आज मुझे याद आने लगा बीस साल पहले जब मैं शिंटू से मिला था। वह भी एक इत्तफाक ही था। शिंटू न जाने कहां से आ रहा था मेरे सामने ही वह धड़ाम से गिर गया। सतरह-अठरह साल का लड़का कैसे गिर गया ? मैं अपने को रोक नहीं सका और उस ओर भागते हुए गया, उसे उठा कर खड़ा करने में मदद की। मुझे पूछने का उसने मौका ही नहीं दिया बोला,’ थैंक्यू अंकल कोई बात नहीं मेरे साथ ऐसा होता रहता है। अब मैं अपने आप घर चला जाऊंगा कोई टैंन्शन नहीं।‘ उसके चेहरे पर कोई झेंप तक नहीं थी। वह मुस्कुराता रहा।
वह चला गया। चाल तो उसकी लगड़े जैसी ही थी। मैं उसे जाते देखता रहा। उसने एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा। मैं भी अपने काम पर चला गया परन्तु जब शाम को उसी स्थान पर पहुंचा तो मेरा ध्यान फिर शिंटू की ओर चला गया था । उसके प्रति मेरी जिज्ञासा बढ़ने लगी ,जानने की इच्छा हुई और शिंटू के घर का पता करके उसके घर वालों से मिलने की इच्छा हुई। पता चला कि वह अपने पिता के साथ रेलवे कालोनी में रहता है मैं शाम को ही उनसे मिलने चल पड़ा।
रेलवे कालोनी में पहुंचा उसका मकान मिलने में कोई देरी नहीं लगी । शिंटू का नाम पूछते ही बाहर खेल रहे लड़के मुझे उसके मकान तक ले गए। रेलवे की कालोनी हो तो कोयले की अंगीठी क्यों न जले ? एक नहीं सभी घरों से कोयले की सुंगध के साथ आसमान में उठता धुंआ रेलवे कालोनी का आभास करा रहा था। पुराने समय की इस कालोनी में पानी नल से हमेशा लगातार वह रहा था टूंटी तो थी ही नहीं , किसी ने इन्हें एक बूंद पानी का मूल्य समझाने की हिम्मत नहीं की होगी क्योंकि इन्हें पानी की कोई दिक्कत आई ही नहीं होगी। सामने का गेट खुला रहता जहां से हर आने जाने वाले को देखा पहचाना जा सकता था। काल बैल बजाने की कोई जरूरत नहीं पड़ती। घर में उसके पिता जी मिल गए। घर के अंदर से मुझे खड़ा देख अपने कंधे पर रखे एक लाल रंग के तौलिए से हाथ पोंछते हुए मिलने बाहर आ गए।
“ आप शिंटू के बारे पूछने आए हैं ? यहां जो नया आदमी आता है वह उसी के बारे में पूछना चाहता है। आप भी पूछें। ” शिंटू के पिता जी ने मुझे देखते ही मेरे मन की बात को पढ़ लिया था।
“हां मैं शिंटू के बारे में ही जानने के लिए आया हूं।”
“आइए अंदर बैठते हैं। चाय भी पीते हैं और गपशप भी करते हैं। ” मैं सम्मोहित जैसे अंदर चला गया। छोटा सा कमरा उसी में एक ओर सोफा लगा था, कमरे का एक हिस्सा ड्राइंग रूम बनाया गया था। सामने दीवार पर एक रैक बना था। उस रैक पर दस ग्यारा ट्राफियां रखी थीं। सोफे के एक ओर बैठने के साथ ही चाय के लिए कहा गया जिसका मैं उपचारिकता वश भी बिरोध नहीं कर सका क्योंकि चाहता था कुछ देर बैठा रहूं और शिंटू के बारे जान सकूं। शिंटू के पिता ने बात अपने आप ही आरम्भ कर दी, “ मेरा शिंटू जिसका नाम विजय बहादुर है पैदा होते ऐसा नहीं था। इसका अपाहिजपन हमें जब यह आठवीं में था सामने आया और हम इसके इलाज में जुट गए। होनहार लड़के के लिए मैंने क्या नहीं किया। इसकी बीमारी की लड़ाई तो मेरे लिए किसी सैनिक युद्ध से कम नहीं थी। मैंने हर मोर्चा संभाला