1. कविता की कीमत
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सत्य मानिये
धरालोक में
कविता ही है
जो जग के
कल्याण के लिए ही
जनती है
जोर- जुल्म के
महिषासुर को
निश्चित ही वह
दुर्गा बन करके
हनती है
कविता ही है
जो अन्तस् की
मरुस्थली में
मनुष्यता का
मंजुल मधुवन
विकसाती है
रिश्तों के
मुरझाये हुए
चमन में भी
राहत चाहत की
बहार बुलवाती है
कविता ही है
जो यथार्थता के ही
बोल बोलती है
झूठ फरेब
जालसाजी की
जमकर
पोल खोलती है
आशाओं के पौधे
सब दिन सेती है
संघर्षों के लिए शक्ति
नित देती है
कविता ही है
जो दुखियों
असहायों से सच
रखती है
मजबूत मुहब्बत
कोई भी तो
बतलाये
कौन आंक
सकता है आखिर
इस दुनिया में
सही सही
कविता की कीमत
कविता ही है
जो जीने का
आसानी से
असली मंत्र
सिखा देती हैं
अति निष्ठुर
विकराल काल
तक को भी बेशक
निज औकात
दिखा देती है
कविता ही है
जो सचमुच में
भय का भूत
भगाती है
चेतनता की
महा शक्ति का
सूरज नया उगाती है
पापों के सांपों के
शीश कुचलने के हित
देती ताकत पूरी है
जीवन युद्ध
जीतने खातिर
कविता बहुत जरूरी है |
2. सत्ता का ताज
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नफरतों की
नागफनियाॅं
उगाकर
बवालों के
बबूलों के
जंगल
बढ़ाकर
अहंकार के
अग्निबाण
बरसाकर
भय का भूत
चढाकर
राहतों के
मजबूत किले
ढहाकर
भेदभाव का
दरियाव उमड़ाकर
प्रतिपक्ष की
पुरी पर
सेंधमारी का
अभियान चलाकर
जनतंत्र का
जनाजा निकाल कर
और
गिराकर
इन्सानियत पर
अप्रत्याशित
अनर्थ की गाज
कोई भी सत्ताधीश
कर नहीं सकता
सबके दिलों में
अधिक दिनों तक राज
उतरता जरूर है
बहुत जल्दी ही
उसके शीश से
सत्ता का ताज
3. महाविनाश का मंजर
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सब दिन ही
यह ध्यान रहे कि
कोई देवता नहीं
कोई फरिश्ता नहीं
अपितु
इस खूबसूरत
दुनिया को
बचा सकता है
मानव ही
सजा सकता है
मानव ही
बढा सकता है
मानव ही
उत्कर्ष के उत्तुंग
शिखर पर
पहुँचा सकता है
मानव ही
किन्तु वही मानव
संवेदना से
रहित होकर
निकृष्ट स्वार्थ लिप्सा से
ग्रसित होकर
बना सकता है
सद्भाव की
उर्वरा भूमि को
बंजर
भोंक सकता है
मानवता के
पेट में खंजर
और
दिखा सकता है
महाविनाश का मंजर |
4. ध्यातव्य है यह
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सदा ही
ध्यातव्य है यह
कि कोई भी
बड़ी से बड़ी
सियासी हस्ती
कर नहीं सकती
सम्पूर्ण जनता का
समानांतर रूप से
सही सही भला
घोंटते हुए
लोकतंत्र का गला
वह रख नहीं सकती
बहुत लम्बे समय तक
कायम
अपना जलजला
निस्सन्देह
उसे टिकाये नहीं
रख सकती
उसकी व्यर्थ की
जुमलेबाजी की कला
———
जवाहरलाल जलज, बाँदा, उत्तरप्रदेश।