1.
पास नदी के जो जाते हैं
प्यासे ही वापस आते हैं
गूलर ख़ुश जब दुनिया खाए
गिरकर सब फल सड़ जाते हैं
अच्छे लगते हैं इक जैसे
पर ये रस्ते भरमाते हैं
ताल पटा कूड़े-करकट से
तो भव्य भवन लहराते हैं
लेकर निकले हैं कंदीलें
मतलब साए गहराते हैं
हँसता है पोस्टर में ज़ालिम
पीड़ित जन अश्क़ बहाते हैं
ढाल उन्हें देते नग़्मों में
ग़म जो जग में हम पाते हैं
फ़र्क़ न पड़ता चलते जाते
राहों में रोड़े आते हैं
दो रोज़ न चलते बारिश में
ऐसे तो बिकते छाते हैं
2.
दूर जाती एक दुनिया है
याद आती शाम, पुलिया है
कल न धन था और दुखिया था
आज धन है और दुखिया है
चंद ख़त हैं चंद तस्वीरें
और विष की एक पुड़िया है
ज़ंग खाये बक्स में पाया
एक गुड्डा एक गुड़िया है
इक अकेला रह गया है जब
एक घर का एक मुखिया है
3.
कहें भी क्या कि ये ख़ैरात कम है
लगी जो आग है बरसात कम है
न बोलेगा कभी सौग़ात कम है
बशर जो जानता औक़ात कम है
हुआ है ज्ञान,पद,पण से न पूरा
अगर इन्सान में जज़्बात कम है
कई बातें उठें दिल की तहों से
किसी से हो रही जब बात कम है
कभी दिन के बिना पूरा न होता
मुहब्बत में हमेशा रात कम है
खड़े हैं पेड़ ऊँचे सरज़मीं पर
मगर ऐसा न झंझावात कम है
नहीं है छोड़ना मैदान फिर भी
विजय की आस में क्या मात कम है
चले आते मुझे मूरख बनाने
कि इसके पास मालूमात कम है
किसी इक लात में खल की दवा है
सदा खल को वही इक लात कम है
4.
इक ख़ुशी की लहर इधर भी हो
प्यार की जब नज़र इधर भी हो
चाँद के नाम हैं पहर चारों
वो किसी भी पहर इधर भी हो
इक नया आफ़ताब चमका है
एक ऐसी सहर इधर भी हो
आ गया है विकास जीवन में
कह रहा इक बशर इधर भी हो
जो उतरती पहाड़ से हर-हर
उस नदी में लहर इधर भी हो
पेड़ दोनों तरफ़ भरे-पूरे
एक सुन्दर डगर इधर भी हो
ख़त्म हो कुछ प्रभाव सूखे का
मानसूनी असर इधर भी हो
5.
ख़ुदा जाने ख़ुदा की क्या रज़ा थी
वगरना ज़िंदगी की उम्र क्या थी
नहीं है अब मुहब्बत की मरीज़ा
मरीज़ा की मुहब्बत ही दवा थी
बहुत ही दूर पड़ता मयकदा था
गली बदनाम छोटा रास्ता थी
दुआ दी पार बेड़ा हो गया कुछ
सुना उसने नहीं जिसको सदा थी
कुछी के वास्ते दुनिया मज़े की
नहीं तो यातना है यातना थी
बहुत थे रहनुमा यूँ कारवां के
किसी में रहनुमाई थी न साथी
यही हर शाम होंठों से निकलता
कभी ये शाम कितनी ख़ुशनुमा थी
6.
तमस-जाल को डाल चारा दिया
लपक लो, लपक लो सितारा दिया
दग़ा की वही जब दुबारा दिया
दग़ा को भुलाकर सहारा दिया
सदा यार ने दर्द न्यारा दिया
दिया ज़ख़्म जब भी करारा दिया
यही है सुहानी बड़ी ज़िंदगी
कि बरबादियों का नज़ारा दिया
सभी ग़र्क़ करते रहे या नहीं
भले रेत का ही किनारा दिया
लिये फ़ायदे जो रहे वास्तविक
निरे वायदों का पिटारा दिया
दिखा एक सपना बनोगे धनी
रहो जागते एक नारा दिया
7.