परन्तु मैं हार गया। मैं क्या मैडिकल सांईंस ही हार गई। यह बीमारी जीन्स के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती है। अब पता नहीं मेरे जीन्स में थी या मेरी पत्नी के ? डाक्टरों ने इस बीमारी का नाम मस्कुलर डिस्ट्राफी कहा है अर्थात् सब मसल धीरे धीरे कमजोर फिर काम करना छोड़ देंगे और अंत में जब यह बिमारी हार्ट तक पहुंचेगी तो सब खत्म हो जाएगा। मतबल आदमी तिल तिल मरता रहे और मां बाप इस दर्द को बर्दाश्त करते रहें।” वह थोड़ा रूका, मैं एक पिता की पीड़ा को समझ रहा था। उसने एक लम्बी सांस लेकर आगे बोलना आरम्भ किया, “तब तक हम शायद रहें या नहीं रहें कुछ नहीं कह सकते। अब चिंता यही है कि हमारे सामने सब कुछ हो जाए तो हम कम से कम इसकी देख रेख तो कर सकें। हमारे पीछे कौन इसे देखेगा ? जब से हमें इसकी लाइलाज बीमारी का पता चला है हमारी चिंता और बढ़ गई है।
आठवीं तक सब ठीक रहा । यह बैडमिंटन का खिलाड़ी था। यह सब ट्राफियां जो आप रैक पर देख रहें हैं उसने जुनियर बैटमिंटन में प्राप्त की हैं। पढ़ने में भी वह किसी से कम नहीं था। वह ऊपर वाला भी जो योग्य होता है उसी को दुख देता रहता है। फिर भी यह किसी न किसी तरह से बारहवीं पास कर गया। बारहवीं भी अपने स्कूल में पहले नम्बर पर रहा। आगे पढ़ना चाहता था परन्तु अब इसका चलना बंद हो गया था ,खड़ा होता तो गिर जाता है।” बोलकर वह वह चुप हो गया । शून्य में बाहर की ओर देखने लगा। मैं भी चुपचाप उसको पढ़ने लगा था , शायद उसके दर्द की पीड़ा का एहसास मुझे होने लगा होगा। इतने में शिंटू की मंमी चाय ले आई और हम चाय पीने लग गए, साथ में उसके पिता शिंटू के गुणों का बखान करते रहे। पता चला वह पेंटिंग भी करता है, गाना भी गाता है,बांसुरी भी बजाता है। शिंटू कई गुणों की खान बताया गया।
बीस साल बाद मैं इस शहर में फिर ट्रांसफर हो के आया तो शिंटू याद आने लगा। यह सोचकर कि इस छोटे से शहर में अगर वह यहीं होगा तो कभी न कभी वह मिल ही जाएगा मैं अपने काम में लग गया। मेरे सामने एक अपाहिज की साइकल रूकी। साइकल में एक अधेड़ सा युवक बैठा जो हाथ से साइकल को चला रहा था। साइकल में सुपारी,गुटके, सिगरेट, बीड़ी आदि की लटाएं लटकी हुई थी। साथ में एक ओर लटके रेडिओ में गाना चल रहा था। युवक की गर्दन भी गाने के ताल के साथ हिल रही थी। मैंने सोचा कि यह मुझे कुछ बेचने वाला है । मैंने तुरन्त ही कहा , “ भाई मैंने कुछ नहीं लेना है। आपके पास मेरे लिए कुछ नहीं है।” “ अंकल मैं आपको कुछ दे ही नहीं सकता। मैं शिंटू हूं। आपने मुझे एक दिन सड़क पर गिरते ही उठा लिया था। आप हमारे घर भी आए थे,बात पुरानी …..’’ “अरे शिंटू तुम ….’’ मैं शिंटू को पहचान कर बीच में ही बोल उठा। जिस के बारे मैं सोच रहा था वह मेरे सामने है। मैं खुश हुआ।
मैंने शिंटू को ध्यान से देखा, उसके बाल समय से पहले ही सफेद होने लगे थे। लगता है कि इसके बाल धूप में सफेद हो रहे हैं क्योंकि उसे अपने जीवन को चलाने के लिए साइकल पर धूप में ही तो निकलना पड़ता है। जब मैं उसकी साइकल को देख रहा था तो वह बड़े प्यार से मुस्कराते हुए बोल उठा, “ मेरे मामा ने दी है। ”
