भारत का दृश्य मीडिया एक अर्से से चिल्ला-चिल्लाकर रूस द्वारा परमाणु / नाभिकीय हमले और तृतीय विश्वयुद्ध की आसन्न संभावना की घोषणा कर रहा है। स्वर में ऐसी उत्साहपूर्ण सनसनी जैसे कोई शानदार तमाशा शुरू होने जा रहा हो। हो सकता है, भावनाशून्य सनसनी वाले स्वर की आदत पड़ गई हो।
क्रेमलिन पर ड्रोन हमले को रूस यूक्रेन का पूतिन को मारने का असफल प्रयास बता रहा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की का चेहरा कीव पर ऑल आउट हमले से फ़क़। उनके चेहरे की रंगत से उनकी बात सच प्रतीत होती है—शस्त्रास्त्रों की कमी के बावजूद यूक्रेन अपनी रक्षा में अपनी ज़मीन पर जैसे-तैसे लड़ रहा है, क्रेमलिन पर हमले की उसकी हिम्मत! कोई आश्चर्य नही होगा यदि आगे के भीषण हमले के लिए आधार बनाने हेतु रूस ने स्वयं ही यह नाटक रचा हो। पोलैंड पर हमला कर युद्ध को विश्वयुद्ध बनाने के ठीक पहले हिटलर ने भी जर्मन सीमा पर पोलैंड द्वारा हमले का ऐसा ही नाटक रचा था जिसमें एक जर्मन बंदी की जान लेकर उसे पोलैंड की क्रूरता के प्रमाण के रूप में विश्व-मीडिया के सामने पेश किया गया था।
यूक्रेन युद्ध कई अर्थों में अनन्य है। इसके पहले के हर युद्ध के कुछ वाजिब /ग़ैरवाजिब कारण रहे हैं। ग़ैरवाजिब कारण भी बुद्धिगम्य रहे हैं। इतिहास के अब तक के सबसे भीषण द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज तो प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी के समर्पण की परिस्थितियों और उस पर थोपी गई वर्साई की दमनकारी संधि में ही निहित थे। और प्रथम विश्वयुद्ध का प्रत्यक्ष कारण तो बेहद नाटकीय था—आस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के प्रांत बोस्निया की राजधानी सराजेवो के दौरे पर गए साम्राज्य के युवराज (आर्कड्यूक फ़्रैंज़ फ़र्डिनैंड) और उनकी पत्नी की दो सर्बियन क्रांतिकारियों द्वारा हत्या के बाद उनके द्वारा निगले गए पोटैशियम साइनाइड की टिकियों के नक़ली निकलने से दोनों का जीवित पकड़ा जाना।
यूक्रेन के वर्तमान युद्ध का कारण कुछ समझ में आता है तो वह है 70 वर्षीय व्लादिमिर पुतिन (जन्म: 7 अक्टूबर 1952) की माचोमैन की सायास निर्मित छवि को बनाये रखने और 2024 में राष्ट्रपति का छ: वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर दो बार और निरंकुश राष्ट्रपति बनने की वैयक्तिक महत्वाकांक्षा, जो उन्हें 2036 तक रूस का कर्ता-धर्ता बनाए रख सकती है। और जैसा कि अक्सर होता है, पूतिन को यूक्रेन में एक विभीषण भी मिल गया है जिसका नाम है विक्टर यानुकोव्य्च। वे 2010 से 2013 तक यूक्रेन के राष्ट्रपति रह चुके हैं और उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी पूतिन की अनुवर्ती है।
पूतिन उस देश के राष्ट्रपति हैं जिसके पूर्ववर्ती सोवियत यूनियन ने इसी तरह (अकारण) किए गए हमले से हंगरी (1956) चेकोस्लोवाकिया (1968) और पोलैंड (1980-82) को दबाकर अपने चंगुल में क़ायम रखा था। और तो और, 1978 में अफ़ग़ानिस्तान में स्थापित कठपुतली साम्यवादी सरकार के विरुद्ध विद्रोह होने पर अफ़ग़ानिस्तान पर हमला बोल दिया था और 1979 से 1989 तक (दस साल) चले लम्बे युद्ध में बुरी तरह पराजित होकर लौटा था। अफ़ग़ानिस्तान के मुजाहिदीन की मदद में दुनिया भर से जुटे मुस्लिम आतंकियों, पाकिस्तान के माध्यम से अमेरिका एवं सऊदी अरब द्वारा पहुँचाई गई विपुल आर्थिक सहायता तथा अफ़ग़ानी मुजाहिदीन एवं पाकिस्तानी सेना द्वारा अमेरिकी सैन्य संसाधनों से लड़े गए अफ़ग़ानिस्तान युद्ध में सोवियत रूस की पराजय ही 1991 में उसके टूटकर बिखरने का प्रमुख और अंतिम कारण बनी—कफ़न की आख़िरी कील।
सोवियत रूस का यही इतिहास है जो व्लादिमिर पूतिन के रूस को विरासत में मिला है। और पूतिन उसके एकछत्र वाहक हैं।
व्लादिमिर व्लादिमिरोविच पूतिन हैं क्या चीज़?