ढालना जाम है कहाँ हो तुम
ढल रही शाम है कहाँ हो तुम
तुम घटा, तुम नदी, तुम्हीं शबनम
प्यास उद्दाम है कहाँ हो तुम
इश्क़-आग़ाज़ है कुछी पीछे
ये न अंज़ाम है कहाँ हो तुम
प्यार का नाम था कभी हमसे
प्यार बदनाम है कहाँ हो तुम
ख़ास मेरे लिए बहुत है वो
प्रश्न जो आम है कहाँ हो तुम
भाग्य से प्राप्त तुम हुए लेकिन
भाग्य जब वाम है कहाँ हो तुम
तुम सभी से क़रीबतर मेरे
राम है, श्याम है कहाँ हो तुम
8.
ऐसा अक्सर कर लेते हैं
दिल को पत्थर कर लेते हैं
जब आ जाता बड़बोला मुँह
लब नीचा स्वर कर लेते हैं
ख़ाली मिलता है जो पी बिन
जी में ग़म घर कर लेते हैं
निशि आती तो हम पथगामी
पथ को बिस्तर कर लेते हैं
साँसें हैं भारी-भारी, पर
अंदर-बाहर कर लेते हैं
पड़ता जब उल्फ़त का सूखा
आँखें झर-झर कर लेते हैं
पग-पग फ़िक्रें करते-करते
सौदा सर पर कर लेते हैं
इतना है परिवर्तनकामी
कोशिश सुन्दर कर लेते हैं
झाड़ू अफ़सर भी हैं देते
मेहतर बेहतर कर लेते हैं
9.
जाम से पहले छलकते भी रहे
बाद पीने के लुढ़कते भी रहे
दश्त की भी ख़ाक छानी कम नहीं
और गलियों में भटकते भी रहे
कम न जिस्मों से शिकायत भी रही
और जिस्मों से चिपकते भी रहे
थे बिदकते हाथ के स्पर्श से
आँख आगे वो मटकते भी रहे
गुल मसलते भी रहे अभिमान में
शान में शीशे पटकते भी रहे
दाग़ भी गिनते रहे महताब के
नूर से जिसके चमकते भी रहे
तितलियाँ भी मस्त मैं ही दर्द में
मौज में पंछी चहकते भी रहे
ज़ब्त भी जारी रहा जज़्बात पर
अश्क़ बेक़ाबू टपकते भी रहे
अब न जायेंगे कभी उनकी गली
जब बुलाया तो धमकते भी रहे
10.
वक़्त था वो जब मचलते हम रहे
क्या शमा रौशन कि जलते हम रहे
दिल हमारा एकदम-से चाँद तक
बल्लियों ऊपर उछलते हम रहे
रास्ता क्या अब दिशा ही बंद है
रोज़ जिस जानिब निकलते हम रहे
जीत लेने के लिए दिल यार का
हारकर हिकमत बदलते हम रहे
ख़ून पीकर भी हमारा ख़ुश नहीं
अश्क़ से जिनके पिघलते हम रहे
प्यार का जो मार्ग हमने चुन लिया
मंज़िलों को छोड़ चलते हम रहे
बालपन का दौर था वो जा चुका
झुनझुनों से जब बहलते हम रहे
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केशव शरण
जन्म 23-08-1960 , वाराणसी में।
प्रकाशित कृतियाँ–
तालाब के पानी में लड़की (कविता संग्रह)
जिधर खुला व्योम होता है (कविता संग्रह)
दर्द के खेत में (ग़ज़ल संग्रह)
कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह)
एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह)
दूरी मिट गयी (कविता संग्रह)
क़दम-क़दम (चुनी हुई कविताएं)
न संगीत न फूल (कविता संग्रह)
गगन नीला धरा धानी नहीं है (ग़ज़ल संग्रह)
कहाँ अच्छे हमारे दिन (ग़ज़ल संग्रह)
बात करते हैं (ग़ज़ल संग्रह)
संपर्क-एस2/564 सिकरौल
वाराणसी 221002
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