मैं भी केवल मुस्करा देता हूं। साइकल के ऊपर लिखा था ‘ मै ने जीना सीख लिया है।‘ मुझे उसका यह सलोगन अच्छा लगा। लड़का हिम्मत वाला है। यह तो मैं जानता ही था, आज देखने को मिल गया। तभी गुटके के गाहक उसके पास आ गए और वह गुटका बेचने में लग गया। उसके एफ एम रेडियो पर गाना चल रहा था और वह गाने के साथ झूंमता भी रहा और अपना सामान भी बेचने में व्यस्त हो गया।
उसके दो चार गाहकों ने उसे घेर लिया मैं भी जल्दी में था चल दिया। जाते हुए दिमाग में आने लगा कि उसकी बीमारी अब आगे बढ़ रही है। यह सब जानते हुए भी वह बड़े उत्साह से अपना जीवन यापन कर रहा है। आज मैं जल्दी में था चल पड़ा। बात अधूरी लगने लगी और सारे दिन शिंटू ही दिमाग पर छाए रहा, शिंटू की बिमारी अब आगे बढ़ गई है, उसकी टांगें बेकार हो गई हैं अब शायद वह कितने दिन … , आदि आदि चल चित्र की तरह दिमाग के पटल पर दस्तक देते रहे।
शिंटू को देख आज मुझे फिर से बीस साल पहले उसके पिता की मुलाकात याद हो आई। बीस साल को गुजरते मुझे तो कोई पता नहीं चला परन्तु बीस साल में कई तो परिवर्तन हो गए होंगे। मेरी जिज्ञासा शिंटू के पिता से मिलने की फिर होने लगी।
शाम को ही मैं रेलवे कॉलोनी की ओर चल पड़ा। अब तो पहले जैसा अंगीठियों से धुआं ही नजर नहीं आ रहा था। अब शायद रेल इलैक्ट्रिक हो गई है फिर भी कुछ इक्का-दुक्का अंगीठी से धुंआ निकल ही रहा था। उनके मकान के पास रूका तो देखा वहां तो कोई और ही रह रहा है। पता चला कि शिंटू के पिता को रिटायर हुए कई वर्ष हो गए और सुना जाता है कि उसके माता पिता दोनों ही भगवान को प्यारे हो गए हैं। अब शिंटू अपने बाप के बनाए हुए मकान में अपने भाई के साथ रहता है।
यह जानकर तो शिंटू से मिलने की मेरी जिज्ञासा और बढने लगी। अब जब भी मैं घर से बाहर निकलता हूं तो मेरी नजरें शिंटू को ढूंढने में ही लगी रहती हैं। उस दिन तो शिंटू मुझे प्रसन्न सा लगा। अब कहां रहता है कैसे गुजारा करता है सब जानने की इच्छा होने लगी। सभी बिकलांगो वाली साइकलों पर मैं नजर रखने लगा।
मन में इच्छा हो तो बात बन ही जाती है देरी भले ही लग जाए, एक वर्ष के बाद एक दिन शिंटू की साइकल को एक अधेड़ सा पुरूष धक्का मारता हुआ ले जा रहा था, दिखाई दिया। कभी कभी कोई गाहक मिलता तो वे रूक जाते । अपना सामान बेचने लगते। मैं जल्दी से शिंटू के पास पहुंच गया। मुझे देखते ही बोला, “ अंकल आप सालों बाद मिलते हैं। पिछली बार भी मैं आपको देखता रहा आप चले गए थे। ” “ हां, मैं चला गया था। उसके बाद मैं भी तुम्हें देखता रहा कोई पता नहीं चला। ”
“ अंकल, यह मेरा दोस्त भोला है। सवेरे हम दोनों साथ चलते हैं। अब मैं अपनी साइकल भी नहीं चला सकता। यह साइकल को धक्का देता रहता है और मैं सामान बेचता रहता हूं। हम दोपहर और रात का खाना इकद्ठे ही खाते हैं, साथ रहते हैं।” अपना मुंह भोले की ओर करके उसे कहा, “ भोले, अंकल नू नमस्ते कर ।”
भोले ने मुझे नमस्ते की। मैं मुस्कराया, “ भोले आप बहुत अच्छा करते हो। सेवा भाव तो किसी में ही होता है। धन्य हैं वो जो सेवा करते हैं। ” मैंने भोले के कंधे पर हाथ रख कर कहा।