पेशे से जासूस। 1975 में सोवियत रूस की कुख्यात ख़ुफ़िया संस्था के. जी. बी. में शामिल हुए और 20 अगस्त 1991 को उससे इस्तीफ़ा दिया। सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बचेव के विरुद्ध क्रांति-प्रयास का दूसरा दिन था वह। पूतिन ने एक सफल और दूरदर्शी दुनियादार की तरह तय कर लिया कि देश के उस अहम मोड़ पर उन्हें कौन-सी राह पकड़नी है। यहीं से उनका राजनीति में प्रवेश होता है। [1999 के एक बयान में पूतिन ने साम्यवाद के बारे में कहा था—साम्यवाद एक अंधी गली है जो सभ्यताओं की मुख्यधारा से बहुत दूर है।]
गोर्बचेव के बाद बने रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्त्सिन के पूतिन बहुत क़रीबी बन गए। 9 अगस्त 1999 को येल्त्सिन ने इन्हें रूसी संघ सरकार का कार्यकारी प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। 31 दिसम्बर 1999 को जब बीमार येल्त्सिन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया, कार्यकारी प्रधानमंत्री होने के नाते पूतिन कार्यकारी राष्ट्रपति बन गए।
कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में पूतिन ने 31 दिसम्बर 1999 को जिस पहले आदेश पर दस्तख़त किया उसने भूतपूर्व राष्ट्रपतियों और उनके सम्बंधियों को आपराधिक मामलों की जाँच से मुक्त कर दिया। उसी के फलस्वरूप येल्त्सिन के परिजनों के ख़िलाफ़ लगा मैबेटेक्स मामले में रिश्वत का आरोप रद्द कर दिया गया। 30 अगस्त 2000 को एक और आपराधिक जाँच का मामला बंद कर दिया गया जिसमें संत पीटर्सबर्ग (लेलिनग्राद) नगर सरकार के सदस्य के रूप में पूतिन स्वयं संदेह के घेरे में थे। जब मरीना साल्वे ने 1992 में हुए धातु-निर्यात का एक अन्य मामला उठाया, जिसमें पूतिन के विरुद्ध भ्रष्टाचार का आरोप था और जो इम्यूनिटी की परिधि में नहीं आता था, तो मरीना को चुप ही नहीं कराया गया, उन्हें संत पीटर्सवर्ग छोड़ने को मजबूर कर दिया गया।
येल्त्सिन के इस्तीफ़े के बाद 26 मार्च 2000 को राष्ट्रपति का चुनाव सम्पन्न हुआ जिसमें पूतिन जीत गए।
इसके बाद तो पूतिन का राजनीतिक करिअर लगातार बुलंदी पर रहा–
राष्ट्रपति के रूप में पहला कार्यकाल—2000–2004.
राष्ट्रपति के रूप में दूसरा कार्यकाल—2004–2008.
प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल—2008—2012.
राष्ट्रपति के रूप में तीसरा कार्यकाल—2012–2018. (छ: वर्ष कर दिया गया)
राष्ट्रपति के रूप में संप्रति चौथा कार्यकाल—2018-2024.
3 जुलाई 2020 को पूतिन की पहल पर संविधान में किए गए एक संशोधन से उन्हें राष्ट्रपति के अगले दो चुनावों में पुन: खड़े होने को वैधता प्रदान कर दी गई। यदि वे इन दोनों चुनावों में जीत जाते हैं तो 2036 तक राष्ट्रपति बने रहेंगे। इससे पूतिन का कार्यकाल स्तालिन के कार्यकाल से भी लम्बा खिंच जाएगा।
राजनीतिक रूप से आज पूतिन दुनिया के दो सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्तियों में से एक हैं, दूसरे हैं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग। पूतिन और शी जिनपिंग दोनों एक ही कैंड़े के आदमी हैं। एक स्तालिन के तो दूसरे माओ के नए, पूँजीवादी अवतार।
यूक्रेन संकट: क्या और क्यों?
