By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept

Lahak Digital

News for nation

  • Home
  • Lahak Patrika
  • Contact
  • Account
  • Politics
  • Literature
  • International
  • Media
Search
  • Advertise
© 2023 Lahak Digital | Designed By DGTroX Media
Reading: ललन चतुर्वेदी की कविताएं
Share
Sign In
0

No products in the cart.

Notification Show More
Latest News
अजित कुमार राय की कविताएं
Literature
कन्नड़ संस्कृति की गरिमा विदेशों में – “कन्नड़ कहले” कार्यक्रम!!
Entertainment
*दिल, दोस्ती और फाइनेंस: डिजिटल स्क्रीन पर दोस्ती और सपनों की कहानी*
Entertainment
मिनिएचर्स ड्रामा और फोर ब्रदर्स फिल्म्स प्रस्तुत करते हैं दिल दोस्ती फाइनेंस
Entertainment
मंडला मर्डर्स समीक्षा: गजब का थ्रिलर और शरत सोनू का दमदार अभिनय
Entertainment
Aa

Lahak Digital

News for nation

0
Aa
  • Literature
  • Business
  • Politics
  • Entertainment
  • Science
  • Technology
  • International News
  • Media
Search
Have an existing account? Sign In
Follow US
  • Advertise
© 2022 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
Lahak Digital > Blog > Literature > ललन चतुर्वेदी की कविताएं
Literature

ललन चतुर्वेदी की कविताएं

admin
Last updated: 2024/01/08 at 2:54 AM
admin
Share
13 Min Read
SHARE

मैं लंबी कविताएं नहीं लिख सकता

मैं छोटी- छोटी चीजों से घिरा हुआ हूँ
मेरे आसपास छोटे – छोटे लोग रहते हैं
उन लोगों की दुनिया बहुत छोटी है
उनके लिए छोटी- छोटी समस्याएं भी बहुत बड़ी हैं
वे विज्ञान, अध्यात्म, दर्शन,योग आदि की बात नहीं करते
शेयर बाजार की चर्चा तो वे कर भी नहीं सकते
वे समय पर जगने के लिए घड़ी में अलार्म लगाने वाले लोग नहीं हैं
वे सूरज की गति से समय को मापने वाले लोग हैं
वे पेड़ों की छाया में सुस्ताने वाले लोग हैं
किसी ठेले पर खड़े-खड़े चाय-बिस्किट से हलक को तृप्त करने वाले लोग हैं

Contents
मैं लंबी कविताएं नहीं लिख सकतामेन्यू कार्ड टेबल के कोने पर उदास पड़ा थाजूता का आत्मकथ्यपिछली रोटी******** बस पड़ाव पर********* फूल की मौत पर***** दो शब्द***** चाय ठंडी हो जाएगीमैं भी गिरा हुआ तो नहीं ?पिता अचानक आ जाते हैं******* काले गोरे का भेद नहीं है!

हर सुबह एक चौराहे पर टोकरी-कुदाल लेकर वे खड़े हो जाते हैं
धूप के चढ़ते ही उनके चेहरे पर छाने लगती है उदासी
कुछ को काम मिलता है और कुछ
भारी कदमों से लौट जाते हैं अपनी झोंपड़ी की ओर
उन्हें दोपहर के पहले घर लौटते हुए देखना
हमारे समय की खौफनाक त्रासदी है

उनमें से कुछ शाम में गीत गाते हुए लौटते हैं
बाजार से आटा- दाल और अपने बच्चों के लिए पकौड़े लेकर
मैं ठिठक कर उनके गीत सुनना चाहता हूँ
मेरे लिए यह सबसे बड़ा म्युजिक कंसर्ट है कि
आज उनके घर में चूल्हा जल सकेगा

रोज ऐसे दृश्यों से दो-चार होते हुए
मेरे सामने ऐसा कोई नायक उपस्थित नहीं है
जिसकी गाथा लिखी जाए
इन छोटे लोगों का दुःख भी कहाँ ठीक से अंकित कर पाता हूँ
बस, संक्षेप में उनका हालचाल आपतक पहुँचाना चाहता हूँ ।

मेन्यू कार्ड टेबल के कोने पर उदास पड़ा था

(बीस वर्ष पूर्व का एक दृश्य जो आँखों से विदा नहीं ले रहा है।)

जब लंबे समय तक नोकिया 1100 मोबाइल पर बात करते-करते
मिलने की इच्छा हो गई बर्दाश्त से बाहर
और उस फोन में वीडियो कॉल की सुविधा नहीं थी
कि चंद मिनटों के लिए हुआ जाये आमने-सामने
ह्वाट्सएप वगैरह भी लांच नहीं हुआ था
वे संदेशों के चवन्नी भर के स्क्रीन पर तैरने के दिन थे

