर्भिक्ष भय है !
डाल पर अब पक न पाते फल हमारे पास कितना कम समय है !!
हरेपन के सिर्फ कुछ विवरण बचे हैं
हरी मटमैली उदास क्यारियों में!
आग की बातें हवा में उड़ रही हैं
आंच ठंडी हो रही चिंगारियों में !!
इससे क्या सार निकलेगा यहां आरंभ से निष्कर्ष तय हैं …
डाल पर अब पक न पाते फल हमारे पास कितना कम समय है!!
वहां जाने क्या विवेचन चल रहा है
सभी के वक्तव्य बेहद तीखे!
यहां सड़कों पर हजारों प्रश्न बिखरे
रूट से वास्तविक है
पूछने पर बस यही उत्तर सभी के कि यह गंभीर चिंता का विषय है!
डाल पर अब पक न पाते फल हमारे पास कितना कम समय है!!
4.
कभी-कभी बस आते रहना
कभी-कभी बस आते रहना
यही बहुत है बंधु आजकल
कभी-कभी बस आते रहना!
वैसे इस आपाधापी में
किसको फुर्सत आए जाए!
ब्याह – बधाई शोक- सांत्वना
मिल जाते हैं छपे छपाए!!
फिर भी कभी इधर से निकलो,
हम पर दया दिखाते रहना!
कभी-कभी बस आते रहना!!
राजकाज कितना मुश्किल है
छोटे लोग भला क्या जाने!
त्याग तपस्या के स्वर्णाक्षर
हम अज्ञानी क्या पहचाने !!
किस निशान पर बटन दबाना
मालिक हमें बताते रहना!
कभी-कभी बस आते रहना
भला आप भी क्या कर सकते
जब सबका अपना नसीब है !
यह तो प्रभु की लीला ठहरी
वह अमीर है वह गरीब है !!
सभी चैनलों पर पूरे दिन हमें यही समझाते रहना!
कभी-कभी बस आते रहना
छोड़ो हम भी क्या ले बैठे
दो कौड़ी की बातें छोटी,
आखिर देश प्रेम भी कुछ है
जब देखो तब रोटी रोटी!!
करतल ध्वनि में आजादी का झंडा आप चलाते रहना
कभी-कभी बस आते रहना
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डॉ. के बी एल पाण्डेय, 70 हाथी खाना, दतिया DATIA ( म. प्र.) 475661
मो: 9479570896