1991 में सोवियत संघ के भंग होने तक यूक्रेन उसका एक यूरोपीय घटक था। 1991 के ठीक बाद रूस और यूक्रेन के संबन्ध दो क़रीबी राष्ट्रों के थे। 1994 में सम्पन्न ‘नाभिकीय अस्त्र-संवर्धन-निवारक संधि’ (Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons) में यूक्रेन एक ग़ैर-नाभिकीय राष्ट्र की हैसियत से शामिल हुआ। यूक्रेन में मौजूद भूतपूर्व सोवियत संघ के नाभिकीय अस्त्रों को उसने रूस को सौंप दिया और उन्हें नष्ट कर दिया गया। बदले में रूस, ब्रिटेन और अमेरिका ने यूक्रेन की भूक्षेत्रीय अखंडता और राजनीतिक संप्रभुता को मान्यता प्रदान की। यही नहीं, 1999 में ओ. एस. सी. ई. द्वारा जारी यूरोपीय सुरक्षा घोषणापत्र में रूस भी एक सहभागी था जिसमें प्रत्येक सहभागी राष्ट्र के द्वारा सुरक्षा-संधियों सहित अपने सुरक्षा तंत्र का चयन करने और बदलने के अंतर्निहित अधिकार की पुष्टि की गई। 2008 में यूक्रेन और भूतपूर्व सोवियत संघ के एक अन्य घटक देश ज्यॉर्जिया ने बुचारेस्ट शिखर सम्मेलन में नाटो में शामिल होने की पहल की जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति ज्यॉर्ज डब्ल्यू बुश के समर्थन के बावजूद नाटो देशों के बहुमत ने अस्वीकार कर दिया, ये देश फ़िलहाल रूस को अप्रसन्न नहीं करना चाहते थे। किंतु ज्यॉर्जिया और यूक्रेन दोनों देशों को आश्वासन भी दिया गया कि इनके नाटो में शामिल होने पर स्थाई प्रतिबंध नहीं है और भविष्य में उपयुक्त समय आने पर इस पर विचार हो सकता है। स्वाभाविक था कि पूतिन ने दोनों देशों द्वारा नाटो-सदस्यता के लिए किए गई पहल का आक्रामक विरोध किया।
2010 में रूस-समर्थक विक्टर यानुकोव्य्च यूक्रेन के राष्ट्रपति बन गए। उन्हीं के कार्यकाल में यूक्रेन व रूस के बीच तनाव की शुरुआत हुई। 2013 में यूक्रेन की संसद ने प्रचंड बहुमत से ‘यूक्रेन-यूरोपियन यूनियन सहयोग समझौते’ के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। किंतु विक्टर ने रूस के दबाव में इस समझौते पर दस्तख़त करने से मना कर दिया और रूस के साथ निकटतर सम्बंध बनाने का विकल्प चुना। उनके निर्णय के विरुद्ध देश भर में शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन हुए जो कई महीनों तक चलते रहे। इस आंदोलन को प्रतिष्ठा-क्रांति (Revolution of Dignity) का नाम दिया गया। अंतत: 21 फ़रवरी 2014 को राष्ट्रपति विक्टर ने संसद के नेताओं से एक समझौता किया जिसमें शीघ्र राष्ट्रपति का चुनाव कराने पर सहमति हुई। अगले दिन महाभियोग मत के भय से विक्टर राजधानी कीव से भाग खड़े हुए। उस मत के तहत उन्हें राष्ट्रपति के समस्त अधिकारों से वंचित कर दिया गया। 27 फ़रवरी को एक अंतरिम सरकार गठित हुई और राष्ट्रपति-चुनाव की समय-सारिणी निर्धारित हो गई। अगले दिन 28 फ़रवरी 2014 को कीव से भागे विक्टर रूस में प्रकट हो गए और एक संवादादाता सम्मेलन में घोषित किया कि वे अब भी यूक्रेन के कार्यकारी राष्ट्रपति हैं। और यही वह दिन था जब रूस यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप पर खुले सैन्य आक्रमण की कार्रवाई शुरू कर रहा था।
[2014 में बाक़ायदे चुनाव हुआ जिसमें पेट्रो पोरोशेन्को राष्ट्रपति चुने गये। उनका 5 साल का कार्यकाल ख़त्म हुआ तो 2019 में चुनाव में उन्हें हराकर ज़ेलेंस्की राष्ट्रपति बने। उन्होंने भ्रष्टाचार-मुक्त, स्वच्छ प्रशासन के लक्ष्य से कई प्रतिष्ठान-विरोधी क़दम उठाये जिन्होंने उनकी लोकप्रियता में इज़ाफा किया।]
