1.
साल के जाने का नम्बर आ गया।
जनवरी से फिर दिसम्बर आ गया।।
उड़ गए तोते गुजिश्ता साल के
अब नया घर में कैलेंडर आ गया।।
क्या हुआ उस पार के पैगाम का
लौटकर खाली कबूतर आ गया।।
हो गया होता जो ऐसा ठीक था
कोई भूला शाम को घर आ गया।।
फैसले की अब घड़ी नज़दीक है
जुल्म के औसान में डर आ गया।।
प्यास लेकर इक नदी के घाट पर
मतलबी फिर से समंदर आ गया।।
होश में आ जाइये दौलत ज़रा
ओखली में आपका सर आ गया ।।
2.
क्या अहसान वो कोई कम कर रहा है
गरीबों को जड़ से खतम कर रहा है
बड़ा भाई है कौन उंगली उठाये
विरासत हमारी हजम कर रहा है ।।
बड़ी मेहरवानी है अहसान उसका
जो खैरात देकर रहम कर रहा है ।।
नए दौर के ये नए फलसफे हैं
उजालों की तस्दीक तम कर रहा है।।
रहेगा न जब बांस ही बांसुरी क्या
मिटाने के सारे करम कर रहा है।।
कमी तो बताओ कोई साधना में
जो दिन रात दुनिया का ग़म कर रहा है।।
न मस्ज़िद में रब है न मंदिर में दौलत
फसादात दीनो धरम कर रहा है।।
3.
देख कुहासा मन के अन्दर दुविधा हरी हुई ।
सुबह दुशाला ओढ़े निकली सहमी डरी हुई।।
मंडराते हैं बाज गगन में ललचाई आँखें
घर की चीजें चीख रही हैं घर में धरी हुई।।
मुंह को आये कलेजा बाहर सच कैसे निकले
तनी हुई जब सीने पर बंदूकें भरी हुई ।।
धोखा है सब हमें पता था फिर भी साथ चले
कसमे वादे और नुमाइश मीठी छुरी हुई।।
फल के लोभी जिन पेड़ों की शाखें काट गए
कब तक सींचे उन पेड़ों को आशा मरी हुई।।
4.
आप चाहे गीत लिख्खें या कहें कोई ग़ज़ल।
अब नहीं उगती यहां बंजर ज़मीनों पर फ़सल।।
देखिए रो रो के आँखें आपकी दुखने लगीं
जिसके आगे रो रहे हो मौन है सब बेअकल।।
एक सन्नाटा अयाँ इस छोर से उस छोर तक
न्याय चुप दरबार चुप है कौन देता है दखल।।
इस व्यवस्था, का बदलता, ही नहीं चा,लो चलन
ये समय की है ज़रूरत हो सके खुद को बदल।।
ले मशालें हाथ में कबिरा खड़ा बाज़ार में
फैसले की यह घड़ी है बावरे घर से निकल।।
गर इरादे आपके मजबूत हों मुश्किल नहीं
आपकी दुश्वारियों का देखना निकलेगा हल।।
आप ही दौलत मुखालिफ हो खड़े अन्याय के
बाकी चाहत पद-प्रतिष्ठा कुर्सियाँ हैं आजकल।।
5.
जिसको चाहे गाली दो ।
फिर ऊपर से ताली दो।।
जिनको कोई काम नहीं
उनको लौटा थाली दो।।
आने वाली नस्लों को
दुनिया नई सवाली दो।।
शिक्षक, शिक्षा बेमतलब
साधु संत कपाली दो।।
खाल उतारे पेड़ों की
ऐसा निर्मम माली दो।।
नफ़रत के जयकारे दो
गुरबत दो, कंगाली दो।।
देश के नंगे भूखों को
जुमले-वादे जाली दो।।
जिसने सब कुछ लूट लिया
उसको फिर रखवाली दो
क्या होगा कुछ भी देकर
बातें खाली – खाली दो।।
6.
खरा है तो खरा होगा यक़ीनन।
ये पौधा फिर हरा होगा यक़ीनन।
अंधेरों की हिमायत कर रहा है
उजालों से डरा होगा यक़ीनन।।
अभी है ताल का जज्बा सलामत
किसी दिन फिर भरा होगा यक़ीनन।।
छुपाकर दर्द हँस लेता है जो कि
सिफ़्त से मसखरा होगा यक़ीनन।।
शज़र की डाल पर रचकर पकेगा
वही फल रसभरा होगा यक़ीनन।।
नहीं होगे हमारे साथ जब तुम
तुम्हारा मसबरा होगा यक़ीनन ।।
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संक्षिप्त परिचय
नाम : – दौलतराम प्रजापति
जन्म। :- 04/03/1975
शिक्षा। :-एम ए हिंदी साहित्य, राजनीति विज्ञान
सम्प्रति :- अध्यापन
पता। :- वार्ड 05 कुम्हार गली सिरोंज रोड लटेरी
जिला विदिशा मध्यप्रदेश पिन 464114
लेखन विधा :- ग़ज़ल, नवगीत, कविता, कहानी
प्रकाशन :- दिव्य हिमाचल, जनाकांक्षा , शैल सूत्र आंचलिक जागरण , कला समय , लहक , एक नई सुबह , किस्सा कोताह , शुभ तारिका, सुबह सबेरे , प्रणाम पर्यटन, सुख़नवर, विभोम स्वर , विश्वगाथा, प्रेरणा अंशु, सोच विचार, नवल, जय विजय, व्यंगयात्रा, ककसाड़, सदीनामा, पंजाब केशरी, हरिगन्धा ,ई पत्रिका मानवी, नवभारत, दैनिक जागरण, विश्व स्नेह समाज मासिक और अन्य पत्र पत्रिकाओं में
प्रसारण :- आकाशवाणी भोपाल से ।
प्रकाशित पुस्तकें :-“दीया रोशन हुआ” ग़ज़ल संग्रह2018
:-नई इबारत (ग़ज़ल संग्रह)2020
:-नई संभावनाएं (नवगीत संग्रह)2020
:-आदमी ज़िन्दा रहे (ग़ज़ल संग्रह)2022
सम्मान :- हिंदी साहित्य सम्मेलन मध्यप्रदेश भोपाल से प्रतिष्ठित “वागीश्वरी” पुरुस्कार 2018
“भगवान दास शर्मा स्मृति” सम्मान और
“सरस्वती प्रभा” सम्मान
प्रभात साहित्य परिषद भोपाल से
मोबाइल। :-9893388470
Email:- daulatramparajapati2017@gmail.com
दौलतराम प्रजापति
वार्ड 05 कुम्हार गली
सिरोंज रोड़ लटेरी
जिला विदिशा म. प्र.
पिन 464114
Mb 9893388470