“भोला का भी कोई नहीं है। भाईयों ने इसे घर से निकाल दिया है। अब हम दोनों साथ साथ ही रहतें हैं। यह खाना बनाता है,मैं थोड़ी बहुत मदद कर लेते हूं। फिर रात को हम कभी कैरमबोर्ड भी खेलते हैं।” “ तुम कैरम बोर्ड खेल लेते हो ? तुम्हारे तो हाथ चलते नहीं।” “ हाथ तो चलते नहीं परन्तु उंगलियां चलती हैं। भोला मेरे हाथ को बोर्ड पर रख देता है और मैं गोटियों को अच्छी तरह से खेल लेता हूं। ” “अंकल, यह ज्यादा बार जित जांदा है। ” भोले ने कहा। मुझे आश्चर्य होने लगा। इस लड़के को किसी से कोई शिकबा नहीं, कोई शिकायत नहीं। इसे उस बनाने वाले ने एक साथी भेज दिया है। अब इसके सहारे वह जिंदगी के शेष दिन निकाल लेगा। यह ऊपर वाला भी गोटियां खेलता रहता है , कौन सी गोटी कैसी खेलनी है वह अच्छी तरह से जानता है।
“ हमारा मिलना भी एक इत्तफाक ही था। यह बीड़ी खरीदने का मेरा पका गाहक था। इसी में हमारी दोस्ती हो गई। भोला पढ़ा लिखा नहीं है। यह अपनी प्रेमिका को पत्र मेरे से लिखवाता था। मैं पत्र लिखते हुए उसमें मजा लेता। एक बार मैंने उस पत्र में अपनी नमस्ते उसे क्या लिखी उसे तो पता ही चला गया कि भोला अनपढ़ है वह इसे छोड़कर चली गई और तब से यह प्रेम का मारा मेरे साथ ही रहता है। वह इसका सब कुछ मार कर चली गई I ”
मैं भोले की कहानी समझ गया उसकी ओर देखता रहा, वह मेरी ओर देखता रहा एक भीगी बिल्ली की तरह। मैंने उसके कंधे पर फिर हाथ रखा। साइकल पर रखे एक मोबाइल पर गाने बज रहे थे। साफ था कि अब रेडियो की जगह मोबाइल ने ले रखी थी।
“ मैंने सर उसको क्या नहीं दिया। वह जो मांगती सब कुछ देता था। मैंने भूखा रहकर भी उसकी हर मांग पूरी की । मैं खाली हो गया हूं।”
“भोले इस तरह से अपना दिल छोटा नहीं करते। तुम्हारे साथ तुम्हारा दोस्त भी तो है। तुम खाली कैसे हो गए ?” मैंने कहा।
तभी मोबाइल पर शिंटू और भोले का नाम आ गया। मोबाइल पर एफ एम विविध भारती का ‘एस एम के बहाने आपके तराने’ बज रहा था। उनकी फरमाइश थी ‘मेरी दोस्ती और मेरा प्यार’ फिल्म दोस्ती का गाना।
“ चुप हो जाओ चुप हो जाओ। हमारा गाना आ रहा है। अंकल, यह हम दोनों की फरमाइश है। हम इसी गाने की फरमाइश करते रहते हैं।” वह मेरी ओर देख कर ,कान मोबाइल की ओर लगाकर मुस्काने लगा।
“ आज फिर हमारा गाना आ गया। ” भोला भी खुश हो रहा था। अब उन दोनों का ध्यान गाने पर था। वे अपना नाम बिविध-भारती से सुन कर बड़े खुश हो रहे थे, साथ में गाना भी गुनगुनाने लगे।
गाना खत्म होने के बाद दोनों ने एक दूसरे से हाथ जोर से मिलाया मानों इनमें से किसी ने क्रिकेट के मैदान में छक्का मारा हो। थोड़ा हंसते रहे मैं उन दोनों को देखता रहा इनकी दुनियां भी अपनी है, वर्तमान में जीते हैं कल क्या होगा ,उसके लिए निश्चिंत रहते हैं। इनके जीवन का दर्शन ही पढ़ने योग्य है। विविध भारती भी इन लोगों के लिए कुछ खुशी तो बांटती है। क्षण में ही वे फिर अपनी बात पर आ गए,“ अंकल अब इसकी शादी हो जाए तो हम साथ रहेंगे, खाना वह बना लिया करेगी और हम बाजार में माल बेच कर पैसे उसे दे दिया करेंगे। ” शिंटू ने कहा।
भोला भी चुप रहा बल्कि हल्का सा मुस्काने लगा था। लग रहा था कि उसे काम सताता होगा और लगने लगा कि वह शादी की इच्छा रखता ही होगा।
मैं इन दोनों से मिलकर आज खुश था।
शिंटू और भोला को जब भी देखता हूं तो दोनों एक दूसरे के साथ देखने को मिलते हैं। उन्हें देखने से मुझे 1964 की फिल्म दोस्ती की याद ताजा हो जाती है। इसी फिल्म के गाने की वे विविध भारती से हमेशा फरमाइश करते रहते हैं। एक लंगड़ा और दूसरा अंधा, दोस्ती अटूट। यहां थोड़ा भिन्न एक स्वस्थ और दूसरा अपंग। एक चल नहीं सकता दूसरा चल फिर चकता है इसलिए शिंटू की पूरी तरह भोला मदद करता। ऐसा लगता है कि दोस्ती के दोनों किरदार फिर से एक अलग रूप लेकर आ गए हैं। आज के समय में जब एक दूसरे के पास बात करने का समय भी नहीं है यह दोस्ती का भाईचारा देखने को कम ही मिलता है।
कुछ अंतराल के बाद अब शिंटू चल फिर नहीं सकता, उठ बैठ नहीं सकता लेकिन बात चीत अच्छी तरह से करता । कहीं बैठा हो और बात कर रहा हो तो कोई नहीं कह सकता कि इसे कोई बीमारी है। हर बात में भाग लेता । सवेरे ही सारी के सारी अखबार जब तक चाट नहीं लेता तब तक वह चाय का घूंट तक नहीं पीता।
कुछ और दिनों के बाद जब मैं उन से मिला तो अब शिंटू की हालत खराब हो रही थी। वह अब अपने हाथ तक नहीं हिला सकता। केवल बोल सकता था। अब तो दोनों साथ ही रहते हैं। उनसे पता चला कि शौच करने के लिए भोले को ही उसे बाथ रूम तक ले जाना पड़ता है। यहां तक कि उसके चूतड़ तक भोला ही धोता है। अब तो उसके पांव मे सूजन आ गई है। मैंने उन्हें कहा कि चलो डाक्टर को दिखा आएं।
“ नहीं कल ही मैं इसे डाक्टर को दिखा आया था। ” भोले ने कहा। साइकल पर शिंटू को बैठाए अपना सामान बेचने दोनों निकल पडे़। मोबाइल पर विविध भारती बज रहा था। मैं उन दोनों को जाता देखता रहा। सोचने लगा कि सब अपनों ने शिंटू को त्याग दिया है एक मित्र ही काम आ रहा था। आज के समय में इस तरह के काम चूतड़ तक साफ करने का कौन कर सकता है ? भोले तुझे सलाम हो। अब मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी कि शिंटू की किसी दिन छुद्टी हो जानी है। डाक्टरों के कहने के मुताविक बीमारी हार्ट तक पहुंचने वाली है। इसलिए भी मैं उनको लगभग रोज देख आता।
शिंटू को मालूम है कि अब उसके दिन थोड़े ही रह गए हैं। उसे इसका कोई गम नहीं। शरीर में कोई स्थान ऐसा नहीं जहां उसे पीड़ा नहीं सताती हो लेकिन उसने कभी भी इसका पश्चाताप नहीं किया। वह कहता फिरता कि भोले जैसे दोस्त का जिस को साथ हो उसे दर्द का एहसास ही नहीं हो सकता। उसका मानना है ‘भगवान है या नहीं वह तो अपने मां-बाप के बाद भोले को ही जानता है।’
एक दिन मैं काम पर से घर आ रहा था। रास्ते में देखा तो शिंटू अकेला ही साइकल पर बैठा था। आज उसके पैर अधिक फूले हुए थे, आंखें डूबी सी, शरीर में कोई हरकत नहीं। उदास सा सड़क का दूसरा छोर देख रहा था। मोबाइल पर गाना ‘मेरी दोस्ती और मेरा प्यार’ बज रह था। मैंने पूछा , “ क्यों शिंटू आज तुम्हारी फरमाइश फिर आ गई ?”