हुआ यह था कि प्रतिष्ठा-क्रांति की प्रतिक्रिया में यूक्रेन के रूस से लगे कुछ पूर्वी हिस्सों के रूसी भाषाभाषियों में भी अशांति ने सर उठा लिया था। रूसी सैनिक सादे वेश में क्रीमिया और डोनबास में घुस आए थे जो अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा यूक्रेन के क्षेत्र माने जाते थे। इन सैनिकों ने सामरिक महत्व के स्थानों तथा आधारभूत संरचना पर क़ब्ज़ा कर लिया। रूस ने एक नियंत्रित और निंदित जनमत-संग्रह के आधार पर क्रीमिया को अपने क्षेत्र में मिलाकर उसे संघ-शासित दो गणतंत्रों—क्रीमिया और सेबस्तपोल—में अंतरित कर दिया।
डोनबास में रूस-समर्थक प्रदर्शनों के चलते यूक्रेनी सेना और रूस से सहायता-प्राप्त प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष हुआ जिसका अंत अप्रैल 2014 में स्वघोषित डोनेट्स्क और लुहान्स्क गणतंत्रों की स्थापना में हुआ। अगस्त 2014 में बिना निशान की सैन्य गाड़ियों में रूसी सैनिक रूसी सीमा पारकर डोनेट्स्क में घुस आये जिसके फलस्वरूप दोनों देशों में अघोषित युद्ध शुरू हो गया। 2015 में दोनों के बीच एक समझौता हुआ जिसे मिन्स्क-II के नाम से जाना जाता है। किंतु कई बिंदुओं पर मतभेद के चलते यह समझौता पूरी तरह कभी लागू नहीं हो सका। हुआ सिर्फ़ इतना कि 2019 में यूक्रेन ने अपने 7% भूक्षेत्र को अस्थाई तौर पर रूस-अधिकृत मान लिया और रूस ने यूक्रेन में अपनी सेनाओं की उपस्थिति स्वीकार कर ली।
2021 से ही रूस ने यूक्रेन की सीमा पर विशाल सैन्य जमावड़ा शुरू कर दिया। 2022 की शुरुआत में इस जमावड़े की शक्ति और आकार में और वृद्धि हुई। नाटो ने इसे यूक्रेन पर आक्रमण की योजना क़रार कर दिया जिसे रूस ने नकार दिया। पूतिन ने उल्टे आरोप लगाया कि नाटो का विस्तार उनके देश के लिए ख़तरा है और माँग की कि यूक्रेन को हमेशा के लिए नाटो में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया जाय। उन्होंने रूस का अतिवादी विचार भी व्यक्त कर दिया कि यूक्रेन की निर्मिति सोवियत रूस की गम्भीर त्रुटि थी और यूक्रेन को स्वतंत्र अस्तित्व का अधिकार नहीं है। 21 फरवरी 2022 को रूस ने डोनबास इलाक़े में स्वघोषित दो पृथक् राज्यों– डोनेट्स्क और लुहान्स्क–को आधिकारिक मान्यता प्रदान कर दी और उनके भूक्षेत्रों में खुले तौर पर अपनी सेनाएँ भेज दीं। तीन दिन बाद, 24 फ़रवरी को 2022 को रूसी सेना ने यूक्रेन पर सीधा और खुला हमला कर दिया। लगता था, हफ़्ते-दस दिन में या तो यूक्रेन दुनिया के नक़्शे से ग़ायब हो जाएगा या उसका आकार छोटा कर वहाँ रूस की कठपुतली सरकार क़ायम कर दी जाएगी।
उसके बाद का घटित—पूरे देश की संप्रभुता को रौंदकर, उसके एक-एक शहरों और उनकी आधारभूत संरचना के ठिकानों का विध्वंस, नागरिकों और उनके आवासों तथा अन्य सुविधाओं पर बमबारी व रॉकेट तथा मिसाइल से लगातार हमले–हमारे सामने है। युद्ध शुरू हुए एक साल दो महीने बीत चुके हैं। यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का अंत तक लड़ने का फ़ौलादी संकल्प भी हमारे सामने है। रूस, रूस की कम्पनियों और रूस के नागरिकों पर विश्व-समुदाय द्वारा लगाए गए सैंक्शन भी हमारे सामने हैं और पूतिन की अदम्य महत्वाकांक्षा से टकराकर उनकी लक्ष्य-प्राप्ति की असफलता का परिदृश्य भी। युद्ध के तृतीय विश्वयुद्ध का रूप लेने की उभयपक्षी धमकियाँ भी। वार्ता पर वार्ता और उनकी असफलता भी।
आगे क्या होगा, भविष्य के गर्भ में है। इतना तो निश्चित है कि पूतिन को ज़ेलेंस्की और यूक्रेनी जनता की आत्महंता दृढ़ता का सही आकलन नहीं था। फ़िलहाल 2036 तक रूसी संघ का निरंकुश राष्ट्रपति बने रहने का पूतिन का स्वप्न अनेक प्रश्नचिह्नों से विदीर्ण होता नज़र आ रहा है।
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पूर्व भारतीय राजस्व अधिकारी (IRS)