गुनाह
कैसे झेलूँ इस दुनिया को?
जहाॅं होते पाप दिन-रात,
लड़कियॉं घूम नहीं सकती खुलेआम
क्योंकि होते हैं, उनके साथ बुरे काम।
कैसे झेलूँ इस दुनिया को?
कुछ कहना चाहती हूॅं, पर – कह नहीं सकती
क्योंकि इस दुनिया में बन्द कर रखे हैं मेरी जुबान।
बचपन से ही सिखाया हमको
उड़ना खोल सारे पिंजरो को
लेकिन जब समय आया तो
बन्द कर दिया सारे पिंजरो को।
क्या गुनाह है हमारा?
चूँँकि हम लड़की हैं?
यही गुनाह है हमारा?
कैसे झेलूँ इस दुनिया को?
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सफर
आखिरकार खत्म हुआ हमारा साथ
यहीं तक था सफर
पता नहीं कब मिलेंगे फिर हम?
अब कौन किस जगह, और –
कौन किस जगह?
जितने लम्हें हम साथ बिताए,
उनको रखेंगे हमेशा याद
खुशियाॅं हमारी जिन्दगी में,
हमेशा रहेंगी साथ।
भले बिछड़ेंगे अभी हम
लेकिन किसी को भूलेंगे नहीं,
मिलेंगे हम जरूर एक दिन
क्योंकि रही हमारी दोस्ती कुछ खास।
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प्रेरणा
आप ही मेरी प्रेरणा पापा
आपसे ही सीखा मैंने जीवन जीना
आप ही मेरे प्रिय पापा।
दिन रात करते हो आप काम,
बहा अपना खून-पसीना
मेरे लिए लड़ते आप दुनिया से
आने न दिया कभी पलकों पर ऑंसू मेरे,
हर ख्वाहिशों को किया पूरा,
हंसकर,
आप ही मेरी प्रेरणा हो पापा।
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