“ नहीं अंकल अब तो गाना ही इसमें भर दिया है और इसी को सुनता रहता हूं। विविध भारती वाले भी तंग आ गए थे हमारी फरमाइश को बार-बार सुनाते हुए।” कहते हुए मुझे लगा कि आज पहली बार उसकी आंखें भर आई थीं। मैं उसकी ओर देखता ही रह गया। मैंने इधर उधर देखा तो मुझे भोला नजर नहीं आया, “ क्यों शिंटू भोला दिखाई नहीं दे रहा है ?”
क्षण भर वह चुप रहा फिर एक लंबा सांस लेते हुए बोला, “ अंकल जब से भोला गया है यह गाना मैं लगातार बजाता रहता हूं। मुझे लगता है कि भोला मेरे पास ही है। मैंने ही उसे भेजा है । ”
वह चुप तो हो गया या उसका गला रूंध गया था कुछ नहीं बोल पाया। लेकिन मेरा माथा ठनका पूछा, “ कहां गया है भोला, वह तुम्हारे बिना कहीं जाता ही नहीं था ?”
“ भोला कहीं नहीं गया है आ जायेगा। उसे मालूम है मेरा अंतिम समय नज़दीक है , उसके बिना तो मैं मरूंगा कैसे ? मेरे अंतिम संस्कार उसी के हाथों होने हैं। वह आएगा और यह गाना बजता रहेगा हम दोनों मिल कर इस गाने को गाएंगे तभी मैं मरूंगा। ” अब वह चुप हो गया। वह अपनी साइकल को मुझ से अलग ले जाना चाहता था। परन्तु मुझे मालूम है कि उसके हाथ नहीं चलते। उसमें अब तो बोलने तक की शक्ति भी नहीं रही है।
मेरी नजर उसके साइकल पर लटके सामान पर गई तो देखा उसमें अब एक आध ही पाऊच पड़ा है। “ तुम्हें यहां कौन लाता है ?”
“मोहल्ले के लड़के यहां ले आते हैं ।” उसका गला फिर भर आया।
“अंकल, आज आप मुझे घर छोड़ आओगे न ? बहुत देर हो गई है। आज मुझे घर छोड़ने कोई नहीं आए।” चुप होते ही उसने मुंह में आया थूक अंदर किया। जब भोला उसके साथ नहीं है तो मुझे लगा कि आज उसने खाना नहीं खाया होगा। मैं पास से ही एक दर्जन केले ले आया। एक केला शिंटू के मूंह में डालते हुए पूछ ही लिया, “ तुम भोले के बिना खाना कैसे खाते हो ?’’ “ अंकल, खा लेता हूं। अपना मुंह ही खाने तक ले जाना पड़ता है।” वह मुस्करा तो रहा था परन्तु लगा कि वह भूखा था, केला उसने बड़े स्वाद के साथ खाया और मुझे खिलवाने में आनंद आया।
मुझे उसकी मदद करना अच्छी लगने लगी। उसकी साइकल को धक्का मारते हुए उससे पूछ ही लिया, “अच्छा भोला कब आएगा ?”
