नक्शा
–+++–
–+++–
बचपन में नन्हीं नन्हीं हथेलियों से
खेल खेल में जब भी
रोटियाँ बेलने की कोशिश करती
माँ हमेशा हँसते हुए कहती थीं
भारत का नक्शा क्यूँ बना रही…
माँ नहीं रही
पर अब वही नन्हीं हथेलियाँ
इस कदर सक्षम हो चली कि
सारी संवेदनाएं,सारे एहसासों को
एक एक कर शब्दोंं में पिरो
भारत के उसी नक्शे पर उड़ेल रही…
पुच्छल तारा
********
********
कभी कभी ऊब जाती हूँ
अपनी अंतरिक्ष के आकाशगंगा की
एक ही धुरी के चक्र में घूमते घूमते
दूर सुदूर आसमान में बसे
उस अनजान तारे की तरह
जो एक ही दिशा में
आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा करता है
बर्फ, धूल, गैस और ना जाने क्या क्या समेट।
सुबह होते ही
बिखर जाना चारों ओर जगमगाते हुए
और फिर शाम के ढलते ही
समेट लेना हर एक छोर से
अपनी सारी बिखरी रोशनी
और लौट चलना वापस
फिर एक दूसरी सुबह के लिए…
तब
तब याद आता है तुम्हारा
शांत मुस्कुराता सा चेहरा
आँखों में खुशी लिए हुए
जीवन से भरपूर
तुम्हारा यह शांत रहना
ये मुस्कुराने का हुनर
सीखना चाहती हूँ मैं तुमसे….
जानते हो
कभी-कभी सोचती हूँ
अपनी थोड़ी सी जलन
तुम्हें उधार दे दूँ
ताकि एहसास हो सके तुम्हें भी
कि स्वयं में जलना
कितना तकलीफ देह होता है ..
पर जैसे ही तुम मुझे दिखते हो
मैं सारी तपिश,सारी जलन भूल
खो जाती हूँ
तुम्हारे अनकहे स्तब्ध सौम्य मौन में
ठीक उसी तरह जिस तरह खो जाता है
आसमान से गिरता जलता हुआ
कोई एक पुच्छल तारा
पृथ्वी के शांत शीतल गर्भ में ….
सौंदर्य
******
******
सौंदर्य और मूल्य
एक मेकअप बोतल
या एक सैलून-ताजा केश
या एक शानदार पोशाक में
नहीं पाया जाता…
सौंदर्य की चमक
कहीं गहराई से आती है
यह शुद्ध, प्रामाणिक
और असली होती है ….
रचनाकार
********
********
कर्म
सिद्धांतों की कठोरता है
व्यक्तित्व की स्वतंत्रता है
आत्म निर्भरता है।
कर्म
प्रगति की दिशा है
राग-द्वेष की निशा है,
ज्ञान की बुद्धि है
स्वभाव की शुद्धि है।
“अंततः कर्म ही इंसान की रचयिता है”
आर्काइव
*******
*******
कागज़ की कविता, शब्दों की पंक्ति, सदियों से संजोई लटकती रही सालों तक कोने में, किंतु सदैव बांधी रही।
ज़माना गुज़रा, पीछे छोड़ गया, लेकिन ज़हन में बसी वही यादें हैं।
छायी रहीं सरसराती तारों की लालिमा, कागज़ की ओर से बरसी रजत किरणें।
सिमटी रहीं ज़िंदगी की रहस्यमयी कहानियाँ, इंक़लाब की लड़ाई, प्यार की पहली चिठियाँ,
रंगी हुई क़लम, बौछारें रस भरी, आर्काइव की गोद में चिपकी हुई जीवन की कविताएं।
उन कविताओं को अब छूने का समय नहीं,
पर उनकी आत्मा ज़बानी हरदम है। कवि की धड़कन, उसकी आँखों की ज्योति,
सब यहाँ हैं,बस एक कागज़ के टुकड़े पे।
आर्काइव के ख़ज़ाने में संग्रहित हैं
दिलों के उत्साह, विचारों की आमद।
आर्काइव की खिड़की से झांकता है
वक़्त का तेवर।
जब अर्काइव के दरवाजे खुलते हैं,
मेरी आत्मा का संगीत गुनगुनाता है
वहां रचे गए शब्दों की एक सींच का जगमगाता सागर है,
जो विचारों को अनन्तता की ओर ले जाता है।
वृक्षों की पंक्तियाँ यहाँ उभरती हैं
पुराने समयों की यादें सहेजती हैं
सारे इतिहास यहीं संग्रहित होते हैं
जैसे एक जीवित पुस्तकालय ।
विचारों की निष्पादनशीलता की धड़कनें
विचारों की गहराईयों में समाई
अर्काइव एक अविराम का स्थल है
जहाँ समय का मापन खो जाता है।
जब अर्काइव पर आँखें जमी होती हैं मेरी रूह विचारों की सम्राज्ञी होती है
तब एक नई कविता अपनी पंक्तियों में जीवित होने लगती है।
मैं नहीं जानती कि मैं यहाँ बसती हूँ
या कविताएं यहाँ बसती हैं।
धनबाद
+++++
इस शहर को मैंने
बहुत करीब से देखा है
जीवन का प्रतिबिंब सा
व्यस्त,परास्त
उमसता,झुलसता
अनवरत जलता
स्वयं में सुलगता ….
बाहर से शांत
अंदर से
लुटापिटा
सिसकता
छेनी हथौड़ी की मार से
निर्जीव पहाड़ में
परिवर्तित होता….
पारसनाथ की
चोटियों से फिसल कर
बराकर और दामोदर के
जल में बिखरा
पांडेश्वर के घंटों में गूंजता
समेटे है कई अनगिनत इतिहास ….
इस शहर को मैंने बहुत करीब से देखा है
स्वयं में सुलगता
धुएं का यह शहर धनबाद..
शिकार
*********
*********
“मतिभ्रम”
मतिभ्रम अर्थात हैलुसिनेशन
एक अनियन्त्रित मिथ्याभास।
अनुभूति मिथ्या होने पर भी
वास्तविक जैसा प्रतीत होना।
एक ऐसी मानसिक अवस्था
जिसमें विचार अव्यवस्थित,
व्यवहार अपरिचित ।
बाहरी उत्तेजना की अनुपस्थिति में
एक असत्य धारणा…….
“भ्रम”
भ्रम अर्थात ईल्युशन
मस्तिष्क की एक नियन्त्रित काल्पनिक अवस्था
स्वनिर्मित सोच का एक स्वरूप
मतलब बाहरी उत्तेजना की उपस्थिति में
एक धारणा
एक ऐसी मानसिक अवस्था
जिसमें विचार व्यवस्थित,
व्यवहार परिचित……
भ्रम एक सामाजिक मानसिक विद्रूपता
और
मतिभ्रम आंतरिक मानसिक जटिलता।
भ्रम एवं मतिभ्रम
दोनो ही अवस्था में
शिकार होता है
मनुष्य का समूचा अस्तित्व ….
————–
नीता अनामिका
दमदम,मोतीझील
कोलकाता