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यूं पिट रही छातियों का कसूर पूछता हूं
हो रही मातमपुर्सी का दस्तूर पूछता हूं
था कहा उसने कभी न मौत पे रोना बच्चों
क्यों फिर भी हाय-तौबा बदस्तूर पूछता हूं
इक खंजर तेरे हाथ में तो मेरे पास भी
हों कब तक ये लड़ाइयां मंजूर पूछता हूं
कह कोई गया है हमसे तुम एक नहीं हो
क्यों कर रहे नहीं हम नामंजूर पूछता हूं
दिख तो रहे हम दोनों हैं यार आदमी से
किस बात का हमें इतना गरूर पूछता हूं
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करवटें बदल रहीं नींदों की कसम न खा
अनदेखा कर रहीं दीदों की कसम न खा
चल यार अपने दम पर कर भरोसा तू
ताबूत में बन्द उम्मीदों की कसम न खा
वाहवाही के लिए इक अच्छी गजल ला
शैतां पर फिदा कसीदों की कसम न खा
पहचान के लिए तू अस्ल कागजात ला
फाड़ने को बनी रसीदों की कसम न खा
बेच खाएं न वे तेरा नाम सुन कहीं
मौकापरस्त उन मुरीदों की कसम न खा
दीद- दृष्टि , ताबूत- मृतक बॉक्स
कसीदे- किसी की तारीफ में लिखे गए शेर
मुरीद-अनुयायी
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तू सच में ग़ज़ल है कहे तो तुझको ग़ज़ल लिखूं
अब तक नहीं लिखा वो तेरा हुस्नो फजल लिखूं
तेरे चश्म पे है चश्मा तू फिर भी चश्मे बद्दूर
इन हातिल गेशुओं में सफेदी का असल लिखू
चांद के रुख अब तमतमाता आफताब भी है
तू ही बता दे न मैं तुझको किसकी नकल लिखूं
मेरे दिलों दिमाग पे तेरा है अब भी कब्जा
तू मान ले तो तुझे अपनी जाने अकल लिखूं
सुनती जा मेरे तमाम बच्चों की प्यारी अम्मा
तुझे जाने जिगर जानेमन अहले फसल लिखूं
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धुंधली पड़ रही अपनी तस्वीर बदल
चल के खुद ही अपनी तकदीर बदल
कह काजिओं से हालात बदल गए
अब वे भी लें अपनी तकरीर बदल
मुटाई गर्दनों पर कुछ तो असर हो
पुरानी पड़ी अपनी शमशीर बदल
मुद्दतों से यार तूने नहीं बदला
असर अब ना कर रही तदवीर बदल
हो रहा नहीं दवाओं से फायदा
अब रही नहीं वे सभी अक्सीर बदल
काजी- न्यायाधीश
तहरीर- लिखावट
तकरीर- भाषण
शमशीर -दो धारी तलवार
तदवीर -उपाय,प्रयत्न
अक्सीर- रामबाण
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सूर्ख जर्द कमजोर न एक तगड़ा काफी है
हलाल होने को तो एक बकरा काफी है
हुस्न की फिराक में है तो बचके रह यार
दिल चाक करने में एक नखरा काफी है
दुश्मनी की दीवार गिरानी तुझे तो लड़
दोस्ती के लिए तो एक झगड़ा काफी है
सुन बे शराबी तुझे पता नहीं हो शायद
मदहोशी के लिए एक कतरा काफी है
मार डालेगी तुझे ये खुशियों की चाहत
जीने के लिए तो एक खतरा काफी है
सूर्ख – लाल
जर्द – पीला
चाक करना- टुकड़े-टुकड़े करना
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डाॅ एम डी सिंह, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश।