1.
दाना डाल रहा चिड़ियों को मगर शिकारी है
आग लगाने वाला पानी का व्यापारी है
मछुआरे की नीयत खोटी तब वो समझ सकी
कँटिया में जब हाय फँसी मछली बेचारी है
लोग कबूतर बनकर खाली टुक -टुक ताक रहे
उसकी जुमलेबाजी में कितनी मक्कारी है
रंग बदलने वाली उसकी फ़ितरत भी देखी
वो गिरगिट सा मतलब से ही रखता यारी है
काँटे अपने आप उगे हैं होगी बात सही
फिर भी माली की भी तो कुछ जिम्मेदारी है
उसके बारे में इससे ज़्यादा क्या और कहूँ
लोग यही बस देख रहे हैं सूरत प्यारी है
2.
तमाशा देखना हो तो ज़माना दौड़ आता है
लगे जब आग बस्ती में तो दरिया सूख जाता है
खुदा न ख़्वास्ता ठोकर कहीं लग जाये तब देखो
जिसे कहते हो अपना ख़ास वह भी मुस्कराता है
मगर अब भूल जाओ चांदनी रस्ता दिखाएगी
बुरा जब वक्त है सितारा डूब जाता है
यही आता है बस जी में लगा दूं आग गुलशन में
असल जब रूप अपना बागबां कोई दिखाता है
भले पतवार दे धोखा, भले मौसम हो बेगाना
अगर हो दोस्ती पक्की तो तूफां भी बचाता है
वही चूजा जो अंडा फोड़कर बाहर निकल आता
क़फ़स में गर रहे कुछ दिन तो उड़ना भूल जाता है
न दें गर साथ सूरज, चांद तो मायूस मत होना
अभी घनघोर जंगल में भी जुगनू टिमटिमाता है
3.
ग़मज़दा आंखों का दो बूंद नीर कैसे बचे
ऐसे हालात में अपना ज़मीर कैसे बचे
धर्म के नाम पे तालीम दोगे बच्चों को
मुझको इस बात की चिंता कबीर कैसे बचे
एक भी कृष्ण नहीं, अनगिनत दुःशासन हैं
आज की द्रौपदी का बोलो चीर कैसे बचे
हर तरफ़ घात लगाए हैं लुटेरे बैठे
ऐसी सूरत में कोई राहगीर कैसे बचे
इस हुकूमत में ग़रीबों की बात कौन सुने
दर-दर ठोकरें खाता फ़क़ीर कैसे बचे
सिर्फ़ महलों की तरक़्क़ी पे ज़ोर देता है
क्या कभी यह भी है सोचा कुटीर कैसे बचे
4.
मारा गया इंसाफ़ मांगने के जुर्म में
इंसानियत के हक़ में बोलने के जुर्म में
मेरा गुनाह ये है कि मैं बेगुनाह हूं
पकड़ा गया चोरों को पकड़ने के जुर्म में
पहले तो पर कतर के कर दिया लहूलुहान
फिर सिल दिया ज़बान चीखने के जुर्म में
पंडित ने अपशकुन बता दिया था, इसलिए
हैं लोग ख़फ़ा मुझसे छींकने के जुर्म में
औरों की खुशी देख क्यों पाती नहीं दुनिया
तोड़े गये हैं फूल महकने के जुर्म में
उट्ठे नहीं क्यों हाथ गिरेबान की तरफ़
खायी है लात पांव पकड़ने के जुर्म में
कब तक रहूं मैं चुप कोई मुझको तो बताए
बढ़ती गयी सज़ा मेरी सहने के जुर्म में
5.
मुझे यक़ीन है सूरज यहीं से निकलेगा
यहीं घना है अंधेरा है यहीं पे चमकेगा
इसीलिए तो खुली खिड़कियां मैं रखता हूं
बहेगी जब हवा मेरा मकान गमकेगा
मेरी ज़ुबान पे ताले तो वो लगा सकता
करेगा क्या जो मेरा आसमान गरजेगा
तुझे वो दिख रहा मासूम परिंदा बेशक
तेरा हरेक छुपा राज़ वही खोलेगा
हमें पता है उसकी बेहिसाब ताक़त का
यदि वो गजराज है तो चींटियों से हारेगा
अभी ख़फ़ा है नहीं बोल रहा वो मुझसे
मेरा वो प्यार है मुझको ज़रूर ढूँढेगा
यही पहचान है कुन्दन की ज़माने वालो
तपेगा आग में तो और भी वो दमकेगा
———————
सुलतानपुर, उत्तरप्रदेश