1.
मैंने पढ़ा है
तुम्हारी आंखों में अपना दुख
तुम्हारा कोई दुख नहीं था
तुम नदी थी मेरे लिए
मुझे अपने में भरकर होती रही खाली
मैं जानता हूं तुम्हारी उदासी से
कितने फूल झड़ गए
मगर मैं खिला रहा
मैं भी ढूंढना चाहता हूं अपनी आंखो में
तुम्हारा दुख
जो डूब चुका है तुम्हारी खामोशी में
होना चाहता हूं तुम्हारे लिए पेड़
मगर तुम
मुस्कुरा देती हो
और मुझे कहीं नहीं मिलती तुम्हारी टोह
बस एक झरना गिरता रहता है
तुम झील सी
मुझमें उतरती जाती हो।
2.
मैं तलाश रहा था कविताएं
हालांकि इस उम्र में मुझे तलाशना चाहिए था कोई काम
मैं तलाशता था आदमी
जबकि मेरे कपड़े फटे हुए थे
और हर आदमी ठेंगा दिखाता था
और मेरी तलाश बढ़ाता था
मेरे पास कुछ नहीं था
मुझे तलाशनी चाहिए थी सुविधाएं
मगर मैं तलाश रहा था प्रेमियों को
जिनका प्रेम रोज बदल जाता था
मुझे और अधिक छल जाता था
मैं जब भी तलाशता हूं
सत्य को
लोग ग़लत राह बता देते है
और अधिक भटका देते है
अब मैं कुछ नहीं तलाशता
सिर्फ कविताएं लिखता हूं
और कभी कभी
कविता को तलाशने से भी डरता हूं।।
3.
मेरी स्मृतियों में रहना तुम
ऐसे ही दुख बनकर
मुझे खुशी होगी
मेरे मन में रहना
एक अधूरे स्वप्न की तरह
मुझे अच्छा लगेगा
आना मेरी नीरवता में
सुनूंगा होकर निमग्न
तुम पिघलाना दुख को मेरे
बनकर धूप कड़ी
तुम रहना
हर जगह रहना
आना इसी तरह हर जन्म में
पर मेरे हाथ न आना
सखि बचा रहे तुम्हें पाना।
4.
यहीं कहीं तुम्हारे आस पास
अनकही अनलिखी
एक महाकाव्य सी
किसी पेड़ पर झूमती हुई
चिड़िया के कलरव में घुली मिली
या नदी की कलकल में
फूल में हंसती हुई
हर तरफ नजर आ जाएगी कविता
अपनी पूरी तन्मयता से
उतर जाएगी कहीं गहरे
तुम्हारे ही भीतर
तुम उसे आदमी में न देखो
आदमी बनकर देखो।
5.
सुनो हे कवि
तुम क्या लिखोगे कविता
कोई भी मौसम न हो जिसका
वह वक्त से लड़ता है
जिसके पास जबान का स्वाद है
उसके पास सबसे अधिक कड़वाहट है
एक अंधेरे कुएँ में झाँककर
वह आदमी अंधा हुआ है
उसकी प्यास पर सदियों का सदमा है
वह आदमी अब शब्दों के कालेपन से निकलकर
नदियों के तटों से फिसलकर
सच और आदमीयत का बोझ ढो कर
एक सभ्यता की सरहद पर
हाशिये पर चल रहा है
कविता केवल शब्दों का हेर फेर नहीं
या कि केवल सुविधा का चेहरा नहीं
तुम उसे कविता में न उलझाओ
वह आदमी कविता से भी गहरे उतर गया है
वह किसी ग्रंथ या महाकाव्य में नहीं
वह पगडंडियों के किनारे उगा हुआ पेड़ है
इसलिए हे कवि सुनो
तुम क्या लिखोगे कविता
जबकि तुम तो डरे हुए हो
एक काली परछाई से।
एक मरती हुई रात
और टूटते हुए सपने काफी नहीं हैं कविता के लिए
इसलिए हे कवि
पहले जिंदगी के अंधेरों में
रोशनी का क्षितिज बनाओ
और उसे देखकर कदम बढ़ाओ
नहीं तो यहीं रुक जाओ।
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संजय छीपा
परिचय
संजय छीपा
गांव- मंगरोप
तहसील- हमीरगढ़
जिला- भीलवाड़ा
राजस्थान
मो: 099291 73184