दोनों ने तय किया शहर के किसी स्वीट्स हाउस में मिलना
अनजान नज़रों के बीच यह पहली मुलाकात
उत्तेजना और रोमांच से भरपूर थी

पहनावे के माध्यम से पहचाने जाने की थी शर्त
गुलाबी सलवार सूट पर हरे रंग का दुपट्टा –
लड़की ने यही पहनावा बतलाया था
लड़के के पास एकमात्र नीली जींस थी
उसने सिर पर धारण कर लिया काले रंग का कैप

दोनों देहात से थे और शहर कौतूहल से भरा था उनके लिए
पहली मुलाक़ात को देना चाहते थे खूब लंबा समय
विडंबना यह कि दोनों चाय- कॉफी के तलबगार नहीं थे
नहीं ले सकते थे नजाकत से चुस्कियाँ
इस बीच बैरा मैन्यू कार्ड रख गया था
लड़के कभी-कभी तिरछी आँखों से उसे देख लेता था

दोनों एक-दूसरे को निहार रहे थे
केवल आँखें बोल रही थी,होंठ खुल नहीं पा रहे थे
इस बीच कितने प्रेमी युगल आयें
तरह–तरह के इंडियन, चाइनीज,कोरियन डिसेज खाते हुए
हाथों में हाथ डाल,चुहलबाज़ी करते रहें

लड़का आज दिल उड़ेलने का सोच कर आया था

बिल्कुल खामोश बैठा रहा
शाम जब ढलने को आयी
लड़की अचानक उठ खड़ी हुई
और अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा-यह एक अच्छी मुलाकात रही
हम फिर मिलेंगे किसी नदी के किनारे
(उसके गाँव की आखिरी बस का समय हो गया था)
लड़के की एक‌ आँख गुलाबी और दूसरी हरी हो ग‌ई थी
मेन्यू कार्ड टेबल के कोने पर उदास पड़ा था।
*******

जूता का आत्मकथ्य

अकेला होने की कोई कीमत नहीं थी
हमेशा बिलकुल अपने ही नापजोख के
अपने ही शक्ल सूरत के साथी की जरूरत थी
यह इतना मुश्किल था कि समझ से परे था

जब जोड़ा बना तो हो गया बेजोड़
बता नहीं सकता मैं से हम बनकर कितना खुश हुआ
मगर खुशियों की यात्रा कभी निरापद नहीं रही
अपना अभीप्सित कभी नहीं रहा
किसी के पैरों की शोभा बढ़ाना
हमें करनी थी कांटे -पत्थरों से पांवों की सुरक्षा
निभाना था इनसानों के सफर में आखिरी सांस तक साथ

पूरी ज़िन्दगी बीता दी ईमानदारी से
पैरों की प्रतीक्षा में चौखट से रहकर बाहर
जीवन भर चरणों में पड़े रहने के बावजूद
देहरी के भीतर कभी नहीं जा पाया

बाहर की यात्रा करते-करते अकसर
हमारे मन में भी अंदर की यात्रा का खयाल आया
जिसे फलीभूत होने की असंभावना देखते हुए
प्रतीक्षा सूची के अंत में अपना नाम पढ़कर ही खुश होता रहा

असंख्य लोगों के सफ़र सफल हमारे बलबूते रहे
फिर भी हम अजनबी सा उनके पांव के जूते रहे।

*****

पिछली रोटी

खुले आँगन में रोटी बेल रही है स्त्री
सर पर जेठ का धधकता सूरज है
पाँव के नीचे धरती तप रही है
तवे से उतारती हुई चालीसवीं रोटी
एड़ी-चोटी का पसीना एक हो चुका है

बेर के कंटीले जलावन को चूल्हा में झोंकती हुई
उसकी अंगुलियाँ हो ग‌ई हैं लहूलुहान
सिलवट पर मसाले पीसती हुई
ढर- ढर गिर रहे हैं उसके लोर
उधर से सास मचा रही है शोर-
खाना बनाने में क्यों कर रही हो अबेर
पति म‌उगा की तरह खड़ा है
सब कुछ देख रहा है दाँते निपोर

