रक्तिम समय में
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नफरतों के इस दौर में
अपना शीष उतारा
धरती पर धरा और चल दिया
तुमने कहा
यह रक्तिम समय है
जरा संभल कर चलना भाई!
जगह जगह बैठे हुए हैं गिद्ध
उड़ रहे हैं चमगादड़
चारों ओर पसरा है अंधेरा
मैं मुस्कराया और
पत्थर की सड़क वाली
पतली गली में प्रवेश कर गया
छाती छिली रक्त बहा
और चलते चलते
एक ऐसी जगह पहुंचा
जहां आधुनिकतम तकनीक और
भौतिक समृद्धि की सीढ़ियां हैं
प्रेम और शांति कहीं नहीं
चारों तरफ बिछे हैं
नफरतों के कांच
ज्वालामुखी फटते हैं अक्सर
आग का दरिया है वहां
जो बहता रहता है निरंतर
क्रूरताएं बर्बरता अपने चरम पर हैं
बारूदी कसैले धुएं से
ढका है जिगर डूबा है मन
अभी जहां खड़ा हूं वहां से कुछ आगे
कुछ ही घंटे पहले हैवानों के झुंड ने
छलनी किया है सैकड़ों मनुष्यों का सीना
चमकते धारदार चाकुओं से
रेता है मासूमों की मुलायम गर्दन
स्त्रियों को बलात्कृत किया है
और जिंदा जलाया है
मन बेचैन और बेताब है
कि आग के दरिया का पानी
शीतल और मीठा कैसे हो जाए
माफ कीजिएगा
आपके माफी मांगने से
कयामत की रात खत्म नहीं होगी
मनुष्यता बचाए रखने का सवाल
किस तरह बचाए रखेंगे
कविता की भाषा नहीं समझते आतंकी
आवाज
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आदमी का वजूद तलाशते हुए
स्याह अंधेरे में
गूंजती है एक आवाज़
जिसे पकड़ने के लिए
दौड़ता हूं बेचैन होकर
रातभर बाहर भीतर
और लौटता हूं खाली हाथ
उजास होते ही
टिमटिमाते हुए तारे गिरते हैं
मैं उदास हो जाता हूं
भीषण ताप में जलता है बदन
आग की बारिश में भींगता हूं
सब कुछ जानने की लालसा लिए
कहां जान पाया बहुत कुछ
चीखती आवाजों के बीच
अभी तक इतना ही जान पाया
आवाज कभी खत्म नहीं होती
हजारों सालों से जारी है यही सिलसिला
मेरी मुट्ठी बंद नहीं हुई कभी
हाथ खाली के खाली हैं
जिंदा होने का अर्थात्
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कोई स्त्री चिल्लाए
कोई बच्चा चिल्लाए
कोई बूढ़ा चिल्लाए
कातर स्वर में
गुहार लगाए
“बचाओ बचाओ”
और मैं कुछ देर देखकर
अपनी खिड़की बंद कर दूं
तो समझ लीजिए
जिंदा नहीं हूं
यकीन न हो तो
बंद दरवाजा तोड़कर
घर के अंदर आ जाइए
और जांच लीजिए
ढूंढ लीजिए
जिंदा होने का सबूत
००
सरहद पर तैनात कोई सैनिक
यह सोचने लगे कि
उसकी बंदूक से
निकली गोली से
लाशें बिछ जाएंगी
तो समझ लीजिए
सरहद सुरक्षित नहीं है
और वह शहीद हो जाएगा
००
राजा को
आपकी कविताएं
अच्छी लगने लगे
वह आपका प्रशंसक बन जाए
पुरस्कार के लिए आपको बुलाए
तो समझ लीजिए
कविताएं आपकी मर रही हैं
जंगल का महा महोत्सव
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शेर जी की अध्यक्षता में
जंगल का यह महा महोत्सव है
सूअर जी महा अतिथि बनाए गए हैं
गले में रजनीगंधा की माला लटकाए
शेर जी के ठीक बगल में बैठे हैं
निर्भीक होकर जब तब
शेर जी से बतिया रहे हैं
दुनिया भर के जंगलों के रहवासी
इस महा महोत्सव में हिस्सा ले रहे हैं
गहमा गहमी है
चारों ओर उल्लास पसरा है
धूम मची है
भालू ढोलक बजा रहे हैं
गदहे मीठे स्वर में गा रहे हैं
बनमानुष नाच रहे हैं
एंकरिंग का उस्ताद बंदर
शेर जी के सम्मान में
कसीदे काढ़ रहा है
“बहनों और भाइयों!
ऐसा दयालु और निष्पक्ष राजा
न कभी हुआ है न कभी होगा
सभी सुख चैन से जी रहे हैं
न्याय की सरिता बह रही है
न कोई छोटा है न कोई बड़ा
अद्भुत है समता की ऐसी मिसाल!
बहनों,भाइयों!
एक बार जोर से बोलो
राजा धिराज महाराज की जै ”
जयकारे से सारा जंगल गूंज उठा है
शेर जी गदगद हैं
सूअर जी के कान में धीमें से कुछ कहा है
तभी से सूअर जी बेचैन हो गए हैं
तरतर पसीना चूने लगा है
जल्दी से जल्दी मंच छोड़कर भाग जाना चाहते हैं
और अंततः भाग ही जाते हैं
लघुशंका का बहाना बनाकर
कार्यक्रम की समाप्ति तक नहीं लौटते
शेर जी आग बबूला होकर
मंच से उद्घोषणा करते हैं
आइंदे,सूअर की जगह
हिरण को मुख्य अतिथि बनाएं
हिरण मुझे प्रिय हैं
कुछ बोलोगे भी?
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बहुत कुछ खदबदा रहा है मेरे भीतर
विस्फोट होने को है
कभी भी चीख पडूंगा
तुम चुप ही रहोगे
कुछ बोलोगे भी?
तुम्हारी मां और पिता
मलवे के नीचे दबे हुए हैं
पत्नी और बच्चे
राख हो गए हैं
कुछ भी तो बचा नहीं है
इस गाजा पट्टी में
खंडहर के सिवाय
तुम्हारी पीठ पर हाथ रखकर चलूंगा
तुम भी चलो मेरे साथ
अपनी मुट्ठी में राख उठा लो
समंदर तक चलो
सोख लो उसे
तुम्हारी आंखें बहुत गहरी हैं
इतनी गहरी कि
दुनिया के सभी समंदर समा जाएं
आओ चलें अब
इससे पहले कि
कोई मिसाइल गिर जाए
उमेश पंकज, लखनऊ