तूँ है मेरा पन्द्रह अगस्त
—————
—————
हे नौ अगस्त, हे नौ अगस्त।
तूँ है मेरा पन्द्रह अगस्त।
हे नौ अगस्त, हे नौ अगस्त।
तूँ है मेरा पन्द्रह अगस्त।
अंग्रेजों भारत छोड़ो का,
जिस क्षण तुमने एलान किया।
जब करो मरो का नारा दे,
केवल सुराज की मांग किया।
जग पड़ा सकल भारत जय कह,
हो गया ब्रिटिश का सूर्य अस्त।
हे नौ अगस्त, हे नौ अगस्त।
तूँ है मेरा पन्द्रह अगस्त।
मन करता है हर दिन उठकर,
मैं तेरा ज़िन्दाबाद लिखूँ।
पहले बापू का नाम लिखूँ,
फिर लोहिया, जयप्रकाश लिखूँ।
जय यूसुफमेहर अली की लिख,
जय अरुणा आसफ अली लिखूँ।
तुमको भारत का राम, कृष्ण,
तुमको भारत का अली लिखूँ।
जय उस जज्बे की लिखूँ जिसे,
लख गोरी पलटन हुई पस्त।
हे नौ अगस्त, हे नौ अगस्त।
तूँ है मेरा पन्द्रह अगस्त।
तुम दूत अहिंसा के हो पर,
तुम हर शहीद के भाल भी हो।
तुम उधम सिंह की हिम्मत हो,
तुम लाल, बाल, गोपाल भी हो।
विस्मिल, आज़ाद, भगत सिंह की,
कुर्बानी तुममें शामिल है।
जलियांवाला, चौरी चौरा,
का पानी तुममें शामिल है।
तुम मान सकल भारत के हो,
तुममें शामिल भारत समस्त।
हे नौ अगस्त, हे नौ अगस्त।
तूँ है मेरा पन्द्रह अगस्त।
यह तन मन तुमको अर्पित है।
तुमको सर्वस्य समर्पित है।
तेरे दुश्मन दल की क्षय हो।
तेरी दुनियाँ में जय जय हो।
बस एक चाह जब तक जग है,
तूँ रहे जगत में सदा मस्त।
हे नौ अगस्त ! हे नौ अगस्त।
तूँ है मेरा पन्द्रह अगस्त।
गर मुझे कहीं भगवान मिले।
मांगू तुमको सम्मान मिले।
तुमको इतिहास के पन्नों में,
आजाद दिवस का नाम मिले।
तूँ सबके दिल में वास करे,
तूँ हो सबका पन्द्रह अगस्त।
हे नौ अगस्त, हे नौ अगस्त।
तूँ है मेरा पन्द्रह अगस्त।
अच्छा भी हो सकता है
——————
——————
हाथ मिला कोशिश कर भाई,
ऐसा भी हो सकता है।
अपना आंगन मंदिर, मस्जिद,
गिरजा भी हो सकता है।
तुमसे मतलब ना है कोई,
लेकिन तुम भी दुआ करो,
अरसे से बीमार पड़ोसी,
अच्छा भी हो सकता है।
आंगन की दीवार उचककर,
कभी उधर भी झांको तो,
बिछड़ा भाई फिर मिलने को,
प्यासा भी हो सकता है।
कुछ पन्नों को गैर समझकर,
कोई पुस्तक मत फाड़ो,
पढ़ो पलट के उसमें अपना,
मुखड़ा भी हो सकता है।
सच कहता हूं नफरत की यह,
आग भरोसेमंद नहीं,
कल इसका आहार तुम्हारा,
बच्चा भी हो सकता है।
मत इतनी उम्मीद करो कल,
जिसको ले रोना होवे,
खूँ से सींचा आम फला तो,
खट्टा भी हो सकता है।
बहुत बुरा है लोकतंत्र पर,
इतनी अच्छाई मानो,
इस रस्ते पर चलकर प्यादा,
घोड़ा भी हो सकता है।
हम माटी के बेटों को भी,
एक बार अवसर तो दो,
अवसर मिलने पर कल कोई,
गामा भी हो सकता है।
हर मौसम को खौफ समझकर,
दरवाजा मत बंद करो,
आने वाला तेरा बिछड़ा,
बेटा भी हो सकता है।
फिर से मीठा फल आएगा
आज नहीं आया है लेकिन,
कर यकीन वह कल आएगा।
इसी बाग में, इसी डाल पर,
फिर से मीठा फल आएगा।
अपने अपने दरवाजे पर,
सिर्फ इश्क की बंसी टेरो,
सुनकर सूरज ढल जाएगा,
सुनकर चाँद निकल आएगा।
तपिश धूप की सच है लेकिन,
मेल जोल की हवा चली तो,
सूने घाटों से मिलने को,