खाट पर बैठकर ठाठ से बाप- बेटे
खा रहे हैं गरम – गरम रोटी
खा- पीकर निश्चिंत हो चुका है पूरा परिवार
कुछ लोग ले रहे हैं दोपहर की नींद
कराही में खत्म हो चुकी है तरकारी
बचा है थोड़ा-बहुत रस
कठरा में बची है आखिरी रोटी
स्त्री कठरे को उघार कर देखती है एक बार
उसे आ रही है माँ की बात याद
– नहीं खानी चाहिए पिछली रोटी
वह एक साँस में पी चुकी है
एक लोटा पानी गटागट
सोच रही है थोड़ा पैर सीधा कर लूँ

इस बीच,उधर से आ रही है सास की कर्कश आवाज-
बेरा डुबने वाला है कनिया !
चौखट से टिककर खड़ी स्त्री
एक नज़र देखती है डूबते हुए सूरज को
एक बार फिर अंचरा से पोंछ कर लोर
वह च‌उका लगाने में जुट जाती है
सोचती है किस जनम में खायी होगी वह
पिछली रोटी!

********
बस पड़ाव पर

एक घंटा से प्रतीक्षारत हूँ
बस से उतरती हुई सवारियों पर टकटकी लगी है
बस दूर जा रही है,धूल उड़ाती हुई
कोई मुझमें उतर रहा है धीरे-धीरे

लो,यह दूसरी,तीसरी बस भी गुजर ग‌ई
यह चौथी तो पड़ाव पर रुकी भी नहीं
अब आखिरी बस के आने का समय हो चुका है
वह भी आ ग‌ई,कोई नहीं उतरा

रात और काली हो ग‌ई है
मैं तुम्हें साथ लिये जा रहा हूँ सुरक्षित
अच्छा है,कोई देख नहीं रहा है।

*********
फूल की मौत पर

हालांकि नष्ट होना सब की नियति थी
पर इस तरह नष्ट होना किसे स्वीकार होगा ?

यहां कुरूपता सौन्दर्य का गला रेतती है
बेईमानी ईमानदारी को ललकारती है

जो लोग सच के लिए आगे लड़ने आए
वे सब के सब हिंसा के शिकार हुए
और हर वीभत्स घटना के उपरांत
अनेक लोगों ने सहर्ष ध्वनि में जयघोष किया –
इस सिरफिरे से बहुत खतरा था हमारी कौम को
यह खलनायकी हँसी कलेजे को चीरती है

फूल जो देवताओं को अर्पित हुए
फूल जो प्रेमिकाओं के जूड़ों में खोंसे ग‌ए
फूल जो नेताओं के गले में लटकाए ग‌ए
वे सब के सब पैरों तले रौंद दिए ग‌ए

संसार में फूल की मौत पर कौन आँसू बहाता है?

*****
दो शब्द

अनेक भाषाओं के अनगिनत शब्द
हमें पहुंचा नहीं सकते किसी ठोस निष्कर्ष तक
सारे झमेले अस्पष्टताओं की देन हैं

कभी भय,कभी आशंका,कभी लालच
कभी नाराज़गी,कभी कमजोरी
कभी स्वयं को,कभी अपनों को बचाने की मुहिम में
जो बोलना चाहिए था,वही बोल नहीं पाए
हमें अनगिनत मौके मिले दो शब्द बोलने के लिए
पर दो शब्दों को छोड़कर बोले तमाम शब्द

कितना कठिन है बोलना दो शब्द – हाँ या ना?

*****
चाय ठंडी हो जाएगी

प्रेम की शुरुआत उजले दिन से हुई थी
बाद में क‌ई दिनों तक वे प्रेम करते रहे लगातार
दिन महीने में और महीने वर्ष में बदल ग‌ए

फिर एक दिन वे झगड़े पर उतर ग‌ए
लड़ते रहे क‌ई दिनों तक लगातार
महीनों से लड़ते-लड़ते वर्षों तक पहुँच ग‌ए

हालात सुधरने का नहीं ले रहे थे नाम
वह घर छोड़ने का विचार करता रहा पूरी रात
निकलने वाला ही था कि हो गयी भोर
पौ फूटने से पहले ही उस दिन उसने देखी
मेज पर ट्रे में बिस्किट के साथ रखी चाय
पत्नी खिड़की की ओर मुँह करके बोली-
चाय ठंडी हो जाएगी।
*******

मैं भी गिरा हुआ तो नहीं ?