“भोला जरूर आएगा वह हनीमून मनाने गया है। अंकल उसने शादी कर ली, कर क्या ली मैंने ही करवाई। भाभी आएगी हम दोनों की रोटियां बनाएगी। हम दोनों मिल कर खाऐंगे, उसका लड़का होगा, मुझे वह अंकल पुकारेगा। मैं उसे चाकलेट दूंगा…… ” बोलते बोलते वह सपने देखने लग गया था, चुप हो गया क्योंकि आगे उससे कोई शब्द ही नहीं निकल रहे थे। अब मैं भी उससे कुछ नहीं पूछ पाया। मेरा गला भी तो रूंधने लगा था।
मुझे लगने लगा कि अब भोला नहीं आएगा। सेवा करना बहुत कठिन धर्म है। लाखों में एक ही इसे निभा पाता है। और अब तो भोले को एन्टरटेनमैंट मिल गया है । अब शिंटू कुछ बीमारी से कुछ भूखे रहकर ही जल्दी चला जाएगा।
और एक दिन लोगों की भीड़ खड़ी देख मैं भी उस ओर लपका। साइकल उस पर शिंटू बैठा आंखें खुली, मोबाइल पर से गाना बज रहा था ‘ मेरी दोस्ती और मेरा प्यार’ और शिंटू चुप। आंखें जैसे भोले की राह देख रही हो कि भोला आएगा और उसकी अंतिम क्रिया करेगा। मैंने भीड़ को हटाया, उसकी आंखें बंद की और साइकल को भारी मन से धक्का लगाते हुए अंतिम यात्रा के लिए शिंटू को ले चला। सोचने लगा कि उसके रिश्तेदारों को जानकारी दूं। जब जिंदा रहते कोई भी काम नहीं आया तो उनसे संपर्क करने का कोई लाभ नहीं। हां पुलिस को समाचार देना जरूरी समझा।
मुझे उस दिन ही समझ लेना चाहिए था कि भोला शादी के बाद नहीं आएगा। शिंटू को क्या मालूम कि आजकल लड़कियां अपनों से अपने पति को अलग करती आई हैं परन्तु शिंटू की मित्रता के विश्वाश पर मैं कोर्इ संदेह नहीं कर सकता था। अब मैं समझ रहा था कि भोला हनीमून से नहीं आएगा जब तक वह भी उसे छोड़ न दे। मुझे ही उसका क्रिया-कर्म करना होगा। शिंटू के लिए लोग यह नहीं कहें कि उसका मित्र अंतिम समय में भी नहीं आया।
मैं उसके क्रिया-कर्म के लिए उसे श्मशान भूमि की ओर ले जाने लगा उधर उसके मोबाइल पर अब भी गाना बज ही रहा था ‘मेरी दोस्ती और मेरा प्यार’। मैंने गाना बजने दिया। साइकल पर से जब शिंटू को उठाया गया तो सीट पर एक फोटो भोले और शिंटू आपस में एक दूसरे को देख रहे हैं मिला, हो सकता है वह अंत तक इस फोटो को देखता रहा हो। मैंने फोटो भी शिंटू के साथ चिता पर रख दिया।
वहीं पर दूर खड़े एक युवक पर मेरी नजर पड़ी जो असहाय और विवश सा लग रहा था जो जलती चिता की लौ को देख किसी गहरी सोच में सजल नेत्रों से निहारता हुआ एक टक देख रहा था शायद वह भोला ही हो। मैं उसे ऐनक के बिना ठीक तरह से पहचान ही नहीं पा रहा था। मैं भारी मन से चिता के धुंए को ऊपर उठता देखता रहा शिंटू के दर्द को पढ़ते-पढ़ते दर्द के एहसास में डूबने लगा। पास पड़ी शिंटू की साइकल पर रखे मोबाइल से गाना अभी भी बज रहा था , ‘मेरी दोस्ती मेरा प्यार’।
संपर्क : सुंदर नगर, हिमाचल प्रदेश
…………………………………………………..