फिर सरिता का जल आएगा।
होरी जुम्मन की बगिया में,
फिर मिल्लत के फूल खिले तो,
राग लिए कोयल आएगी,
गीत लिए बुलबुल आएगा।
पहले आप आप की शैली,
आप पुनः यदि अपनाओ तो,
हमें पिलाने अपने हाथों,
खुद चल के बादल आएगा।
मौसम ने करवट बदला तो,
लैला, हीर, जूलियट के घर,
मजनू, रांझा और रोमियो,
अपना रूप बदल आएगा।
चारो तरफ सांप हैं लेकिन,
सोन चिरैया की रक्षा को,
थिरक मोरनी फिर आएगी,
मोरों का भी दल आएगा।
ब्रह्मपुत्र, कावेरी, झेलम,
गंगा, यमुना और नर्मदा,
मिलकर साथ बहें तो हममें,
भीम सरीखा बल आएगा।
नहीं बराबर होगा लेकिन,
इन्कलाब आया तो खुद ही,
आसमान कुछ नीचे होगा,
कुछ ऊपर समतल आएगा।
अपनी आजादी
का उत्सव
——————-
का उत्सव
——————-
यह भारत देश सजाने को,
समृद्ध, सशक्त बनाने को।
अपनी आज़ादी का उत्सव,
जबतक चाँद है मनाने को।
मैं पूछ रहा हूँ टीवी पर,
सब ठीक बताने वालों से।
हम विश्वगुरु का गीत सुना,
ताली बजवाने वालों से।
इस सुख के सुन्दर मौसम में,
जन का चेहरा सूखा क्यों है ?
स्कूल में जिसको रहना था,
वह सड़कों पर भूखा क्यों है?
मैं पूछ रहा हूँ फ्री इलाज,
उपलब्ध कराने वालों से।
हर अस्पताल में दवा हवा,
सबको पहुँचाने वालों से।
जब चीख रहे थे लोग यहाँ,
तुम लोग कहाँ किस लोक में थे ?
लाशें लख नदियां सिसकी जब,
तुम लोग कहाँ किस भोग में थे ?
हूँ पूछ रहा शिक्षाविद से,
शिक्षा महंगी किसने की है ?
सरकारी विद्यामन्दिर की,
हालत पतली किसने की है ?
जब शिक्षाविद मुस्तैद रहे,
यह नकल कहाँ से घुस आया ?
शिक्षा के नीति निर्धारण में,
बेअकल कहाँ से घुस आया?
मैं पूछ रहा गुणवानों से,
बनते ही सड़क धंसी कैसे?
खुद ओवरब्रीज ढहा कैसे ?
सीलिंग मजबूत गिरी कैसे ?
क्यों गड्ढामुक्त का हर दावा
रहता है केवल कागज में ?
क्यों सच्ची सेवा का लावा
रहता है केवल कागज में ?
मैं पूछ रहा हूँ वर्दी से,
इतना अपराध बढ़ा कैसे?
चौखट पर बड़ी सभाओं के,
दागी कोलतार चढ़ा कैसे ?
अब सरेआम सड़कों पर भी,
क्यों चीर हरण हो जाता है ?
जब पहलू मारा जाता है,
कानून कहाँ मर जाता है ?
मन पूछ रहा फाइव ट्रिलियन,
का बजट बताने वालों से।
अरबों खरबों का गुणा गणित,
सबको समझाने वालों से।
बतलाओ सोन चिरैया के,
हर जन पर है कर्जा कितना ?
बतलाओ सोन चिरैया का,
कल बिकना है गहना कितना ?
मन पूछ रहा हालात रुपइया,
डालर का बतला दीजे।
महँगाई आसमान पहुँची,
इसका इलाज समझा दीजे।
जब अर्थ व्यवस्था पतली है,
तब झूठी शान की चर्चा क्यों ?
फिर अपने सेवादारों पर,
हो भारी भरकम खर्चा क्यों ?
मैं पूछ रहा हूँ पंचों से,
होती है न्याय में देरी क्यों?
जब लोकतन्त्र ज़िन्दा है तो,
पेगासस हेराफेरी क्यों ?
क्यों काली आय के नेता को,
सूली पर नहीं चढ़ा पाए?
क्यों काली आय के अफसर को,
गदहों पर नहीं घुमा पाए ?
मैं पूछ रहा हूँ भारत के,
हर एक नागिरक से रोकर।
वह भारत माँ का चीर हरण,
कबतक देखेगा यूँ सोकर।
जब हमसब भारतवासी हैं,
तब जात धर्म का झगड़ा क्यों ?
पचहत्तर साल की आज़ादी,
फिर भी आपस में रगड़ा क्यों ?
