नागार्जुन को जो लोग सहज सरल और आम जन के कवि समझते हैं-बड़ा भ्रम पालते हैं। उसी तरह बिहार को जो लोग सतही नजरों से देखते हैं उसके अंतर्विरोधों को समझे बगैर इस पर फब्तियाँ कसते हैं-वे भी भ्रम पालते हैं। नागार्जुन हिन्दी में निराला के बाद सबसे बड़े संश्लिष्ट और अग्रगामी शक्तियों को कविताओं में अभिव्यक्त करने वाले कवि हैं। इतिहास पर गौर करें, बिहार पूरे देश के मानचित्र पर ऐसा राज्य है जो दूसरे राज्यों से अलग, अपने प्राकृतिक परिवेश तथा अन्य कारणों से अधिक अंतर्विरोधों से ग्रस्त और निरंतर परिवर्त्तन के लिए छटपटाता हुआ प्रदेश है। नागार्जुन को इस दृष्टि से कम देखा गया है और उससे भी कम समझा गया है।
नागार्जुन के साथ, इन पंक्तियों के लेखक का बहुत निजी और सघन संपर्क रहा है। नागार्जुन की यायावरी और अनेक यात्राओं के बावजूद बार-बार बिहार प्रदेश की ओर लौट आना एक खास तरह की ऊष्मा की ओर बार-बार लौट आने जैसा है। सन् 1934 के आमबारी किसान आंदोलन से लेकर जयप्रकाश और नक्सलबाड़ी आंदोलन तक में सक्रिय हिस्सा लेना और इन आंदोलनों के मर्म को पहचानने के बाद फिर नए जनआंदोलन की ओर उन्मुख हो जाना नागार्जुन की नियति थी। उनकी कविताओं में बार-बार राजनीतिक पक्षधरता का विचलन अंततः जन सरोकारों के साथ उनके सीधे जुड़ने के कारण है। तमाम वामपंथी संगठनों ने नागार्जुन की खूब प्रशंसाएँ कीं और तीव्र भर्त्सनाएँ भी। नागार्जुन का संपूर्ण काव्य राजनीतिक विचारधाराओं की अग्रगामी चेतना के चलते ऊपर से विचलन भरा दिखाई पड़ता है। नागार्जुन की कविताएँ बिहार के बनते बिगड़ते चेहरे हैं। कभी सपाट, कभी सरल, कभी सहज, कभी संश्लिष्ट, कभी एकदम अबूझ। याद कीजिए, कुछ कविताएँ ’बादल को घिरते देखा है‘, ’मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा‘, ’अकाल और उसके बाद‘, ’चंदू मैंने सपना देखा है‘, ’इंदू जी इंदू क्या हुआ आपको‘, ’सिंदूर तिलकित भाल‘, ’मंत्र कविता‘, याकि ’मैं तुम्हें चुंबन दूँगा‘, ’शासन की बंदूक‘। नागार्जुन की इन कविताओं को लेकर एक ग्राफ बनाया जाय तो यह पूरी तरह से भारतीय राजनीति और उसमें खासकर बिहार के हस्तक्षेप को लेकर बनता बिगड़ता जैसा ग्राफ होगा।
नागार्जुन के चेहरे की तस्वीरों पर ध्यान दीजिए-कभी भिक्षु, कभी किसान, कभी क्रांतिकारी, कभी विदू्रपताओं की लकीरों से खींची गई अनगढ़ तस्वीर, तो कभी सरल सुलभ मुस्कुराता, दमकता हुआ, कभी विस्फारित और चकित आँखों से दुनिया को समझने वाला नन्हा शिशु जैसा। गजब की भंगिमाएँ उसके चेहरे से टपकती हुईं।
उन दिनों बिहार में नक्सलवादी आंदोलन का जोर था। प्रगतिशील लेखक संघ से अलग हटकर हमारे जैसे कुछ युवा मित्र एक नया सांस्कृतिक संगठन बनाने के लिए जगह-जगह से ईंट और गारे इकट्ठा कर रहे थे। हमारा यह नया सांस्कृतिक संगठन संस्कृति की तीसरी धारा को प्रतिष्ठित करने के लिए प्रयासरत था। स्वभाविक रूप से हमारी संबद्धताएँ बिहार के वैसे किसानों और मजदूरों के साथ थीं, जो यहाँ के सामाजिक सामंती जकड़बंदी को समाप्त करने के लिए सशस्त्र भूमि संघर्ष चला रहे थे। सत्ता बदलने के लिए नहीं बल्कि पूरी तरह से व्यवस्था परिवर्त्तन के लिए बिहार ऐसे जनांदोलन के केन्द्र के रूप में विकसित हो रहा था। नागार्जुन ऐसी ही परिवर्त्तनकारी शक्तियों की खोज में बार-बार बिहार की ओर आ रहे थे और हमारे जैसे सामान्य संस्कृतिकर्मी को रचनात्मक ऊर्जा प्रदान करते थे।
एक घटना को रेखांकित करना जरूरी जैसा लग रहा है। पश्चिम बंगाल की कुल्टी में कथाकार संजीव और गौतम सान्याल ने विभिन्न कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के बीच एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया था। नागार्जुन को मुख्य रूप से कविताएँ सुनानी थीं। मंच के सामने ठसाठस भरे मजदूर के बीच नागार्जुन निरंतर कविताएँ पढ़ रहे थे और कई कविताओं की अंतिम पंक्ति के साथ सामने का श्रोता समुदाय समवेत स्वरों में इन्हें दोहराता जाता था। कविताओं का यह सामाजीकरण या सामान्यीकरण एक अद्भुत मिशाल है। इस गोष्ठी में नागार्जुन की कविताओं के बीच एक प्रस्ताव पास किया गया था कि बिहार में संस्कृतिकर्मियों पर हो रहे दमन को बिहार सरकार तुरंत बंद करे और यहाँ की जेलों में बंद पड़े वैसे रंगकर्मी जो संघर्ष के इलाकों में मजदूरों, किसानों के बीच नाटक करते थे को जल्द से जल्द रिहा किया जाए। प्रस्ताव के समर्थन में पूरा जनसमुदाय उठ खड़ा हुआ था और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच नागार्जुन की कविताएँ गूंज रही थीं। नागार्जुन की कविताओं का यह जादुई करिश्मा बिहार के संघर्षो के प्रति व्यापक जनसमर्थन को प्रतिध्वनित कर रहा था।
एक आखिरी तस्वीर। नागार्जुन गंभीर रूप से बीमार थे। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् के तत्कालीन निदेशक कथाकार रामधारी सिंह दिवाकर के साथ दरभंगा स्थित छोटे से मोहल्ले में मिलने हम पहुँचे थे। देह की जर्जर हालत और मैली-कुचैली फटी हुई बनियान पहने हड्डी का ढांचा बिछावन पर किसी तरह सहारा देकर अटकाया हुआ था। जगह-जगह से लोग उनकी चिकित्सा के लिए आर्थिक सहायता भेज रहे थे। बिहार की यह भी एक तस्वीर है। बिहार का एक यह भी चेहरा। आमीन!