कंचन अपराजिता का पहला काव्य (क्षणिका) संग्रह ‘केसर’ बोधि प्रकाशन से छप कर आया है। संग्रह का आवरण आकर्षक है। भूमिका शैलेश वीर ने लिखी है। कवयित्री ने इन क्षणिकाओं में प्रेम के साथ जीवन के अन्य रंगों को बख़ूबी संजोया है। 132 पृष्ठों के इस संग्रह में 211 छोटी-बड़ी क्षणिकाएँ सम्मिलित हैं, जो पढ़नेवालों के मन को भी रंग देती हैं।
क्षणिका समकालीन काव्य की विधा है। क्षणिकाओं का सृजन लघु कविता के तौर पर होता रहा है। लघुकाय कविताओं के लिए ‘क्षणिका’ शब्द का उपयोग पहली बार रवींद्र नाथ ठाकुर ने किया था। उनकी छोटी- छोटी रचनाओं का काव्य संग्रह ‘क्षणिका’ नाम से प्रकाशित हुआ था। क्षणिका की असली शक्ति उसकी प्रस्तुति या सम्प्रेष्य क्षमता होती है। क्षणिका, एक बिम्ब, एक विचार, एक प्रभाव को कुछ पंक्तियों में शिद्दत के साथ व्यक्त करती कविता है। ‘केसर’ की अधिसंख्य रचनाएं क्षणिका के रूप में अपनी मुकम्मल पहचान बनाने में पूर्णत : सफल प्रतीत होती हैं। ‘केसर’ इस संवेदनहीन दौर में प्रेम को अक्षुण्य रखने वाला संग्रह है।
पेशे से पत्रकार रही कंचन विभिन्न विधाओं में लिखती हैं। क्षणिका और हाइकु विधा में उनका विशेष योगदान है। वह यूट्यूब पत्रिका ‘कचनार’ एवं ‘शब्द चितेरे” का संपादन और संचालन भी कर रही हैं। मानवीय संवेदना, सात्विक प्रेम, वेदना और पीड़ा की सघनता आदि उनकी कविताओं की प्रमुख विशेषताएँ हैं। ‘केसर’ की पहली क्षणिका ईश्वर को समर्पित है-
“जो रुह के तारों को/झंकृत कर दे /हे ईश!/तू मुझे ऐसे भाव भरे/ अक्षर दे।”
जीवन के अनुभूत क्षण को कवयित्री ने बड़ी खूबसूरती से अभिव्यक्ति दी है –
“क्षणभर का नहीं है जीवन/अभी बहुत कुछ शेष है/ तेरी यादों को तह लगा लूँ/अभी सँजोना नवीन विशेष है।”
प्रेम की एक सहज, सरल अभिव्यक्ति देखिए-
“हथेली पर हिना का रंग /गहरा चढ़ा/चढ़ना ही था/तेरा प्यार जो गहरा था।”
प्रेम से ओतप्रोत कोमल अहसास लिए यह क्षणिका भी पढ़िए –
“प्रकृति ने कहा/कोई बीज/तुममें लगाना चाहती हूँ/ मैंने इश्क का बीज/निगल लिया/फिर सृष्टि मुस्कुरा दी।”
प्रेम में डूबकर वह लिखती हैं –
“मैं जिह्वा पर /क्यों तेरा नाम लूं?/जब मेरी धड़कन/हर स्पंदन में/तेरे नाम के/मनके जपती है।”
प्रेम तर्क का नहीं, सहज अनुभूति का विषय है। यह क्षणिका इस कथ्य की पुष्टि करता है-
“तुमने प्रेम का/ बस एक धागा ही दिया था/ मैंने तुम्हारी यादों की/कतरन से/पूरी पोशाक बुन दी।”
कविता अंतःस्थल से उठती है। कवयित्री ने प्रेम पर सिर्फ कविता ही नहीं की बल्कि अपनी क्षणिका में लिखे प्रेम को एक विचार मानकर जिया भी-
“कहा था तुमने एक बार/तुम्हारे संग गुजारे/चंद लम्हे ही/अनमोल है मेरे लिए/मैंने कुछ नहीं कहा/बस मोल दे दी-/अपनी ज़िंदगी/उन लम्हों के नाम।”
मूलतः वह प्रेम की ही कवयित्री हैं। काव्य-सृजन के समय प्रेम ही तलाशती हैं। उसे ही विषय बनाती हैं। प्रेम उनकी क्षणिकाओं में सदैव झलकता है-
“सृजनकार हूँ/सृजन का बीज/तलाशते हुए/हमेशा नजर/तुम पर ही ठहर जाती है।”
यह क्षणिका भी ख़ूबसूरत बन पड़ा है, गौर कीजिए –
“बावरा मन/अमावस में/ढू़ँढ रहा/ चाँद को।”
कवयित्री अपने अतीत को पीछे छोड़ आगे बढ़ना चाहती हैं-
“इस मोड़ पर बस पलटकर/ देख सकती हूँ/तेरे साथ नहीं चल सकती/ ऐ अतीत।”
वह गहन बात को भी सरलता से कह देती हैं –
“कोई वाक्य /पूर्णतः सत्य/व पूर्णतः असत्य नहीं होता/वक़्त और परिस्थिति/तय करती है/उसकी सत्यता की परख।”
माँ की दुआओं में गजब की शक्ति होती है। माँ की दुआएँ हर मुसीबत से बचा लेती हैं। इस बात को दर्शाती यह क्षणिका देखें –
“किसी की भी बद्दुआ/बन जाएगी दुआ/एक माँ के दुआओं
के कवच /का वो असर है ”
लघु विधाओं में क्षणिकाओं का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। मन में उपजे गहन विचार को थोड़े से शब्दों में ढाल देने की कला ही क्षणिका है। भाव और शिल्प के सुन्दर योग से सज्जित ‘केसर’ की क्षणिकाएँ अत्यंत प्रभावशाली बन पड़ी हैं। ‘केसर’ जीवन के विविध रंगों, विविध स्थितियों, मानव-मन की विविध दशाओं, प्रेम और संवेदनाओं को परिभाषित करती क्षणिकाओं का संकलन है। कंचन ‘अपनी बात’ कहते हुए लिखती हैं कि मेरे लेखन के कैनवास पर बिखरे चुटकी भर केसर आपके मन को भी रंग दे, बस यही कामना है। उनकी यह कामना अवश्य पूर्ण होगी, ऐसा विश्वास है। आप भी पढ़ें और केसर की खुशबू महसूस करें!
————–
क्षणिका संग्रह- केसर
क्षणिकाकार- कंचन अपराजिता
पृष्ठ- 132
मूल्य- ₹ 150
प्रकाशक- बोधि प्रकाशन, जयपुर
हिमकर श्याम, राँची, झारखंड