कविता १) स्पेस : अशोक इंगले
स्पेस
कतार में
ठीक से खड़ा रह सके
इसलिए दोस्त को
मैंने थोड़ी-सी जगह दी
पर मैं ही कतार से बाहर हो गया.
हायवे पर ड्राइविंग करते हुए
पीछे से आ रही गाड़ी को
मैंने स्पेस दी
पर मेरी गाड़ी ही रास्ते से नीचे उतर गयी.
बच्चें पढ़ाई कर सके
और उन्हें प्राइवेसी मिले इसलिए
अपने कमरे में मैंने उन्हें जगह दी
पर हम ही घर से बाहर निकाले गए.
इस भूमंडलीकरण के युग में
स्पेस देते समय
सतर्क रहना चाहिए
नहीं तो एक दिन
आपको ही व्यवस्था से बाहर फेंक दिया जाएगा.
कविता २) ती कोरडी विहीर…… : शेष सुदाम देउरमल्ले
वो सूखा कुआं……
कुलदीपक की
प्रतीक्षा करते-करते
काकीमाँ के गर्भ का जल
हमेशा के लिए
घट गया.
सारा गाँव,परिवार,
नाते-रिश्तेदारों,
पर्व और त्यौहारों,
शुभाशुभ कार्यों में
काकीमाँ बुहारी की तरह
पड़ी है दरवाजे के पीछे….
यदि किसीने उसके बारे में जानना चाहा
तो काका कहते
“वो सूखा कुआं!”
काकीमाँ गर्भाशय के कैंसर से चल बसी
और काका भी बुढ़ापे से.
कई सालों बाद,छुट्टियों में
गाँव के खेतों में
मैं सपरिवार घूमने गया
मेरी एकलौती बिटिया ने
कुँए में झाँककर कहा
“कुँए का पानी घट गया है”
एकदम से मुझे
काका का कहा याद आया
“वो सूखा कुआँ”
और कुएँ में
काकीमाँ का चेहरा.
कविता ३) कविपत्नीसाठी वस्तुपाठ : हेमंत गोविंद जोगळेकर
कविपत्नियों के लिए आदर्शपाठ…..
नवब्याहता पत्नी को स्कूटर से
मुंबई दिखाते हुए निरंजन
रास्ते में ही उसे कहीं भूलकर लौट आया.
सब्जी बाजार में लगभग उसी देहाकार की
स्त्री के संग अशोक
लंबी दूरी तक चलता रहा.
हनीमून मनाने जा रहा नितिन
समय काटने के लिए साथ में
पुस्तकें पढ़ने ले गया.
कविपत्नियों ने तुरंत ही
अपने इन पतियों का जायजा लिया.
पतियों को अपने आँचल से कसकर बाँधा
और कवियों को आकाश में
उड़ने के लिए मुक्त कर दिया.
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अनुवादकर्ता : कुबेर कुमावत,
प्लाट नं.38,1762/3,केले नगर,
अमलनेर, जि. जलगाँव, महाराष्ट्र
मो.नं.09823660903