गिरे हुए व्यक्ति को देखकर
हर बार नफ़रत ही उपजी
गुस्सा भी कम नहीं आया
ताकत होती तो घसीटता बहुत दूर तक
अर्थ-संपन्न होता तो कानूनी सहायता भी लेता
प्रतिकार के विकल्पों पर करता रहा विचार
कुछ भी नहीं कर पाने की स्थिति में
कसैला मुँह बनाकर
फुसफुसाते हुए भद्दी-भद्दी गालियां दी

‌उससे कभी नहीं हुई सहानुभूति
अब होने लगी है ऐसी अनुभूति
कि कहीं मैं भी गिरा हुआ तो नहीं?
*******

पिता अचानक आ जाते हैं

बरसों पहले चले जाने के बावजूद
बीच- बीच में आ जाते हैं अचानक
खासकर अंधेरे में
जब मैं अर्ध निद्रा में होता हूँ
मेरी नींद उचट जाती है
वे नंगे पाँव लौट जाते हैं
शायद अब भी कच्ची नींद में
बच्चा को जगाना नहीं चाहते

उनके आने की आहट
मैं बहुत देर तक सुनता रहता हूँ
मैं नींद के बाहर टहलता रहता हूँ
सोचता हूँ पिता अब भी नहीं छोड़ सके हैं
चेताने वाला स्वभाव
जिस तरह मैंने नहीं छोड़ी है लापरवाही

जिस दिन वे आते हैं सपने में
वह शुभ दिन होता है
यह पर्याप्त है मुझे ऊर्जस्वित रखने के लिए
कि मैं शामिल हूँ उनकी चिंताओं में ।

*******
काले गोरे का भेद नहीं है!

वह काला कपड़ा पहनकर आया था
काले कपड़े में खूब फब रहा था गोरा चेहरा
पत्नी बेहद खुश थी इस ड्रेस सेंस से

उसने पत्नी से कहा-
तुम भी काली साड़ी में ‘लुनाई की लच्छमी’ लगती हो
वह काली साड़ी पहन कर तैयार हो ग‌ई
धवल चाँदनी में यह जोड़ी बहुत खूबसूरत लग रही थी

जब भी सुंदर दिखने का मन करता है
गोरे लोग काले कपड़े पहन लेते हैं
कहा तो ये भी जाता है
कि शनि देव प्रसन्न हो जाते हैं
काले वस्त्र धारण करने से
मंगल को लाल और गुरु को पीला
पहनने की सीख सुनते ही रहते हैं

इन सबके बीच काले गोरे का मेल
सचमुच कितना विस्मयकारी है।
********
संपर्क:

हिन्दी अनुभाग,तीसरा तल, सीएसटीआरआई,सेंट्रल सिल्क बोर्ड
बीटीएम लेआउट,मडिवाला,बेंगलूर-560068
मो नं 9431582801

You Might Also Like

अजित कुमार राय की कविताएं

रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताएं

वरिष्ठ कवि और दोहाकार डॉ सुरेन्द्र सिंह रावत द्वारा संकलित व सम्पादित सांझा काव्य संग्रह ‘काव्यान्जली 2024’ का लोकार्पण हुआ*

राकेश भारतीय की कविताएं

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक संस्था “मेधा साहित्यिक मंच” ने किया “कविता की एक शाम” का आयोजन हुआ,

Sign Up For Daily Newsletter

Be keep up! Get the latest breaking news delivered straight to your inbox.
[mc4wp_form]
By signing up, you agree to our Terms of Use and acknowledge the data practices in our Privacy Policy. You may unsubscribe at any time.
admin January 8, 2024
Share this Article
Facebook Twitter Copy Link Print
Share
Previous Article चितरंजन भारती की कहानी – * नदी किनारे *
Next Article चित्तरंजन गोप ‘लुकाठी’ की कविताएं
Leave a comment Leave a comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Stay Connected

235.3k Followers Like
69.1k Followers Follow
11.6k Followers Pin
56.4k Followers Follow
136k Subscribers Subscribe
4.4k Followers Follow
- Advertisement -
Ad imageAd image

Latest News

अजित कुमार राय की कविताएं
Literature November 21, 2025
कन्नड़ संस्कृति की गरिमा विदेशों में – “कन्नड़ कहले” कार्यक्रम!!
Entertainment September 1, 2025
*दिल, दोस्ती और फाइनेंस: डिजिटल स्क्रीन पर दोस्ती और सपनों की कहानी*
Entertainment August 16, 2025
मिनिएचर्स ड्रामा और फोर ब्रदर्स फिल्म्स प्रस्तुत करते हैं दिल दोस्ती फाइनेंस
Entertainment August 7, 2025
//

We influence 20 million users and is the number one business and technology news network on the planet

Sign Up for Our Newsletter

Subscribe to our newsletter to get our newest articles instantly!

[mc4wp_form id=”847″]

Follow US

©Lahak Digital | Designed By DGTroX Media

Removed from reading list

Undo
Welcome Back!

Sign in to your account

Register Lost your password?