हे कोटि कोटि भारतवासी,
जागो मिल सब सुलझाने को।
यह भारत देश सजाने को,
समृद्ध सशक्त बनाने को।
अपमान हम सभी
का है
——————–
का है
——————–
चाँदनी, चाँद से सम्मान हम सभी का है।
इसे मत बांटिए दिनमान हम सभी का है।
इसे अमीर की जागीर मत समझो भाई,
राम, रमजान, हिन्दुस्तान हम सभी का है।
वजीरे शहर जो ये चोट है विविधता पर,
करे कोई मगर अपमान हम सभी का है।
जब कभी दीजिए कुछ तो ज़नाब याद रहे,
बोध हो सबको बागवान हम सभी का है।
नदी की मौत का यह अर्थ समझ लो भाई,
नदी की मौत में अवसान हम सभी का है।
हो सके तो सभी मयखारों को बता साकी,
दिलों के मेल में उत्थान हम सभी का है।
एक गुजारिश है जो मुल्क की जरूरत है।
मानिए गीता या कुरान हम सभी का है।
हिन्दुस्तान की जय
बोलने दें
——————
बोलने दें
——————
आप कुछ बोलें हमें इन्सान
की जय बोलने दें।
जबतलक है सांस हिन्दुस्तान
की जय बोलने दें।
हम तो हैं राधेय के दीवाने
हमको हो सके तो,
सूर, मीरा की तरह रसखान
की जय बोलने दें।
आप सबको छूट है जय
झूठ बोलें हर जगह पर,
हम सभी को हर जगह
ईमान की जय बोलने दें।
आप दारू और बीयर, भाँग
की जय बोलिए पर,
हमको मठ्ठा, दूध, गेहूँ, धान
की जय बोलने दें।
आप के ही जुगनुओं से
रोशनी हमको मिली है,
मान लेंगे हम हमें दिनमान
की जय बोलने दें।
आप खुद ही बोलते हैं
अपने एहसानों की जय,
है मिला जिसको उसे
एहसान की जय बोलने दें।
आप जय श्रीराम या श्रीकृष्ण
की जय बोलिए पर,
हिना को, अरमान को रहमान
की जय बोलने दें।
बैठ कर दो पल जहाँ पर
चैन मिलता है हृदय को,
है भले टूटी मगर दालान
की जय बोलने दें।
है नहीं कुछ भी हमारा
मित्र फिर भी चाहता हूँ,
हमें अपने गाँव घर सीवान
की जय बोलने दें।
बादल आज
यहीं रुक जाओ
——————
यहीं रुक जाओ
——————
बादल आज
यहीं रुक जाओ।
बहुत उमस है
मन बेकल है।
लगता हर इक
पल मुश्किल है।
केवल तेरे
कर में हल है।
साथ हवा के
गीत सुनाओ।
बादल आज
यहीं रुक जाओ।
जीवन अदहन
कर रख्खा है।
लगे आग में
सर रख्खा है।
शीत हवा को
धर रख्खा है।
गर्मी से
निजात दिलवाओ।
बादल आज
यहीं रुक जाओ।
तेरे आने
पर चूती छत।
होती है
रहने में दिक्कत।
मजदूरी को
रोती किशमत।
फिर भी आओ
जल्दी आओ।
बादल आज
यहीं रुक जाओ।
छोड़ो लोकलाज
आ जाओ।
खुद भी भीगो
हमें भिगाओ।
केवल गीत
मिलन के गाओ।
इसके लिए
जरा झुक जाओ।
बादल आज
यहीं रुक जाओ।
एक बार
अनुराग दिखा दो।
पुनः मधुरमय
राग सुना दो।
इस धरती की
प्यास बुझा दो।
फिर अपने
घर को उड़ जाओ।
बादल आज
यहीं रुक जाओ।
बादल आवारापन
छोड़ो
————-
छोड़ो
————-
सबके लिए निगाहें खोलो।
बादल आवारापन छोड़ो।
सबकी प्यास जुड़ी है तुमसे।
सबकी आस लगी है तुमसे।
सबकी सांस बंधी है तुमसे।
चारो तरफ मधुर रस घोलो।
बादल आवारापन छोड़ो।
तेरा असली घर है भू पर।
बन के भाप गया तूँ ऊपर।
ताकि हर कोना होवे तर।
इससे अपना मुँह मत मोड़ो।
बादल आवारापन छोड़ो।
सबकुछ तेरे पास पड़ा है।
बहुमत तेरे साथ खड़ा है।
अब तेरा कद बहुत बड़ा है।
बन के बड़ा सभी को जोड़ो।
बादल आवारापन छोड़ो।
हर ऑंगन में पल दो पल दो।
थोड़ा थोड़ा सबको जल दो।
हर दुखिया के दुख का हल दो।
कच्चा कह मटका मत फोड़ो।
बादल आवारापन छोड़ो।
देख तुम्हें सागर या हिल में।
पीड़ा उठती है हर दिल में।
धरती पड़ती है मुश्किल में।
धरती की उम्मीद न तोड़ो।
बादल आवारापन छोड़ो।
सबके लिए निगाहें खोलो।
———————–
-धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव, लखनऊ, उत्तरप्रदेश
मोबाइल – 7080108888