पंचकूला 27 जून 2023 :
आधार प्रकाशन की ओर से हर वर्ष, अपने स्थापना दिवस पर 20 दिसम्बर को किसी एक महत्वपूर्ण साहित्यकार को विधिवत सम्मानित किया जाता है। इस संदर्भ में हमें विज्ञापित करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है की वर्ष 2023 के लिए गठित आधार सम्मान निर्णायक मंडल ने सर्वसम्मति से द्वितीय आधार सम्मान हमारे समय के महत्वपूर्ण लेखक विनोद शाही को समर्पित करने का निर्णय लिया है। यह सम्मान उन्हें 20 दिसंबर, 2023 को चंडीगढ़ में आयोजित होने वाले महत्वपूर्ण सम्मान समारोह में प्रदान किया जाएगा। निर्णायक मंडल का सुविचारित मत है कि ‘विनोद शाही की रचनात्मक प्रतिभा बहुआयामी और बड़ी हद तक अचंभित करने वाली है। वे न केवल हिन्दी आलोचना के प्रखर स्तम्भ हैं, बल्कि रचनात्मक विधाओं में उनका अक्षुण्ण योगदान है। कविता, कहानी और उपन्यास में उन्होने बेजोड़ काम किया है। इसके अतिरिक्त सम्पादन में भी उनका काम सराहनीय है। निर्णायक मंडल के तीनों सदस्यों का स्पष्ट मत है कि उन्हें सम्मानित करने का निर्णय लेकर यह सम्मान स्वयं को न केवल सिद्ध करता है बल्कि आज के समय में प्रतिरोध की हर आवाज को सम्मानित करते हुये खुद भी सम्मानित होता है।’
द्वितीय आधार सम्मान 2023 के लिए गठित निर्णायक मंडल में कथाकार किरण सिंह ( लखनऊ ), आलोचक एवं कथाकार देवेन्द्र चौबे ( प्रो. जे.एन. यू. दिल्ली) और वरिष्ठ कथाकार राजकुमार राकेश (शिमला) शामिल हैं। सम्मान राशि के रूप में 25 हज़ार रूपए, प्रशस्तिपत्र, शाल और स्मृति चिन्ह प्रदान किया जायेगा।
उल्लेखनीय है कि विनोद शाही ने साहित्य की अनेक विधाओं में उल्लेखनीय कार्य किया है। उपन्यास, नाटक, कविता, और कहानी के अतिरिक्त उन्होंने, आलोचना के क्षेत्र में जो कार्य किया है, उसने हिंदी जगत का ध्यान अपनी और विशेष रूप में खींचा है। एक साहित्यकार के रूप में विनोद शाही को लीक से हट कर काम करने वाले ऐसे लेखक के रूप में देखा जा सकता है, जो हर प्रकार के वैचारिक पूर्वाग्रह के खिलाफ अपनी निर्भीक आवाज बुलंद करने का प्रयास करता दिखाई देता है। आधुनिक काल के हिंदी साहित्य पर औपनिवेशिक सोच का प्रभाव गहरे में जड़े जमाए हुए नजर आता है। विनोद शाही ने इस लिहाज से अपनी सांस्कृतिक जमीन को मौलिक तरीके से दोबारा खंगालने और संभालने का जरूरी काम किया है। अपने समय और समाज की आत्मा की तलाश में यह लेखक अपनी पूरी सांस्कृतिक परंपरा की प्रासंगिक पुनर्व्याख्या करने की ओर आगे बढ़ा है। सांस्कृतिक परंपरा को नए अर्थ में खोजने का सवाल हो, तो आप वहां रामकथा का पुनर्पाठ देख सकते हैं। दार्शनिक परंपरा के भीतर से अपने समय को खोजने की बात हो, तो आप उन्हें पतंजलि का उत्तर आधुनिक पाठ करता देख सकते हैं। अपनी जमीन की जातीय पहचान को खोजने का सवाल हो, तो उनका साहित्य हमें बुल्ले शाह और वारिस शाह के अपने समय के जरूरी पाठ तक ले जाता है। लेकिन सबसे जरूरी काम जो विनोद शाही ने बतौर आलोचक किया है, वह हिंदी के अपने काव्यशास्त्र के सैद्धांतिक पक्ष को, नए सिरे से खड़ा करने से जुड़ा है। इस क्रम में वे साहित्य के नए प्रतिमानो की खोज तक चले गए हैं। आलोचना की सैद्धांतिकी के क्षेत्र में उनका यह कार्य खास तौर पर जरूरी माना जा सकता है। उनका एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य हिंदी साहित्य के इतिहास के सामयिक पुनर्पाठ से जुड़ा है। लेकिन वे इस दर्शन एवं सिद्धांत की दुनिया तक ही सीमित नहीं है। एक उपन्यासकार के तौर पर भी वे एक अलग रास्ते पर चलते दिखाई दे सकते हैं। अपने उपन्यास ‘ ईश्वर के बीज ‘ में वे अपने समय के यथार्थ की विडंबनाओ से तो जूझते ही है, गहराई में उतर कर मानव जाति के सभ्यता मूलक इतिहास को फिर से खोजने की कोशिश करते भी दिखाई देते हैं।
आधार प्रकाशन को लगता है कि विनोद शाही के इस तरह के बहुविध कार्य को भविष्य के लिए बचाए जाने की बहुत जरूरत है। इसलिए उनके नाम का चयन करते हुए हम अपने उस दायित्व की पूर्ति होता हुआ देखते हैं जिसके लिए हमने इस सम्मान श्रृंखला को आरंभ किया है। आशा की जानी चाहिए कि हिंदी जगत के द्वारा, हमारे निर्णायक मंडल के द्वारा चयनित इस आधार सम्मान को सकारात्मक स्वीकृति मिल सकेगी और इस निर्णय का प्रचुर स्वागत होगा।
देश निर्मोही
निदेशक
आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड
पंचकूला ( हरियाणा )